भगवान शिव के पुत्र कार्तिकेय का जन्म इस दिन हुआ था इसलिए इस दिवस को कार्तिक पूर्णिमा कहते हैं। भगवान शिव ने कार्तिक पूर्णिमा के दिन त्रिपुरासुर नामक महाभयानक असुर का अंत किया था और वे त्रिपुरारी के रूप में पूजित हुए थे। त्रिपुरासुर के अंत से प्रसन्न देवताओं ने स्वर्ग लोक में दीप प्रज्वलित कर दीपोत्सव मनाया था और तभी से कार्तिक पूर्णिमा को देव दीपावली मनायी जाने लगी।
इस दिन भगवान विष्णु ने प्रलय काल में वेदों की रक्षा के लिए तथा सृष्टि को बचाने के लिए मत्स्य अवतार धारण किया था। कार्तिक पूर्णिमा को श्री हरि के बैकुण्ठ धाम में देवी तुलसी का मंगलमय पराकाट्य हुआ था। कार्तिक पूर्णिमा को ही देवी तुलसी पृथ्वीलोक में अवतरित हुई थी। भगवान कृष्ण के धाम गोलोक में इस दिन राधा उत्सव मनाया जाता है तथा रासमण्डल का आयोजन होता है।
सिख पंथ में कार्तिक पूर्णिमा का दिन प्रकाशोत्सव के रूप में मनाया जाता है। इस दिन सिख पंथ के संस्थापक गुरू नानक देव का जन्म हुआ था। गुरु नानक के माता-पिता सनातन धर्मी थे, पिता का नाम कालूचंद मेहता और माता तृप्ता देवी थी।
जैन पंथ में कार्तिक पूर्णिमा का दिन बहुत महत्वपूर्ण हैं। पहले तीर्थंकर आदिनाथ ने अपना पहला उपदेश कार्तिक पूर्णिमा को शत्रुंजय पर्वत पर दिया था, जैन ग्रंथो के अनुसार इस पर्वत पर सैकड़ों साधु साध्वियों ने मोक्ष प्राप्त किया है। कार्तिक पूर्णिमा को असंख्य जैन तीर्थयात्री शत्रुंजय पर्वत की तीर्थ यात्रा करते हैं और पर्वत पर स्थित भगवान आदिनाथ मंदिर में पूजा अर्चना करते हैं।

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