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: शरीर, एक देवालय :

       उपनिषद् का निम्नलिखित कथानक मानव शरीर के देवालय होने की पुष्टि करता है -------

      " हमारा शरीर भगवान का मंदिर है। यही वह मंदिर है, जिसके बाहर के सब दरवाजे बंद हो जाने पर जब भक्ति का भीतरी पट खुलता है, तब यहां ईश्वर ज्योति रूप में प्रकट होते हैं और मनुष्य को भगवान के दर्शन होते हैं। "
       मानव शरीर में कौन कौन से देवताओं का वास है और उनके कार्य क्या हैं ---------

      संसार में, जितने देवता हैं, उतने ही देवता मानव शरीर में “ अप्रकट ” रूप से स्थित हैं। किन्तु, दस इन्द्रियों (पांच ज्ञानेन्द्रिय और पांच कर्मेन्द्रियां) के और चार अंतकरण (भीतरी इन्द्रियां—बुद्धि, अहंकार, मन और चित्त) के अधिष्ठाता देवता प्रकट रूप में हैं। इस सभी इन्द्रियों का टोटल किया जाये, तो 14 बनता है।
      इन देवताओं के बारे में संक्षेप में जानकारी ------

1. नेत्रेन्द्रिय (चक्षुरिन्द्रिय) के देवता -----
      भगवान सूर्य नेत्रों में निवास करते हैं और उनके अधिष्ठाता देवता हैं। इसीलिए नेत्रों के द्वारा , किसी के रूप का दर्शन सम्भव हो पाता है । नेत्र विकार में चाक्षुषोपनिषद्, सूर्योपनिषद् की साधना और सूर्य की उपासना से लाभ होता है ।

2. घ्राणेन्द्रिय (नासिका) के देवता—नासिका के अधिष्ठाता देवता अश्विनीकुमार हैं । इनसे गन्ध का ज्ञान होता है ।

3. श्रोत्रेन्द्रिय (कान) के देवता—श्रोत-कान के अधिष्ठाता देवता दिक् देवता (दिशाएं) हैं । इनसे शब्द सुनाई पड़ता है ।

4. जिह्वा के देवता—जिह्वा में वरुण देवता का निवास है, इससे रस का ज्ञान होता है ।
5. त्वगिन्द्रिय (त्वचा) के देवता—त्वगिन्द्रिय के अधिष्ठाता वायु देवता हैं । इससे जीव स्पर्श का अनुभव करता है ।


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