Follow us for Latest Update

श्री कमला ।।

        दस महाविद्या के अंतर्गत भगवती कमला सबसे छोटी हैं और इसके साथ ही ये सबसे ज्यादा परिष्कृत, सौम्य, शीघ्र प्रसन्न होने वालीं, क्रोध-वर्जिता, हिंसा-विहीना एवं दण्ड विहीना हैं। विश्व की समस्त भौतिक सम्पत्ति, ऐश्वर्य, सुख संतान इत्यादि की ये दात्री मानी गई हैं। इनके शिव महामृत्युंजय हैं एवं शिव का महामृत्युंजय स्वरूप ही पूर्ण रूप से अभय कारी है एवं पुनः जीवनदान प्रदान करने वाला। सृष्टि की पुनर्स्थापना, देवताओं को अमृतकलश प्रदान करना, पृथ्वी पर अमृत बूंदों का छलकना, महाकुम्भ जैसे पर्वों का सृजन इत्यादि के मूल बिन्दु में महामृत्युंजय शिव एवं उनकी भार्या कमलेश्वरी ही है क्योंकि ये दोनों इसी स्वरूप में अमृत कलशों से अभिषिक्त हो रहे हैं।

            कमला महाविद्या के भैरव हैं विष्णु एवं अपने भैरव विष्णु को कमलेश्वरी अपनी अंश स्वरूपा सत्वगुण प्रधाना महालक्ष्मी प्रदान कर रही हैं। शिव और कमला दोनों आद्र भाव में स्थित हैं इसलिए महालक्ष्मी को आद्रा कहा गया है। आद्रा का तात्पर्य है स्त्रावित होते रहना, उत्सर्जित होते रहना, प्रवाहित होते रहना,सौम्यता बिखेरते रहना। जहाँ महालक्ष्मी स्थापित होती हैं वहाँ शुष्कता, कठोरता इत्यादि का नामोनिशान नहीं रहता। आद्र भूमि ही अन्न उत्पन्न करती है, आद्र वातावरण में ही दिव्य रसों से युक्त फलों का उत्पादन होता है, आद्र मस्तिष्क ही दयामय, प्रेममय, दानमय और कल्याणकारी होते हैं। मस्तिष्क में अगर शुष्कता है तो निश्चित ही क्रूरता, कठोरता और युद्धोन्माद का ही सृजन होगा। शुष्क बीज से वृक्ष उत्पन्न नहीं होता, जब बीज आद्र होता है तभी वह विशाल रूप धारण कर पाता है। सूखे कठोर एवं प्रस्तर खण्डों को भी लतायें अपने पाश में बांध उन्हें हरितिमा प्रदान करती हैं, उन पर जीवन पल्लवित करती है, उन्हें भी आद्र करके रखती हैं। 

            प्रस्तर खण्डों में से भी झरने फूट उठते हैं, हिमालय भी आद्र होता है एवं तभी गंगा उत्सर्जित होती है और जीवन दायिनी बनती है, लक्ष्मी स्वरूपा होती है। चंद्रमा जब आद्र होता है तभी अमृत किरणें बिखेरता है। लक्ष्मी कुल शक्ति है, कुल प्रिया हैं, कुटुम्ब का निर्माण करती है, एकता स्थापित करती हैं। पाँच हजार विभिन्न सोच वाले मनुष्यों को विभिन्न प्रकृति वाले मनुष्यों को एक जगह लम्बे समय तक एकत्रित करना किस माध्यम से सम्भव हो पाता है ? केवल धन के माध्यम से। पाँच हजार मस्तिष्क एक कारखाने में, एक साथ, एक लक्ष्य लेकर कार्य केवल लक्ष्मी प्राप्ति हेतु ही करते हैं। यही लक्ष्मी की महिमा है। लक्ष्मी की प्राप्ति हेतु तो देव, असुर, दैत्य, दानव, त्रिदेव, अप्सरायें, गंधर्व ऋषि-मुनि इत्यादि सबने मिलकर एक साथ समुद्र मंथन किया अन्यथा ये सब सृष्टि में कभी भी किसी भी क्षण एक जुट नहीं हो सके परन्तु लक्ष्मी हेतु एक जुट हो प्रयत्न किया। 

           जीवन को सुलभ, सरल और आनंददायी लक्ष्मी के अभाव में कदापि नहीं बनाया जा सकता। लक्ष्मी सभी की प्रथम आवश्यकता है। शिव, विष्णु और लक्ष्मी यह विशेष आध्यात्मिक त्रिकोण है। विष्णु कर्म, शिव अध्यात्म और लक्ष्मी भाग्य का प्रतीक हैं एवं इन तीनों के समायोजन से ही व्यक्ति सम्पूर्णता प्राप्त करता है। अकेले कर्म के माध्यम से लक्ष्मी प्राप्त नहीं होती। शास्त्रों में स्पष्ट कहा गया है कि अगर व्यक्ति के पास प्रचण्ड शिव ज्ञान और विज्ञान है परन्तु लक्ष्मी नहीं है तो इस जगत में वह प्रत्येक जगह तिरस्कार को ही प्राप्त होगा सदैव भिक्षुक रहेगा इसलिए भाग्य भी चाहिए। लक्ष्मी भाग्य हैं, लक्ष्मी सौभाग्य हैं एवं उन्हें सदैव सौभाग्यवती कहा गया है क्योंकि विष्णु उनका सौभाग्य हैं। धूमावती विधवा हैं इसके विपरीत कमला सर्वदा सौभाग्यवती हैं। यही कमला महात्म्य है। कमला पूजन का तात्पर्य है जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में सौभाग्य।

0 comments:

Post a Comment