Follow us for Latest Update

माँ महाकाली ।।

       जब साधक पर महाकाली की कृपा होती है तो उसे अघोर मुख प्राप्त होता है और उसकी जिह्वा एवं कण्ठ में अघोर काली विराजती हैं तत्पश्चात् उसका एक-एक शब्द अकाट्य सत्य होता है, उसे मुख सिद्धि प्राप्त होती है एवं उसके वचन । सत्य को प्रतिबिम्बित करते हैं, यही सद्गुरु की पहचान है। सद्गुरु के शब्द काल से परे होते हैं, सद्गुरु की वाणी में महाकाली का अट्टाहास होता है, जो वह कह दे पत्थर की लकीर होता है, ब्रह्माण्ड की कोई भी शक्ति उसके वचन को मिथ्या सिद्ध नहीं कर सकती क्योंकि महाकाली ही सत्य हैं, सत्य की रक्षिका हैं। शिव, सत्यम शिवम् और सुन्दरम् सिर्फ महाकाली के आलिंगन बद्ध होने के कारण ही बने हैं।
                महाकाली की एक शब्द में विवेचना है अपराजिता अर्थात जो कभी भी, कहीं भी, किसी भी स्थिति में पराजित नहीं होती। सिर्फ विजय ही विजय जय ही जय जिह्वा पर आशीर्वाद एवं शाप का उदय महाकाली की शक्ति ही कराती है। शब्द प्राणों से संचालित हों, शब्द किसी और के मस्तिष्क में प्रवेश करते ही प्रकाश जगा दें, शब्द मुर्दे को प्राणवान बना दें यही मंत्र सिद्धि है। जब शब्दों में प्राणों का संचार हो जाता है तो वे मंत्र में परिवर्तित हो जाते हैं, वे ऊर्जा पिण्ड बन जाते हैं। शब्दों में प्राण फूंकने वाली समस्त ब्रह्माण्ड में प्राण फूंकने वाली प्रथमा हैं महाकाली । 
                मत्स्येन्द्रनाथ को साबर मंत्रों का निर्माण करना था, एक नये प्रकार की मंत्र व्याख्या करनी थी तो वे भद्रकाली की शरण में ही गये। उनके आशीर्वाद से मत्स्येन्द्रनाथ ने साबर मंत्रों का संसार रचा, एक नई सृष्टि की और इस सृष्टि पर मोहर थी भद्रकाली की अतः मंत्र के अधीनस्थ सभी देवताओं ने साबर मंत्रों की सत्ता स्वीकार की अर्थात महाकाली की सत्ता स्वीकार की एकमात्र भद्रकाली ही हैं जिसकी सत्ता शिव ने भी स्वीकार की कभी वह उनकी गोद में खेलते हैं, कभी वह उनकी जंघा पर सिर रखकर विश्राम करते हैं, कभी वह उनके सानिध्य में ध्यान मग्न होते हैं तो कभी उनके चरणों में लेटते हैं। जैसा भद्रकाली चाहती हैं वैसा ही शिव करते हैं अतः वे सर्वोच्च शक्ति हैं। शिव जब ताण्डव नृत्य करते हैं तो सृष्टि का एक-एक कण शांत चित्त हो जाता है परन्तु महाकाली जब अपनी सौ भुजाओं और सौ पैरों के साथ नृत्य करती हैं तो शिव भी छिप जाते हैं, शिव से शव बन जाते हैं। ताण्डव से भी ऊपर है महाकाली का नृत्य, ताण्डव से भी प्रचण्ड है महाकाली का महानृत्य। वे परमा हैं, परमा अर्थात सौन्दर्य में भी परम, क्रोध में भी पराकाष्ठा, सम्मोहन में भी चरम और नृत्य में भी परम। वे मूल शक्ति हैं, मूल की खोज तो करनी ही पड़ती है। 
              १३ वी शताब्दी में यूरोप वासियों के मन में भारत की खोज की लालसा जागी क्योंकि भारत मूल शक्ति का केन्द्र है, शिव और शक्ति का निवास स्थल है। मनुष्य सर्वप्रथम यहीं पर सृष्टि ने निर्मित किया है, धर्म यहीं पर प्रादुर्भावित होते हैं और कालान्तर छिटक-छिटक कर समस्त विश्व में फैल जाते हैं जैसे कि जड़ से निकले हुए तने, शाखायें इत्यादि । मूल का अपना आकर्षण है। यूरोपवासी चल पड़े नौकाओं पर सवार वेस्टइंडीज खोजा, अमेरिका खोजा, अफ्रीका महाद्वीप खोजा, गलती से उत्तर और दक्षिण ध्रुव भी पहुँच गये। मूल देश की खोज में चार सौ वर्ष भटकते रहे, समस्त विश्व खोज लिया तब जाकर अंत में भारत की भूमि पर उतर पाये, आखिरकार मूल की शक्ति देख ही ली। देख लिया, समझ लिया, आत्मसात कर लिया ब्रह्मज्ञान को योग विद्या को, तंत्र शास्त्र को और तो और शिव और काली के साधनात्मक पक्ष को। मूल में यही सब होता है और इसी से शक्ति का उत्पादन होता है, ऊपर के जगत को पोषण मिलता है। 
             अध्यात्म के पथ में भी साधक इसी प्रकार मूल शक्ति की खोज में भटकता है एवं अनेकों देव शक्तियों, ग्रह, नक्षत्र, आकाश पिण्ड, अवतारों, गुरुओं को खोजते खोजते अंत में मूल शक्ति तक पहुँच ही जाता है अर्थात शिव और काली तक । मूल की विशेषता क्या है? आप जल पीते हैं तो वह निष्कासित हो प्रकृति के माध्यम से पुनः अपने स्थान समुद्र तक पहुँच ही जाता है। यात्रा लम्बी हो सकती है परन्तु मूल में जाना ही अंतिम पड़ाव है और वही पुनः ऊर्जावान होकर फिर से एक बार यात्रा शुरू होती है। आराधना क्या है ? आराधना भी मूल के सिद्धांत पर कार्य करती है। आपने कृष्ण को पूजा, कृष्ण तो पूजा ग्रहण करेंगे ही साथ में उनके गण भी उसमें हिस्सेदार होंगे कालान्तर कृष्ण उस पूजा को आगे बढ़ा देंगे और इस प्रकार कृष्ण में बैठी काली उसे ग्रहण कर लेगी अतः उपासना पद्धति में आप चाहे यंत्र रखे या पत्थर उपासना मूल तक पहुँच ही जाती है, व्यवस्था ही इस प्रकार की है क्योंकि अंतिम बिन्दु तक अर्क पहुँच ही जाता है। मुख से निकले शब्द शिव और काली तक पहुँच ही जाते हैं, यही पूजन पद्धति का रहस्य है, यही काली ज्ञान है।

Maa Mahakali
 
        When a seeker is blessed by Mahakali, he attains an Aghor face, and Aghor Kali resides in his tongue and throat, after which every word of his is irrefutable truth, he attains success in his mouth and his words. Reflects the truth, that is the hallmark of a Sadhguru. Sadguru's words are beyond time, in Sadguru's speech Mahakali's laughter, what he says is like a stone's streak, no power of the universe can prove his word as false because Mahakali is the truth, of the truth. She is a protector. Shiva, Satyam Shivam and Sundaram have been created only because of being bound by Mahakali's embrace.
                 The description of Mahakali in one word is Aparajita, that is, one who is never defeated, anywhere, in any situation. Only victory, victory, jai, jai, only the power of Mahakali makes the rise of blessings and curses on the tongue. Let the words be driven by life, let the words awaken the light as soon as they enter someone else's mind, the words make the dead alive, this is the mantra siddhi. When prana is infused into words, they are converted into mantras, they become energy bodies. Mahakali is the first to breathe life into the whole universe.
                 Matsyendranath had to create sabar mantras, a new type of mantra had to be interpreted, so he went to the shelter of Bhadrakali. With his blessings, Matsyendranath created the world of Sabar Mantras, created a new creation and this creation was sealed by Bhadrakali, therefore all the deities subordinate to the Mantra accepted the power of Sabar Mantras, that is, the only one who accepted the power of Mahakali is Bhadrakali, whose power was given by Shiva. Also admitted that sometimes he plays on her lap, sometimes he rests with his head on her thigh, sometimes he meditates in her company and sometimes he lies down at her feet. Shiva does as Bhadrakali wants so he is the supreme power. When Shiva performs the Tandava dance, every particle of the universe becomes calm, but when Mahakali dances with her hundred arms and hundred feet, Shiva also hides, becomes a corpse from Shiva. The dance of Mahakali is higher than the Tandava, the great dance of Mahakali is more fierce than the Tandava. He is the Supreme, Parama, that is, the ultimate in beauty, the ultimate in anger, the ultimate in hypnosis and the ultimate in dance. He is the original power, the root has to be discovered.

             In the 13th century, the desire to discover India arose in the minds of Europeans because India is the center of original power, the abode of Shiva and Shakti. Human beings have been created by the universe here for the first time, religions are born here and with time they spread in the whole world like stems, branches, etc. The original has its own charm. Europeans sailed on boats, discovered the West Indies, discovered America, discovered the continent of Africa, accidentally reached the North and South Pole. Wandered for four hundred years in search of the original country, searched the whole world, then finally landed on the land of India, finally saw the power of the origin. Have seen, understood, assimilated the knowledge of Brahman, Yoga Vidya, Tantra Shastra and the spiritual side of Shiva and Kali. This is what happens at the root and from this power is produced, the world above gets nourishment.
             Similarly in the path of spirituality, the seeker wanders in search of the original power and in search of many gods, planets, constellations, sky bodies, avatars, gurus, in the end, reaches the original power i.e. Shiva and Kali. What are the characteristics of the original? If you drink water, it gets expelled through nature and again reaches its place in the sea. The journey may be long, but going to the origin is the last stop and the same journey starts once again after being re-energized. What is worship? Worship also works on the principle of origin. You worship Krishna, Krishna will accept worship as well as his members will also be a part of it, over time Krishna will carry forward that worship and thus Kali sitting in Krishna will accept it, so whether you keep a yantra or stone worship in the worship system. is reached, the arrangement itself is such because the extract reaches the end point. The words coming out of the mouth reach Shiva and Kali, this is the secret of the worship method, this is the knowledge of Kali.

0 comments:

Post a Comment