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🤔 क्या करें, क्या न करें ? 🤔

आचार संहिता

।। शयन ।।

१- प्राच्यां दिशि शिरश्शस्तं याम्यायामथ वा नृप।
सदैव स्वपत: पुंसो विपरीतं तु रोगदम्।।
           विष्णुपुराण ३।११।११३

२- प्राक्शिर:शयने विद्याद्धनमायुश्च दक्षिणे।
पश्चिमे प्रबला चिन्ता हानिमृत्युरथोत्तरे।।
    भगवंतभास्कर, आचारमयूख

३- अवाङ्मुखो न नग्नो वा न च भिन्नासने क्वचित्।
न भग्नायान्तु खट्वायां शून्यागारे तथैव च।।
      लघुव्याससंहिता २।८८-८९

४- नाविशालां न वै भग्नां नासमां मलिनां न च।
न च जन्तुमयीं शय्यामधितिष्ठेदनास्तृताम्।।
         विष्णुपुराण ३।११।११२

अर्थात् ।।

१- सदा पूर्व या दक्षिणकी तरफ सिर करके सोना चाहिये। उत्तर या पश्चिमकी तरफ सिर करके सोनेसे आयु क्षीण होती है तथा शरीरमें रोग उत्पन्न होते हैं।

२- पूर्वकी तरफ सिर करके सोनेसे विद्या प्राप्त होती है। दक्षिणकी तरफ सिर करके सोनेसे धन तथा आयुकी वृद्धि होती है। पश्चिमकी तरफ सिर करके सोनेसे प्रबल चिंता होती है। उत्तरकी तरफ सिर करके सोनेसे हानि तथा मृत्यु होती है अर्थात आयु क्षीण होती है।

३- अधोमुख होकर, नग्न होकर, दूसरेकी शय्यापर, टूटी हुई खाटपर तथा जनशून्य घरमें नहीं सोना चाहिये।

४- जो विशाल (बड़ी) ना हो, टूटी हुई हो, ऊंची- नीची हो, मैली हो अथवा जिसमें जीव हों या जिसपर कुछ बिछा हुआ न हो, उस शय्यापर नहीं सोना चाहिये।

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