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त्रिपुर भैरवी ।।


       भैरव शब्द भर व से बना है भ का मतलब भरण, र का मतलब रमण और व का मतलब वमन । अर्थात भरण, रमण, वमन । भैरव जी भरण करते हैं, रमण करते हैं और वमन भी करते हैं अर्थात प्रदान भी करते हैं। भर व+ई = भैरवी, भैरव की शक्ति भैरवी । जो भैरव को भी क्रियाशील बनाये वही भैरवी । शिव और भैरव के बीच भैरवी मौजूद है। शिव को भैरव में परिवर्तित भैरवी ही करती हैं। आद्य और आद्या को जोड़ने वाली शक्ति का नाम है भैरवी । माँ भगवती त्रिपुर सुन्दरी की रथ वाहिनी त्रिपुरभैरवी कहलाती हैं। 

          त्रिपुर भैरवी अर्थात श्री ललिताम्बा की प्रमुख सहायिका, सखी, परम विश्वसनीय सहयोगिनी के रूप में क्रियाशील होती हैं। यह एक तरह से सृष्टि में क्रियात्मकता का प्रतीक हैं। उन्मुक्तता, निर्द्वन्ता, नृत्यता, आनंदता, घोरता, रुदनता, विलापता इत्यादि इनके प्रमुख चारित्रिक लक्षण हैं। सृष्टि को बुदबुदाहट इन्हीं के माध्यम से सदैव प्राप्त होती रहती है, यह अग्नि का प्रतीक है। जल को अग्नि के ऊपर रख दो वह बुदबुदाने लगेगा क्योंकि उसमें क्रियाशीलता बढ़ गई अगर यह न हो तो सृष्टि मृत्यु को प्राप्त हो जायेगी। मृत्यु को प्राप्त हो रही सृष्टि को नित्य युवा, यौवनवान बनाये रखने की निरंतरता त्रिपुरभैरवी ही सम्पन्न करती हैं। सारथी जिस तरफ रथ मोड़ दे, सारथी जहाँ चाहे वहाँ रथ ले चले, सारथी चाहे तो रथ में बैठी महाराज्ञी को ऊबड़ खाबड़ रास्ते पर ले चले या फिर आरामदेह मार्ग पर सारथी की योग्यता । पारंगतता, चैतन्यता पर ही रथ में सवार महाराज्ञी का जीवन टिका हुआ होता है।

          कृष्ण, अर्जुन के सारथी बन गये एवं अर्जुन समस्त प्रकार के मृत्यु भय से, मृत्यु संकट से महाभारत के युद्ध में उबर गये । ठीक इसी प्रकार श्री ललिताम्बा एवं सदाशिव की सारथी त्रिपुरभैरवी उन्हें सुगमता के साथ तीनों लोकों में भ्रमण कराती रहती हैं, उनके मार्ग को निष्कंटक बनाती रहती हैं । त्रिपुर भैरवी की साधना से आध्यात्मिक जातक इस पृथ्वी पर समस्त प्रकार के उत्पीड़नों से मुक्त होकर परम आनंद को प्राप्त करता है। छीन कर, झपटकर मारकर छीन लेती हैं भैरवियाँ अगर ये चाहे तो समस्त प्रतिकूलताओं के चलते वह सब उपलब्ध करा देती हैं जिसकी जातक ने कल्पना भी नहीं की है। इन्हें अपरा डाकिनी भी कहा जाता है अत: यह किसी भी प्रकार के नियम में नहीं बंधी होती अपितु सबके सब इनकी मर्जी के अनुसार 'चलते हैं। अचानक मृत्यु हो जाना, अपघात, घोर दरिद्रता, सौभाग्य को दुर्भाग्य में बदल देना, राजा को रंक कर देना, पौरुषवान को नपुंसक बना देना इत्यादि ये कुछ भी कर सकती है। करती क्या करती ही हैं। सभी नियमों से परे हैं त्रिपुर भैरवी । साधक और शिव के बीच रास्ता रोके त्रिपुर भैरवी खड़ी हैं इन्हीं से रास्ता मांगो।
                           शिव शासनत: शिव शासनत:

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