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बजरंग बाण ।।

      दस वर्ष पुरानी बात है, मेरे एक परिचित जो कि पुलिस विभाग में कार्यरत हैं राम भक्त हनुमान के परम भक्त हैं। किसी कारणवश मुझे प्रातः काल उनके घर जाना पड़ा। सुबह के समय जब मैं उनके घर पहुंचा तो वह बैठक से जुड़े हुये पूजा गृह में हनुमान जी की मूर्ति के सामने बड़े ही वीर भाव में किसी स्त्रोत का पाठ कर रहे थे। उनके पाठ में इतना तेज और प्राण था कि मेरे सम्पूर्ण शरीर के रोम छिद्र खुल गये और शरीर के सभी बाल सर्दी के मौसम में भी खड़े हो गये एवं सम्पूर्ण शरीर में एक विशेष ऊर्जा के प्रवाह का एहसास अचानक ही होने लगा। पूजा के पश्चात् जब वे मेरे पास आये तो मैंने उनसे सर्वप्रथम इसी स्त्रोत के बारे में पूछा। तब उन्होंने हंसते हुये बताया कि लगभग 20 वर्षों से मैं प्रातः काल बजरंग बाण का पाठ करता हूँ। 
          उनके पाठन को देखकर ही मैं समझ गया था कि निश्चित ही यह व्यक्ति बजरंग बाण सिद्ध है। पुस्तक में लिखा श्लोक एक अलग बात है परन्तु जब साधक श्रद्धा और पूर्ण तन्मयता के साथ उसे सिद्ध कर लेता है तो फिर मुख से निकला वह श्लोक या पाठ पूर्ण चैतन्य होता है। इस प्रकार के चैतन्य पाठ को सुनने से ही जब मैने अपने अंदर इतनी शक्ति का एहसास किया तब जो स्वयं ही वर्षों से इसका पाठ कर रहा है उसे कितनी दिव्य शक्ति प्राप्त होती होगी यह साधक के लिये चिंतन का विषय है। वार्तालाप में उन्होंने मुझे बताया कि जिस नौकरी में वे कार्यरत हैं उसमे उन्हें प्रतिदिन पता नहीं किस प्रकार के दुष्ट व्यक्ति को गिरफ्तार करना है इसीलिये कार्य अत्यधिक कठिन होता है। कठिन कार्यों में संलग्न व्यक्तियों को बजरंग बाण के पाठ से कार्य सिद्धि निश्चित ही प्राप्त होती है। उन्होंने अपने जीवन में अनेको दुर्दान्त अपराधियों को इसी बजरंग बाण की सहायता से एक ही बार में पकड़ने में सफलता प्राप्त की है। 
             मैं अपने जीवन में अनेकों उच्च अधिकारियों, सफल व्यवसायियों और अत्यंत प्रतिष्ठित व्यक्तियों से मिला हूँ। ये सबके सब अत्यंत ही बुद्धिजीवी हैं। इन सबके पास प्रशासन की अटूट शक्ति है पर इनमें से एक भी व्यक्ति मुझे नास्तिक नहीं मिला और तो और ये सभी व्यक्ति कहीं न कहीं जीवित जागृत सद्गुरुओं से जुड़े हुये हैं। प्रत्येक विशेष कार्य से पहले यह अध्यात्मिक पुरुषों से श्रृद्धापूर्वक राय लेते हैं। सभी हमेशा ही विशेष अनुष्ठान इत्यादि करवाते रहते हैं और तो और सभी किसी विशेष साधना को अपने जीवन का निश्चित अंग मानकर प्रतिदिन अखण्ड रूप से उसका जाप करते रहते हैं। इन्होंने बुद्धि के माध्यम से अध्यात्म की शक्ति को समझा जो कि एक श्रेष्ठ बात है और फिर उसे अपने जीवन में गुप्त रूप से अंगीकार कर अपने कार्यों को सफल बनाते हैं। यह बात और है कि वह समाज में विभिन्न कारणों से अपने आध्यात्मिक चिंतन को प्रदर्शित नहीं करते। द्वंद का विषय तो केवल मध्यम वर्ग में ही अधिक देखने को मिलता है। मध्यमार्ग तो अधकचरा मार्ग है। इस मार्ग पर चलने वाला व्यक्ति कहीं का नहीं रहता है।
            मध्यम वर्ग में भेड़चाल अधिक दिखाई पड़ती है। गुरू भी बनाते हैं तो बस उन्हें ही जिनकी चमक-दमक दीवारों और अखबारों में ज्यादा दिखाई देती है। भले ही वे ढोंगी क्यों न हों। जिस मार्ग पर सामने वाले ने चला दिया बस उसी पर भेड़ के समान चल दिये। उनके लिये गुरु का तात्पर्य अत्यधिक सीमित होता है । जो कुछ गुरु ने कहा बस उसके आगे दुनिया समाप्त हो गई। यहां तक कि जिन दिव्य शक्तियों से प्रेरणा लें उनका अनुष्ठान कर, उनके गुरुओं का प्रादुर्भाव हुआ है उन्हीं आदि शक्तियों का भी उपहास करने में नहीं चूकते। ऐसे शिष्य को प्राप्त कर उनके गुरु भी खुश नहीं होते। ज्ञान का मार्ग अत्यंत ही विराट मार्ग है। इसमें एक तो क्या अनेकों महापुरुषों के सानिध्य की जरूरत पड़ेगी। हनुमंत शक्ति ही ऐसी शक्ति है जिसने भगवान श्रीराम के सभी कार्य सौ प्रतिशत सफल किये।
                सफलता का दूसरा नाम ही हनुमंत शक्ति है और बाण का तात्पर्य तो सीधे-सीधे वायु प्रक्षेपण प्रणाली से है। सबसे सटीक और तीव्रगामी प्रणाली। हनुमंत तो मारुति नंदन और अंजनी पुत्र हैं। इसीलिये जब उपासक कार्य सिद्धि की इच्छा से भगवान श्रीरामचंद्र को हृदय में धारण कर प्रतिदिन बजरंग बाण का जाप करता है तो उसे आश्चर्य जनक सफलतायें प्राप्त होती हैं। हमारे साधु-संतों ने यह परम्परा डाली कि प्रत्येक ग्राम या नगर में उत्सवों के समय राम कथा या फिर हनुमान चालीसा का पाठ किया जाय तो इसका सीधा तात्पर्य जनमानस को भगवान श्रीराम की मर्यादा से परिचित कराना एवं उनके अंदर बजरंग शक्ति का उदय कराना ही है। प्रति वर्ष दशहरे से पूर्व प्रत्येक ग्राम में रामलीला का आयोजन किया जाता रहा है जिससे कि सही संस्कार, उच्च मर्यादायें एवं पवित्र और बलवान व्यक्तित्वों का निर्माण हो सके।

साधु संतों ने ही प्रत्येक ग्राम में हनुमत शक्ति को जाग्रत करने के लिये अखाड़ों एवं व्यायाम शालाओं का निर्माण करवाया परन्तु कालान्तर जैसे-जैसे पाश्चात्य कुप्रचारों के कारण इन सब आयोजनों का ह्रास होने लगा भारत के समाज में ऊपर से नीचे तक रोग, भ्रष्टाचार, कामलिप्तता, एकाकी परिवार और अनेक प्रकार की विकृतियां दिखाई देने लगी। आज से 50 वर्ष पूर्व आपके पूर्वज सम्पूर्ण जीवन में 100 रुपये की दवाई भी नहीं खाते थे। 70-80 वर्ष तक उनके अंग पूर्ण क्रियाशील होते थे। समाज में मद्यसेवन, धूम्रपान, भ्रष्टाचार अत्यंत ही न्यून मात्रा में था परन्तु 50 वर्ष के अंदर सब कुछ उल्टा हो गया। शरीर को प्रतिदिन 100 रुपये की दवाई खानी पड़ रही है। जिस देश में हनुमंत जैसा व्यक्तित्व हुआ वहां 30 वर्ष की उम्र में ही युवा सफेद बालों से ग्रसित दिखाई पड़ रहे हैं।
                प्राणों को शक्तिशाली केवल अध्यात्म के माध्यम से ही बनाया जा सकता है। प्राण ही शरीर का मूल हैं। प्राण बलवान होगे तो अंग-प्रत्यंग, मानस और चिंतन भी बलवान होगा। बजरंग बाण हनुमंत उपासना का अभिन्न अंग है नीचे इसे प्रस्तुत किया जा रहा है। इसका पाठ उच्च स्वर में पूर्ण श्रद्धा के साथ स्नान, ध्यान और पवित्रता के साथ प्रातः काल करने से आपके अंदर भगवान श्रीराम की मूल शक्ति आपको दिव्य सफलतायें दिलवायेगी।

दोहा
 निश्चय प्रेम प्रतीति ते, विनय करैं सनमान ।
तेहि के कारज, सकल शुभ सिद्ध करें हनुमान ॥

चौपाईप

जय हनुमंत सन्त हितकारी ।
 सुनि लीजै प्रभु अरज हमारी ॥ 
जन के काज विलम्ब न कीजें । 
आतुर दौरि महा सुख दीजै ।। 
जैसे कूदि सिन्धु महिपारा । 
सुरसा बदन पैठि विस्तारा ।।
आगे जाय लंकिनी रोका ।
मारेहु लात गई सुरलोका ।। 
जाय विभीषन को सुख दीन्हा । 
सीता निरखि परमपद लीन्हा ।। 
बाग उजारि सिन्धु महँ बोरा । 
अति आतुर जमकातर तोरा ।। 
अक्षय कुमार को मारि संहारा । 
लूम लपेट लंक को जारा ।। 
लाह समान लंक जरि गई ।
जय जय धुनि सुरपुर में भई ।। 
अब विलम्ब केहि कारन स्वामी । 
कृपा करहु उर अन्तर्यामी ॥ 
जय जय लखन प्राण के दाता । 
आतुर होय दुःख करहु नियाता ॥ 
जै गिरिधर जे जे सुख सागर । 
सुर समूह समरथ भटनागर ।। 
ॐ हनु हनु हनु हनुमन्त हठीले । 
बैरिहि मारु बज्र की कीले ॥ 
गदा बज्र ले बेरिहिं मारो । 
महाराज प्रभु दास उबारो ॥ 
ॐ कार हुँकार महाप्रभु धावो । 
बज्र गदा हनु विलम्ब न लावो ।। 
ॐ ह्रीं ह्रीं ह्रीं हनुमन्त कपीसा ।
ॐ हुँ हुँ हुँ हनु अरि उर शीशा ॥ 
सत्य होहु हरि शपथ पायके । 
राम दूत धरु मारु जाय के ।। 
जय जय जय हनुमन्त अगाधा । 
दुःख पावत जन केहि अपराधा ।। 
पूजा जप तप नेम अचारा । 
नहिं जानत हो दास तुम्हारा ।। 
वन उपवन मग गिरि गृह माहीं । 
तुम्हरे बल हम डरपत नाहीं ॥
पाँय परौं कर जोरि मनावों । 
येहि अवसर अब केहि गोहरावौं ।। 
जय अञ्जनि कुमार बलवन्ता । 
शंकर सुवन वीर हनुमन्ता ॥ 
बदन कराल काल कुल घालक ।
राम सहाय सदा प्रतिपालक ।।
भूत, प्रेत, पिशाच निशाचर । 
अग्नि बैताल काल मारी मर ।। 
इन्हें मारु, तोहि शपथ राम की राखउ नाथ मरजाद नाम की ॥ 
जनकसुता हरि दास कहावो ।
ताकी शपथ विलम्ब न लावो ॥ 
जै जै जै धुनि होत अकासा । 
सुमिरत होत दुसह दुःख नाशा ॥ 
चरण शरण कर जोरि मनावों । 
यहि अवसर अब केहि गोहरावौं । 
उठु उठु चलु तोहि राम दुहाई पांय परौं कर जोरि मनाई ।। ॐ चं चं चं चं चपल चलंता ।
ॐ हनु हनु हनु हनु हनुमंता ॥ 
ॐ हँ हँ हाँक देत कपि चंचल । 
ॐ सं सं सहमि पराने खल दल ॥ 
अपने जन को तुरंत उबारो । 
सुमिरत होय आनंद हमारो ।। 
यह बजरंग बाण जेहि मारे । 
ताहि कहो फिर कौन उबारे ।। 
पाठ करै बजरंग बाण की । 
हनुमत रक्षा करें प्राण की ।। 
यह बजरंग वाण जो जापे । 
ताते भूत-प्रेत सब कांपे ।। 
धूप देय अरु जयै हमेशा । 
ताके तन नहिं रहें कलेशा ।।

दोहा
प्रेम प्रतीतिहि कपि भजै, सदा धरै उर ध्यान तेहि के कारज सकल शुभ, सिद्ध करें हनुमान ॥

                                     जय श्री राम

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