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शंख -

🔹शंख की उत्पति
🔹शंख के प्रकार
🔹शंखनाद का हमारे जीवन में प्रभाव
🔹शंख पर प्रसिद्ध वैज्ञानिक वैज्ञानिक आचार्य जगदीश चन्द्र बोस का मत 🧵 

शंख सदैव से ही सनातन संस्कृति के अनेक प्रतीकों में से एक प्रतीक रहा हैं । प्राचीन काल में शंख सब घरों में होता था। इसे दैनिक पूजा-अर्चना में स्थान दिया गया था। साधु समाज ही नहीं, गृहस्थों के घरों में भी शंख अनिवार्य रूप से रहता था। 

♦️शंखध्वनि मानव के लिए श्रवणोपयोगी है। इसमें वायु प्रदूषण दूर करने की अद्भुत क्षमता है। यही कारण है कि कथा-पूजा-आरती व प्रवचन के समय एकत्रित सदस्य समुदाय की श्वास-प्रश्वास क्रिया द्वारा फैलने वाले प्रदूषण को दूर करने के लिये सर्व प्रथम शंख-ध्वनि करने की प्रथा है। इससे एकत्रित जन समुदाय का ध्यान भी एक ओर आकृष्ट कर केंद्रित किया जाता है। प्राचीन काल में शंख सब घरों में होता था। इसे दैनिक पूजा-अर्चना में स्थान दिया गया था। l आज भी सभी साधु समाज और देवताओं में शंख को प्रमुख स्थान प्राप्त है। 

♦️शंख की उत्पति

शंख की उत्पति देवासुरों द्वारा किये गये समुद्र मंथन के दौरान चौदह रत्नों में से प्राप्त एक रत्न के रूप में हुई। पांचजन्य नामक शंख समुद्र मंथन के क्रम में प्राप्त हुआ था जो अद्भुत स्वर, रूप और गुणों से सम्पन्न था। उसे भगवान् विष्णु ने स्वयं ही धारण कर लिया। तब से विष्णु के आयुध के रूप में शंख की पूजा होने लगी। शंख समुद्र की घोंघा जाति का एक प्राणिज द्रव्य है। 


♦️शंख के प्रकार:

यह मुख्यतः दो प्रकार का-दक्षिणावर्ती तथा वामवर्ती होता है।

▪️ दक्षिणावर्ती शंख का पेट दक्षिण की ओर खुला होता है। यह बजाने के काम में नहीं आता क्योंकि इसका मुंह बन्द होता है। इसका बजना अशुभ माना जाता है। इसका प्रयोग अघ्य देने के लिए विशेषतः किया जाता है।

▪️वामवर्ती शंख का पेट बायीं ओर खुला होता है। इसको बजाने के लिए छिद्र होता है। इसकी ध्वनि से रोगोत्पादक कीटाणु कमजोर पड़ जाते हैं और अनेकानेक बीमारियां भाग खड़ी होती हैं। यह जिस घर में रहता है, वहां लक्ष्मी का निवास माना जाता है। 

♦️शंखनाद का हमारे जीवन में प्रभावः

अथर्ववेद के अनुसार शंख-ध्वनि व शंख जल के प्रभाव से बाधा आदि अशान्ति कारक तत्वों का पलायन हो जाता है। रणवीर भक्ति रत्नाकर में शंखनाद के विषय में लिखा गया है कि ध्वनि (नाद) से बड़ा कोई मंत्र नहीं है। ध्वनि के निस्सारण की विधि जानकर उसका यथोचित समय पर प्रयोग करने के समान कोई पूजा नहीं है। विधि विहीन स्वर हानिप्रद भी हो सकता है।

♦️ शंख पर प्रसिद्ध वैज्ञानिक वैज्ञानिक आचार्य जगदीश चन्द्र बोस का मत 

विश्वविख्यात भारतीय वैज्ञानिक जगदीश चन्द्र बसु ने अपने यंत्रों द्वारा यह खोज की थी कि एकबार शंख फूंकने पर उसकी ध्वनि जहाँ तक जाती है, वहाँ तक अनेक बीमारियों के कीटाणु ध्वनि स्पंदन से वे मूर्छित हो जाते हैं। यदि निरन्तर प्रतिदिन यह क्रिया चालू रखी जाय तो फिर वहाँ का वायुमंडल ऐसे कीटाणुओं से सर्वथा मुक्त हो जाता है। शंख ध्वनि से क्षयरोग, हैजा आदि के कीटाणु नष्ट हो जाते हैं। एक अनुमान के अनुसार प्रति सैकेण्ड 27 घनफुट वायु शक्ति की तीव्रता से बजाये हुए शंख के प्रभाव से 1200 घनफुट दूरी तक स्थित कीटाणु समाप्त हो जाते हैं जबकि 260 घनफुट दूर तक के कीटाणु का नाश होता हैं।

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