स्मार्त पंचदेवोपासक होते हैं। ये पांच देव हैं- १. श्री विष्णु २. श्री शिव ३. श्री शक्ति ४. श्री सूर्य ५. श्री गणपति । इनमें से जो मात्र वैष्णव हैं वे विष्णु को ही मुख्य अंग मानकर पूजा करते हैं, इस प्रकार शैव शिव को, शाक्त शक्ति को, सौर्य सूर्य को और गणपत्य गणेशजी को मुख्य मानते हैं।
गणेश शब्द का मूल अर्थ है समस्त जीव जाति के स्वामी । कुछ लोगों का यह कथन है कि ये अनार्यों के देवता थे और बाद में आर्यों ने इन्हें पंच देवताओं में स्थान दिया। यह भ्रम विदेशियों द्वारा फैलाया हुआ है। हमारी सभ्यता के प्रारम्भ से ही जिन देवताओं की उपासना होती आई है उनमें गणेश सर्व प्रथम पूजनीय रहे हैं।
गणेश का वर्णन कई स्थानों पर आया है और अनुभवों से यह सिद्ध हुआ है कि गणपति की पूजा जीवन में मंगलकारी एवं अत्यन्त अनुकूल रहती है। जो व्यक्ति अन्य किसी देवी-देवताओं की पूजा नहीं कर सकता उसे गणेश पूजन अवश्य ही करना चाहिए । मेरा व्यक्तिगत अनुभव यह रहा है कि यदि हम नित्य प्रातः उठते समय गणपति का स्मरण कर लें तो सारा दिन प्रसन्नता से बीतता है, और उस दिन विशेष शुभ फलदायक समाचार मिलते हैं।
आगे गणपति से सम्बन्धित स्तोत्र दिये हैं जो संक्षिप्त होते हुए भी अत्यन्त महत्वपूर्ण हैं। प्रातः उठकर यदि व्यक्ति इनमें से किसी एक स्तोत्र का भी पाठ कर ले तो उसके जीवन में किसी प्रकार का कोई अभाव नहीं रहता। चिन्ता एवं रोग निवारण के लिये "मयूरेश स्तोत्र" अत्यन्त समर्थ है। यह स्तोत्र मनुष्य को भक्ति मार्ग में लगाने वाला तथा समस्त प्रकार के पापों का नाश करने वाला है। मानसिक रूप से चाहे कितनी ही चिन्ताएं व्यक्ति को परेशान कर रही हों, यदि वह ११ दिन ही प्रातः उठकर "मयूरेश स्तोत्र" का पाठ कर ले तो वह स्वयं ही आश्चर्यजनक रूप से अनुभव करेगा कि चिन्ताएं एवं समस्याएं स्वतः ही समाप्त हो रही हैं, और उन समस्याओं का सुलझाव अपने अनुकूल हो रहा है। यह शुभ स्तोत्र मानसिक चिन्ता तथा शारीरिक रोग को दूर करने में अत्यधिक सहायक एव अनुकूल है।
संकटनाश के लिये गणपति से संबंधित एक अन्य महत्वपूर्ण स्तोत्र 'संकटनाशन स्तोत्र' है। यह स्तोत्र भी अपने आप में महत्वपूर्ण है। व्यक्ति के जीवन में कितना ही भयंकर संकट क्यों न आया हो, यदि इस स्तोत्र का पाठ नित्य श्रद्धापूर्वक करे तो वह उस संकट से मुक्ति प्राप्त करने में सफल हो जाता है। इस स्तोत्र का प्रभाव यहां तक देखा है गया है कि व्यक्ति जेल से मुक्त हो जाता है तथा मुकदमें में सफलता प्राप्त कर लेता है।
जिन व्यक्तियों पर मुकदमें चल रहे हों या शत्रु परेशान कर रहे हों तो उनके लिये यह स्तोत्र कल्प वृक्ष के समान है। उन्हें चाहिए कि इस स्तोत्र का पाठ नित्य पांच बार करें, और तब तक इस स्तोत्र का पाठ चालू रखें जब तक कि उन्हें अपने कार्य में सिद्धि प्राप्त न हो जाय। शत्रु विजय, मुकदमें में सफलता तथा बाधाओं की शान्ति के लिये इससे बढ़ कर कोई अन्य स्तोत्र नहीं है।
चिन्ता एवं रोग निवारण के लिये
मयूरेशस्तोत्रम्
पुराणपुरुषं देवं नानाक्रीडाकरं मुदा ।
मायाविनं दुर्विभाव्यं मयूरेशं नमाम्यहम् ॥
परात्परं चिदानन्दं निर्विकारं हृदि स्थितम् ।
गुणातीतं गुणमयं मयूरेशं नमाम्यहम् ॥
सृजन्तं पालयन्तं च संहरन्तं निजेच्छया।
सर्वविघ्नहरं देवं मयूरेशं नमाम्यहम् ।।
नानादैत्यनिहन्तारं नानारूपाणि बिभ्रतम् ।
नानायुधधरं भक्त्या मयूरेशं नमाम्यहम् ॥
इन्द्रादिदेवतावृन्दैरभिष्टुतमहर्निशम् ।
सदसद्ध यक्तमव्यक्तं मयूरेशं नमाम्यहम् ॥
सर्वशक्तिमयं देवं सर्वरूपधरं विभुम् ।
सर्वविद्याप्रवक्तारं मयूरेशं नमाम्यहम् ॥
पार्वतीनन्दनं शम्भोरानन्दपरिवर्धनम् ।
भक्तानन्दकरं नित्यं मयूरेशं नमाम्यहम् ॥
मुनिध्येयं मुनिनुतं मुनिकामप्रपूरकम् ।
समष्टिव्यष्टिरूपं त्वा मयूरेशं नमाम्यहम् ॥
सर्वाज्ञाननिहन्तारं सर्वज्ञानकरं शुचिम् ।
सत्यज्ञानमयं सत्यं मयूरेशं नमाम्यहम् ॥
अनेककोटिब्रह्माण्डनायकं जगदीश्वरम् ।
अनन्तविभवं विष्णुं मयूरेशं नमाम्यहम् ॥
मयूरेश उवाच
इदं ब्रह्मकरं स्तोत्रं सर्वपापप्रनाशनम् ।
सर्वकामप्रदं नृणां सर्वोपद्रवनाशनम् ॥
कारागृहगतानां चमोचनं दिनसप्तकात्।
आधिव्याधिहरं चैव भुक्तिमुक्तिप्रदं शुभम् ॥
(क्रमशः)
@Sanatan
गणेश स्तोत्र (२)
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संकटनाश के लिये
संकष्टनाशन स्तोत्रम्
नारद उवाच
प्रणम्य शिरसा देवं गौरीपुत्रं विनायकम् ।
भक्तावासं स्मरेन्नित्यमायुः कामार्थसिद्धये ॥
प्रथमं वक्रतुण्डं च एकदन्तं द्वितीयकम्।
तृतीयं कृष्ण पिंगाक्षं गजवकां चतुर्थकम् ॥
लम्बोदरं पंचमं च षष्ठं विकटमेव च।
सप्तमं विघ्नराजेन्द्रं धूम्रवर्णं तथाष्टकम् ॥
नवमं भालचन्द्रं च दशमं तु विनायकम्।
एक द गणपति द्वादशं तु गजानानम् ॥
द्वादशैतानि नामानि त्रिसंध्यं यः पठेन्नरः।
न च विघ्नभयं तस्य सर्वसिद्धिकरं परम् ॥
विद्यार्थी लभते विद्यां धनार्थी लभते धनम्।
पुत्रार्थी लभते पुत्रान् मोक्षार्थी लभते गतिम् ।।
जपेद गणपतिस्तोत्रं षड्भिर्मासैः फलं लभेत्।
संवत्सरेण सिद्धिं च लभते नात्र संशयः ॥
अष्टभ्यो ब्राह्मणेभ्यश्च लिखित्वा यः समर्पयेत् ।
तस्य विद्या भवेत् सर्वा गणेशस्य प्रसादतः ॥
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