जन्म : 19 अक्टूबर 1910
मृत्यु : 21 अगस्त 1995
विज्ञान के क्षेत्र में विश्व का सर्वाधिक प्रतिष्ठित नोबेल पुरस्कार पाने वाले सुब्रह्मण्यम चंद्रशेखर तीसरे भारतीय वैज्ञानिक थे। उनसे पहले विज्ञान के क्षेत्र में नोबेल पुरस्कार चंद्रशेखर वेंकटरमन (भौतिकी विज्ञान) 1930 में तथा दूसरे डॉक्टर हरगोविंद खुराना (शरीर एवं औषधि विज्ञान) 1968 में यह उपलब्धि प्राप्त कर चुके है। हालांकि नोबेल पुरस्कार पाने वाले वह पांचवें भारतीय थे। विज्ञान के क्षेत्र से अलग यह उपलब्धि पाने वाले गुरूदेव रवींद्रनाथ टैगोर जिन्हें साहित्य के लिए 1913 में तथा दूसरा मदर टेरेसा जिन्हें शांति और सद्भावना के लिए 1979 मे नोबेल पुरस्कार दिया गया था।
सुब्रमण्यम चंद्रशेखर ने अपने कार्यों और उपलब्धियों द्वारा नोबेल पुरस्कार प्राप्त कर भारत का झंडा विश्व में ऊंचा किया था। खगोल भौतिकी के क्षेत्र में सुब्रमण्यम की प्रसिद्धि और उनको नोबेल पुरस्कार दिए जाने का कारण है। तारों के ऊपर किए गए उनके गहन अनुसंधान कार्य और एक महत्वपूर्ण सिद्धांत जिसे चंद्रशेखर लिमिट के नाम से आज भी खगोल विज्ञान के क्षेत्र में मील का पत्थर माना जाता है।
सुब्रमण्यम चंद्रशेखर की इस महान खोज ने जहां पूर्व में की गई आधी अधूरी खोजो के सिद्धांतो को सुधार कर उन्हें पुनर्स्थापित किया, वहीं भविष्य में खगोल विज्ञान के क्षेत्र में किए जाने वाले अनेक अनुसंधानों का मार्ग भी प्रशस्त किया। उनकी इसी सफलतापूर्वक खोज ने उन्हें नोबेल पुरस्कार का अधिकारी बनाया।
>> सुब्रह्मण्यम चंद्रशेखर का जन्म <<
सुब्रमण्यम चंद्रशेखर का जन्म 19 अक्टूबर 1910 को लाहौर (अब पाकिस्तान) में हुआ था। दक्षिण भारतीय ब्राह्मण परिवार में जन्मे सुब्रमण्यम अपने 7 भाई बहनों के परिवार में सबसे बड़े पुत्र थे। उनके पिता श्री सी.एस. अय्यर ब्रिटिश सरकार के रेल विभाग में अधिकारी पद पर कार्यरत थे। अत्यंत जिज्ञासु प्रवृत्ति और कुशाग्र बुद्धि के स्वामी सुब्रमण्यम की प्रतिभा के लक्षण उनकी बाल्यावस्था में ही प्रकट होने लगे थे।
सुब्रमण्यम की बचपन से ही खेलों से कहीं अधिक रूचि किताबों में थी। यदि यह कहा जाए कि भविष्य में महान वैज्ञानिक बनने के गुण उनके खून में ही थे, तो गलत नहीं होगा। शिक्षित माता पिता की संतान के रूप में जन्मे सुब्रमण्यम चंद्रशेखर महान भौतिक विज्ञानी श्री चंद्रशेखर वेंकट रमन के भांजे थे। जिस समय सुब्रमण्यम का जन्म हुआ, उस समय वेंकटरमन भारत में भौतिक विज्ञान की आधारशिला रख रहे थे।
>> सुब्रमण्यम चंद्रशेखर की शिक्षा <<
सुब्रह्मण्यम चंद्रशेखर की प्रारंभिक शिक्षा लाहौर में ही हुई थी। सन् 1925 में जब उन्होंने प्रथम श्रेणी में हाईस्कूल की परीक्षा उत्तीर्ण की तो उसी साल के अंत में उनके पिता लाहौर छोड़कर मद्रास चले आएं। आगे की शिक्षा के लिए उन्होंने मद्रास के प्रेसिडेंसी कॉलेज की प्रवेश परीक्षा प्रथम श्रेणी से उत्तीर्ण की और छात्रवृत्ति सहित कॉलेज में अध्ययन आरम्भ किया। जैसे जैसे वे शिक्षा के क्षेत्र में आगे बढ़ते चले जा रहे थे, वैसे वैसे पढ़ने के प्रति उनकी रूचि भी तेजी से बढ़ती जा रही थी।
उनके सहपाठी अपने पाठ्यक्रम की पुस्तकों के अतिरिक्त और कुछ नहीं पढ़ते थे, किंतु सुब्रमण्यम नियमित रूप से पुस्तकालय जाते और भौतिक विज्ञान की जो भी नई पुस्तक मिलती, यहां तक की शोध पत्र भी पढ़ डालते थे। उन्होंने बी.एस.सी की भौतिकी विज्ञान ऑनर्स की परीक्षा में प्रथम श्रेणी प्राप्त की।
बी.एस.सी. की परीक्षा उत्तीर्ण करने के बाद सुब्रमण्यम चंद्रशेखर ने अपने मामा वेंकटरमन से भौतिक विज्ञान की अनेक बारिकियों को जाना। और सन् 1930 में सुब्रमण्यम इंग्लैंड पहुंचे, और कैंम्बिज विश्विविद्यालय में भौतिक विज्ञान के छात्र के रूप में अपना शोध कार्य आरंभ कर दिया। यहां उन्होंने रॉल्फ हॉवर्ड फाउलर द्वारा प्रतिपादित उन सिद्धांतों का अध्ययन किया जो सुदूर आकाश गंगा में स्थित श्वेत बौने तारों की प्रकृति पर आधारित थे।
निश्चित समय पर अपना शोध कार्य पूर्ण करके सन् 1933 में उन्होंने विश्वविद्यालय से पी.एच.डी.(P.H.D) की उपाधि प्राप्त की। इसी साल उन्हें कैम्ब्रिज के ट्रिनिटी कॉलेज का फैलो चुन लिया गया। ट्रिनिटी कॉलेज (Trinity College Of London) की फैलोशिप पाना अपने आप में एक महत्वपूर्ण सफलता थी। वे सन् 1937 तक यहां फैलो के रूप मे अपने शोध और अनुसंधान कार्यों में तन्मयता से जुटे रहे।
सन् 1933 से 1937 तक 4 वर्षों का समय सुब्रमण्यम और विश्व खगोल विज्ञान के लिए बहुत ही महत्वपूर्ण था। इसी समयावधि में सुब्रह्मण्यम चंद्रशेखर ने अपनी महत्वपूर्ण खोज “चंद्रशेखर लिमिट” को विश्व विज्ञान जगत के सामने रखा। यह अलग बात है कि पश्चिमी वैज्ञानिकों द्वारा प्रतिपादित किए गए पारंपरिक सिद्धांतों को ही सर्वोपरि
मानने वाले वैज्ञानिक समुदाय ने उनकी इस खोज को स्वीकारने में अपेक्षाकृत अधिक समय ले लिया। किंतु अपनी इसी खोज के लिए नोबेल पुरस्कार प्राप्त कर उन्होंने सिद्ध कर ही दिया कि वे अपनी जगह कितने सही थे।
>> नोबेल पुरस्कार <<
सुब्रह्मण्यम चंद्रशेखर के उपलब्धियों भरे वैज्ञानिक जीवन में इसे विडम्बना ही कहा जाएगा, कि जो खोज “चंद्रशेखर लिमिट” उन्होंने सन् 1935-1936 में ही कर ली थी, उसके लिए लगभग 47-48 सालो के बाद सन् 1983 में भौतिकी का नोबेल पुरस्कार प्रदान किया गया, जबकि उन्हीं के दो शिष्य सन् 1957 में ही यह सम्मान प्राप्त कर चुके थे। यह अलग बात है कि बाद के सालो में किए गए उनके अन्य अनुसंधान कार्यों जैसे कि ब्लैक होल (Black hole) की उत्पत्ति और संरचना व आकाश गंगा के अन्य रहस्यों को उजागर करने के परिणामस्वरूप और अधिक समय तक इस सम्मान से वंचित रख पाना संभव नहीं रह गया था। सन् 1983 मे उन्हें नोबेल पुरस्कार दिए जाने पर विश्व के समस्त वैज्ञानिक समुदाय ने प्रसन्नता प्रकट की।
>> परिवारिक और व्यक्तिगत जीवन <<
हालांकि सुब्रह्मण्यम चंद्रशेखर 20 साल की आयु में ही अपनी मातृभूमि छोड़कर विदेश आ गए थे। जहां लगभग 7 साल इंग्लैंड और बाकी का जीवन अमेरिका की पश्चिमी सभ्यता संस्कृति के संपर्क में रहकर बिताया, किंतु वे कभी भी अपने देश भारत और उसकी संस्कृति को नहीं भूले। वे भारतीय रंग ढ़ंग के अनुरूप ही रहते थे। अपने घर में दक्षिण भारतीय पहनावा धोती कुर्ता पहने उन्हें अक्सर देखा जाता था। एक खगोलीय विज्ञानी होते हुए भी उन्हें संगीत में विशेष रूची थी। सन् 1936 मे चंद्रशेखर भारत आए थे। हालांकि वे बहुत थोडे समय के लिए यहां रूके। किंतु इसी समय उन्होंने अपनी जीवन संगिनी का वरण किया और उन्हें भी अपने साथ अमेरिका ले गए। सुब्रह्मण्यम चंद्रशेखर की पत्नी श्रीमती ललिता दुरई स्वामी भी एक वैज्ञानिक थी। और भारत में महान वैज्ञानिक वेंकटरमन की विज्ञान अनुसंधान शाला में काम करती थी। विदेश में रहते हुए भी वे अपने पति की अच्छी सहयोगिनी सिद्ध हुई।
>> सुब्रह्मण्यम चंद्रशेखर की मृत्यु <<
अपना महत्वपूर्ण जीवन विज्ञान को सीखने और सीखाने में अर्पित कर देने वाले महान वैज्ञानिक सुब्रमण्यम चंद्रशेखर ने 85 वर्ष की आयु में 21 अगस्त 1995 को इस दुनिया को अलविदा कह दिया। आज सुब्रमण्यम चंद्रशेखर हमारे बीच नहीं है। किंतु वे अपने जाने से पूर्व अपने शिष्यों के रूप में भविष्य के वैज्ञानिकों की एक ऐसी पीढ़ी तैयार कर गए है, जिसके सुपरिणाम हमें निकट भविष्य में देखने को मिल सकते हैं
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