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🔆 रक्षाबंधन विशेष 🔆

꧁ वैदिक रक्षा-सूत्र बंधन ꧂

रक्षाबन्धन एक हिन्दू त्योहार है जो प्रतिवर्ष श्रावण मास की पूर्णिमा के दिन मनाया जाता है, भारत के विभिन्न हिस्सों में, रक्षा बंधन को अलग-अलग नामों से मनाया जाता है, हालांकि महत्व समान रहता है। भारत के उत्तरी और पश्चिमी भाग में रक्षा बंधन को "राखी पूर्णिमा" तथा पश्चिमी घाट और आसपास के क्षेत्रों में राखी को नारियल की तरह पूर्णिमा का संकेत देने के लिए "नारियाल पूर्णिमा" कहा जाता है। भारत के दक्षिणी भाग में रक्षाबंधन को "अवनि अवित्तम/उपाकर्मम्" के रूप में मनाया जाता है, मध्य भारत में "कजरी पूर्णिमा", पश्चिमी भागों में पवित्रपना के नाम से मनाया जाता है।

इस श्रावणी उपाकर्म के शुभ दिन पर, लोग अपना जनेऊ (पवित्र धागा) बदलते हैं, जो आमतौर पर समुदाय के ब्राह्मणों द्वारा पहना जाता है। (श्रावणी उपाकर्म) ।

भविष्यपुराण मे रक्षाबंधन का पर्व वर्णन आया है। स्वयं भगवान कृष्ण महात्म्य सुना रहे है।

युधिष्ठिर उवाच-
सर्वरोगोपशमनं सर्वाशुभविनाशनम् । 
सकृत्कृतेनाब्दमेकं येन रक्षाकृतो भवेत् ॥ 

श्रीभगवानुवाच-
शृणु पाण्डवशार्दूल इतिहासं पुरातनम्। 
इन्द्राण्या यत्कृतं पूर्वं शक्रस्य जयवृद्धये॥ 
देवासुरमभूद्युद्धं पुरा द्वादशवार्षिकम् ।
तत्रासुरैर्जितः शक्रः सह सर्वैः सुरोत्तमैः॥

युधिष्ठिर जी ने भगवान् श्रीकृष्ण से पूछा "हे भगवन्! सभी रोगों का शमन करने वाला एवं सभी अशुभों का भी नाश करने वाला कोई ऐसा उपाय बताइये जिसे करने से एक वर्ष पर्यंत की रक्षा हो जाए।

भगवान् कहते हैं "हे पाण्डवश्रेष्ठ इस संबंध में एक इतिहास सुनो! पूर्वकाल मे इन्द्र की पत्नी इन्द्राणी ने इंद्र के विजय के लिए यह उपाय किया था। देव और असुरों में बारह वर्षांतक युद्ध चल जिसमें इन्द्र की सभी देवताओं सहित पराजय हुई। तब इन्द्र अपने गुरु बृहस्पति जी से कह रहे थे " मैं लडने के लिए समर्थ नहीं हूं और भाग भी नही सकता हूं अतः अब लडना ही पड़ेगा।" यह बात इन्द्राणी ने सुनी और कहा कि चिंता न करें मैं ऐसा उपाय करूँगी की आपकी विजय होगी, और तब इन्द्राणी ने ब्राह्मणों के द्वारा स्वस्तिवाचन कराकर इन्द्र के हाथ मे रक्षासूत्र बांधा था और वो दिन श्रावण पूर्णिमा का था। उस सूत्र के प्रभाव से इन्द्र के बल की वृद्धि हुई एवं इन्द्र के आक्रमण से भयभीत होकर असुर युद्धभूमि छोडकर भाग गए।

अर्थात इस प्रकार यह स्पष्ट है की  रक्षासूत्र बांधना सिर्फ बहन भाई का पर्व नही है। पति पत्नी, गुरु शिष्य, माता पुत्र, ब्राह्मण यजमान का भी पर्व है। जिसमें मुहूर्त व तिथि का पूर्ण विधान है।

आजकल रक्षा बंधन का त्यौहार में दिखावा ज्यादा होने लगा है। जबकि यह त्यौहार सादगी, प्रेम, उल्लास के साथ मनाना चाहिए। हमारे हिन्दू धर्म में हर पर्व के बारे में बताया गया है की पर्व कैसे मनाने चाहिए। यह रक्षाबंधन यदि वैदिक रीति मनाया जाए तो शास्त्रों में उसका बड़ा महत्व अर्पित होता है । 
वस्तुतः पूर्णिमा पर्व पर श्रीहरि विष्णु सहस्त्रनाम का पाठ करना परम महाफलदाई है।

इस पवित्र त्यौहार का  सबसे आवश्यक तत्व वैदिक रक्षा सूत्र है इसे बनाने के लिए 5 वस्तुओं की आवश्यकता होती है –

1.दूर्वा (घास), 
2. अक्षत (चावल), 
3. केसर, 
4. चन्दन, 
5. सरसों के दाने ।

वैदिक रक्षा सूत्र बनाने की विधि – 
इन 5 वस्तुओं को रेशम के कपड़े में लेकर उसे बांध दें या सिलाई कर दें, फिर उसे कलावा में पिरो दें, इस प्रकार वैदिक राखी तैयार हो जाएगी।

वैदिक रक्षा सूत्र की पांचों वस्तुओं का महत्त्व -

1. दूर्वा – जिस प्रकार दूर्वा का एक अंकुर बो देने पर तेज़ी से फैलता है और हज़ारों की संख्या में उग जाता है, उसी प्रकार मेरे भाई का वंश और उसमे सदगुणों का विकास तेज़ी से हो। सदाचार, मन की पवित्रता तीव्रता से बढ़ता जाए। दूर्वा गणेश जी को प्रिय है अर्थात हम जिसे राखी बाँध रहे हैं, उनके जीवन में विघ्नों का नाश हो जाए।

2. अक्षत – यह शुद्ध अन्न का प्रतीक है मन की शुद्धता तथा हमारी गुरुदेव के प्रति श्रद्धा कभी क्षत-विक्षत ना हो सदा अक्षत रहे।

3. केसर – केसर की प्रकृति तेज़ होती है अर्थात हम जिसे राखी बाँध रहे हैं, वह तेजस्वी हो । उनके जीवन में आध्यात्मिकता का तेज, भक्ति का तेज कभी कम ना हो।

4. चन्दन – चन्दन की प्रकृति तेज होती है और यह सुगंध देता है । उसी प्रकार उनके जीवन में शीतलता बनी रहे, कभी मानसिक तनाव ना हो। साथ ही उनके जीवन में परोपकार, सदाचार और संयम की सुगंध फैलती रहे।

5. सरसों के दाने – सरसों की प्रकृति तीक्ष्ण होती है अर्थात इससे यह संकेत मिलता है कि समाज के दुर्गुणों को, कंटकों को समाप्त करने में हम तीक्ष्ण बनें ।

इन पांच पदार्थों के अलावा कुछ राखियों में हल्दी, कोड़ी व गोमती चक्र भी रखा जाता है। रेशमी कपड़े में लपेट कर बांधने या सिलाई करने के पश्चात इसे कलावे (मौली) में पिरो दें। आपकी राखी तैयार हो जायेगी।

इसके साथ ही एक राखी कच्चे सूत से भी बनाई जाती है। ब्राह्मण अपने जजमान को यही रक्षासूत्र बांधते थे। इसमें कच्चे सूत के धागे को हल्दीयुक्त जल में भिगोकर उसे सुखाया जाता है। इस तरह कच्चे सूत की राखी तैयार हो जाती है

इस प्रकार इन पांच वस्तुओं से बनी हुई एक राखी को सर्वप्रथम भगवान श्री गणेश जी को बांधना चाहिए, उसके बाद अन्य देवों को जैसे भगवान विष्णु, भगवान शिव,भगवान श्री कृष्ण, भगवान श्री राम, भगवान हनुमान और अपने ईष्ट देव को उसके उपरांत अपने गुरुदेव के श्री-चित्र पर अर्पित करें। फिर बहनें अपने भाई को, माता अपने बच्चों को, दादी अपने पोते के लिए शुभ संकल्प करके थाली में रोली, चंदन, अक्षत, दही, मिठाई, शुद्ध घी का दीपक और साथ ही वैदिक राखी या फिर रेशम या सूत से बनी राखी रखें। इसके बाद अपने भाई को पूर्व या उत्तर दिशा में खड़ा कर दें। फिर भाई के कान के ऊपर कजली या कजरियाँ (गेंहू की हरी दूब) लगाएं, इसके बाद रोली या हल्दी से भाई का टीका करके अक्षत को टीके पर लगाया जाता है और सिर पर छिड़का जाता है, उसकी आरती उतारी जाती है,
अंततः दाहिने हाथ की कलाई पर रक्षा सूत्र बांधते समय ये श्लोक बोलें –

येन बद्धो बलिराजा दानवेंद्रो महाबलः। 
तेन त्वाम् प्रतिबद्धनामिरक्षे माचल माचलः।।

इसके बाद मिठाई खिलाकर उसके उज्जवल भविष्य और दीर्घायु की कामना करें।

इस मंत्र का अभिप्राय है कि जिस रक्षासूत्र से महाबली, महादानी राजा बली को बांधा गया था उसी से मैं तुम्हें बांध रहा/रही हूं। हे रक्षासूत्र आप चलायमान न हों यही पर स्थिर रहें।

इस रक्षासूत्र को पुरोहित द्वारा राजा को, ब्राह्मण द्वारा यजमान को, बहन द्वारा भाई को, माता द्वारा पुत्र को तथा पत्नी द्वारा पति को दाहिनी कलाई पर बांधा जा सकता है।
इस विधि द्वारा जो भी रक्षासूत्र को बांधता है वह समस्त दोषों से दूर रहकर वर्ष भर सुखी जीवन व्यतीत करता है–

जनेन विधिना यस्तु रक्षाबंधनमाचरेत।
स सर्वदोष रहित, सुखी संवतसरे भवेत्।।
 
महाभारत में यह रक्षा सूत्र माता कुंती ने अपने पोते अभिमन्यु को बाँधी थी । जब तक यह धागा अभिमन्यु के हाथ में था तब तक उसकी रक्षा हुई, धागा टूटने पर अभिमन्यु की मृत्यु हुई। इस प्रकार इन पांच वस्तुओं से बनी हुई वैदिक राखी को शास्त्रोक्त नियमानुसार बांधते हैं हम पुत्र-पौत्र एवं बंधुजनों सहित वर्ष भर सुखी रहते हैं ।

परम्परा यह है कि शादी-शुदा बहने जब मायके आती हैं तो भाई के लिये नारियल और भाभी के लिये सूखा-गोला लाती है जिसे उनकी झोली में डालती हैं। कालांतर में इस सूखे गोले से कुछ बहनों ने गलती करते हुए भाईयों को राखी बांधना शुरु कर दी। जबकि यह सूखा गोला सिर्फ भाभी के लिये होता है। भाई के हाथ में श्रीफल ही रखा जाता है । इसलिए भाई को श्री फल/नारियल अवश्य दें।

बहन को क्या उपहार दे –

रक्षाबंधन भाई और बहन के प्यार का प्रतीक माना जाता है। इस दिन भाई अपनी बहन को प्यार के साथ-साथ कई तरह के उपहार भी देता है। मनु स्मृति में तीन ऐसी चीजों के बारे में बताया गया है, जो घर की महिलाओं को देने से घर में शांति और उन्नति बनी रहती है।

1. वस्त्र – वस्त्र यानी कपड़े। सजना-सवरना, श्रृंगार करना ये सब महिलाओं को सबसे प्रिय होता है। मनुस्मृति के अनुसार, जिस घर के पुरुष अपनी पत्नी, माता या बहन को अच्छे वस्त्र प्रदान करते हैं, उस घर पर भगवान हमेशा प्रसन्न रहते हैं। ऐसे घर में हमेशा सुख-शांति लक्ष्मी बनी रहती है।

2. आभूषण – आभूषण यानी गहने। गहने महिलाओं की सबसे प्रिय वस्तुओं में से एक है। जिस घर की महिलाएं खुश रहती हैं, वहां देवताओं का निवास माना जाता है। हर मनुष्य को अपने घर की महिलाओं को सुंदर गहने उपहार में देना चाहिए। जिस घर की महिलाएं अच्छे कपड़े और गहनों से श्रृंगार करती है, वहां कभी दरिद्रता नहीं रहती। ऐसे घर में हमेशा खुशहाली और मां लक्ष्मी की कृपा बनी रहती है।

3. मधुर वचन- महिलाओं को पूजनीय माना जाता है। कई ग्रंथों और पुराणों में महिलाओं का सम्मान करने की बात कही गई है। मनुस्मृति के अनुसार, जिस घर में महिलाओं से बुरी तरह से बात की जाती है या उनका सम्मान नहीं किया जाता, ऐसे घर में भगवान भी नहीं रहते, अपने घर की स्त्रियों के साथ हर समय प्रेम और आदर से ही व्यवहार करना चाहिए।

वैदिक रक्षाबंधन के प्रमुख महत्वपूर्ण बिंदु -

1- राखी श्रीफल नारियल से ही बंधवानी है, सूखे गोले से नहीं। 

2- नारियल नहीं है तो सिर्फ धन अर्थात कुछ रुपये हाथ में रखकर भी राखी बंधवा सकते हैं लेकिन इसके अलावा कुछ नहीं रखना चाहिये। परिस्थितिजन्य अक्षत मतलब बिना टूटे साबूत चावल भी रखे जा सकते हैं। 

3- एक ही श्रीफल से पूरे परिवार के लोग राखी बंधवा सकते हैं, इसलिये अलग-अलग श्रीफल नही खरीदना चाहिये ।

4- भाई को बहनों से कुछ लेना नहीं चाहिऐ इस मान्यता के अनुसार श्रीफल भी भाई अपने पास नहीं रखते सिर्फ हाथ में रखकर राखी बंधवाते हैं। वह श्रीफल बहन का ही होता है। 

5- बहनों को प्रयास करना चाहिऐ कि वह अपने हाथ से वैदिक राखी या रेशमी धागे की राखी बनाकर अपने भाई को बांधे। रेशम के धागा आसानी से बाजार में मिल जाता है। राखी कोई दिखावे की वस्तु नहीं है, वह मर्यादा और शक्ति का प्रतीक है, इसलिये इसमें तडक़-भडक़-चमक की जरुरत नहीं है। हॉ बाजारु राखी सिर्फ बच्चों का मन बहलाने का माध्यम है। यदि आप भाई को चाहती हैं तो रेशम की डोर ही बांधे। 

6- बहन, अपने भाई को स्पष्ट कहे कि सिर्फ स्नेह और प्यार दे रुपये से राखी को ना तौले।
प्रतिपल रक्षा का वचन भी लें।

7- मिठाई को लेकर भी सावधान रहे – पहला प्रयास बहने अपने हाथ से कोई मिठाई बनाये नहीं बना सके तो हलुवा बना ले। बहुत मजबूरी में ही बाजार से मिठाई लायें क्योंकि यह प्यार का पर्व है । 

👉 वैदिक रूप से इस बार सुबह 5:53 से दोपहर 1:32 तक के भद्रा काल की वजह से रक्षाबंधन का पावन पर्व 19 अगस्त 2024 को उदया तिथि में सर्वार्थ सिद्ध योग के सानिध्य में मनाया जायेगा। जिसका सर्वोत्तम मुहूर्त दोपहर 01:32 के बाद से लेकर रात 9:07 तक है।

👉 रक्षाबंधन पर कई शुभ योग बन रहे हैं, रवि और सर्वार्थ सिद्ध योग का भी नाम शामिल है। वहीं इस दिन सूर्य देव भी अपनी स्वराशि में संचरण कर रहे हैं। साथ ही कर्मफल दाता शनि देव भी शश राजयोग बनाकर विराजमान हैं। इसके साथ ही बुध और शुक्र भी इस राशि में होंगे, जिससे बुधादित्य और शुक्रादित्य राजयोग का बन रहा है।

समस्त जगत को एक रक्षा सूत्र में पिरोते इस पावन उत्सव की सभी सनातनियों को हार्दिक शुभकामनाएं।
आप सब भी वैदिक रीति से रक्षाबंधन मनाये। तथा आने वाली पीढ़ी को भी इससे अवगत कराए।

॥सर्वेभ्यः रक्षाबन्धनमहोत्सवस्य शुभकामनाः॥

       ।। राधे कृष्णा ।।

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