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प्रसिद्ध देवी तीर्थ और व्रत ।।

         तीनों लोकों में ऐसा कोई स्थान नहीं है जहाँ भगवती आद्या विद्यमान न हों। सृष्टि की स्थिति, पालन और विनाश सभी की मूल में आदिशक्ति भगवती ही हैं उनकी उपासना, आराधना कभी भी कहीं भी किसी भी विधि से की जा सकती है बशर्ते कि मन में श्रद्धा और विश्वास हो। भगवती की भक्ति में लीन होकर सदैव उनके ही चरण कमलों का चिंतन करने वाला साधक संसार में सर्वत्र निर्भय होकर विचरण कर सकता है आसुरी शक्तियाँ, भूत-प्रेत या तांत्रिक मांत्रिक उसका कुछ भी नहीं बिगाड़ सकते।
                भगवती जगदम्बा सर्वस्वरूपिणी हैं सम्पूर्ण काल उनके व्रत के लिए उत्तम है तथापि स्वरूप भेद से अलग अलग स्थानों में सुशोभित भगवती के सिद्ध तीर्थों का अपना अलग महत्व है। एक बार प्रसंगवश भगवती ने पर्वतराज हिमालय के अनुरोध पर उनकी जिज्ञासा को शांत करने के लिए स्वयं अपने प्रसिद्ध तीर्थ स्थलों के विषय में बताया था उन स्थानों का वर्णन अक्षरश: जैसा कि श्रीमद् देवी भागवत् में उल्लिखित है हम यहाँ प्रस्तुत कर रहे हैं।
                  कोलापुर नाम का एक परम प्रसिद्ध स्थान है, जहाँ लक्ष्मी सदा निवास करती हैं। दूसरे स्थान का नाम मातुःपुर है, उस पुरी में भगवती रेणुका रहती हैं। तुलजापुर मेरा तीसरा स्थान है। ऐसे ही एक स्थान का नाम सप्तश्रृङ्ग है। हिंगुला ज्वालामुखी, शाकम्भरी भ्रामरी, रक्तदन्तिका और दुर्गा इन देवियों के स्थान इन्हीं के नाम से प्रसिद्ध हैं। भगवती विंध्याचली का सर्वोत्तम स्थान विंध्य पर्वत पर है। अन्नपूर्णा स्थान और काञ्चीपुर स्थान अत्यन्त श्रेष्ठ माने जाते हैं। देवी भीमा और विमला के उत्तम स्थान इन्हीं के नाम से विख्यात है। श्रीचता का महान स्थान कर्णाटक देश में है। भगवती मीनाक्षी उत्तन स्थान चिदम्बरम् में बताया गया है। देवी सुन्दरी का परम उत्तम स्थान वेदारण्य में है। भगवती पराशक्ति एकाम्बर नामक सुप्रसिद्ध स्थान में शोभा पाती हैं। भगवा महाला और योगीश्वरी का स्थान इन्हीं के नाम से प्रसिद्ध है। देवी नीलसरस्वती का स्थान चीन देश में देवी बगला का सर्वोत्कृष्ट स्थान वैद्यनाथधाम में है। मैं सर्वे अर्य सम्पन्न भगवती भुवनेश्वरी हूँ। मेरा स्थान मणिद्वीप पर्वत पर कहा गया है। शंकर सती के शरीर को लेकर घूम रहे थे। उस समय सती का योनि भाग जहाँ गिरा वह स्थान कामरू नामक देश से प्रसिद्ध हो गया। वहीं भगवती त्रिपुरसुन्दरी का स्थान है। महामाया से सुशोभित यह स्थान जगत में जितने क्षेत्र हैं, उन सबका रत्न है, धरातल में इससे बढ़कर प्रसिद्ध स्थान कहीं कोई भी नहीं है। वह इतना जीता जागता स्थान है कि प्रत्येक मास में देवी वहाँ रजस्वला हुआ करती हैं। उस समय वहाँ के रहने वाले सभी प्रधान देवता पर्वत पर चले आते और वहाँ ठहरने की व्यवस्था कर लेते हैं। विद्वान पुरुषों का कथन है कि उस अवसर पर वहाँ की सम्पूर्ण भूमि देवीमय हो जाती है। अतः इस कामाख्यायोनि मण्डल से श्रेष्ठ अन्य कोई स्थान नहीं है।
            
                सम्पूर्ण ऐश्वर्यों से सम्पन्न पुष्कर क्षेत्र भगवती गायत्री का उत्तम स्थान कहा गया है। अमरकण्टक देश में भगवती चण्डिका का स्थान है। प्रभास क्षेत्र में भगवती पुष्करेक्षिणी रहती हैं। नैमिषारण्य परम प्रसिद्ध स्थान है। वहाँ सम्पूर्ण शुभ लक्षणों से शोभा पाने वाली भगवती ललिता विराजती हैं। पुष्कर में देवी पुरुहूता का तथा आषाढ़ी में देवी रति का उत्तम धाम है। चण्डमुण्डी नामक स्थान में चण्ड और मुण्ड को शांत करने वाली भगवती परमेश्वरी विराजती हैं। भारभूति में देवी नृति का तथा नाकुल में देवी नकुलेश्वरी का धाम है। हरिश्चन्द्र नामक स्थान में भगवती चन्द्रिका एवं श्री शैल पर्वत पर भगवती शांकरी प्रसिद्ध हैं। जप्येश्वर में देवी त्रिशूला और आम्रकेशर में देवी सूक्ष्मा विराजती हैं। महाकाल नामक क्षेत्र में भगवती शांकरी, मध्यम संज्ञक स्थान में शर्वाणी तथा केदार नाम से प्रसिद्ध महान क्षेत्र में देवी मार्गदायनी शोभा पाती हैं। भैरव नामक स्थान भगवती भैरवी का तथा गया भगवती मंगला का स्थान कहा गया है। देवी स्थाणुप्रिया कुरुक्षेत्र में रहती है और देवी स्वायम्भुवी नाकुल में कनखलं में देवी उग्रा का विमलेश्वर में विश्वेशा का, अहास नामक स्थान में महानन्दा का महेन्द्र पर्वत पर महान्तका का, भीमा पर्वत पर भगवती भीमेश्वरी का, वस्त्रापथ नामक स्थान में भगवती शांकरी का, अर्द्धकोटि पर्वत पर रुद्राणी का अविमुक्त क्षेत्र में विशालाक्षी का महालय नामक स्थान में महाभागा का गोकर्ण में भद्रकर्णी का, भद्रकर्णक में भद्रास्या का, सुवर्णाक्ष नामक स्थान में उत्पलाक्षी का, स्थाणु नामक स्थान में स्थाप्रवीशा का, कमलालय में कमला का, छागलण्डक में प्रचण्डा का, कुरण्डल में त्रिसंध्या का, 

माकोट में भृकुटेश्वरी का मण्डलेश में शाण्डकी का, कालंजर पर्वत पर भगवती ध्वनि का तथा स्थूलकेश्वर पर्वत पर देवी स्थूला का धाम कहा गया है। परमेश्वरी हल्लेखा सम्पूर्ण ज्ञानी पुरुषों के हृदयरूपी कमल पर विराजमान रहती है।
               .जैसा कि पहले कहा जा चुका है कि देवी का व्रत किसी भी दिन किया जा सकता है किन्तु अनन्त तृतीया व्रत रसकल्याणिनी व्रत और आर्द्रानन्द करीव्रत श्रेष्ठ माने गये हैं। शुक्रवार चतुर्दशी और भौमवार को भी भगवती के व्रत के लिए उत्तम माना गया है। शास्त्रों में देखी के प्रदोष व्रत का वर्णन करते हुए कहा गया है कि प्रदोष देवी का यह व्रत है जिस समय निशीथ रात में भगवान शिव अपनी प्रेयसी प्रिया को आसन पर बैठाकर उनके सामने देवताओं सहित नृत्य करते हैं। इस दिन उपवास करके सायंकाल के प्रदोष में देवी का पूजन करना चाहिए। सोमवार भी भगवती को अत्यंत प्रिय है इस व्रत में दिन भर उपवास करके देवी का पूजन करने के पश्चात रात्रि में भोजन करना चाहिए। चैत्र व आश्विन में पड़ने वाले दोनों नवरात्र देवी को परम प्रिय हैं। नवरात्र में प्रतिपदा के दिन विधिवत देवी की स्थापना कर नियमित रूप से तीनों संध्याओं के समय भगवती का पूजन करना चाहिए तथा अष्टमी या नवमी को हवन व कन्याओं को भोजन कराने से भगवती अत्यंत प्रसन्न होती हैं।
                    
                   शिव शासनत: शिव शासनत:

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