आदिकृष्ण - नित्य, स्वयंभू, शाश्वत सनातन अनंतकृष्ण, सर्वशक्तिमान परमात्मा जो सभी के सृजनकर्ता पालनहार है
कृष्ण - संस्कृत शब्द जो "काला", "अंधेरा" या "गहरा नीला" का समानार्थी है। "अंधकार" शब्द से इसका सम्बन्ध ढलते चंद्रमा के समय को कृष्ण पक्ष कहे जाने में भी स्पष्ट झलकता है। कृष्ण नाम का एक अर्थ "अति-आकर्षक" भी है। श्रीमदभागवत पुराण के अनुसार नामकरण संस्कार के समय आचार्य गर्गाचार्य ने बताया कि, 'यह पुत्र प्रत्येक युग में अवतार धारण करता है। पूर्व के प्रत्येक युगों में शरीर धारण करते हुए इसके तीन वर्ण (रंग) श्वेत, लाल, पीला हो चुके हैं। इस बार कृष्णवर्ण का हुआ है, अतः इसका नाम कृष्ण होगा।
कृष्णचंद्र - चंद्र जैसे शीतल एवं मनोहर
कान्हा - शिशु या बालक रुप कृष्ण
कन्हैया - किशोर अवस्था कृष्ण
गोपाल - गाय का पालन पोषण करने वाला, गौरक्षक
लडडू गोपाल - बाल कृष्ण अपने हाथ में लडडू लिए घुटनों के बल चल रहे हैं
गोविंद - इंद्रियों का सर्वव्यापी शासक, अन्य रुप में गायों का स्वामी
बांकेबिहारी - आनंद के सर्वोच्च प्रदाता जो तीन स्थान से झुके या मुडी हुई अवस्था में खड़े है।
मदन - प्रेम के ईश्वर
मोहन - मन को मोह लेने वाला, आकर्षक
माधव - ज्ञान और भाग्य (लक्ष्मी) के स्वामी, मधु जैसा मधुर
मधुसूदन - असुर मधु का वध करने वाला
माखनचोर - जो मक्खन चुराता है, नवनीत चोर
मुकुंद - जो मुक्ति (मोक्ष) प्रदान करता है
केशव - सुंदर लंबे (बिना कटे) बालों वाला, केशी असुर का वध करने वाला
दामोदर - जिसके उदर (पेट) पर रस्सी बंधी हो, जिसके उदर में संसार है
देवकीनंदन - देवकी के पुत्र, देवकीसुत
वासुदेव - वसुदेव का पुत्र
यशोदानंदन - यशोदा के पुत्र
नंदगोपाल - नंद के पुत्र, नंदलाल
राधावल्लभ - जो राधा का प्रियतम है
रुक्मणीपति - जो रुक्मणी के पति है
मुरलीमनोहर - मुरली वादन से मन मोह लेने वाला
मुरलीधर- मुरली को धारण करने वाले
गिरिधर - पर्वत (गोवर्धन) को धारण करने वाले,
गोवर्धन गिरधारी
सुदर्शनधर - जो सुदर्शन चक्र धारण करता है
मोर मुकुटधर - जो अपने मुकुट पर मोरपंख धारण करता है
पीतांबरधर - जो पीले वस्त्र धारण करता है
शारंग धनुर्धर - शारंग धनुष को धारण करने वाले
द्वारकाधीश - द्वारका के स्वामी
ब्रजेश - ब्रज के ईश्वर
अनिरुद्ध - जिसे रोका न जा सके
मुरारि - मुर असुर का वध करने वाला
कंसारि - कंस का वध करने वाला
असुरारि - असुरों का वध करने वाला
गोपीनाथ - गोपियों के स्वामी
श्रीनाथ - श्री (लक्ष्मी) के स्वामी, श्रीपति
श्रीकांत - श्री (लक्ष्मी) का प्रिय
हरि - पाप, ताप को हरने वाले
जगन्नाथ - जगत के स्वामी, जगदीश
नाराययावतार - भगवान नारायण के अवतार, विष्णु स्वरुप
जनार्दन - जो सभी जीवों का मूल निवास और रक्षक है
कमलनाथ - लक्ष्मी के स्वामी
कमलनयन - कमल के समान नेत्रों वाले, राजीवलोचन
पार्थसारथी - पार्थ (अर्जुन) के सारथी
पद्मनाभ - जिसकी नाभि में कमल है
पद्महस्ता - जिसके हस्त (हाथ) कमल के समान है
हिरण्यगर्भा - जिसके स्वर्ण गर्भ में संसार निवास करता है, वह ज्योतिर्मय अंड जिससे ब्रह्मा और सारी सृष्टि की उत्पत्ति हुई
अच्युत - अचल, अपरिवर्तनीय, वह जो अपनी अंतर्निहित प्रकृति और शक्तियों को कभी नहीं खोएगा
शिव आराध्य - शिव निरंतर जिनका स्मरण करते हैं, शिवइष्ट, शिवप्रिय
त्रिलोकरक्षक - तीनों लोकों की रक्षा करने वाले
योगेश्वर - योग के ईश्वर
योगीश्वर - योगियों के ईश्वर
सर्वेश्वर - सभी के ईश्वर
परेश - परम ईश्वर, सर्वोच्च आत्मा, सर्वोत्कृष्ट शासक
सदाजैत्र - सदा विजयी, अजेय
जितामित्र - शत्रुओं को जीतनेवाला
महाभाग - महान सौभाग्यशाली
त्रिलोकरक्षक - तीनों लोकों की रक्षा करने वाले
धर्मरक्षक - धर्म की रक्षा करने वाले
सर्वदेवाधिदेव - संपूर्ण देवताओं के भी अधिदेवता
सर्वयज्ञाधिप - संपूर्ण यज्ञों के स्वामी
शरण्यत्राणतत्पर - शरणागतों की रक्षा में तत्पर
पुराणपुरुषोत्तम - पुराण प्रसिद्ध क्षर अक्षर पुरुषों से श्रेष्ठ लीलापुरुषोत्तम
पुण्यचारित्रकीर्तन - जिनकी लीलाओं का कीर्तन परम पवित्र है
मायामानुषचरित्र - अपनी माया का आश्रय लेकर मनुष्य जैसी लीलाएँ करने वाले
सच्चिदानंद विग्रह - सत्, चित् और आनंद के स्वरुप का निर्देश कराने वाले
परात्पर पर - इंद्रिय, मन, बुद्धि आदि से परे
भवबन्धैकभेषज - संसार बंधन से मुक्त करने के लिए एकमात्र औषधरुप

0 comments:
Post a Comment