आज के भौतिकवादी युगमें भी यदि पूर्ण आस्था के साथ अनन्यशरण हो जगजननी माँ दुर्गा की आराधना की जाय तो वह निष्फल नहीं होती। इस तरह की एक प्रत्यक्ष घटना देखने को मिली है, जो निम्न प्रकार से है- बात सन् १९६८ ई० की है।
एक सज्जन घरसे दूर अपनी नौकरी पर थे, वहीं उन्हें सूचना मिली कि उनके किसी शत्रु ने उनके परिवार वालों को चोरी के झूठे अभियोग में फसा दिया है तथा वे लोग शीघ्र ही कारागार में बन्द होने वाले हैं। यह सुनते ही उनके होश उड़ गये। कहीं से सहायता की आशा न होने पर उन्हें श्रीदुर्गाकवच का वाक्य - ' कवचेनावृतो नित्यं यत्र यत्रैव गच्छति। तत्र तत्रार्थलाभश्च विजयः सार्वकामिकः ॥ स्मरण हो आया। वे अनन्यभावसे पूर्व स्मृतिके अनुसार कवचका
पाठ करने लगे। देवीकवच का सतत पाठ करते हुए ट्रेन से अपने घर जा पहुँचे और वहाँ से बिना किसी विशेष नियम के पाठ करते हुए थाने पर गये। विधिवेत्ताओं और पैरवीकारों के अनुसार बिना हाजिर हुए और बिना एस०डी०ओ० की अनुमति के जमानत होना असम्भव था, किंतु माँ की कृपा से कवच के प्रभाव से जमानत भी हो गयी और मुकदमे से भी बेदाग छूट गये। तब से वे प्रतिदिन केवल विनियोग पूर्वक श्रीदुर्गाकवच का पाठ करते हैं और सानन्द जीवन-यापन करते हुए अपने हर कार्य में सफलता प्राप्त करते हैं। उनका अनुभव है कि यदि अनन्यभावसे कवच का पाठ मात्र ही निरन्तर किया जाय तो यह पाठ मनोवांछित फल देता है।
(कल्याण पत्रिका)

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