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गुरु पूर्णिमा ।।

1. गुरु शब्द की उत्पत्ति
संस्कृत मूल गु का अर्थ हैं अंधेरा या अज्ञानता और रू का अर्थ हैं अंधेरा या अज्ञान को हटाने वाला या उसका निरोधक (प्रकाश, तेज)। गुरु वह है जो हमारे अज्ञान के अंधकार को हटाकर हमें ज्ञान के प्रकाश की ओर ले जाए।

2. हिंदू पंचांग के आषाढ़ मास (जून-जुलाई) के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा को आषाढ़ी पूर्णिमा या गुरु पूर्णिमा कहते है। इस दिन गुरु पूजन का विधान है। गुरु पूर्णिमा वर्षा ऋतु के आरंभ में आती हैं और इस दिन से चार मास तक परिव्राजक साधु-संत एक ही स्थान पर ज्ञान की गंगा बहाते है। यह चार मास ऋतु की दृष्टि से सर्वश्रेष्ठ होते है, न अधिक उष्णता (गर्मी) और न अधिक शीतलता (सर्दी)। इसलिए अध्ययन के लिए उपयुक्त माने गए है।

3. गुरु ईश्वर स्वरुप है

गुरुर्ब्रह्मा गुरुर्विष्णुर्गुरुर्देवो महेश्वरः
गुरुः साक्षात् परंब्रह्म तस्मै श्रीगुरवे नमः

हिंदी अर्थ - "गुरु ब्रह्मा है (नव जीवनदाता, सृष्टिकर्ता), गुरु विष्णु हैं (रक्षक) और गुरु देव महेश्वर हैं (शिव, बुराई का संहारक), गुरु साक्षात् परम ब्रह्म (परमेश्वर), ऐसे श्रीगुरु को मेरा नमन है।

4. आदि गुरु शिवजी
भगवान शिव को आदि गुरु या संसार का प्रथम गुरु माना जाता हैं। शिवजी ने गुरु पूर्णिमा के दिन सप्त ऋषियों को पहला शिष्य बनाया और उन्हें यौगिक विज्ञान की शिक्षा दी थी। सप्तऋषि इस ज्ञान को लेकर पूरे संसार में गए। धरती की हर आध्यात्मिक प्रक्रिया के मूल में शिव का ज्ञान हैं।

5. महर्षि वेदव्यास जन्मदिवस
महान ऋषि व्यास का जन्म गुरु पूर्णिमा के दिन हुआ था। उनके सम्मान में गुरु पूर्णिमा को व्यास पूर्णिमा नाम से भी जाना जाता है। व्यास का अर्थ होता है संपादन या विभाजन (vyas = to edit, to divide) उन्होंने वेद को चार भागों में विभाजित किया ऋग, यजुर, साम, अथर्व। इसलिए उन्हें वेद व्यास भी कहा जाता है। वेद व्यास ने पुराणों, महाभारत सहित अनेक ग्रंथों की रचना भी की थीं।

6. गौतम बुद्ध ने गुरु पूर्णिमा के दिन सारनाथ में पाँच भिक्षुओं को धर्म का पहला उपदेश दिया। इसे प्रथम धर्मचक्र प्रवर्तन कहते हैं। बुद्ध ने उपदेश में चार सत्यों के बारे में बताया था - दुख, दुख का कारण, दुख का निदान, निदान का मार्ग निर्वाण हैं।

7. जैन पंथ में गुरु पूर्णिमा को त्रिनोक गुहा पूर्णिमा कहा जाता हैं। 24वें तीर्थंकर महावीर स्वामी को त्रिनोक गुहा (प्रथम गुरु) माना गया है। महावीर स्वामी ने गुरु पूर्णिमा के दिन इंद्रभुति गौतम को अपना पहला शिष्य बनाया। उन्होंने पहले उपदेश में 5 यम - अहिंसा, सत्य, अपरिग्रह, अचौर्य, और ब्रह्मचर्य को जीवन का मार्ग बताया।

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