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सनातन संस्कृति के आश्चर्यों में से एक रहस्य -

🔺अग्नि के सर्वप्रथम आविष्कारक !

🔺वैदिक संस्कृति में अग्नि यज्ञों के प्रचलन कर्ता!
🔺 समुद्रों से प्राप्त पेट्रोल, गैस, केरोसिन के वैदिक खोजी !


     विश्व के प्रथम वैज्ञानिक- अथर्वा ऋषि
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आधुनिक काल में सबसे उच्च विश्वस्त विज्ञान विधा मानी जाती है तथा उनके शोधकर्ताओं को वैज्ञानिक शब्दों से विभूषित किया जाता है, आज के अंग्रेजी भाषी वैज्ञानिकों की लंबी रेखा के बीच भारतीय वैदिक सनातन संस्कृति के एक वैदिक ऋषि पुरुष को विश्व का प्रथम वैज्ञानिक होने का रहस्य उद्घाटन किया जा रहा है विश्व के प्रथमतम वैज्ञानिक होने के श्रेय अथर्वा ऋषि को है। महर्षि अथर्वा ने ऋषि अंगिरस के साथ मिलकर अथर्ववेद की रचना की। महर्षि अथर्व का विवाह भगवान ब्रह्मा के मानस पुत्र महर्षि कर्दम की पुत्री शांति 'चित्ति' के साथ हुआ। इस मिलाप से महानतम महर्षि दधीचि का जन्म हुआ। ऋग्वेद में अथर्वा ऋषि का उल्लेख १५ बार हुआ है। (ऋग्० १.८०.१६, १.८३.५, ९.११.२ आदि)। अथर्वा ऋषि ने अग्नि-विषयक तीन आविष्कार किए हैं। इनका साक्षात विशिष्ट प्रमाण तथा उल्लेख ऋग्वेद, यजुर्वेद और अथर्ववेद के श्लोकों में है।


💫 (१) अरणि वृक्ष के मंथन से अग्नि का आविष्कार (Fire with Friction) —

 संसार के सभी काम अग्नि से उत्पन्न होने वाली ऊर्जा से चलते हैं। यजुर्वेद का भी कथन है कि विद्वानों ने अग्नि को उपयोगिता की दृष्टि से सर्वप्रथम स्थान दिया है। ऋग्वेद ने अग्नि को ऊर्जा का सम्राट् कहा है।

(क) अयमिह प्रथमो धायि धातृ‌भिर्होता यजिष्ठः।  
(यजु० ३.१५)
(ख) त्वामग्ने मनीषिणः सम्राजम्०।   
(ऋग्० ३.१०.१)

ऋग्वेद में अरणियों के घर्षण से अग्नि उत्पन्न करने का वर्णन है। ऋग्वेद में कहा है कि अरणि नामक वृक्ष की समिधाओं में अग्नि है। दो अरणियों के घर्षण से अग्नि उत्पन्न होती है। 

(क) अरण्योर्निहितो जातवेदाः।
(ऋग्० ३.२९.२)
(ख) नवं जनिष्टारणी।
(ऋग्०५.९.३)
(ग) अग्निं मन्थाम पूर्वथा।
(ऋग्० ३.२९.१)

अथर्वा ऋषि ने सर्वप्रथम अरणि नामक वृक्ष की लकड़ियों को रगड़ कर अग्नि का अविष्कार किया ऋग्वेद और यजुर्वेद में इसका विस्तृत उल्लेख है। यजुर्वेद का कथन है कि अथर्वा ऋषि ने मन्थन (घर्षण, Friction) के द्वारा अग्नि उत्पन्न की। यज्ञ में इस अग्नि का प्रयोग सर्वप्रथम अथर्वा के पुत्र दधीचि ऋषि ने किया ।

(क) अथर्वा त्वा प्रथमो निरमन्यद् अग्ने। 
(यजु० ११.३२)
(ख) तमु त्वा दध्यङ् ऋषिः पुत्र ईधे अथर्वणः।
(यजु० ११.३३)

💫 (२) जल के मन्थन से अग्नि (Hydroelectric, Hydel) —

महान दधीचि पितृ अथर्वा ऋषि का द्वितीय अविष्कार है जलीय विद्युत् । ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद और तैत्तिरीय संहिता में उल्लेख है कि अथर्वा ऋषि ने तालाब के जल से मन्थन (Friction) के द्वारा जलीय विद्युत् (Hydel) का आविष्कार किया था । 

त्वामग्ने पुष्करादधि-अथर्वा निरमन्बत। 
(ऋग्० ६.१६.१३ । यजु० ११.३२ । साम० ९। तैत्ति० ३.५.११.३)

💫 (३) भूगर्भीय अग्नि (पुरीष्य अग्नि, Oil and Natural Gas) —

भूगर्भीय अग्नि (Gas) का पता चलाना और उसे उत्खनन द्वारा निकालना, अथर्वा ऋषि का तृतीय अविष्कार है। इसका विस्तृत वर्णन ऋग्वेद, यजुर्वेद और तैत्तिरीय संहिता में मिलता है। ऋग्वेद आदि में 'पुरीष्यासो अग्नयः' शब्द का प्रयोग है। साथ ही इसे पृथ्वी एवं समुद्र से खोदकर निकालने का उल्लेख है। भूगर्भीय अग्नि का बहुवचन में उल्लेख सिद्ध करता है कि पुरीष्य अग्नि शब्द के द्वारा भूगर्भीय प्रज्वलनशील सभी पदार्थों, पेट्रोल, गैस, किरोसिन तेल (मिट्टी का तेल) आदि का ग्रहण है। यजुर्वेद में मंत्रों (यजु० ११.२८ से ३२) में इसकी उच्च प्रज्वलनशीलता का विस्तृत वर्णन है। 

(क) पुरीष्योऽसि विश्वभरा अथर्वा त्वा प्रथमो निरमन्थदग्ने। 
(यजु०११.३२)
(ख) पृथिव्याः सधस्थाद् अग्निं पुरीष्यम्.. खनामः।
(यजु०११.२८)
(ग) अपां पृष्ठमसि योनिरग्नेः समुद्रम् अभितः पिन्वमानम्। 
(यजु०११.२९)
(घ) अग्निमन्तर्भरिष्यन्ती ज्योतिष्मन्तम् अजस्रमित् ।
(यजु०११.३१)
(ङ) पुरीष्यासो अग्नयः । 
(ऋग्० ३.२२.४, यजु० १२.५०, तैति० ४.२४३)

यजुर्वेद के मंत्र में 'योनिरग्नेः' से स्पष्ट किया गया है कि ये अग्नि के कारण अत्यन्त प्रज्वलनशील पदार्थ हैं। 'समुद्रम् अभितः' के द्वारा स्पष्ट किया गया है कि ये अग्नियाँ (गैस, पेट्रोल आदि) समुद्रों के बहुत विस्तृत भाग में फैली हुई हैं।

यजुर्वेद में 'पुरीष्योऽसि विश्वभरा' के द्वारा उल्लेख है कि भूगर्भीय पेट्रोल, गैस आदि विश्व के लिए अत्यन्त उपयोगी है और ये संसार का पालन-पोषण करते हैं। 


💫जयतु सनातन💫

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