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कृषक बंधुओ को समर्पित ।।

भारतीय संस्कृति में नक्षत्रों का अपना महत्व है। इनमे भी रोहिणी नक्षत्र पर कई विद्वानों,कवियों ने वर्षा संबंधी दोहे,कहावतो पर कृषि से संबंधित बाते बताई। मालवा क्षेत्र के किसानों से कई रोचक तथ्य सुनने को मिले। जो आज भी गांव - चौपालों, हथाई - ओटलों पर किसान चर्चा करते मिल जायेंगे। वर्षा की भविष्यवाणी का प्रचलन प्राचीनकाल से ही रहा है। प्रत्येक वर्ष जेठ सुदी 8,9,10,11 तिथियों पर वायु किस दिशा में बह रही है। यदि मृदु और स्निग्ध हो और बादलों को रोकने वाली हो,तो उत्तम वर्षा होती है। यदि इन तिथियों में बिजली चमके,धूलभरी आंधियाँ चले और बूंदाबांदी हो ,तो वर्षाकाल में उत्तम वृष्टि होती है।नौ तपा 25 मई से 3 तक था।इससे वर्षा और खेती - किसानी और फसल का पूर्वानुमान लगा लेते है। मालवा में कहावत है कि नौ तपा यानी रोहिणी नक्षत्र गल जाय यानी इसमें पानी की एक बूंद भी गिर जाय तो फसलों में नुक्सान की संभावना बन जाती है। जेठ महीने में पानी बोणी के पूर्व गिरता है तो उसे जेठी डूंगला कहते है। कहते है कि यह आलसी किसानों को जगा रहा है। कहते हैं कि रोहिणी में खूब गर्मी पड़नी चाहिए। यदि रोहिणी में पानी की बूंद भी नही गिरती तो फसल अच्छी होती है। बोनी अच्छी मंड जाती। *किसान चुक्यों बोणी और दाडक्यों चुक्यों लावणी*। यानी किसान समय पर बोणी और मजदूर दाड़की चूक जाता है तो साल भर उसे भूखे मरने की नौबत आ जाती है। रोहिणी नक्षत्र के बारे में हमारे पूर्वजों ने कई अनुमान लगाये थे और वर्षा की भविष्यवाणी भी की। नौ दिन रोहिणी खूब तपती और इसमें पानी नहीं आता तो फसल अच्छी होने के संकेत है। यदि इसमें छींटे - छांटे भी पड़ जाय तो बोणी में रोणा (फजीहत) नही होती। जेठ माह में जब सूर्य रोहिणी नक्षत्र में प्रवेश करता है तब नौ तपा (रोहिणी) लग जाती है। प्रकृतिनुसार नौ तपा क्यों जरूरी है, नौ तपा यदि न तपे तो क्या होगा। 9 दिनों तक लू और सूर्य की गर्मी से धरती तपने लगती है। लू खेती के लिए जरूरी है।                
" दो मसा दो कातरा,दो तीडी दो ताव।                         
दो की बादी जल हरै, दो विश्वर दो वाव "।                

यदि नौ तपा के पहले दो दिन लू न चली तो चूहे बहुत बढ़ेंगे। अगले दो दिन लू न चली तो कातरा (फसल) को हानि पहुँचाने वाले कीट नष्ट नहीं होंगे। तीसरे दिन से दो दिन लू न चली तो टिड्डियों (तांतियाँ) के अंडे नष्ट नहीं होंगे। चौथे दिन से दो दिन नही तपा तो बुखार लाने वाले जीवाणु नहीं मरेंगे। इसके बाद दो दिन तक लू न चली तो विश्वर यानी साँप - बिच्छू नियंत्रण से बाहर हो जायेंगे। आखिरी दो दिन भी लू नही चली तो आंधियाँ अधिक चलेगी। फैसले चौपट कर देगी। जेठ महिने के शुक्लपक्ष में आर्द्रा से नौ नक्षत्रों में वर्षा कैसी होगी इसका अर्थ लगाया जाता है। यदि नौ दिन में आकाश में बादल छाये,तो श्रेष्ठ वर्षा होगी। वायु परीक्षण आषाढ़ सुदी पूर्णिमा को करना चाहिए। इस दिन शाम को गणेश पूजनकर सूर्यास्त समय ऊँचे स्थान पर खड़े हो हवा का रुख देखने हेतु झंडी फहराई जाती है। इस दिन पूर्वी वायु चले,तो उत्तम वर्षा,आग्नेय कोण में चले,तो अग्नि का भय तथा कम वर्षा के योग है। वायव्य कोण में चले, तो अल्पवर्षा तथा ईशान कोण में चले,तो उत्तम वर्षा होती है।यदि चारों दिशाओं में हवा एक - दूसरे को काटती हुए चले तो खण्डवृष्टि समझना चाहिये। वर्षा अनुमान की अन्य विधियाँ भी प्रचलित है, इनमे किसी देश, स्थान, मनुष्य,पशु - पक्षी और भौतिक वस्तुओं के द्वारा भी वर्षा ज्ञान किया जाता है। कवि घाघ और भडुरी की कहावते प्रचलित है :-            
जै दिन जैठ बहै पुरवाई         
तै दिन सावन धूरि उड़ाई।।      
यानी जितने दिन जेठ महिने में पूर्वी हवा चलेगी,उतने दिन तक सावन में धूल उड़ेगी अर्थात पानी नहीं पड़ेगा।                                    
अंबाझोर चले पुरवाई।            
तब जानौ बरखा ऋतुआई।। 
जब पूर्वी हवा इतनी जोर से चले कि आम के वृक्षों को भी झकझोर दे,तो समझे वर्षा ऋतु पास ही आ गई है 

शुक्रवार री बादरी रहे शनी चर छाय ,,
तो यौ भाखे भडुरी बिन बरसे ना जाय।।       
यानी शुक्रवार को बादली छाये और शनिवार को भी छाई रहे, तो वह बिना बरसे नही जाती,यानी पानी आता

करिया बादर जिउ डरावइ 
भूरा बादर पानी आवइ।।          
यानी काला बादल केवल डरावना होता है जबकि भूरा बादल पानी बरसाने वालाहै। 

 कल से पानी गरम हो चिड़ियाँ न्हावै धूर।
अंडा ले चींटी चलै,तो बरखा भरपूर।     
यानी घड़े में रखा पानी गरम मालूम पड़े और चिड़ियाँ धुल में नहाने लगे तथा चीटियाँ अंडे लेकर चल पड़े तो अच्छी वर्षा होगी

जेठ मास जो तपै निरासा। 
तो जानौ बरखा के आसा।।   
यानी जेठ का महीना इतना तपै कि उसमे मनुष्य निराश होने लगे तो अच्छी वर्षा होगी।                                     
धनुष पड़ै बंगाली। मेह सांझि या काली।।                   
यानी बंगाल की ओर (पूर्व की और) दिशा की और इंद्र धनुष निकले तो तो यह समझना चाहिये कि सांझ - सबेरे में ही वर्षा होगी।             

ढेले ऊपर चील जो बोले। गली - गली में पानी डोले।।
यानी यदि चील खेत में ढेले ऊपर बैठकर बोले तो समझे कि इतनी बरसात होगी कि खाल - खोदरे, छापरे और गली कूंचे तक पानी से भर जायेंगे।                                 
पूरब धनुही पच्छिम भान घाघा कहै बरखा नियरान।।       
अर्थात पूर्व दिशा में इंद्र धनुष दिखाई दे और उसी समय सूर्य पश्चिम में चले गए हो अथवा संध्या के समय इंद्र धनुष पड़े तो यह समझना चाहिए कि वर्षा समीप ही है।                         
इस प्रकार घाघ भडुरी कई वर्षा,मौसम, बोणी,फसल,पशु - पक्षी, बादल आदि पर कई कहावतें लिखी है।                      
इसके अलावा हमारे पूर्वजों के पास वर्षा संबंधी प्राकृतिक पेड़ - पौधो,पशु पक्षी से संबंधी जानकारी भी थी जो सटीक पूर्वानुमान थे।      
जैसे :- जब तक बैल और बौर में कोंपल(पत्ते) नही निकले और खेत में टिटोडी (टिटहरी) अपने अंडों से बच्चे न निकाल ले तब तक बोणी (खेत में बीज बोना) नही करनी चाहिए। ये प्राचीन संकेत है🙏

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