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हनुमान नाम स्तुति।।

          वैदिक संस्कृति में नामकरण संस्कार अत्यंत ही महत्वपूर्ण माना जाता है। नामकरण संस्कार में बालक के सम्पूर्ण जीवन की गति, नियति एवं रहस्य छुपा हुआ होता है। नाम का अत्यंत ही महत्व जीवन में है। नामकरण संस्कार पूर्ण रूप से बालक के जन्म के समय ग्रह नक्षत्रों की स्थिति, मुहुर्त, काल और अन्य गणनाओं से निर्धारित होता है। जैसे-जैसे बालक बड़ा होता है। नाम का असर दिखाई पड़ने लगता है। एक व्यक्ति के सम्पूर्ण जीवन में उसका नाम करोड़ों मुखों से करोड़ों बार उच्चारित होता है और उच्चारण ही ध्वनि स्पंदन की संरचना करता है। जिस प्रकार का स्पंदन होगा व्यक्ति के उपर असर भी उसी प्रकार का पड़ेगा। 
        आज से 50 वर्ष पूर्व हमारे यहाँ नामकरण अत्यधिक सावधानी पूर्वक किया जाता था एवं प्रत्येक सनातनी स्त्री या पुरुष के नामों में ईश्वरीय शक्तियों का समावेश होता था। यही कारण था कि 50 वर्ष पूर्व जन्में व्यक्तियों में स्वस्थ मानसिक स्थिति, ग्रहस्थ जीवन एवं चरित्र की उत्तमता विश्व के अन्य देशों की अपेक्षा अत्यधिक मात्रा में पायी जाती थी। 50 वर्ष पूर्व जन्में व्यक्तियों में अध्यात्म के प्रति जिज्ञासा और ज्ञान भी प्रचुरता में था। राम नाम में इतनी शक्ति है कि इसके बार- बार उच्चारण से ही विष्णु तत्व स्वयं ही जाग्रत हो जाता है। और जिसका ईष्ट विष्णु हो उस पर तो देवी-देवता कृपा करते ही हैं। नाम की ही माया है इस संसार में शरीर तो नश्वर है परंतु नाम अजर-अमर है नाम में ही समस्त क्रिया सूक्ष्म रूप से समाहित हो जाती है। 
         सभी आध्यात्मिक पथ के साधक अपने ईष्ट के नाम का जप निरंतर करते रहते हैं। शिव को सिद्ध करना है तो शिव का मंत्र जपना ही पड़ेगा। अद्वैत से द्वैत स्वरूप में प्रकट होने की क्रिया केवल नाम के द्वारा ही संभव है। प्रभु ने केवल भोजन से ही शक्ति ग्रहण करने की क्षमता मनुष्य को नहीं दी है। करोड़ों ऐसे मार्ग बनाए हैं जिनके द्वारा दिव्यतम शक्ति ग्रहण की जा सकती है और उन्हीं में से एक शक्ति है ईष्ट के नाम की स्तुति के द्वारा शक्ति को ग्रहण करना । सामान्य मनुष्य सम्पूर्ण जीवन एकमुखी होते हैं, उनका सारा जीवन यंत्र के समान है इसीलिये एक नाम से ही जाने जाते हैं। 
        दिव्य पुरुष अपने जीवन काल में अनंत रूपों में जीते हैं इसीलिये उनके सहस्त्र नाम होते हैं । आदि शक्ति माँ भगवती, भगवान शिव, विष्णु, ब्रह्मा इत्यादि-इत्यादि अनेकों नामों से हैं। यही विराट स्वरूप है। मस्तिष्क के अंदर जो कुछ भी जाता है वह बीज रूप में जाता है और प्रत्येक बीज शक्ति का केन्द्र है। अच्छा नाम रखेंगे, पवित्र नाम रखेगे, दिव्य नाम रखेंगे तो बालक के अंदर निश्चित ही उत्कृष्टता उत्पन्न होगी। अगर बालक का नाम अंग्रेजी सभ्यता के अनुसार कुछ भी ऊंटपटांग रखेंगे तो सम्पूर्ण जीवन वह अपनी पहचान बनाने के लिये भटकता रहेगा। नाम बालक को पहचान देता है अतः माता पिता का यह कर्त्तव्य है कि बालक का विधिवत् नामकरण संस्कार करें एवं सम्पूर्ण जीवन बालक को उसी नाम से पुकारें। घटिया और ओछे नामों से बालक को कदापि न बुलायें इससे उसके चरित्र पर प्रतिकूल असर पड़ता है। यह एक वैज्ञानिक सत्य है। नाम मस्तिष्क को अनुभूति प्रदान करते हैं। जिस नाम से मस्तिष्क को अच्छी अनुभूति प्राप्त हो तो मस्तिष्क स्वतः ही दिव्य ऊर्जा का उत्पादन करेगा 
       आनंद रामायण में हनुमान जी की बारह नामों से स्तुति की गयी है। हनुमान जी की यह बारह नामों वाला दुर्लभ स्तुति प्रस्तुत की जा रही है

हनुमानञ्जनीसूनुर्वायुपुत्रो महावलः । 
रामेष्ट: फाल्गुनसरव: पिङ्गाक्षोऽमितविक्रमः ॥
उदधिक्रमणश्चैव सीताशोक विनाशनः । 
लक्ष्मणप्राणदाता च दशग्रीवस्य दर्पहा ॥ 
एवं द्वादश नामानि कपीन्द्रस्य महात्मनः । 
स्वापकाले प्रवोधे च यात्राकाले च यः पठत् ॥ 
तस्य सर्वभयं नास्ति रणे च विजयी भवेत् । 
राजद्वारे गहवरे च भयं नास्ति कदाचन ॥

1. हनुमान - बाल्य अवस्था में इन्द्र ने हुनमान जी की ठोड़ी (हनु) पर अपने वज्र से प्रहार कर दिया था। जिसके कारण वे मूर्छित हो कर गिर पड़े थे और इस घटना पर वायुदेव ने कुपित हो कर इन्द्र से युद्ध की घोषणा की थी। इसीलिये हनुमंत हनुमान कहलाये। 

2. अंजनीसुत - हनुमान जी की माता अंजनी वानरी कुल से थी एवं पूर्व जन्म में वे एक दिव्य अप्सरा थी परंतु किसी कारणवश शाप ग्रस्त हो जाने के कारण उन्हें वानर कुल में जन्म मिला । वैदिक धर्म में पुत्र को माता के नाम से ही जाना जाता है। 

3. वायुपुत्र - एक समय जब माता अजंनी वन में सूर्य देव की आराधना कर रही थी तब उन्हें अपने पास किसी के मौजूद होने का आभास हुआ। इस पर वे क्रोधित हो गयी परंतु उसी क्षण वायु देव प्रकट हो कर बोले हे अंजनी इस पृथ्वी पर भगवान विष्णु शीघ्र ही अवतरित होने वाले हैं और उनकी सहायता के लिये भगवान शिव की आज्ञानुसार एक दिव्य व्यक्तित्व को भी उत्पन्न करने के लिये मुझे भेजा गया है एवं तुम्हारी ही कोख से मैं उसे उत्पन्न करना चाहता हूँ। अत: आप मेरी इस दिव्य संरचना में सहायता करें।

4. महाबल - अर्थात हनुमान अत्यन्त बलशाली हैं उनके बल का कोई बरावार नहीं पवन पुत्र होने के कारण वे वायु की तरह तेज चलते हैं इन्द्रादि समस्त देवी देवताओं की शक्ति उनमें समाहित है।. 

5. रामेष्ट - हनुमान भगवान श्री राम के सबसे प्रिय सेवक हैं। 
6. फाल्गुन सखा - अर्थात पाण्डव पुत्र श्रेष्ठ धनुर्धर अर्जुन के मित्र के रूप में भी हनुमंत ने महाभारत के युद्ध में अपनी समस्त शक्ति के साथ उनका साथ दिया है। जब अर्जुन के प्रेम में भगवान श्रीकृष्ण सारथी बन सकते हैं तो फिर हनुमंत भी अर्जुन के रथ की पताका पर आरूढ़ हो गये।

7. पिण्डाक्ष - हनुमंत की आंखों का रंग भूर है। 

8. अमित विक्रम - वे सभी देवी देवताओं की दिव्य शक्तियों से सम्पुट हैं इसीलिये वे अजर और अमर हैं एवं निरंतर सूर्य के समान अपने दिव्य आभामण्डल से रामत्व की सेवा में लीन हैं। 

9. उदधिकमण - हनुमंत ने माता सीता का पता लगाने के लिये रामेश्वर से सौ यौजन दूर समुद्र के बीचों-बीच बसे लंका तक की दूरी इस तरह लांघी मानो चार पैरों वाली गाय किसी जल रेखा को लांघती है। 

10. सीताशोक विनाशक - राम और सीता के पवित्र प्रेम बंधन में हनुमंत ही माध्यम हैं। भगवान श्रीराम के वियोग में व्याकुल सीता जी तक श्रीराम का संदेश पहुंचाने वाले हनुमंत ही हैं। वे ही राम और सीता के बीच प्रेम के सेतु हैं । 

11. लक्ष्मण प्राणदाता - लंकाकाण्ड में मेघनाथ की शक्ति से मूर्च्छित लक्ष्मण के प्राणों की रक्षा उन्होंने ही संजीवनी बूटी लाकर की है। राम जिन्हें लक्ष्मण स्वयं के भी प्राणों से ज्यादा प्रिय हैं उनकी रक्षा करने वाले हनुमान के प्रति तो श्रीराम के हृदय में अटूट प्रेम है। श्रीराम के अलावा समस्त अयोध्यावासी भी हनुमंत के प्रति कृतज्ञ हैं। 

12. दसग्रीव दर्पाहार - दस सिर वाले रावण के गर्व को तो हनुमान ने उसी दिन चकनाचूर कर दिया था जिस दिन अक्षय कुमार के वध के साथ-साथ समस्त लंका को अपनी पूंछ से जलाकर राख कर दिया था। 

      उपर वर्णित बारह नाम श्रीहनुमान जी के चमत्कारिक गुण का प्रतिनिधित्व करते हैं। उनके गुणों का स्मरण करने वाला उपासक उनके सहज आर्शीवाद को प्राप्त कर लेता है। श्री हनुमान जी को संकट मोचन के नाम से भी सम्बोधित किया जाता है। क्योंकि वे उपासक के संकट को निश्चित दूर करते हैं। श्री हनुमान जी के इन 12 नामों की स्तुति जो उपासक प्रातःकाल जागने पर रात में सोने से पहले और यात्रा में जाते समय करता है, वह निर्भय रहता है। उपासक चाहे राजद्वार में हो, चाहे युद्ध क्षेत्र में अथवा किसी भी बड़े संकट में फँसा हो, वह इस साधना से निर्भय रहता है।
                                         
                                     जय श्री राम

जय जय जय हनुमान गोसाँई। कृपा करहु गुरुदेव की नाई ।।

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