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सन्ध्या विधि ।।

        शरीर की क्षमता बढ़ाने तथा मानसिक शारीरिक स्वास्थ्य के लिए संध्या वंदन एक उपयोगी प्रयोग है। इसे दैनिक कार्यों के समान ही महत्व दिया जाना चाहिए। संध्या-वंदन न केवल एक धार्मिक कृत्य है वरन् अपने को समाजोपयोगी बनाने के लिए एक आवश्यक आधार भी है।


          संध्या-वंदन धार्मिक क्रिया-कलापों का आवश्यक अंग है, कर्म मय जीवन की नींव है और सामाजिक कर्तव्य है।


          प्रत्येक भारतीय के लिये सन्ध्या एक आवश्यक प्रयोग है जिसे करना उसका कर्तव्य एवं धर्म है। व्यावहारिक रूप से देखा जाय तो सन्ध्या करने से बहुत अधिक लाभ होता है। इससे मन और शरीर स्वस्थ होते हैं, बुद्धि तीव्र होती है। संध्या वन्दन के अन्तर्गत प्राणायाम करने की वजह से दिन भर प्रफुल्लता बनी रहती है।


भारतीय युवकों को मेरी सलाह है कि वे अपने प्रातः कालीन कार्यों में सन्ध्या वन्दन को अवश्य ही स्थान दें वे स्वयं अनुभव करेंगे कि ऐसा करने से वे पहले की अपेक्षा ज्यादा स्वस्थ हो सके हैं। संध्या करने से उनके चेहरे पर एक अपूर्व तेज बनता है तथा वे ज्यादा बुद्धिमान, ज्यादा योग्य तथा ज्यादा सफलता की ओर अग्रसर होने में सक्षम होते हैं।


मै नीचे सन्ध्या विधि स्पष्ट कर रहा हूं :

प्रातः काल पूर्व की ओर मुंह करके साधक शुद्ध आसन पर बैठ अपने सामने जल का लोटा भर कर रख दे और उससे कुछ जल लेकर अपने शरीर पर छिड़के ।

मन्त्र
ॐ अपवित्रः पवित्रो वा सर्वावस्थांगतोऽपि वा । 
यः स्मरेत्पुण्डरीकाक्षं स बाह्याभ्यन्तरः शुचिः ॥


फिर हाथ में जल लेकर यह संकल्प पढ़े। 
ॐ तत्सद्यैतश्य ब्रह्मणो द्वितीयपरार्धे श्रीश्वेत- वाराहकल्पे जम्बूद्वीपे भरतखण्डे आर्यावर्तकदेशा- न्तर्गते पुण्यक्षेत्रे कलियुगे कलि प्रथम चरणे अमुक संवत्सरे अमुकमासे अमुक पक्षे अमुक तिथौ अमुकवासरे अमुकगोत्रोत्पन्नाऽमुक शर्माहं प्रातः सन्ध्योपासनं कर्म करिष्ये ॥


फिर हाथ में जल लेकर नीचे लिखा मन्त्र पढ़कर पृथ्वी पर जल छोड़े ।

पृथ्वी तिमन्त्रस्य मेरुपृष्ठ ऋषिः सुतलं छन्दः कूर्मो देवता आसने विनियोगः ॥

फिर नीचे लिखा मन्त्र पढ़कर आसन पर जल छिड़कते हुए आसन को पवित्र करे ।

ॐ पृथ्वित्वया धृता लोका देवित्वं विष्णुना धृता । 
त्वं च धारय मां देवि पवित्रं कुरु चासनम् ।।

फिर साधक गायत्री मंत्र पढ़कर चोटी बांध ले और आँख बन्द करके नीचे लिखे मन्त्र से तीन बार प्राणायाम करे ।


पहले दाहिने नथुने को बन्द कर बायें नथुने से श्वांस खींचे और फिर बायें नथुने को बन्द कर दाहिने नथुने से श्वांस छोड़ दे, इसे पूरक कहते हैं।


श्वांस को नाभी में रोकने को कुम्भक कहते हैं तथा धीरे धीरे श्वास को बाहर निकालने को रेचक कहते हैं।


इस प्रकार नीचे लिखे मंत्र का तीनों ही प्राणायाम के समय एक एक बार जप करना चाहिए ।

ॐ भूः ॐ भुवः ॐ स्वः ॐ महः ॐ जनः ॐ तपः ॐ सत्यम् ॐ तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्य धीमहि धियो यो नः प्रचोदयात् ॐ आपो ज्योति रसोमृतं ब्रह्म भूर्भुवः स्वरोम् ॥

फिर नीचे लिखा विनियोग पढ़कर पृथ्वी पर जल छोड़ दे ।

सूर्यश्च मेति ब्रह्मा ऋषिः प्रकृतिश्छन्दः सूर्यो देवता अपामुपस्पर्शने विनियोगः ॥

फिर नीचे लिखा मन्त्र पढ़कर आचमन करे ।

ॐ सूर्यश्च मा मन्युश्च मन्युपतयश्च मन्युकृ- तेभ्यः पापेभ्यो रक्षन्तां यद्वात्र्या पापमकार्ष मनसा वाचा हस्ताभ्यां पद्भयामुदरेण शिश्ना रात्रिस्तदव लुम्पतु यत्किञ्चदुरितं मयि इदमहं माममृतयोनौ सूर्ये ज्योतिषि जुहोमि स्वाहा ॥

इसके बाद नीचे के मन्त्रों द्वारा अपनी उंगलियों से अपने शरीर पर जल छिड़कता हुआ मार्जन करे ।

ॐ आपो हिष्ठा मयोभुवः ॐ ता न ऊर्जे दधातन ॐ महे रणाय चक्षसे ॐ यो वः शिवतमो रसः ॐ तस्य भाजयतेहू नः ॐ उशतीरिवमातरः ॐ तस्मा अरंगमाम वः ॐ यस्य क्षयाय जिन्वथ ॐ आपो जनयथा च नः ।।


फिर खड़ा होकर एक चरण की एडी उठाये हुए या एक पांव पर खड़ा होकर गायत्री मन्त्र तीन बार जप करके पुष्प मिले हुए जल से सूर्य को तीन अंजलि दे।


फिर खड़े खड़े ही अपनी दोनों बाहें ऊपर उठाकर निम्न मन्त्र वढ़े ।

ॐ उद्वय तमसस्परि स्वः पश्यन्त उत्तरं देव देवत्रा सूर्यमगन्म ज्योतिरुत्तमम् ॥ 
ॐ उदुत्यं जातवेदस देवं वहन्ति वे तवः दृशे विश्वाय सूर्यम् ।। 
ॐ चित्रं देवानामुदगादनीकं चक्षुर्मित्रस्य वरुण- स्याग्नेः आप्राद्यावापृथिवी अन्तरिक्ष गूं सूर्य आत्मा जगतस्तस्थुषश्च ॥ 
ॐ तच्चक्षुदवहितं पुरस्ताच्छु- क्रमुच्चरत् ॥ पश्येम शरदः शतं जीवेम शरदः शतश्रृणुयाम शरदः शतं प्रब्रवाम शरदः शतम- दीनाः स्याम शरदः शतं भूयंश्च शरदः शतात् ।

फिर खड़े खड़े ही अंगन्यास करे और शरीर के जिस अंग का नाम हो, उसे स्पर्श करे ।

ॐ हृदयाय नमः ॐ भूः शिरसे स्वाहा ॐ भुवः शिखाये वषट् ॐ स्वः कवचाय हुम् ॐ भूर्भुवः नेत्राभ्यां वौषट् ॐ भूर्भुवः स्वः अस्त्राय फट् ॥

फिर हाथ में जल लेकर विनियोग करे-

ॐ कारस्य ब्रह्मा ऋषिर्गायत्री छन्दोऽग्निर्देवता शुक्लो वर्णों जपे विनियोगः ॥

फिर गायत्री देवी का ध्यान करे- 
श्वेतवर्णा समुद्दिष्टा कौशेयवसना तथा । श्वेतैर्विलेंपनै पुष्पेर लंकारेश्च भूषिता ॥ 
आदित्य मण्डलस्था च ब्रह्मलोकगताथवा । अक्षसूत्रधरादेवी पद्मासनगता शुभा ॥ 


फिर हाथ में जल लेकर नीचे लिखा विनियोग पढ़े ।
तेजोऽसीति देवा ऋषयो गायत्रो छदः शुक्र देवत' गायत्र्यावाहने विनियोगः ।।

फिर गायत्री देवी का निम्न मन्त्र से आह्वान करे-
 
ॐ गायत्र्यस्येकपदो द्विपदी त्रिपदी चतुष्पद्यपदसि नहि पद्मसे नमस्ते तुरीयाय दर्शताय पदाय पधेर जसेऽ सावदो मा प्रापत् ।।

फिर नीचे लिखे गायत्री मन्त्र का १०८ बार उच्चारण करे-

गायत्री मन्त्र
ॐ भूर्भुवः स्वः तत्सवितुर्वरेण्यं भर्गो देवस्व धीमहि धियो यो नः प्रचोदयात ॐ ।।

फिर नीचे लिखे मन्त्र को पढ़ते हुए प्रदक्षिणा करे-

यानि कानि च पापानि जन्मान्तर कृतानि च तानि तानि प्रणश्यन्ति प्रदक्षिणापदे पदे ।।

इस प्रकार गायत्री का जप करने से शरीर की ऊर्जा बढ़ती है, और चेहरे पर एक विशेष प्रकार की चमक पैदा होती है जिसे ब्रह्म चमक कहते हैं।

वास्तव में ही प्रत्येक भारतीय का कत्र्तव्य है कि वह गायत्री एवं सन्ध्या बन्दन करे, इसे किसी भी दिन सेप्रारम्भ किया जा सकता है।

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