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कृष्ण गोपी कथा ।।


कृष्ण का नाम लेते हुए एक गोपी की आँखें बन्द हो गयीं, अश्रुधाराऐं बहने लगीं। कृष्ण ! कृष्ण ! कहते-कहते बेसुध होकर वो कब जमीन पर गिर गयी, उसे मालूम भी न हुआ। इस बेसुधी में कृष्ण कब उसके पास आकर बैठ गये, उसे यह भी पता न चला।

      थोड़ी देर बाद जब उसकी आँख खुली तो सामने प्रियतम को देखकर हैरान हो गयी। पूछा - "रे कान्हा ! कब आया ?" कृष्ण ने कहा - "यह तो पता नहीं कब आया, पर जब से आया, तुझ ही को एक टक देख रहा हूँ।" गोपी कहती - "हद हो गयी ! हम तेरा दर्शन करें तो समझ लगती है, तू हमें क्यों देखेगा ?"

       कृष्ण ने कहा - "मैं तुझे नहीं, तेरे इस प्रेम को रोमांच को देख रहा हूँ। तेरी आँखों से बहती हुई प्रेम की अश्रुधाराओं को देख रहा हूँ। मैं तुझे नहीं, तेरे हृदय में प्रकट हुए इस प्रेम रूपी परमात्मा के दर्शन कर रहा हूँ। अरे गोपी ! ऐसा दर्शन तो मुझे भी दुर्लभ होता है।"

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