विष्णु पूजन सार्वभौमिक है। भारतवर्ष के कुछ विद्वान पाश्चात्य मानसिकता से ग्रसित हो विष्णु को केवल आर्यों का देवता बताते हैं एवं शिव को द्रविणों का आराध्य परन्तु वास्तविकता यह है कि दक्षिण में अयप्पा के नाम से विष्णु सदैव से सुपूजित रहे हैं। आर्य संस्कृति किसी न किसी रूप में सम्पूर्ण विश्व में व्याप्त रही है एवं आर्य संस्कृति के मूल में वैदिक ग्रंथ हैं। वेदों में जितनी विष्णु के की स्तुतियाँ हैं उतनी ही रुद्र की भी स्तुतियां हैं। रुद्र का तात्पर्य शिव ही है। महाविष्णु को अवतारों का मूल स्तोत्र माना जाता है। पृथ्वी पर जितने भी शरीर धारण किये हुए अवतारी महापुरुष हुए हैं वे सबके सब विष्णु अंश ही हैं एवं इन सब अवतारी शक्तियाँ ने अपने समय काल एवं मांग के अनुसार कोमोवेश पृथ्वी के जीवों में सभ्यता का संचार किया है, उन्हें चेतना प्रदान की है, समाज का उद्धार किया है और समाज के साथ पूर्ण चुनौति से टकरायें हैं।
प्रारम्भ में तो इनका घोर विरोध हुआ है पर बाद में चलकर सबने इन्हें पूर्ण हृदय के साथ स्वीकारा है और इनकी परम्पराओं पर चलकर मानव जगत में आश्चर्य जनक परिवर्तन हुए हैं। आश्चर्यजनक परिवर्तनों के लिए हमेशा परम विशेष शक्ति की प्राणी समुदाय को जरूरत पड़ी है। मनुष्य का असंख्य वर्षों का इतिहास इसका गवाह है कि एक अद्भुत, चमत्कारिक एवं दैवीय क्षमता से युक्त जीव आगे चला है और उसके पीछे-पीछे भीड़ चली है। ऐसा हमेशा से होता आया है और हमेशा होता रहेगा। जीव जगत, प्राणी जगत, वनस्पति जगत के अंदर हमेशा एक अध्याय कोरा रहता है जिसके ऊपर नवीन लिखावट की सदैव आवश्यकता होती है। वनसतयाँ भी चमत्कारिक गुण कभी भी ग्रहण कर सकती हैं। मनुष्य भी किसी भी हद तक सुधार कर सकता है और यहीं पर उपासना की जरूरत पड़ती है।
उपासना से व्यक्तिगत गुणों का विकास प्रचूरता के साथ होता है। परिवर्तन विश्व का नियम है। जीव का सम्पूर्ण जीवन परिवर्तनीय है। कब किस मार्ग से, किसके द्वारा, किस विधि से परिवर्तन हो जायेगा यह कहना मुश्किल है। आदिकाल से ही शैवमत और विष्णु मतावलम्बियों में भीषण द्वंद रहा है। द्वंद का कारण अर्धविकसित आध्यात्मिक चेतना है। वास्तव में हर और हरि एक दूसरे के पूरक हैं एवं इनके सायुज्य से ही एक साधक में आध्यात्मिक चिंतन पूर्ण हो पाता है। पंच भौतिक शरीर के साथ विष्णु शक्ति सबसे आसानी के साथ क्रियाशील हो पाती है। अन्य किसी देव शक्ति की अपेक्षा विष्णु जीव के प्रति सखा भाव स्थापित करने में ज्यादा सफल रहे हैं। अन्य शक्तियाँ इतनी नजदीक नहीं पहुँच पायी हैं। विष्णु के अलावा कोई और अन्य देव शक्ति जीव का शरीर धारण कर इस पृथ्वी पर लम्बे समय तक विचर भी नहीं पायी हैं। जीव से, मनुष्य से मनुष्य की शैली में, मनुष्य के रूप में, मनुष्य की भाषा में केवल विष्णु ही संवाद स्थापित कर पाये हैं और ब्रह्माण्ड के एक से एक परम दुर्लभ गूढ़ रहस्य सरलता के साथ प्रदान करने में सक्षम हुए हैं।
आज मनुष्य रुद्र के बारे में, देवी के बारे में, ब्रह्माण्ड के बारे में, आत्मा, परमात्मा, जीवोत्पत्ति इत्यादि के सम्बन्ध में जो कुछ जान सका है वह सब केवल विष्णु के कारण ही सम्भव हो सका है अन्यथा मनुष्य भी पशु के समान मूढ़ ही रह जाता मस्तिष्क की सीमितता, न्यूनता को एक नया आयाम सदैव से विष्णु वाणी देती आ रही है। एक नया दृष्टिकोण, कुछ विहंगम ज्ञान की प्राप्ति हेतु दिव्य चक्षुओं की जरूरत होती है। कुछ विशेष अनुभूत करने के लिए दिव्य चक्षु अत्यंत आवश्यक हैं और दिव्य चक्षु सदैव से विष्णु प्रदान करते चले आ रहे हैं अध्यात्म का सरलीकरण हमेशा विष्णु ने किया है। चाहे वे बुद्ध के रूप में, राम के रूप में, कृष्ण के रूप में या किसी अन्य रूप में आखिर उद्धारक, सखा वे ही बनते हैं।
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