➤ जानिए आपके आपके पैरों का संपूर्ण शास्त्रीय फलादेश !!
✧ मनुष्य के पैर - संपूर्ण लक्षण विचार ✧
﹌﹌﹌﹌﹌﹌﹌﹌﹌﹌﹌﹌
✧ पैर (चरण) --
प्राचीन शास्त्रकारों ने पैर के २० भेद बताए है, परन्तु उन सबको निम्नलिखित ४ श्रेणियों में विभाजित किया जा सकता है -
(१) सर्वोत्तम
(२) उत्तम
(३) मध्यम
(४) अधम
(५) निकृष्ट
(१) सर्वोत्तम --
इस श्रेणी के पैर वे होते हैं, जिनका रंग कमल के समान लाल होता है, तलवे कोमल होते हैं, नाबूनों का रंग तांबे के समान रक्ताभ होता है, उंगलियां परस्पर सटी हुई होती है तथा उनका ऊपरी भाग कछुए की पीठ की भांति उन्नत होता है, जिस पर नसें दिखाई नहीं देती। ऐसे पैरों के तलवों में पसीना नहीं आता, ग्रुल्फ छिपे रहते है, एड़ियां सुन्दर होती है तथा ऊपरी भाग में उष्णता बनी रहती है। ऐसे पैर वाले व्यवित राजा-महाराजा, विपुल ऐश्वर्यवान, धनवान गुणवानरु, यशस्वी, सौभाग्यशाली, दीर्घायु तथा सुखी जीवन व्यतीत करने वाले महापुरुष होते है। इसकी सभी आकांक्षाएं पूर्ण होती रहती हैं ।
(२) उत्तम --
इस श्रेणी के पैर सर्वोत्तम कोटि से कुछ ही कम होते हैं। इनकी उंगलियां लम्बी तथा परस्पर मिली हुई, नाखून सामान्यतः लम्बे तथा त्वचा स्पर्श में कोमल होती है। शेष सभी गुण पूर्वोक्त प्रकार के ही समझने चाहिए। ऐसे पैरों वाले व्यक्ति नीतिज्ञ, कार्यकुशल, तीक्ष्ण बुद्धि, अच्छी सलाह देने वाले, साहित्य-प्रेमी, यशस्वी, धनी, यात्राप्रिय, तथा सर्वत्र सम्मान एवं सुख प्राप्त करने वाले होते हैं ।
(३) मध्यम --
इस श्रेणी के पैरों के तलवे कोमल तथा गेहूए रंग के, नाखून सर्पाकार तथा हल्के गुलावी गेरुआ अथवा पीले रंग के होते हैं । उन पर नसे सामान्य रूप से उभरी होती है तथा उगलियों पर बहुत ही सामान्य बाल होते है ।
ऐसे पैरों वाले व्यक्ति परिश्रमो, व्यवहार-कुशल, निर्भीक, दूरदर्शी, विद्वान, गणित अथवा विज्ञान में रुचि रखने वाले, साहित्यिक, पारिवारिक-चिन्ताग्रों से ग्रस्त तथा एक सीमित-क्षेत्र में यश-सम्मान प्राप्त करने वाले होते हैं । उंगलियां कुछ मिली तथा कुछ छितरी हुईं होती हैं |
(४) अधम--
इस श्रेणी के पैरों के तलवे कुछ-कुछ भूरापन लिए हुए श्वेत रंग के होते है, त्वचा स्पर्श मे कठोर, रूखी, तथा ठण्डी होती है । इनके भाग पर पसीना आता है। उंगलियां चौड़ी होती है और उनके ऊपर बाल जमे रहते है। नाखून चपटे, लम्बे अथवा अधिक चौड़े होते हैं । गुल्फ वाहर की ओर निकला रहता है । नाखूनों का रंग पीला अथवा सफेद होता है। ऐसे पैरों वाले व्यक्ति अपने कुल के अ्भिमान में डूबे रहने वाले, विद्याओं के विशेष-प्रेमी, परिश्रम द्वारा भाग्योन्नति की इच्छा रखने वाले, कामुक-प्रवृति के तथा दरिद्री होते है ।
(५) निकृष्ट --
इस श्रेणी के पैरों के तलवों का रंग मिट्टी जैसे रंग का होता है। एड़ी मोटी तथा स्थान-स्थान पर फटी हुई, त्वचा स्पर्श में कठोर, ऊपरी भाग पर नसें उभरी हुई । उंगलियां टेढ़ी-मेढ़ी तथा उनके ऊपर अधिक बाल जमे हुए, गुल्फ बाहर की ओर काफी निकले का नाखून छोटे, चपटे और कालापन अथवा नीलापन लिए हुए रहते हैं। ऐसे पैरों वाले व्यक्ति दरिद्री, बीमारियों से ग्रस्त रहने वाले, दासवृत्ति के, लम्बे समय तक अपने घर से दूर रहने वाले, मिथ्याभिमानी, क्रोधी, निश्चिन्त, गंवार, मूर्ख तथा कुसंगति मे रहने वाले होते है ।
स्कन्द पुराण में लिखा है --
“पादौ समांसलौ रक्तौ समौ सूत्मों सुशोमनौ।
समगुल्फौ स्वेदहीनौ स्निग्ध वैश्वर्य सूचकौ।”
अर्थात मांसल, रकताभ, सुन्दर, समान ग्रुल्फ वाले, स्वेद-हीन, स्निग्ध तथा छोटे पैर ऐश्वर्य के सूचक होते है।
परन्तु अन्य ग्रन्थ में लिखा है --
“विशाल चरणों धनी”
अर्थात बड़े पैरोंवाला व्यक्ति धनी होता है।
अधिकांश विद्वानों के मत से पैर का छोटा होना शुभ लक्षण नहीं है। अब यहां पर विचार करने की बात यह रह जाती है कि पैर छोटा या बड़ा इसका निश्चय कैसे किया जाए ?
शरीर के अनुपात से पैर का छोटा-बड़ा आकार ज्ञात करने का तरीका शास्त्रकारों ने यह बताया है -
"आपार्ष्णि ज्येष्ठान्तं तल्लमत्र चतुर्दशांगुलायाम।
विस्तारेण षङ्गगुल मंगुष्ठो व्यङ्गुलायामः॥
पञचांगुल परिणाहः पादोनं तन्न खोऽङ्गुलं दैध् र्यात ।
अङ्गुष्ठ समा ज्येष्ठा मध्या तत्षोडशांशोना ॥
अष्ठांशोनानामा कनिष्ठिका पष्ठभाग परिहीना।
सर्वासाप्याप्तां नखा: स्वपर्व त्रिभाग मिताः ॥
सत्र्यंगुलि परिणाहा प्रथमाङ्गगुली विस्तृताङ्गगलौ भवति।
अप्टाष्ट भागहीनाः शेषा: क्रमशः परिज्ञेया:॥”
भावार्थ-- पैर की एड़ी से पैर की तर्जनी उंगली तक पैर की लम्बाई चौदह उंगल होनी चाहिए। लम्बाई के अंगुल का परिमाण यह है कि जिस व्यक्ति का पैर हो, उसी के हाथ की मध्यमा उंगली के द्वितीय अर्थात् बीच वाले पर्व की जितनी चौड़ाई हो, उसे एक अंगुल के बराबर मानना चाहिए। इसी अनुपात से पैर की चौड़ाई ६ अंगुल, पैर के अंगूठे की लम्बाई
२ अंगुल, पैर के अंगूठे का परिणाह ( अर्थात् यदि धागे को अंगुठे के चारो ओर लपेटा जाए तो उस धागे की लम्बाई) ४ अंगुल होनी चाहिए। इससे अधिक लम्बा तथा मोटा पांव सामान्य से अधिक बड़ा समझना चाहिए और इससे छोटा तथा पतला पैर सामान्य से “कम लम्बा' समझना चाहिए।
पैर की प्रदेशिनी (तर्जनी) अंगुली की लम्बाई पैर के अंगूठे के बराबर होनी चाहिए । मध्यमा अंगुली की लम्बाई तर्जनी अंगुली से सोलहवां भाग कम, अनामिका की लम्बाई मध्यमा से आठवां भाग कम तथा कनिष्ठक़ा की लम्बाई मध्यमा से छठा भाग कम होनी चाहिए। अर्थात् अंगूठे और तर्जनी की लम्बाई तो बराबर की हो उसके बाद क्रमशः सभी उंगलियां एक दूसरी से कम लम्बी रहनी चाहिए। इन सभी उंगलियों के नाखून, पैर की ऊंगली के पर्व की लम्बाई से एक तिहाई लम्बे होने चाहिए। प्रदेशिनी (तर्जनी) अंगुली की मोटाई का परिणाह तीन अंगुल का होना चाहिए। प्रदेशिनी उंगली जितनी मोटी हो, मध्यमा उंगली उससे आठवां भाग कम मोटी, मध्यमा की मोटाई से अनामिका उंगली आठवां भाग कम मोटी तथा अनामिका की मोटाई से कनिष्ठा उंगली की मोटाई का आठवां भाग कम होनी चाहिए ।
इस प्रकार पैर की न्यूनाधिक लम्बाई का आनुपातिक परिमाण ज्ञात कर लेने के वाद उसके प्रभाव के सम्बन्ध में विचार करना उचित रहता है ।
✧ पैर का अंगूठा --
पैर के अंगूठे के सम्बन्ध में 'सामुद्र तिलक' में लिखा है-
“ वृत्तो भुजग फणाकृति स्तुंगों मांसल शुभोङ्खुष्टः। सशिरो हस्वाश्चिपिटो वक्रो विपुलः स पुनर शुभ:॥”
भावार्थ- 'पांव का अंगूठा यदि सर्प के फण के समान गोल ग्राकृति वाला, उन्नत तथा मांसल हो तो उसे शुभ समझना चाहिए। यदि अंगूठे पर नसे दिखाई देती हों, वह बहुत छोटा या बहुत बड़ा, टेढ़ा अथवा चिपटा हो तो उसे अशुभ जानना चाहिए।”
पांव के अंगूठे के विषय में अन्यत्र इस प्रकार कहा गया है-
“वृत्तेस्ताम्रनखै रक्तै रंगुष्ठै राज्यभागिनः।
अङ्गुष्ठा प्रथुला ये षां ते नारा भाग्यवर्जिताः॥
क्लिश्यन्ते विकृताङ्गुष्ठास्ते नरा वन गामिनः ।
चिपिटैर्वित्ततैर्भग्नेरङ्गुष्ठे: रतिनिन्दिता:॥
वक्रै: रुत्तैस्तथा हृस्वैरङ्गुष्ठै: कलेश भागिनः॥”
भावार्थ-- पांव का अंगूठा यदि गोल, ताम्रवर्ण नल वाला तथा लालिमा लिए हुए हो तो ऐसे व्यक्ति राज्यधिकार (ऐश्वर्य) प्राप्त करते है। जिन लोगों के पांव का अंगूठा बड़ा होता है, वे भाग्यहीन होते हैं । टेढ़े-मेढ़े अंगूठे वाले व्यक्ति जंगलों में (इधर-उधर) भटक ने वाले तथा कष्ट पाने वाले होते है। चपठे, कठे-फटे तथा टूटे हुए अंगूठे वाले व्यक्ति रति-निन्दित होते हैं तथा टेढ़े, रुखे और अधिक छोटे अंगूठे वाले व्यक्ति क्लेश उठाते है।
✧ पैरों की उंगलियां --
पुरुषों के पैरों की अंगुलियो के सम्बन्ध में शास्त्रकारो ने लिखा है-
“ प्रदेशिनी यदा दीर्घा अंगुष्ठं च व्यति क्रयेतू।
स्त्री भोगंलभते नित्यं पुरुषो नात्र संशयः॥
मध्यमा यांतु दीर्घावां भार्याहानिर्विनिर्दिशेत्।
अनामिकातु दीर्घायां विद्याभोगी भवेन्नरः:॥
सच हृस्वाभवेद्यस्य तत्वेद्या परदारगं।
यस्य प्रदेशिनी स्थूला भर्तिश्चेव कनिष्ठिका॥
हृस्वा क्लेशाप भोगायां गुल्ठादीर्घा प्रदेशिनी:।
समातुमध्यमा श्रेष्ठा श्रिये दीर्घा कनिष्ठिका।
आयतयामध्यमया कार्यविनाशो हृस्वया दुखं।
धनया समया पृत्रोत्पत्ति स्तोकं नृणामायु:।
असंहताभिहृस्वासि रंगुलीभिस्तु मानवः।
दासोवादासकर्मोवा समुद्र वचन यथा॥
अंगुल्यपि समादीर्घा संहृता श्चसमुन्नता।
तेपां प्रदत्तिणावर्ता प्रथिव्यास्तेन संशयः॥
दीर्घा कनिष्ठिका पिस्याद्यस्य स्वर्णभाज नं सनरः।
यदि सापिपुनर्लध्वी परदारापरायण: सततम्॥ ”
भावार्थ-- यदि पैर की तर्जनी उंगली अंगूठे से आगे निकली हुई (लम्बी) हो तो जातक को स्त्री-भोग का सुख नित्य प्राप्त होता है। यदि यह तर्जनी उंगली छोटी हो तो क्लेशकारक होती है। यदि अंगूठे के बराबर की हो तो मध्यम फल समझना चाहिए। अंगूठे से बड़ी तर्जनी उंगली शुभ फल देने वाली समझनी चाहिए।
यदि मध्यमा उंगली अगूठे से बड़ी हो तो जातक की पत्नी की हानि (मृत्यु) होती है । यदि तर्जनी के बराबर लम्बी हो तो श्रेष्ठ फल देने वाली कही गई है। (अधिक मोटी हो तो फल अशुभ होता है)। यदि अनामिक़ा उंगली लम्बी हो तो पुरुष विद्यानुरागी होता है। यदि छोटी हो तो पर- स्त्री गामी होता है। (इसकी लम्बाई का विचार मध्यमा उंगली की लम्बाई से करना चाहिए)।यदि तर्जनी उंगली स्थल तथा कनिष्ठा उंगली लम्बी हो तो जातक सुखी और धनी होता है। यदि कनिष्ठा उंगली छोटी हो तो पर-स्त्री-गामी होता है। यदि कनिष्ठा उंगली छोटी तथा लट्टू के समान मोटी हो तो जातक को बाल्यावस्था में ही मातृ-वियोग का दुःख उठाना पड़ता है। यदि मध्यमा उंगली अत्याधिक लम्बी हो तो अपयश प्राप्त होता है। यदि अधिक छोटी हो तो जातक दु:खी रहता है । यदि अन्य उंगलियों के समान ही लम्बी हो तथा सभी उंगलियां परस्पर मिलो हुई हों तो जातक पुत्रोत्पत्ति की क्षमता से युक्त, परन्तु अल्पायु होता है।
यदि पैर की सभी उंगलियां छोटी-छोटी और फैली हुई हों तो जातक दास अथवा दास प्रवृत्ति जैसा काम करने वाला होता है। यदि सब उंगलियां समान आनुपातिक लम्बाई, पुष्ट, ऊंची उठी हुई तथा एक दूसरी से मिली हुई हों तो उन्हें शुभ फलदायक समझना चाहिए।
पैरों की उंगलियों के सम्बन्ध में अन्य विद्वानों के मत का सार संक्षेप यह है -
(१) यदि पैरों की उंगलियां समात आनुपातिक लम्बाई की हों, कुछ दाई ओर को झुकी हुई हों, कोमल, उन्नत, अग्रभाग पर गोल, चिकनी, चमकदार तथा परस्पर मिली हुई हों तो ऐसा जातक अत्यन्त ऐशर्यशाली, उच्च-पदाधिकारी तथा यशस्वी होता है ।
(२) यदि मध्यमा उंगली अनामिका उंगली से छोटी हो तो स्त्री हानि होती है।
(३) यदि अनामिका उंगली मध्यमा से बड़ी हो तो जातक को स्वर्ण का लाभ होता है ।
✧ पैरों की उंगलियों के नाखून --
(१) यदि पैरों की उंगलियों के नाखून लाल रंग के, शंख की भाँति घुमाव वाले तथा चमकदार हों तो ऐसे जातक उच्च पद प्राप्त करते हैं ।
(२) यदि पैरों के नाखून चिकने तथा श्वेत-बिन्दु-चिन्ह से युक्त हों तो जातक सौभाग्यशाली होता है | उंगलियों के नाखूनों पर श्वेतविन्दु-चिन्हों के विषय में विद्वानों के विभिन्न मत है। कुछ लोग इन्हे शुभ तथा कुछ लोग अशुभ मानते हैं ।
(३) कुछ विद्वानों के मतानुसार यदि दाएं पैर के नाखूनो में सफेद, पीले, काले अथवा लाल रग के बिन्दु-चिन्ह हों तो उन्हे “उत्पात जनक' समझना चाहिए । यदि दाएं पैर के अंगुठे के नख में ऐसे चिन्ह हों तो जातक के धन का विनाश होता है तथा उसे अपयश प्राप्त होता है। यदि तर्जनी उंगली के नाखून पर ऐसे चिन्ह हों तो जातक का किसी से झगड़ा होता है। यदि मध्यमा उंगली के नाखून पर ऐसे चिन्ह हो तो वे जातक के लिए चिन्ता एवं उद्वेगजनक होते हैं। यदि अनामिका उंगली के नाखून पर ऐसे चिन्ह हों तो ये जातक के लिए शुभ होते है। यदि कनिष्ठा उंगली के नाखून पर ऐसे चिन्ह हो तो नवीन सन्तान का जन्म होता है अथवा पुत्र को धन-लाभ होता है। बाएं पैर के नाखूनों में इसका उल्टा फल समझना चाहिए ।
✧ पैर का ऊपरी भाग --
पैर का ऊपरी भाग मांसल, उन्नत तथा कोमल हो तो उसे शुभ समझना चाहिए। यदि इस भाग पर नसे दिखाई देती हों, पसीना आता हो अथवा बाल (केश) हों तो उसे अशुभ लक्षण समझना चाहिए ।
✧ गुल्फ (टखने) --
पैर के टखने मांस से ढके हुए हों तो उन्हे शुभ समझना चाहिए। टखनों का टेढ़ा होना अशुभ होता है। शुकर को गुल्फ जैसे गुल्फ वाले व्यक्ति कष्ट उठाते है। तथा भैसे के टखनों की भांति टखने वाले व्यक्ति पापो तथा दु:खी होते है| यदि गुल्फों पर रोम हों तो संन्तान का अभाव होता है अथवा पुत्र-सुख कम प्राप्त होता है।
✧ एड़ी --
यदि एड़ी बड़ी हो तो जातक दीर्घायु होता है। पैर के अनुपात के बराबर हो तो कभी दु.खी और कभी सुखी रहता है। यदि एड़ी छोटी हो तो जातक दरिद्र होता है और यदि एड़ी उठी हुई हो तो शत्रुओ पर विजय पाता है। एड़ी गुदगदी हो तो उत्तम होतो है और कड़ी हो तो सन्तान-सुख में कमी रहती है।
✧ पिडली, जाँघ और टांग --
(१) यदि पांव को पिंडलियां गोल, गुदगुदी तथा रोमरहित हो तो उन्हे शुभ अथवा विपरीत हो तो अशुभ समझना चाहिए ।
(२) गोल, छोटी, गुदगुदी तथा हाथी की सुड की भाँति ढलवां जांघों वाला व्यक्ति भाग्यशाली होता है। पतली जांघो वाले मनुष्य दरिद्र होते हैं।
(३) ऊपर के घड़ से अधिक लम्बी टाँगे शुभ होती है, ऐसा व्यक्ति शीघ्रगामी होता है। यदि टांगे कम लम्बी हों तो शूरवीर होता है ।
(४) टांगों का निचला आधा भाग हिरन अथवा घोडे जैसा हो तो जातक भाग्यवान होता है ।
(५) व्याघ्र अथवा सिंह जैसी पिंडलियों वाले व्यक्ति धूर्त होते हैं ।
(६) मछली जैसी जांघ वाले व्यक्ति ऐश्वर्यवान होते हैं।
(७) सियार कुत्ता, गधा अथवा रीछ जैसी जांघो वाले व्यक्ति दुर्भाग्यशाली तथा कौए जँसी टांगी वाले दुःखी होते हैं।
(८) जांघ का अधिक बड़ा तथा मोटा होना तथा पिडलियों पर अधिक रोमो का होना दरिद्रता का लक्षण समझना चाहिए ।
(६) कमर तथा मुलायम रोमों वाली जांघें शुभ तथा सौभाग्यदायक होतो हैं ।
✧ रोमें (रोएं ) --
(१) यदि रोम-कूप से ही एक ही रोम निकले तो जातक अत्यन्त उच्च-पद प्राप्त करता है। यदि एक रोम- कूप में से दो-दो रोम निकले तो जातक परम-विद्वान् तथा बुद्धिमात् होता हैं। यदि एक रोम-कृप में से तीन अथवा अधिक रोम निकले तो जातक दुखी तथा दरिद्र होता है।
(२) भ्रमर के समान काले, चिकने, पतले, सुन्दर तथा मुलायम रोमों वाला व्यक्ति अत्यन्त उच्च पद प्राप्त करता है। अधिक घने रोमों वाला व्यक्ति विद्वान तथा बुद्धिमान होता है। रोम-हीन अंगों वाला व्यक्ति 'सन्यासी होता है । पीर्तवर्ण रोमों वाला व्यक्ति पापी होता है। मोटे तथा रूखे रोमों वाला व्यक्ति अधम होता है। यदि रोम श्रपने अग्रभाग में घिरे हुए हों तो जातक धनी होता है ।
यह फलादेश शरीरस्थ किसी भी अंग पर पाए जाने वाले रोगों के सम्बन्ध में लागू होता है। पांव के रोगों पर भी यही फल समझना चाहिए ।
✧ घुटने --
(१) जिस व्यक्ति के छुटने भीतर को धंसे हुए हों, वह अपनी स्त्री अथवा अन्य स्त्रियों के वश में रहता है तथा उसकी मृत्यु परदेश में होती है ।
(२) खुब मोटे तथा मांसल छुटनों वाला व्यक्ति ऐश्वर्यशाली, भू-स्वामी तथा दीर्घजीवी होता है।
(३) हाथी के समान घुटनों वाला व्यक्ति भोगी होता है ।
(४) घोड़े के समान घुटनों वाला व्यक्ति दुर्गति को प्राप्त होता है।
(५) तालफल जैसे घुटनों वाला व्यक्ति अत्यन्त दुःख प्राप्त करता है।
(६) टेढे-मेढे, विकराल अथवा बहुत छोटे घुटनों वाला व्यक्ति दरिद्र होता है ।
(७) ऊंचे- नीचे तथा कमजोर घुटनों वाला व्यक्ति दरिद्र होता है तथा दास-वृत्ति करता है।
(८) यदि घुटनों पर मांस एक जैसा न हो, कही कम और कहीं अधिक हो तो ऐसा व्यक्ति निर्धन होता है। ऐसे घुटनो को अशुभ समझना चाहिए।
✧ अन्य बातें --
(१) यदि पुरुष के दाएं पैर के तलवे मे पसीना आता हो तो उसे अशुम तथा भयकारक समझना चाहिए । ऐसे लोगो को यात्राए करनी पड़ती हैं ।
(२) यदि पुरुप के दाए पैर के तलवे मे पसीना आता हो तो उसे अशुभ लक्षण समझना चाहिए।
(३) यदि पैर में खुजली मचे तो रोग, यात्रा अथवा धन की हानि आदि अशुभ फल होते है। पैर की खुजली का प्रभाव एक पखवाड़े (१५ दिन) के भीतर प्रकट हो जाता है ।
0 comments:
Post a Comment