प्रतिबंधात्मक जीवन में श्री की स्थापना सम्भव नहीं है। आदि शक्ति माँ बगलामुखी के मंत्र में बीज मंत्र के रूप में श्री भी स्थापित है। मंत्र गूंगे, बहरे और अंधे भी होते हैं। भारत वर्ष तीर्थ प्रधान देश है। जगह-जगह आपको प्राण प्रतिष्ठित तीर्थ स्थान मिल जायेंगे प्रत्येक व्यक्ति जीवन में भटकता हुआ कभी न कभी तीर्थ स्थानों, पर नदियों के तट पर, मंदिरों में या फिर गुरुओं के सानिध्य में पहुँच ही जाता है। एक अज्ञात शक्ति उसे बार- बार बाध्य करती है इन सब जगहों पर पहुँचने के लिए। यहीं पर बंधन खुलते हैं और व्यक्ति का उच्चाटन समाप्त होता है एवं उसे जीवन में एक निश्चित दिशा प्राप्त होती है।
शक्ति संचय की यह अद्भुत व्यवस्था है। प्रत्येक व्यक्ति के बंधन अलग- अलग स्थानों पर खुलते हैं। प्रत्येक व्यक्ति का भाग्योदय के पूजन में रक्षा कवच का विधान है। मुख्य रूप से सभी रक्षा कवचों में बगलामुखी की शक्ति ही निहित होती है। महाविद्याओं की शक्तियाँ मूल स्तोत्र हैं जिनके द्वारा सभी आदि शक्तियाँ अस्त्र शस्त्र एवं कवचों से युक्त होती हैं और फिर यहीं अस्त्र शस्त्र और कवच भक्तजनों को उनके इष्टों के द्वारा प्राप्त होते हैं। प्रत्येक व्यक्ति की अपनी अलग संरचना है इसीलिए उसका एक विशेष इष्ट देव होता ही है। उस इष्ट के माध्यम से वह आसानी से महाविद्याओं की शक्तियों को प्राप्त कर लेता है। योग विद्या के माध्यम से या फिर अन्य क्रियाओं के माध्यम से साधक अपनी क्रियाशीलता बढ़ा सकता है। शरीर की क्रियाशीलता और मानस की क्रियाशीलता में जमीन आसमान का फर्क है। मनुष्य भाव प्रधान जीव है उसके अंदर अनेकों भाव होते हैं इसीलिए वह वमन की प्रक्रिया से ग्रसित होता है। जो उसके मानस में बनता है अगर उसका वह वमन नहीं करेगा तो जीवन मुश्किल हो जायेगा।
अगर दुःख का निर्माण हो रहा है तो आंसू के माध्यम से वह उसे प्रकट करेगा। कभी-कभी कुछ लोगों में विचार ज्यादा बनने लगते है। जिनमें विचार ज्यादा बनते हैं वे उन्हें प्रकट किए बिना नहीं रह सकते। भाव की प्रधानता से मस्तिष्क का बहुत ज्यादा विकास नहीं हो सकता। अतः मस्तिष्क की क्रियाशीलता धीरे-धीरे भाव के कारण कम होने लगती है। भाव एक ऐसा द्वार जो अगर खुल गया तो आपके मस्तिष्क में परमंत्र,तंत्र एवं शत्रु द्वारा किया गया अभिचार कर्म शीघ्रता के साथ आपको उद्वेलित करके रख देगा। भाव के नियंत्रण के लिए ही मस्तिष्क का शून्यीकरण किया जाता है। अर्थात मस्तिष्क को शून्य कर देना। कुछ समय के लिए मस्तिष्क के अंदर उठ रही सारी क्रियाओं को समाप्त करना। यह इतना आसान नहीं हैं। इसे ही स्तम्भन की प्रक्रिया कहते हैं। यही ध्यान है। यही बगलामुखी अनुष्ठान का रहस्य है।
यह तभी सम्भव होगा जब मस्तिष्क का सम्प्रेषण केवल मनुष्यों के द्वारा ही नहीं अपितु अन्य इतर योनियों, ग्रह नक्षत्रों इत्यादियों से भी बाधित या स्तम्भित कर दिया जाय। तभी मस्तिष्क को क्रियाशीलता बढ़ाई जा सकती है। यह समाधि की अवस्था है। इसे ब्रह्म अवस्था भी कहते हैं। इस ब्रह्म अवस्था में ही मस्तिष्क वास्तविक सृजन कर सकेगा। एक ऐसा सृजन जो कि परिवर्तनकारी होगा। कुछ अलग हटकर होगा। मस्तिष्क को रोकना होगा व्यर्थ बर्बाद होने से। मस्तिष्क की गुणवत्ता सुधारनी होगी। मस्तिष्क को केवल संवेगों की क्रीड़ा स्थली बनकर नही रहने देना होगा। संवेगों और इन्द्रियों के ऊपर बहुत कुछ है। भाव प्रधान मस्तिष्क बहुत मिल जाएंगे क्रूर और निर्दयी मस्तिष्क बहुत मिल जायेंगे। आलोचक मस्तिष्कों की भरमार है। भिखमंगे मस्तिष्क जगह-जगह पर लगे हुए हैं। इन सब मस्तिष्कों से बगलामुखी को आराधना कदापि नहीं होगी। कुछ एक विरले सृजनशील मस्तिष्क होते हैं। इन सृजनशील मस्तिष्कों के द्वारा ही ब्रह्म विद्या को समझा जा सकता है सृजनशील मस्तिष्क वो देख सकता है, वो महसूस कर सकता है जो कि आम मस्तिष्क सोच भी नहीं सकता। यह बंधन मुक्त मस्तिष्क होता है और बंधन से मुक्तता ही बगलामुखी या अन्य दस महाविद्याओं आराधना का ध्येय है ।
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