Follow us for Latest Update

करवाचौथ व्रत से संबंधित दो मुख्य कथा ।।

1. एक समय की बात है एक करवा नाम की पतिव्रता स्त्री अपने पति के साथ नदी के किनारे एक गाँव में रहती थी। अपने पति के प्रति गहन प्रेम और समर्पण से उसे आध्यात्मिक शक्ति प्राप्त थी। एक दिन उसका पति नदी में स्नान करने गया तब एक मगरमच्छ ने उसका पैर पकड़ लिया। पति करवा करवा कह के अपनी पत्नी को पुकारने लगा, पति की पुकार सुनकर पत्नी करवा भागी चली आई और आकर मगर को रस्सी से बाँध दिया। मगर को बाँधकर यमराज के यहाँ पहुँची और यमराज से कहने लगी - हे देव! मगर ने मेरे पति का पैर पकड़ लिया है। मगर को पैर पकड़ने के अपराध में आप अपने बल से नरक में ले जाओ। यमराज बोले- अभी मगर की आयु शेष है, इसलिए मैं उसे नहीं मार सकता। इस पर करवा बोली, अगर आप ऐसा नहीं करोगे तो मैं आप को श्राप देकर नष्ट कर दूँगी। यह सुनकर यमराज डर गए और उस पतिव्रता करवा के साथ आकर मगर को यमपुरी भेज दिया और करवा के पति को दीर्घायु दी। हे करवा माता! जैसे तुमने अपने पति की रक्षा की, वैसे सबके पतियों की रक्षा करना।

2. दूसरी कथा वीरवती महिला की हैं। भारत के अलग - अलग क्षेत्रों में वीरवती से संबंधित अनेक कथाएं प्रचलन में हैं, इसलिए जो महिला वीरवती की जिस कथा को पढ़ती सुनती आ रही हैं वह उसे ही पूरी श्रद्धा से पढ़ें सुने। उदाहरण के लिए वीरवती से संबंधित एक कथा

एक साहूकार के सात बेटे और एक बेटी वीरवती थी। सभी सातों भाई अपनी बहन से बहुत प्यार करते थे। भाई पहले बहन को भोजन खिलाते और उसके पश्चात स्वयं खाते थे। वीरवती विवाह के पश्चात अपने ससुराल में रहने लगी। एक बार वीरवती ससुराल से मायके आई हुई थी। करवा चौथ का दिन आया, वीरवती ने मायके में ही व्रत किया। संध्या को सभी भाई जब अपना व्यापार - व्यवसाय बंद कर घर आए तो देखा उनकी बहन बहुत व्याकुल थी। सभी भाई भोजन करने बैठे और अपनी बहन से भी भोजन का आग्रह करने लगे, किंतु बहन ने बताया कि उसका आज करवा चौथ का निर्जल व्रत है और वह भोजन चंद्रमा को देखकर उसे अर्घ्‍य देकर ही ग्रहण करेंगी। चूँकि चंद्रमा अभी तक नहीं निकला है, इसलिए वह भूख-प्यास से व्याकुल है। सबसे छोटे भाई से अपनी बहन की स्थिति देखी नहीं गई और वह दूर पीपल के पेड़ पर एक दीपक जलाकर छलनी की ओट में रख देता है। दूर से देखने पर वह ऐसा प्रतीत होता है कि जैसे चतुर्थी का चाँद उदित हो रहा हो। इसके पश्चात भाई अपनी बहन को बताता है कि चाँद निकल आया है, तुम उसे अर्घ्य देकर भोजन कर सकती हो। बहन सीढ़ियों पर चढ़कर चाँद को देखती है तथा अर्घ्‍य देकर भोजन करने बैठ जाती है। वह भोजन का पहला टुकड़ा मुँह में डालती है तो उसे छींक आ जाती है, दूसरा टुकड़ा मुँह में डालती है तो उसमें बाल निकल आता है और जैसे ही तीसरा टुकड़ा मुँह में डालने का प्रयास करती है तो उसके पति के रोगग्रस्त होने का समाचार उसे मिलता है। वह तुरंत अपने ससुराल पहुँचती है। वीरवती का पति मर चुका होता है, वीरवती एक सच्ची पतिव्रता महिला थीं वह अपने पति के शव के पास बैठ कर देवी पार्वती को स्मरण करते हुए रातभर रोती रहती हैं। वीरवती की भक्ति की शक्ति से माँ पार्वती प्रकट होकर उसे बताती है कि उसके भाई के छल के कारण उसका व्रत अनुचित ढंग से टूट गया। वीरवती माँ पार्वती के पैरों में गिरकर क्षमा माँगती है तथा अपने पति को जीवित करने की विनती करती हैं। माँ पार्वती कहती हैं वीरवती तेरी भक्ति से प्रसन्न होकर तेरे पति को जीवित तो कर रही हूँ किंतु तेरा पति पूर्ण रूप से स्वस्थ नहीं रहेगा जब तक तू अपनी भूल सुधार नहीं लेती, अपनी भूल सुधारने के लिए तुझे हर महीने आने वाले चौथ व्रत करते हुए अगला करवा चौथ व्रत पूरी श्रद्धा से करना है तब करवा माता ही तेरे पति को पूर्ण स्वस्थ करेगी। 
वीरवती हर महीने के चौथ व्रत को करती हुई करवा चौथ का व्रत भी सफलता पूर्वक करती हैं। करवा माता वीरवती से प्रसन्न होकर उसके पति को पूर्ण स्वस्थ कर देती हैं। हे माँ पार्वती, माता करवा जिस प्रकार वीरवती को चिर सुहागन का वरदान आपसे मिला है, वैसा ही सब सुहागिनों को मिले।

0 comments:

Post a Comment