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शयन के नियम ।।

1. सूने घर में अकेला नहीं सोना चाहिए। देवमन्दिर और श्मशान में भी नहीं सोना चाहिए। (मनुस्मृति)
2. किसी सोए हुए मनुष्य को अचानक नहीं जगाना चाहिए। (विष्णुस्मृति)
3. विद्यार्थी, नौकर औऱ द्वारपाल, ये ज्यादा देर तक सोए हुए हों तो, इन्हें जगा देना चाहिए। (चाणक्यनीति)
4. स्वस्थ मनुष्य को आयुरक्षा हेतु ब्रह्ममुहुर्त में उठना चाहिए। (देवीभागवत)
बिल्कुल अंधेरे कमरे में नहीं सोना चाहिए। (पद्मपुराण)
5. भीगे पैर नहीं सोना चाहिए। सूखे पैर सोने से लक्ष्मी (धन) की प्राप्ति होती है। (अत्रिस्मृति)
टूटी खाट पर तथा जूठे मुंह सोना वर्जित है। (महाभारत)
6. नग्न होकर नहीं सोना चाहिए। (गौतमधर्मसूत्र)
7. पूर्व की तरफ सिर करके सोने से विद्या, पश्चिम की ओर सिर करके सोने से प्रबल चिन्ता, उत्तर की ओर सिर करके सोने से हानि व मृत्यु, तथा दक्षिण की तरफ सिर करके सोने से धन व आयु की प्राप्ति होती है। (आचारमय़ूख)
8. दिन में कभी नही सोना चाहिए। परन्तु ज्येष्ठ मास मे दोपहर के समय एक मुहूर्त (48 मिनट) के लिए सोया जा सकता है। (जो दिन मे सोता है उसका नसीब फुटा है)
9. दिन में तथा सुर्योदय एवं सुर्यास्त के समय सोने वाला रोगी और दरिद्र हो जाता है। (ब्रह्मवैवर्तपुराण)
10. सूर्यास्त के एक प्रहर (लगभग 3 घंटे) के बाद ही शयन करना चाहिए।
11. बायीं करवट सोना स्वास्थ्य के लिये हितकर हैं।
12. दक्षिण दिशा में पाँव करके कभी नही सोना चाहिए। यम और दुष्टदेवों का निवास रहता है। कान में हवा भरती है। मस्तिष्क में रक्त का संचार कम को जाता है स्मृति- भ्रंश, मौत व असंख्य बीमारियाँ होती है।
13. ह्रदय पर हाथ रखकर, छत के पाट या बीम के नीचें और पाँव पर पाँव चढ़ाकर निद्रा न लें।
14. शय्या पर बैठकर खाना-पीना अशुभ है।
15. सोते सोते पढना नही चाहिए।
16. ललाट पर तिलक लगाकर सोना अशुभ है। इसलिये सोते वक्त तिलक हटा दें

भगवान शिवस्वरूप आदि शंकराचार्य के द्वारा स्थापित चारमठ और दशनाम संन्यासी।।

सनातनधर्मोध्दारक ,चतुष्पीठ संस्थापक जगद्गुरु श्री आदि शंकराचार्य भगवत्पाद 

श्रीमदाद्यशंकराचार्य
 जन्म: ईसापूर्व ५०७कालूडी में     
कैलासगमन :ई.पू.४७५केदारनाथ में                    
मातृश्री:आर्याम्बा                      
पिताश्री:शिवगुरू                      
दीक्षा गुरू:श्री गोविन्दभगवत्पाद                

१:-पीठ :- श्री द्वारका शारदापीठम् , द्वारका 
देवता:-सिध्देश्वर 
देवी:-भद्रकाली 
तिर्थ:-गोमती 
वेद :- सामवेद
महावाक्य:तत्वमसि
प्रथमाचार्य:सुरेश्वराचार्य ,
संन्यासी:-तीर्थ,आश्रम
ब्रह्मचारी:स्वरूप
वर्तमानआचार्य:
स्वामी श्री स्वरूपानन्द सरस्वती जी महाराज 

२:-पीठ:- गोवर्धनपीठ , पुरी
देवता:-जगन्नाथ
देवी:- विमला 
तीर्थ:-महोदधि
वेद :-ॠग्वेद 
महावाक्य:- प्रज्ञानंब्रह्म 
प्रथमाचार्य:-पद्मपादाचार्य
ब्रह्मचारी:-प्रकाश,
संन्यासी:-वन ,अरण्य
वर्तमान आचार्य:-
स्वामी श्री निश्चलानन्दसरस्वती जी महाराज ।

३:-पीठ:- उत्तराम्नाय ज्योतिर्मठ ( ज्योतिष्पीठ) , बदरिकाश्रम
देवता:- नारायण
देवी:- पूर्णागिरि
तीर्थ:-अलकनंदा
वेद:- अथर्ववेद
महावाक्य:- अयमात्माब्रह्म
प्रथमाचार्य:-त्रोटकाचार्य
ब्रह्मचारी:-आनन्द
संन्यासी:-गिरि,पर्वत,सागर, 
वर्तमानआचार्य:-अभी विवादित है श्री स्वामी स्वरूपानंद सरस्वती जी व श्री स्वामी वासुदेवानन्द सरस्वती जी ।

४:- पीठ:- श्रंगेरीशारदापीठ
देवता:- आदिवाराह
देवी:- कामाक्क्षी
तीर्थ:-रामेश्वरम
वेद:- यजुर्वेद
महावाक्य:-अहं ब्रह्मास्मि
प्रथमाचार्य:- हस्तामलकाचार्य
ब्रह्मचारी:- चैतन्य, 
संन्यासी:-सरस्वती,भारती,पुरी 
वर्तमानआचार्य:-
स्वामी श्री भारती तीर्थ जी महाराज

यही चार सर्वमान्य शंकराचार्य पीठ एवं उनके वर्तमान आचार्य ( शंकराचार्य ) है।
यही हमारे सनातन वैदिक धर्म के सर्वमान्य प्रमुख धर्माचार्य हैं।

नित्य, शुद्ध, बुद्ध ।।

         शिवानंद जी एक बहुत बड़ी योगी हुए हैं। द्वितीय विश्व युद्ध के समय वह श्रीलंका में चिकित्सक के रूप में पदस्थ थे। मुख्य रूप से वे औषधि प्रदान करने वाले चिकित्सक थे। अचानक एक रात को घनघोर बारिश हो रही थी तभी दरवाजे पर किसी ने दस्तक दी सामने दरवाजे पर एक निर्धन महिला को लेकर कुछ लोग खड़े थे। वह महिला प्रसव पीड़ा से तड़प रही थी उसके परिजनों ने उसे प्रसूति कराने के लिए आग्रह किया। शिवानंद जी प्रसूति चिकित्सक नहीं थे फिर भी सृष्टि ने ऐसी स्थिति रच दी कि एक ब्रह्मण को चिकित्सक के रूप में प्रसूति करवानी ही पड़ी बस प्रसूति का वह दारुण एवं हृदय विदारक दृश्य देखकर शिवानंद जी के अंदर ब्राह्मणत्व जाग उठा। उन्हें ब्रह्मांड की सच्चाई सामने दिखाई पड़ गई वह विभक्त हो गए उनका डॉक्टरी पेशे से लगाव उचट गया और निकल पड़े अध्यात्म की डगर पर। एक चिकित्सक अब सन्यासी बन चुका था यहां पर उसी स्त्री ने एक बालक को जन्म दिया। शिशु का जन्म कैसे होता है? शिशु मां से अलग तभी हो पाता है जब प्रसव वेदना होती है। शिशु और मां के बीच स्थित नाल को चाकू से काट दिया जाता है अर्थात विभाजन कर दिया जाता है अर्थात विभक्त कर दिया जाता है तभी स्वतंत्र अस्तित्व का निर्माण होता है। यह सत्य धटना हैं इस घटना में एक नहीं दो दो लोगों को प्रसूति हुई जहां एक तरफ उस महिला ने शिशु को जन्म दिया वही शिवानंद के अंदर स्थित नाल भी कट गई। वह भी विभक्त हो गए अपने तथाकथित स्वरूप से और उनके अंदर जन्म ले लिया एक सन्यास्थ शिशु रुपी शिवानंद ने। जो कि अब केवल चिकित्सक नहीं है अब वह दूसरों की चिकित्सा छोड़ स्वयं की चिकित्सा कर रहे हैं स्वयं को ठीक कर रहा है। स्वयं को सुधार लिया तो सारा जग सुधर गया ईश्वर करे किसी दिन आपकी भी नाल कट जाए और आप भी मल मूत्र से सने हुए गर्भस्थ शिशु के रूप में मुक्त होकर नित्य शुद्ध और बुद्ध बने। इन शब्दों के मर्म को अवश्य समझना । यही गुरु का कार्य है यही अवधूत क्रिया है कि वह योग शिष्य की नाल काट दे उसे बंधन मुक्त कर दे उसे नित्य शुद्ध और बुध बना दे बुध तभी बनोगे शुद्ध तभी बनेंगे नित्य तभी बनोगे जब तुम्हारे सारे बंधन को काट दिए जाएगा। हां एक एक करके सारे बंधनों को काट दिया जाएगा अवधूत तुम्हारे रोने से डरेगा नहीं वह तो नाल काटेगा ही। प्रसव के समय माता भी रोती है और शिशु भी रोता है फिर भी नाल काटी जाती है। कुछ क्षण बाद दोनों हंसते खिलखिलाते हैं माता भी प्रसन्न होती है और शिशु भी खिल खिलाता है पर शुरू शुरू में दोनों रोते हैं। यही सद्गुरु का कार्य है उनके कार्य में प्रचंडता तो है निर्मलता तो है पर कल्याण इसी में है।
         विभक्ताअस्त्र प्रदान करते हैं दत्तात्रेय। आप के पास ₹50000 आएगा 5 दिन में साफ हो जाएगा। आप विभक्त आस्त्र से नहीं बच सकते हो। जवानी आएगी आप अपने कर्मों से उसे विभाजित कर लोगे। जितना ज्यादा विभाजित होगी उतनी जल्दी बुड्ढे हो जाओगे। हर महीने तनख्वाह पाते हो 5 दिन में विभाजित हो जाती है।100 कोई ले जाएगा 500 कोई ले जाएगा देखते ही देखते सब कुछ विभाजित हो जाएगा और विभाजित कर भी देना चाहिए नहीं तो व्यक्ति रावण बन जाएगा। एक मस्तिष्क में इतनी ऊर्जा होती है कि अगर वह विभाजित ना की जाए तो एक व्यक्ति को यह पृथ्वी नहीं संभाल सकती एक व्यक्ति के लिए यह पृथ्वी छोटी पड़ जाएगी पृथ्वी तो क्या यह ब्रह्मांड भी छोटा पड़ जाएगा ऊर्जा को विभाजित कर ही दिया जाता है। सूर्य की प्रचंड किरणें अगर विभाजित ना की जाए तो भगवान जाने क्या होगा? मनुष्य तो क्या ग्रह भी भस्म हो जाएंगे एक पिता ने उसे कुछ संताने और संतानों से संताने जैसे-जैसे विभाजन होता जाएगा वैसे-वैसे मृत्यु होती जाएगी और पृथ्वी की शुद्धता बनी रहेगी नित्यता बनी रहेगी प्रबुद्धत्ता बनी रहेगी। जिस बुद्ध भगवान की जनता पूजा करती है वह विभक्त अस्त्र में ही प्रांगत हैं। पिछले 10000 वर्षों का इतिहास उठाकर देख लो प्रतिक्षण विभाजन किया जाता है दुनिया भर के गुरु साधक अवतार धर्म पंथ इन 10000 वर्षों में निर्मित हुए हैं पर यह सब कहां चले गए। लाखों-करोड़ों लोगों ने एक धर्म को अपनाया एक सिद्धांत को अपनाया फिर क्यों नामोनिशान मिट गया? क्यों बड़े-बड़े साम्राज्य मिट्टी में मिल गए? एकीकरण की कोशिश तो होती ही रहती है। संप्रदाय बनाने की गतिविधियां तो चलती ही रहती है परंतु ऊपर से दत्त गुरु विभक्तास्त्र भी चलाते रहते हैं। सब कुछ प्रतिध्वनि है। एक गूंज की अनुगूंज है एक छाया की प्रति छाया है और इन सब के मूल में ही विभक्तास्त्र डाल दिया जाता है। ‍। क्रमशः

             जिव की अनुवांशिक संरचना में ही विभक्तास्त्र होता है । विभक्तास्त्र तक नहीं होता तो जन्म भी नहीं होता। माता के पेट से अलग भी नहीं होता प्रजनन ही विभक्त अस्त्र है। जो इस विभक्तास्त्र को समझ जाते हैं वहीं दत्त गुरु के शिष्य कहलाने योग्य होते हैं। वहीं आप हैं उनका काम ही विभाजन है और विभाजन ही शुद्धता देता है समुद्र का जल विभाजित कर दो उसे वास्तव में बदल दो शुद्ध होने दो। अध्यात्म में तो वर्षा के बादलों को भी अंतरिक्ष समुद्र कहा गया है। नदियों को भी रुकने की इजाजत नहीं दी गई है रुकोगे तो सुख जाओगी। भलाई इसी में है कि समुद्र में मिल जाओ। अगर एक दांत खराब हो गया है तो वह सारे शरीर को तकलीफ देगा मुंह से दुर्गंध आएगी अतः निकलवा देना चाहिए। चार सांस हो परंतु उच्च श्रेणी की हो जीवन से साल 2 साल कम हो जाए परंतु जीवन श्रेष्ठ हो। घसीट घसीट कर रो रो कर जीना अवधूति जीवन नहीं हो सकता यही श्री की उपासना है की अलक्ष्मी को हटा दिया जाए दुख दरिद्रता का दहन कर दिया जाए। विभक्त अस्त्र का प्रचंड प्रयोग किया जाए और दुख को भी विभाजित कर दिया जाए खंड खंड कर दिया जाए। उसके अस्तित्व को नगर ने बना दिया जाए। एक बालक को जन्म देने में कितनी प्रसव पीड़ा होती है? अगर एक स्त्री को 100 बालकों को जन्म देना पड़े तब क्या होगा? अतः कम से कम 60 70 स्त्रियों को 100 बालकों की उपस्थिति दर्ज कराने हेतु प्रसव पीड़ा झेलने दी जाए इससे पीड़ा के क्षण कम हो जाएंगे। कार्य का विभाजन कर देना चाहिए जिससे मजदूरी कम करनी पड़ती है। मजदूर क्या है? सुबह गड्ढा खोदता है शाम को रोटी मिलती है। मुझे बड़ी हंसी आती है आध्यात्मिक मजदूरों को देखकर 99% तांत्रिक तांत्रिक, साधक सब के सब आध्यात्मिक मजदूर हैं। दिन रात मजदूरी करते रहते हैं यह मंत्र वह मंत्र यह साधना व अनुष्ठान गधों को उपहार में कुछ मिलता ही नहीं है उपहार लेना जानते ही नहीं हैं। अध्यात्म के क्षेत्र में उपहार कौन देगा? अध्यात्म के क्षेत्र में उपहार मिलेगा गुरु के द्वारा। दत्त गुरु के द्वारा जब उपहार में मंत्र मिलेगा तो फिर 11 बार जपने से ही काम हो जाएगा। गुरु जब उपहार में दे देगा आशीर्वाद देगा तो फिर कुछ मजा आएगा नहीं तो बस किराए के मजदूर बने रहोगे। भाई हमने तो उपहार में पाया है इसलिए इसका महत्व समझ रहे हैं। हमने मजदूरी नहीं की है और ना ही मजदूरी करने की इच्छा है। आजकल यह बहुत हो रहा है कि आप पैसा दो अनुष्ठान करा लो। तांत्रिक महाराज से कुछ क्रिया करवा लो ठीक है वह सब के सब आध्यात्मिक मजदूर हैं दिहाड़ी पर काम करते हैं इसलिए इन्हें गुरु नहीं कहा जा सकता क्योंकि इनके पास सामर्थ्य नहीं है जो खुद मजदूर है पैसे पर काम करता है शाम होते ही जिसे रोटी की चिंता होती है वह किसी का काम क्या करेगा? वह तो खुद विभक्तास्त्र से पीड़ित है। सतगुरु की कदापि कृपा नहीं है उसके पास है ही नहीं अन्यथा मजदुरी क्यों करता? कहीं मस्त बैठा अलख जगा रहा होता किसी का कार्य करना कदापि स्वीकार नहीं करता।जिसने गुलामी की जिसने मजदुरी की जिसने अपने आप को बेचा उसकी आध्यात्मिक क्षेत्र में केवल गधे जैसी दुर्गति होती है। उससे खूब बोझ डुलवाया जाता है धोबी का गधा जब तक जीवित होता है तब तक बोझ ढोता है। बात कड़वी है बहुत तीखी है पढ़कर आपकी छाती में ऐठन मचने लगेगी और मैं यही चाहता हूं कि खूब जोर से गुस्सा आए। आप तिलमिला उठे और एक झटके में सब कुछ उठा कर फेंक दो एवं निर्भय हो जाओ।आप पर मेरे विभक्तास्त्र का प्रभाव पड़ जाए तब जाकर आप वास्तविक अध्यात्म रस का पान कर पाओगे। आपके पैरों में पड़ी मानस में पड़ी घटिया धार्मिक बेड़ियां एक झटके में टूट जाएगी। आप मुक्त हो जाओगे समस्त और अवरोधो से नहीं तो आप की शुद्धि नहीं होगी। एक कहानी सुनाता हूं एक बार गोरखनाथ और मत्स्येंद्रनाथ दोनों जा रहे थे रास्ते में एक किसान भरी दोपहर मे अकाल गस्त जमीन पर हल चला रहा था पानी नहीं था फिर भी हल चला रहा था। गुरु और चेले ने उसे भोजन मांगा उसके पास जो भोजन था उसने उन दोनों को दे दिया गुरु चेला तृप्त होकर बोले किसान भोजन के बदले हमसे कुछ मांग लो। किसान बोला तुम खुद तो दरिद्र हो मुझे क्या दोगे? एक नहीं 50 बार गुरु चेला किसान से कुछ मांगने को कहते रहे रहे गुस्से में किसान ने डंडा उठा लिया गोरखनाथ और मत्स्येंद्रनाथ को जीवन में पहली बार इतनी उल्टी खोपड़ी का आदमी मिला था। फिर गुरु चेला बोले अच्छा भाई तुम तो कुछ मांग नहीं रहे हम ही तुमसे कुछ मांग लेते हैं। किसान बोला ठीक है मांग लो वह बोले आज से तुम्हारे मन में जो भी विचार आए तुम उसका उल्टा करना हम 12 वर्ष बाद फिर मिलेंगे।

                 अब अड़बंग नामक किसान को भूख लगे तो वह भूखा रहे नींद आए तो खड़ा हो जाए रोना आए तो हंसे मल त्याग करने की इच्छा हो तो मूत्र त्याग करें खैर 12 वर्ष बाद गुरु चेला फिर वापस आए उन्होंने देखा किसान आक्षरनस: से हमारी आज्ञा का पालन कर रहा है। वे अपने प्रत्यभिज्ञा शक्ति से समझ गए कि हो ना हो हमारे दत्तगुरु ने एक नया नाम रख दिया है। मत्स्येंद्रनाथ बोले भाई तुम बहुत महान हो हम तुम्हें अपना गुरु बनाना चाहते हैं। अडंबंग जी तुरंत बोल उठे मैं तुम्हारा गुरु क्यों बनूं? तुम मेरे गुरु बनो बस यही तो मत्स्येंद्र नाथ जी सुनना चाह रहे थे। उन्होंने दूसरे ही क्षण अडंबंग को गुरु दीक्षा दे दी और इस प्रकार नौ नाथो में से एक अड़बंगनाथ का उदय हुआ। अध्यात्म के क्षेत्र में वही चलता है जो जीवनत होता है जीवनत और जिद्दी आदमी ही जीवन में कुछ कर पाता है। जुझारू जुनून अत्यंत ही विलक्षण शक्ति है जो जितना ज्यादा जुझारू होगा जितना ज्यादा जुनूनी होगा वह उतना ही विभक्तास्त्र तो चलाने में माहिर होगा। जब जब सनातनी धारा में धर्म संप्रदाय इत्यादि का उदय होता है नाथ रूपी शक्ति तुरंत ही उन्हें विभाजित कर देते हैं।आदि गुरु शंकराचार्य जी ने भी अंत में नाथ संप्रदाय में दीक्षा प्राप्त कर ली थी तभी उन्होंने बिंदुनाद नामक महा ग्रंथ अपने जीवन के अंतिम काल में लिखा। गुरु बिंदु है और शिष्य उस बिंदु की प्रतिध्वनि प्रतिध्वनि फैलाती जाएगी और अंत में विलीन हो जाएगी।प्रतिध्वनि विभाग शास्त्र से युक्त होती है स्वयं में विभाजित होती है और स्वयं भी विभाजित करती जाती है। अगर प्रतिध्वनि विभाजित ना हो तो कान फट जाएंगे आप तक आने से पहले ही ध्वनि अत्यधिक विभाजित हो जाती है। आपके प्रत्येक पंचेइंद्रिय अंग में विभाजन के यंत्र लगे हुए होते हैं। आप श्वास लेते हैं हृदय तक केवल शुद्ध वायु ही पहुंच पाती है नासिका और हृदय के बीच लगे तमाम जैविक यंत्र शुद्धता को रोक देते हैं। ऑक्सीजन के अलावा कुछ भी हृदय तक नहीं पहुंच पाता मस्तिष्क तक प्रत्येक पंचेइंद्रीयाँ केवल संवेग ही पहुंचाती है सब कुछ बीच में ही विभाजित कर दिया जाता है। भोजन जैसे ही करते हो उसके एक-एक लवण खनिज और अन्य तत्वों को संपूर्ण पाचन तंत्र विभाजित करके के रख देता है। मल का निष्कासन कहीं और से होता है मूत्र का निष्कासन कहीं और से होता है। ऐसा क्यों होता है? ऐसा इसलिए होता है कि आपकी नित्यता शुद्धता और बुद्धता बनी रहे। आप एक पुस्तक पढ़ते हैं सभी कुछ आपको थोड़ी याद रहता है हो सकता है एक लेख में बहुत कुछ कचरा हो अनावश्यक हो वह सब अपने आप निष्कासित हो जाता है। हम लोग के पास इतना समय नहीं होता कि किसी पुस्तक या ग्रंथ को पूरा पढ़ पाए। ऐसी स्थिति में एक क्रिया की जाती है पांच 7 दिन तक उस ग्रंथ या पुस्तक को सिरहाने रख कर सो जाया जाता है पांच 7 दिन के भीतर मस्तिष्क स्वयं उस पुस्तक के मूल तत्वों को निद्रित अवस्था में ग्रहण कर लेता है यही कारण है कि आप अपने पूजा घर में दिव्य ग्रंथ रखें आप कुछ ही दिनों में देखेंगे कि उस ग्रंथ में लिखी बातें आपका मस्तिक स्वयं ग्रहण कर रहा है यह बहुत सामान्य सी बात है मस्तिष्क की क्षमताएं अनंत है
    आप एक-एक करके इन तक पहुंचीए आध्यात्मिक ग्रंथ या आध्यात्मिक लेखन क्रियात्मक होते हैं यह स्वयं क्रिया करते हैं स्वयं प्रतिध्वनि उत्पन्न करते हैं यह जीवित जागृत होते हैं क्योंकि इनका निर्माण परम आध्यात्मिक व्यक्तित्व करते हैं यह अत्यंत ही गोपनीय विद्या है। मस्तिष्क स्वयं विभाजन कर देता है वह स्वयं सब कुछ निकाल कर बाहर फेंक देता है विभाजन ही उसका स्वभाव है उसे बहुत जल्दी ऊब होने लगती है।वह एक कार्य को ज्यादा समय तक नहीं कर सकता यह स्वास्थ्य मस्तिष्क की पहचान है स्वस्थ मस्तिष्क चेतन मस्तिष्क नित्य शुद्ध और बुध मस्तिष्क ज्यादा पचड़ो में नहीं पड़ते।वह अति शीघ्र रिश्तो संबंधो मोहमाया प्रपंच इत्यादि से स्वमेव मुक्ति प्राप्त कर लेते हैं। विभाजन कि इसी प्रक्रिया को दत्त गुरु एवं उनका गुरु संप्रदाय प्रतिक्षण शक्ति प्रदान करता है इसी कारणवश जीवन बहुरंगी बहु आयामी अति विस्तृत और मनोरंजक बना हुआ है अन्यथा भाग्य में सिर्फ मजदूरी ही मजदूरी बची रहेगी। 

          मस्तिष्क को तलाश होती है शुद्ध ऊर्जा स्रोतों की मस्तिष्क को तलाश होती है कुछ नए पाने की आपको भी तलाश है कुछ नया पढ़ने की सडा जला मस्तिष्क दत्तगुरु की शक्ति से विहीन मस्तिष्क बस सड़ी गली बातें करेगा नया कुछ नहीं देगा।नया नहीं मिल रहा है अर्थात मस्तिष्क सड़ने लगा है सनातनी धारा में नए नए विचारों का नित्य उदय होता रहता है यह देश रंग बिरंगा है यह किसी को ज्यादा मुंह नहीं लगाता कितने संप्रदाय बने भारत भूमि पर किसी एक का झंडा नहीं गड़ा किसी एक पैगंबर के पीछे लोग दीवाने नहीं हुए किसी एक अवतार की माया यहां नहीं चलती। अवतार देवी देवता आते जाते रहेंगे संप्रदाय आते जाते रहेंगे गुरु महाराज आते जाते रहेंगे। सब के सब विभक्त हो जाएंगे जो विभक्त नहीं होगा उसे मोक्ष कैसे मिलेगा? जिस गुरु का विलीनीकरण नहीं होगा वह महा अवधूत कैसे बन पाएगा? गुरु की अमानत है शिष्य क्योंकि वही उसकी प्रतिध्वनि है वो ही उसे मुक्त कराएगा सद्गुरु की मुक्ति ही उसकी सर्वज्ञता ही है। सर्वज्ञता विभक्तिकरण के द्वारा ही प्राप्त होती हैकिसी आश्रम से प्रमाण पत्र नहीं लेना पड़ेगा। वे सर्वज्ञ हैं सब की अमानत है इसलिए नित्य शुद्ध और बुध्द हैं। नेपाल में पशुपतिनाथ मंदिर के समीप उन्मुक्त भैरव का एक मंदिर है। यहां पर कामातुर भैरव की नग्न मूर्ति कई हजार वर्षों से स्थापित है। प्रसाद के रूप में लोग यहां से भैरो जी की मूर्ति के फोटो ले जाते हैं। भैरव अत्यंत ही प्रचंड देव हैं फिलहाल कुछ वर्षों में नेपाल राज परिवार में तथाकथित सामाजिक मर्यादाओं के चलते अनंत काल से चली आ रही इस परंपरा को शालीनता के नाम पर रोकने की कोशिश की। देव कार्यों में हस्तक्षेप किया जिसके भीषण परिणाम सामने हैं उनका बाकी आप खुद ही समझदार हैं। प्राचीन सास्वत परम सत्य आध्यात्मिक धाराओं में कदापि हस्तक्षेप नहीं करना चाहिए वरना इतना भयानक विभक्तास्त्र चलता है कि समस्त वंश, कूल देश इत्यादि अनंत ब्रह्मांड में विलीन हो जाते हैं इसे आप प्रलय भी कह सकते हैं। विभक्तास्त्र का अंतिम बिंदु है प्रलयास्त्र इसका भी एक ही मकसद है इस सृष्टि को नित्य बुध्द और शुद्ध रखना।

     ‌‌ शिव शासनत: शिव शासनत:

महाअवधूतम् ।।

        एक तरफ वेदांत दर्शन है तो दूसरी तरफ शैव दर्शन कालांतर इन दोनों में भी सम्मिश्रण हुआ शैवालम्बियो ने विष्णु को अपनाया तो वही वेदांती होने रूद्र को अपनाया। इन दोनों के बीच एक और आध्यात्म की श्रृंखला है जो कि ब्रात्य कहलाते हैं। यह ना तो वेदांत दर्शन में लिप्त हैं और ना ही शैव दर्शन में लिप्त है। यह श्रंखला विश्व के सभी धर्मों की रीढ़ की हड्डी है । प्राचीन काल में भी इन्होंने किसी और अवतार किसी ग्रंथ किसी धार्मिक समूह या परंपरा के प्रति अपनी लिप्तता प्रदर्शन नहीं की है। यह है योग मार्ग यह सभी धर्मों को समय-समय पर सीख देते रहते हैं एवं उनका पुनरुद्धार भी करते रहते हैं और जरूरत पड़ने पर उन्हें विभक्त कर उन्हें नष्ट कर फिर से कुछ नया उदित करवा देते हैं। अवतार एक विशेष कार्य के लिए शक्ति से सम्पुट होता है। राम रावण वध के लिए अवतरित हुए और फिर शरीर त्याग दिया। कृष्णा अपनी कला दिखाकर प्रस्थान कर गए एक काल विशेष में कृष्ण अति सक्रिय रहे हैं कृष्ण द्वापर से बंधे हुए हैं राम त्रेता से बंधे हुए हैं। प्रत्येक अवतार के ऋणात्मक और धनात्मक प्रभाव निश्चित ही होते हैं और उसकी प्रासंगिकता भी काल के अधीन होती है। विष्णु के 24 अवतार हुए हैं। इनमें से अनेकों तिर्यक योनि के हैं। नरसिंह अवतार में तो वह हिरण्यकश्यप के वध के पश्चात अत्यंत उग्र हो गए थे इसलिए सृष्टि को उन्हें पटल से हटाना पड़ा। आप इसकी व्याख्या इस प्रकार से भी कर सकते हैं कि अवतारों की क्रियाशीलता एक युग के बाद कम कर दी जाती है। यह कल्प ज्ञान का विषय है। देवता युग में जब प्रभु श्री राम आए तो उन्होंने स्वयं कहा है कि यह मेरा राम अवतार के रूप में 99 बार आना हुआ है और हनुमान तुम भी मेरे साथ 99 बार आ चुके हो। जब कल्प बदलेगा पुनः वापस आएगा और फिर से राम का सशरीर अवतार होगा। उसके बाद द्वापर में या फिर कलयुग में श्री राम के अवतार की प्रासंगिकता नहीं होगी। अवतार भी यंत्रवत है एवं जिस प्रकार यंत्र परिष्कृत होते रहते हैं उसी प्रकार अवतारों के स्वरूप भी परिष्कृत होते रहते हैं। यही हाल धर्मों का भी होता है।आखिरकार कौन सी ताकत धर्म समाज अवतार, ग्रंथ, परंपराओं, मान्यताओं, देश इत्यादि को अप्रासंगिक होने पर नष्ट कर देती है। यह ताकत ही महाअवधूत शक्ति कहलाती है। महाअवधूत वही है जिसे की पहचाना ना जा सके जिसके स्थान की जानकारी ना हो जो भी पहुंच से दूर हो जिसका की स्थापत्य ना किया जा सके। अगर इनमें से एक भी क्रिया हो गई तो महा अवधूत भी अप्रासंगिक हो जाएगा। दत्तात्रेय की पूजा अत्यंत ही विलक्षण है बिना किसी तामझाम के बिना दिशा ज्ञान के बिना काल ज्ञान के कहीं भी उनका नाम लेकर धूल उड़ा दो पुष्प चढ़ा दो दीपक रख दो इत्यादि वे ग्रहण कर लेंगे क्योंकि वे महाअवधूत है। उनका रूप समझ पाना किसी के बस में नहीं है ब्रह्मांड के ताप से भी अप्रभावित रहते हैं। कालांतर इन्हीं के द्वारा दीक्षित महामानवों ने नाथ के रूप में कुछ हल्की सी पहचान बनाई। हनुमान ने कानों में कुंडल पहन लिए सभी आर्य अवतारों ने कान में कुंडल पहन लिए इसका सीधा तात्पर्य है कि वे महाअवधूत की शक्ति से संस्पर्शितत हुए हैं। कृष्ण और रुक्मणी के विवाह को तो महाअवधूत नहीं मान्यता प्रदान की है। आम जनता आध्यात्म मे जल्दी विश्वास नहीं करती। वह हर घटना को भौतिक चक्षुओं से देखना ज्यादा पसंद करती है इसलिए चमत्कार, कौतुक, इंद्रजाल एवं अलौकिक स्थितियों को निर्मित करना पड़ता है सदृश्य रूप से। आम मानव मस्तिष्क को चमत्कार दिखाने ही पढ़ते हैं। अद्वैतवाद के सिद्धांत पर चलकर धर्म की स्थापना नहीं की जा सकती। थक हार कर कृष्णचंद्र को भी अर्जुन के समक्ष विराट स्वरूप उत्पन्न ही करना पड़ा। यही सब गोरखधंधे हर गुरु को करने पड़ते हैं। परकाया प्रवेश के बारे में बात की तो शंकराचार्य को सार्वजनिक रूप से परकाया प्रवेश करके दिखाना पड़ा। प्रत्यक्षीकरण नितांत आवश्यक है।किसी से कह दिया कि तुम्हें ईस्ट दर्शन होगा तो परिणाम अवश्य देना पड़ेगा। अतः गुरुओं को योग साधना करनी पड़ती है। योग बल के द्वारा ही चमत्कार किए जा सकते हैं।जब अर्जुन ने विराट स्वरूप देखा तभी वह कृष्ण के चरणों में भगवान भगवान कहता हुआ लिपटा। चमत्कार नहीं दिखा सकते तो फिर गुरु के रूप में कभी मान्यता नहीं मिलेगी। चमत्कार कौन दिखा पाएगा? वही जिसके शब्दों को काटने की ताकत किसी में ना हो समस्त प्रकृति जिसके हस्तगत हो सर्वशक्तिमान और सर्व नियंत्रक बनने की प्रक्रिया है। जो कुछ है हम ही हैं हमसे आगे कुछ भी नहीं है।योग बल को सिद्ध करो कुछ करके दिखाओ उनके जीवन में परिणाम देकर बताओ एवं उन्हें धूल से फूल बना दो। यही दत्तात्रेय का संदेश है। चमत्कार को नमस्कार है।

शिवरात्रि से आरम्भ करें "ॐ नमः शिवाय" का जाप और पाएं अद्भुत परिणाम ।।


मंत्र जप एक ऐसा उपाय है जिससे सभी समस्याएं दूर हो सकते हैं। शास्त्रों में मंत्रों को शक्तिशाली और चमत्कारी बताया गया है। सनातन धर्म के सबसे शक्तिशाली मंत्र और प्रभावी मंत्र का अर्थ और उनका जाप करने से होने वाले फायदे के बारें में आज हम आपको बताएगें। आज हम बताएंगे भगवान शिव के शरणाक्षर मंत्र "ॐ नमः शिवाय" की। शिवपुराण में "ॐ नमः शिवाय" को ऐसा मंत्र बताया गया है कि "ॐ नमः शिवाय" मंत्र के जप से सारी मनोकामनाएं पूरी कर सकते हैं। वैसे तो सभी मंत्र अपना प्रभाव रखते हैं।

ॐ नमः शिवाय मंत्र का अर्थ 

'"ॐ नमः शिवाय'" मंत्र एक महामंत्र है। केवल एक मंत्र का जाप करने से आप अपने जीवन में सफल हो सकते हैं। शिव पुराण में इस मंत्र को शरणाक्षर मंत्र भी कहा गया है। क्योंकि इसका निर्माण प्रलव मंत्र ओम के साथ नम: शिवाय पंचाछर मंत्र का मेल करने पर हुआ है। शिव पुराण में बताया गया है कि इस मंत्र के महत्व का वर्णन सौ करोड़ वर्षो में भी संभव नहीं है। ॐ नमः शिवाय का अर्थ है। घृणा, तृष्णा, स्वार्थ, लोभ, ईर्ष्या, काम, कोध्र, मोह, माया और मद से रहित होकर प्रेम और आन्नद से परिपूर्ण होकर परमात्मा का शानिध्य प्राप्त करें।

ॐ नमः शिवाय' मंत्र का जप करने का समय 

वेद पुराणों में इस चमत्कारी मंत्र का जप करने का कोई खास समय निर्धारित नहीं है। इस मंत्र को जब चाहे तब जप कर सकते हैं।

ॐ नमः शिवाय मंत्र जपने की विधि 

इस मंत्र का जाम प्रत्येक दिन रुद्राक्ष की माला से करना चाहिए।

ॐ नमः शिवाय मंत्र का जाप कम से कम 108 बार प्रत्येक दिन करना चाहिए।

जप हमेशा पूर्व या उत्तर दिशा की ओर मुख करके करना चाहिए।

यदि आप किसी पवित्र नदी के किनारे शिव लिंग की स्थापना और पूजन के बाद जप करेंगे उसका फल सबसे उत्तम होगा। इसके अलावा आप किसी पर्वत या शांत वन में भी इस मंत्र का जाप कर सकते हैं। साथ ही इस शारणाक्षर मंत्र का जाप शिवाय या घर में भी कर सकते हैं।

ॐ नमः शिवाय मंत्र का जाप हमेशा योग मुद्रा में बैठकर ही करना चाहिए।

 ॐ नमः शिवाय' मंत्र का जाप करने का नियम 

इस मंत्र को गुरू से प्राप्त करें। इस मंत्र जब ज्यादा असरदार और मंगलकारी बनता है। देवालय, तीर्थ या घर में शांत जगह पर बैठकर इस मंत्र का जाप करें। पंचाक्षरी मंत्र यानी नम शिवाय के आगे हमेशा ॐ लगाकर जप करें। किसी भी हिंदू माह के शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि यानी पहले दिन से कृष्ण पक्ष की चतुर्थदशी तक इस मंत्र का जाप करें। पंचाक्षरी मंत्र की अवधि में व्यक्ति खानपान, वाणी, और इंद्रियों पर पूरा सयम रखें। गुरू पति और माता पिता के प्रति सेवाभाव और सम्मान मंत्र जप काल के दौरान न भूलें। हिंदू पंचांग के सावन, माग्मा और भाद्रपद माह में बहुत शुभ और मनोरथ की पूर्ति करने वाला माना गया है।

 ॐ नमः शिवाय' मंत्र के फायदे 

इस मंत्र का जप करने से धन की प्राप्ति होती है और शत्रुओं पर विजय प्राप्त होती है।

अगर संतान न हो तो संतान प्राप्ति के लिए इस मंत्र का जाप किया जाता है। 

इस मंत्र के जाप से सभी कष्ट और दुख समाप्त हो जाते हैं और मनुष्य पर महाकाल की असीम कृपा बरसने लगती है।
                           शिव शासनत: शिव शसनत: