चिंतन, आदत और विश्वास अंतराल के यह तीन क्षेत्र हैं। इन्हें क्रमशः मन, बुद्धि, चित्त कहते हैं। मनः क्षेत्र की यह तीन परतें हैं। इन्हीं को तीन शरीर, स्थूल, सूक्ष्म, कारण भी कहते हैं*। पंच भौतिक काया तो इन तीनों की आज्ञा एवं इच्छा का परिवहन मात्र करती रहती है। आत्म सत्ता इनसे ऊपर है।
उपरोक्त शरीरों की परोक्ष स्थिति को परिष्कृत करने के लिए योगाभ्यास में तीन साधनाएँ हैं। स्थूल को मुद्राओं से, सूक्ष्म को प्राणयाम से और कारण को योगत्रयी से परिमार्जित किया जाता है। मुद्राओं में तीनों प्रधान हैं- (१) शक्तिचालिनी मुद्रा, (२) शिथिलीकरण मुद्रा, (३) खेचरी मुद्रा । प्राणायामों में तीन को प्रमुखता दी गई है- (१) नाड़ी शोधन प्राणायाम, (२) प्राणाकर्षण प्राणायाम, (३) सूर्यवेधन प्राणायाम। योगाभ्यासों में तीन प्रमुख हैं- (१) नादयोग, (२) बिंदुयोग, (३) लययोग कल्प ।साधना में इन नौ का अभ्यास कराया जाता है। दिव्य अनुदान की ध्यान धारणा इन नौ के अतिरिक्त है। क्रियायोग के यह तीन प्रयोग साधक के त्रिविध शरीरों को परिष्कृत करने की उपयोगी भूमिका संपन्न करते हैं। शरीरों के हिसाब से इनका वर्गीकरण करना हो तो स्थूल शरीर के निमित्त शक्तिचालनी मुद्रा, नाड़ी शोधन प्राणायाम और नादयोग की गणना की जाएगी। सूक्ष्म शरीर के निमित्त प्राणाकर्षण प्राणायाम, शिथिलीकरण मुद्रा और बिंदुयोग को महत्त्व दिया जाता है। कारण शरीर में खेचरी मुद्रा, सूर्यवेधन प्राणायाम और लययोग का अभ्यास किया जाता है।
हर साधक को उन नौ को एक साथ करना आवश्यक नहीं। त्रिविध योग साधनाएँ तो सभी को सामान्य परिमार्जन करने की दृष्टि से आवश्यक मानी गई हैं। इनको हर स्थिति के साधक को साथ- साथ चलाने का प्रावधान है। नादयोग, बिंदुयोग और लययोग का अभ्यास सभी कल्प साधकों की दिनचर्या में सम्मिलित है।
मुद्राएँ तथा प्राणायाम तीन-तीन हैं। इनमें से साधक के अंतराल का सूक्ष्म निरीक्षण करके एक-एक का निर्धारण करना पड़ता है। दोनों मुद्राएँ, दोनों प्राणायाम भी तीन योगों की तरह प्रतिदिन साधने पड़ें ऐसी बात नहीं हैं। मुद्राओं में से एक, प्राणायामों में से एक का ही चयन करना होता है। इस प्रकार तीन योग, एक मुद्रा, एक प्राणायाम का पंचविध कार्यक्रम हर एक की दिनचर्या में सम्मिलित रहता है।
संदर्भ : चांद्रायण कल्प साधना
✍️ पं श्री राम शर्मा आचार्य।
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