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सूर्यास्तोत्रम् ।।


रोगों से मुक्ति तथा समस्त सिद्धियां प्रदान करने वाला दुर्लभ स्तोत्र 

       भगवान आदित्य का यह दुर्लभ आर्या स्तोत्र समस्त व्याधियों का शमन करने वाला है तथा जो निर्धन व दरिद्र है इस स्तोत्र का पाठ करने से अपार सम्पदा के स्वामी बन सकते हैं। जो सप्तमी तिथि को इस स्तोत्र का सात बार पाठ कर लेता है उसके घर में लक्ष्मी का चिरस्थाई निवास हो जाता है तथा उसके चेहरे की कांति बढ़ जाती है।

सूर्यास्तोत्रम्

शुकतुण्डच्छविसवितुश्चण्डरुचे: पुण्डरीकवनबन्धोः । मण्डलमुदितं वन्दे कुण्डलमाखण्डलाशायाः ॥

 यस्योदयास्तसमये सुरमुकुटनिघृष्टचरणकमलो ऽपि । कुरुतेऽञ्जलिं त्रिनेत्रः स जयति धाम्नां निधिः सूर्यः ॥

 उदयाचलतिलकाय प्रणतोऽस्मि विवस्वते ग्रहेशाय । 
अम्बर चूडामणये दिग्वनिताकर्णपूराय ॥ 

जयति जनानन्दकर: करनिकरनिरस्ततिमिरसङ्घातः । लोकालोकालोकः कमलारुणमण्डल: सूर्यः ॥

 प्रतिबोधितकमलवनः कृतघटनश्चक्रवाकमिथुनानाम् । दर्शितसमस्तभुवनः परहितनिरतो रविः सदा जयति ॥

 अपनयतु सकलकलिकृतमलपटलं सुप्रतप्तकनकाभः ।
 अरविन्दवृन्दविघटनपटुतरकिरणोत्करः सविता ॥

 उदयाद्रिचारु चामर हयखुर परिहितरे णुराग ।
 हरितहय हरितपरिकर गगनाङ्गदीपक नमस्ते ऽस्तु ॥

 उादतवति त्वयि विकसति मुकुलीयति समस्तमस्तमितबिम्बे ।
नान्यस्मिन् दिनकरसकलं कमलायते भुवनम् ।।

जयति रविरुदयसमये बालातपः कनकसंनिभो यस्य । कुसुमाञ्जलिरिव जलधौ तरन्ति रथसप्तयः सप्त ॥ 

आर्या साम्बपुरे सप्त आकाशात् पतिता भुवि ।
यस्य कण्ठे गृहे वापि न स लक्ष्म्या वियुज्यते ॥ 

आर्या सप्त सदा यस्तु सप्तम्यां सप्तधा जपेत् । 
तस्य गेहं च देहं च पद्मा सत्यं न मुञ्चति ॥ 

निधिरेष दरिद्राणां रोगिणां परमौषधम् । 
सिद्धिः सकलकार्याणां गाथेयं संस्मृता रवेः ॥

कमल वन के पोषक भगवान सूर्य का तेज परम प्रचण्ड है। सुग्गे के छोर की भाँति लाल, सम्पूर्ण दिशाओं को कुण्डल की छवि प्रदान करने वाले, उनके उदयकालीन मण्डल को मैं प्रणाम करता हूँ।

जिनके उदय और अस्त होते समय देवताओं के मुकुट घिसे हुए चरण कमल वाले शंकर भी अंजलि जोड़कर प्रणाम करते हैं, तेजों के पुंज उन भगवान सूर्य की जय हो ।

उदयाचल पर्वत को सुशोभित करने वाले, ग्रहों के शासक, आकाश को चमकाने के लिये चूड़ामणि तथा पूर्व दिशारूपिणी नारी के कर्णफूल भगवान सूर्य को मैं प्रणाम करता हूँ।

सम्पूर्ण जनसमुदाय को आनन्दित करना जिनका स्वभाव है, जिनकी किरणों से राशि राशि अन्धकार नष्ट हो जाते हैं और अखिल भूमण्डल प्रकाशित हो उठता है, उन लोकालोक पर्वत को आलोकित करने वाले लाल कमल के समान सुन्दर मण्डलवाले भगवान सूर्य की जय हो।

जो कमलों को खिलाने वाले, चकवा चकवी पक्षी के अलग हुए जोड़े को मिलाकर प्रसन्न करने वाले हैं, सारे संसार को आलोकित करने में तथा दूसरों के हित में सदा उद्यत रहते हैं, उन भगवान् सूर्य की जय हो।

कमलों को खिलाने के लिये जिनकी किरणें परम निपुण हैं तथा जिनका दिव्य कलेवर तपाये हुए सुवर्ण के समान हैं, वे भगवान सूर्य से कलियुग से सम्बद्ध समस्त पापों को दूर कर दें।

भगवन्! आप उदयाचल पर्वत के लिये सुन्दर चँवर का काम करते हैं। आपके हरे रंगवाले घोड़ों के पैर की धूलि से दूसरों का सदा हित होता है। आपके वाहन अश्व एवं परिजन सभी का रंग हरा है तथा आकाश को प्रकाशित करने के लिए आप दीपक हैं। भगवान सूर्य को मैं प्रणाम करता हूँ।

भगवन! आपके उदय होने पर सारा संसार जागता और अस्त हो जाने पर निद्रा में विलीन हो जाता है। आपके आश्रित सम्पूर्ण संसार ही कमलवत व्यवहार कर रहा है। प्रभो! आपके अतिरिक्त अन्य किसी में ऐसी शक्ति नहीं है।

जिनका प्रकाश उदयकाल में स्वल्प तथा पीत सुवर्ण के समान रहता है, आकाश में जिनके सात घोड़ों वाला रथ समुद्र में पुष्पांजलि की भाँति तैरता है एवं प्रकाश भी उत्तरोत्तर बढ़ने लगता है, उन भगवान सूर्य की जय हो ।

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