Follow us for Latest Update

ईश्वर साकार है या निराकार ?

इस विषय को लेकर स्वामी रामकृष्ण परमहंस जी  का किसी विद्वान के साथ निरंतर तर्क-वितर्क चलता था।

एक दिन रामकृष्ण उन्हें लेकर मंदिर चले गए। सामने कृष्ण जी की सुंदर मूर्ति थी। रामकृष्ण ने उन्हें कहा कि ईश्वर साकार है ऐसी भावना करके आंखें बंद करो और प्रभु की मूर्ति को स्पर्श करो। उन्होंने ऐसा ही किया तो उनके हाथों ने प्रभु की प्रतिमा को स्पर्श कर लिया। फिर रामकृष्ण ने उनसे कहा कि अब आंखें बंद कर ऐसी भावना करो कि ईश्वर निराकार है और पुनः प्रभु की प्रतिमा को स्पर्श करो।

इस बार जब आंखें बंद कर निराकार भाव लेकर उनके विद्वान मित्र ने जब प्रभु के विग्रह का स्पर्श किया तो हाथ मूर्ति के आर-पार निकल गई।

रामकृष्ण परमहंस के उन मित्र को ईश्वर का साकार और निराकार होना एक बार में ही समझ में आ गया।

हिंदू धर्म क्लिष्ट है तो अत्यंत सहज भी है, मूल बात है कि इस चेतना की अनुभूति करना, इसे जिसने अनुभूति कर लिया उसे असीम प्रशांति प्राप्त होती है और वो तुच्छ बातों से, अनर्गल तर्कों से और अनावश्यक प्रलापों से दूर होकर सहज भाव से इसका प्रचार करता है।

0 comments:

Post a Comment