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शास्त्रों के अनुसार कमाई का कितना हिस्सा दान करना चाहिए और दिया दान कब नष्ट हो जाता है?

हिन्दू धर्म के साथ-साथ कई अन्य धर्मों में भी दान करने की बात कही गयी है। दान देने से आपमें विनम्रता बनी रहती है और कई तरह धार्मिक लाभ भी मिलते हैं। दान के कई प्रकार होते हैं। गीता में तीन प्रकार के दान की बात कही गई है, 
दान करना पुण्य का काम है और यह व्यक्ति के व्यक्तित्व को बेहतर बनाता है।
ऋग्वेद के अनुसार, दान करने का फल यज्ञ करने के फल के समान होता है। 
धर्मशास्त्रों में कहा गया है कि हर व्यक्ति को अपनी आय का दस प्रतिशत, जिसे 'दशांश' कहा जाता है, दान करना चाहिए ।
भगवद गीता में दान को तीन प्रकारों में विभाजित किया गया है: सात्विक, राजसिक और तामसिक।

 दान देने का मन में पश्चाताप या अश्रद्धा होने पर वह दान नष्ट हो जाता है। 

 यज्ञ करने के बाद जिस फल की प्राप्ति होती है, वही फल किसी को दान करने से भी मिलता है। हिंदू धार्मिक ग्रंथों में भी दान का विशेष महत्व बताया गया है लेकिन साथ में कुछ नियम भी बताये गए हैं। उन्हीं नियमों में इस बात की भी व्याख्या है कि आपको अपनी कमाई का कितना प्रतिशत हिस्सा जरूर दान करना चाहिए। 

 दस प्रतिशत हिस्सा जरूर दान दें 

 धर्मशास्त्रों में कहा गया है कि हर व्यक्ति को अपनी आय का दस प्रतिशत जरूर दान करना चाहिए । इसे "दशांश" या "दशवंध" कहा जाता है। हिन्दू धर्म के अलावा यहूदी, ईसाई और इस्लामी धर्मों में भी दान देने की सलाह दी गयी है और इसे धार्मिक और नैतिक कर्तव्य माना जाता है। शास्त्रों की मानें, तो हर व्यक्ति को अपनी समर्थता और परिस्थिति के अनुसार दान करना चाहिए। यदि किसी की आय अधिक है और वह अधिक दान करने में सक्षम है, तो उसे अधिक दान करना चाहिए। दान से समाज में संतुलन और समृद्धि बनी रहती है। 

 दान देने के नियम 

भगवद गीता में दान को तीन प्रकारों में विभाजित किया गया है। पहला दान है सात्विक दान , जो बिना किसी अपेक्षा के और सही स्थान और समय पर किया जाता है। दूसरा दान है राजसिक दान, जो फल की अपेक्षा के साथ और किसी अन्य स्वार्थ के लिए किया जाता है। तीसरा है तामसिक दान , जो अनुचित स्थान, समय और व्यक्ति को किया जाता है। दान हमेशा सत्पात्र अर्थात् दान लेने हेतु योग्य व्यक्ति को ही दिया जाना चाहिए और ऋण लेकर कभी भी दान नहीं दिया जाना चाहिए । दान कभी भी अपनों को दुखी या प्रताड़ित करके भी नहीं दिया जाना चाहिए। दान को लेकर यह भी कहा जाता है कि अपने संकट काल के लिए संरक्षित धन यानि सेविंग का कभी भी दान नहीं दिया जाना चाहिए। 

 कब दिया दान नष्ट हो जाता है? 

दान देने से आपके मन के भाव में सकारात्मकता आती है। इसलिए अगर दान देने के बाद दान दाता के मन में पश्चाताप आ जाए या उसे दान देने का अफसोस हो, तो वो दान नष्ट हो जाता है। जो दान अश्रद्धापूर्वक या किसी गलत भाव के साथ दिया जाए, तो वह भी नष्ट हो जाता है। जो भयपूर्वक दिया जाता है। वह भी नष्ट हो जाता है। ऐसा दान जो स्वार्थ पूर्वक अर्थात् दान देने वाले से बदले में कुछ अपेक्षा रखकर दिया जाता है, तो वो भी नष्ट हो जाता है।

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