सभी का आवाहन मंत्र अलत होता है।
साधारण रूप से आवाहन करना है तो
आवाहन मुद्रा बनाकर उनका मंत्र बोलते हुए आवाहयामी बोला जाता है
जैसे गणेश जी का आवाहन करना है तो "ॐ गं गणपतये नमः आवाहयामी स्थापित नमः"
संकल्प के लिए हाथ में थोड़ा सा जल लेकर अपना संकल्प को बोला जाता है आप हिंदी में भी हो सकते हैं उसमें अपना नाम, गोत्र, तिथि, वार, किस चीज के लिए साधना कर रहे हैं इत्यादि बोला जाता है।
बंधन के लिए मंत्र दिया होगा उसे बोलते हुए करना है।
मंत्र जप में विसर्जन नहीं होता समर्पण होता है।
१.पवित्रीकरण
बायें हाथ में जल लेकर उसे दायें हाथ से ढककर निम्न मंत्र पढ़ें -
ॐ अपवित्रः पवित्रो वा सर्वावस्थां गतोऽपि वा। यः स्मरेत् पुण्डरीकाक्षं स बाह्याभ्यन्तरः शुचिः॥
इस अभिमंत्रित जल को दाहिने हाथ की उंगलियों से अपने सम्पूर्ण शरीर पर छिड़कें, जिससे आन्तरिक और बाह्य शुद्धि हो।
२. आचमन
मन, वाणी तथा हृदय की शुद्धि के लिए पंचपात्र से आचमनी द्वारा जल लेकर तीन बार निम्न मंत्रों के उच्चारण के साथ पियें
ॐ केशवाय नमः ।
ॐ माधवाय नमः।
ॐ गोविंदा य नमः।
ओम ऋषिकेशाय नमः एक आचमनी जल ले कर हाथ धो ले।
३.शिखा बन्धन
शिखा पर दाहिना हाथ रखकर दैवी शक्ति का स्थापन करें, जिससे साधना पथ में प्रवृत्त होने के लिए आवश्यक ऊर्जा प्राप्त हो सके
चिद्रूपिणि महामाये दिव्य तेजः समन्विते ।
तिष्ठ देवि ! शिखामध्ये तेजो वृद्धिं कुरुष्व मे॥
४.न्यास
इसके उपरान्त मंत्रों के द्वारा अपने सम्पूर्ण शरीर को पुष्ट व सबल बनाएं। प्रत्येक मंत्र उच्चारण के साथ सम्बन्धित अंग को दाहिने हाथ से स्पर्श करें।
५.आसन पूजन
अब अपने आसन के नीचे कुंकुम या चन्दन से त्रिकोण बनाकर उस पर अक्षत, चन्दन व पुष्प निम्न मंत्र बोलते हुए समर्पित करें और हाथ जोड़कर प्रार्थना करें
ॐ पृथ्वि ! त्वया धृता लोका देवि ! त्वं विष्णुना धृता।
त्वं च धारय मां देवि ! पवित्रं कुरु चासनम् ॥
६.दिग् बन्धन
बायें हाथ में जल या चावल लेकर दाहिने हाथ से सभी दिशाओं में निम्न मंत्र बोलते हुए ऊपर व नीचे छिड़कें
ॐ अपसर्पन्तु ये भूता ये भूताः भूमि ये भूता विघ्नकर्तारस्ते नश्यन्तु शिवाज्ञया ।।
अपक्रामन्तु भूतानि पिशाचाः सर्वतो दिशम्। सर्वेषामविरोधेन पूजाकर्म समारभे ।।
गणेश स्मरण
तत्पश्चात् गणपति के बारह नामों का स्मरण करें, प्रत्येक कार्य करने के पूर्व भी इन बारह नामों का स्मरण सिद्धिदायक माना गया है।
सुमुखश्चैकदन्तश्च कपिलो गजकर्णकः ।
लम्बोदरश्च विकटो विघ्ननाशो विनायकः ।।
धूम्रकेतु र्गणाध्यक्षो भालचन्द्रो गजाननः।
द्वादशै तानि नामानि यः पठेच्छृणुयादपि।।
विद्यारम्भे विवाहे च प्रवेशे निर्गमे तथा।
संग्रामे संकटे चैव विघ्नस्तस्य न जायते ॥
इतना करने के बाद जिसकी मंत्र जाप करना है उसे देवी/देवता का संक्षिप्त पूजन करें।
पूजन में सबसे पहले हाथ जोड़कर ध्यान करें ध्यान मंत्र बोलते हुए।
फिर आवाहन मुद्रा बनाते हुए आवाहन मंत्र बोलकर आवाहन करें।
फिर आसन के लिए कुछ पुष्प लेकर आसान मंत्र बोलते हुए उसके पुष्प चढ़ाएं।
फिर पैर धोने के लिए पाद्य, हाथ धोने के लिए अर्ध्य ,स्नान,वस्त्र, चंदन,अक्षत,पुष्प,धूप,दीप नैवेद्य, निरंजन जल आरती पुष्पांजलि विशेषार्ध्य, समर्पण (सभी का मंत्र अलग-अलग होगा)
फिर उसके बाद मानसिक रूप से गुरु आज्ञा लेकर मंत्र जप शुरू करें अंत में जप समर्पण कर दें।