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महाभारत में वर्णित ये पैंतीस नगर आज भी मौजूद हैं ।।

भारत देश महाभारतकाल में कई बड़े जनपदों में बंटा हुआ था। हम महाभारत में वर्णित जिन 35 राज्यों और शहरों के बारे में जिक्र करने जा रहे हैं, वे आज भी मौजूद हैं :-

1. गांधार👉 आज के कंधार को कभी गांधार के रूप में जाना जाता था। यह देश पाकिस्तान के रावलपिन्डी से लेकर सुदूर अफगानिस्तान तक फैला हुआ था। धृतराष्ट्र की पत्नी गांधारी वहां के राजा सुबल की पुत्री थीं। गांधारी के भाई शकुनी दुर्योधन के मामा थे।

2. तक्षशिला👉 तक्षशिला गांधार देश की राजधानी थी। इसे वर्तमान में रावलपिन्डी कहा जाता है। तक्षशिला को ज्ञान और शिक्षा की नगरी भी कहा गया है।

3. केकय प्रदेश👉 जम्मू-कश्मीर के उत्तरी इलाके का उल्लेख महाभारत में केकय प्रदेश के रूप में है। केकय प्रदेश के राजा जयसेन का विवाह वसुदेव की बहन राधादेवी के साथ हुआ था। उनका पुत्र विन्द जरासंध, दुर्योधन का मित्र था। महाभारत के युद्ध में विन्द ने कौरवों का साथ दिया था।

4. मद्र देश👉 केकय प्रदेश से ही सटा हुआ मद्र देश का आशय जम्मू-कश्मीर से ही है। एतरेय ब्राह्मण के मुताबिक, हिमालय के नजदीक होने की वजह से मद्र देश को उत्तर कुरू भी कहा जाता था। महाभारत काल में मद्र देश के राजा शल्य थे, जिनकी बहन माद्री का विवाह राजा पाण्डु से हुआ था। नकुल और सहदेव माद्री के पुत्र थे।

5. उज्जनक👉 आज के नैनीताल का जिक्र महाभारत में उज्जनक के रूप में किया गया है। गुरु द्रोणचार्य यहां पांडवों और कौरवों की अस्त्र-शस्त्र की शिक्षा देते थे। कुन्ती पुत्र भीम ने गुरु द्रोण के आदेश पर यहां एक शिवलिंग की स्थापना की थी। यही वजह है कि इस क्षेत्र को भीमशंकर के नाम से भी जाना जाता है। यहां भगवान शिव का एक विशाल मंदिर है। कुछ विशेषज्ञ मानते हैं कि यह शिवलिंग 12 ज्योर्तिलिंगों में से एक है।

6. शिवि देश👉 महाभारत काल में दक्षिण पंजाब को शिवि देश कहा जाता था। महाभारत में महाराज उशीनर का जिक्र है, जिनके पौत्र शैव्य थे। शैव्य की पुत्री देविका का विवाह युधिष्ठिर से हुआ था। शैव्य एक महान धनुर्धारी थे और उन्होंने कुरुक्षेत्र के युद्ध में पांडवों का साथ दिया था।

7. वाणगंगा👉 कुरुक्षेत्र से करीब तीन किलोमीटर की दूरी पर स्थित है वाणगंगा। कहा जाता है कि महाभारत की भीषण लड़ाई में घायल पितामह भीष्म को यहां सर-सैय्या पर लिटाया गया था। कथा के मुताबिक, भीष्ण ने प्यास लगने पर जब पानी की मांग की तो अर्जुन ने अपने वाणों से धरती पर प्रहार किया और गंगा की धारा फूट पड़ी। यही वजह है कि इस स्थान को वाणगंगा कहा जाता है।

8. कुरुक्षेत्र👉 हरियाणा के अम्बाला इलाके को कुरुक्षेत्र के नाम से भी जाना जाता है। यहां महाभारत की प्रसिद्ध लड़ाई हुई थी। यही नहीं, आदिकाल में ब्रह्माजी ने यहां यज्ञ का आयोजन किया था। इस स्थान पर एक ब्रह्म सरोवर या ब्रह्मकुंड भी है। श्रीमद् भागवत में लिखा हुआ है कि महाभारत के युद्ध से पहले भगवान श्रीकृष्ण ने यदुवंश के अन्य सदस्यों के साथ इस सरोवर में स्नान किया था।

9. हस्तिनापुर👉 महाभारत में उल्लिखित हस्तिनापुर का इलाका मेरठ के आसपास है। यह स्थान चन्द्रवंशी राजाओं की राजधानी थी। सही मायने में महाभारत युद्ध की पटकथा यहीं लिखी गई थी। महाभारत युद्ध के बाद पांडवों ने हस्तिनापुर को अपने राज्य की राजधानी बनाया।

10. वर्नावत👉 यह स्थान भी उत्तर प्रदेश के मेरठ के नजदीक ही माना जाता है। वर्णावत में पांडवों को छल से मारने के लिए दुर्योधन ने लाक्षागृह का निर्माण करवाया था। यह स्थान गंगा नदी के किनारे है। महाभारत की कथा के मुताबिक, इस ऐतिहासिक युद्ध को टालने के लिए पांडवों ने जिन पांच गांवों की मांग रखी थी, उनमें एक वर्णावत भी था। आज भी यहां एक छोटा सा गांव है, जिसका नाम वर्णावा है।

11. पांचाल प्रदेश👉 हिमालय की तराई का इलाका पांचाल प्रदेश के रूप में उल्लिखित है। पांचाल के राजा द्रुपद थे, जिनकी पुत्री द्रौपदी का विवाह अर्जुन के साथ हुआ था। द्रौपदी को पांचाली के नाम से भी जाना जाता है।

12. इन्द्रप्रस्थ👉 मौजूदा समय में दक्षिण दिल्ली के इस इलाके का वर्णन महाभारत में इन्द्रप्रस्थ के रूप में है। कथा के मुताबिक, इस स्थान पर एक वियावान जंगल था, जिसका नाम खांडव-वन था। पांडवों ने विश्वकर्मा की मदद से यहां अपनी राजधानी बनाई थी। इन्द्रप्रस्थ नामक छोटा सा कस्बा आज भी मौजूद है।

13. वृन्दावन👉 यह स्थान मथुरा से करीब 10 किलोमीटर दूर है। वृन्दावन को भगवान कृष्ण की बाल-लीलाओं के लिए जाना जाता है। यहां का बांके-बिहारी मंदिर प्रसिद्ध है।

14. गोकुल👉 यमुना नदी के किनारे बसा हुआ यह स्थान भी मथुरा से करीब 8 किलोमीटर दूर है। कंस से रक्षा के लिए कृष्ण के पिता वसुदेव ने उन्हें अपने मित्र नंदराय के घर गोकुल में छोड़ दिया था। कृष्ण और उनके बड़े भाई बलराम गोकुल में साथ-साथ पले-बढ़े थे।

15. बरसाना👉 यह स्थान भी उत्तर प्रदेश में है। यहां की चार पहाड़ियां के बारे में कहा जाता है कि ये ब्रह्मा के चार मुख हैं।

16. मथुरा👉 यमुना नदी के किनारे बसा हुआ यह प्रसिद्ध शहर हिन्दू धर्म के लिए अनुयायियों के लिए बेहद प्रसिद्ध है। यहां राजा कंस के कारागार में भगवान श्रीकृष्ण का जन्म हुआ था। यहीं पर श्रीकृष्ण ने बाद में कंस की हत्या की थी। बाद में कृष्ण के पौत्र वृजनाथ को मथुरा की राजगद्दी दी गई।

17. अंग देश👉 वर्तमान में उत्तर प्रदेश के गोंडा जिले के इलाके का उल्लेख महाभारत में अंगदेश के रूप में है। दुर्योधन ने कर्ण को इस देश का राजा घोषित किया था। मान्यताओं के मुताबिक, जरासंध ने अंग देश दुर्योधन को उपहारस्वरूप भेंट किया था। इस स्थान को शक्तिपीठ के रूप में भी जाना जाता है।

18. कौशाम्बी👉 कौशाम्बी वत्स देश की राजधानी थी। वर्तमान में इलाहाबाद के नजदीक इस नगर के लोगों ने महाभारत के युद्ध में कौरवों का साथ दिया था। बाद में कुरुवंशियों ने कौशाम्बी पर अपना अधिकार कर लिया। परीक्षित के पुत्र जनमेजय ने कौशाम्बी को अपनी राजधानी बनाया।

19. काशी👉 महाभारत काल में काशी को शिक्षा का गढ़ माना जाता था। महाभारत की कथा के मुताबिक, पितामह भीष्म काशी नरेश की पुत्रियों अम्बा, अम्बिका और अम्बालिका को जीत कर ले गए थे ताकि उनका विवाह विचित्रवीर्य से कर सकें। अम्बा के प्रेम संबंध राजा शल्य के साथ थे, इसलिए उसने विचित्रवीर्य से विवाह से इन्कार कर दिया। अम्बिका और अम्बालिका का विवाह विचित्रवीर्य के साथ कर दिया गया। विचित्रवीर्य के अम्बा और अम्बालिका से दो पुत्र धृतराष्ट्र और पान्डु हुए। बाद में धृतराष्ट्र के पुत्र कौरव कहलाए और पान्डु के पांडव।

20. एकचक्रनगरी👉 वर्तमान कालखंड में बिहार का आरा जिला महाभारत काल में एकचक्रनगरी के रूप में जाना जाता था। लाक्षागृह की साजिश से बचने के बाद पांडव काफी समय तक एकचक्रनगरी में रहे थे। इस स्थान पर भीम ने बकासुर नामक एक राक्षक का अन्त किया था। महाभारत युद्ध के बाद जब युधिष्ठिर ने अश्वमेध यज्ञ किया था, उस समय बकासुर के पुत्र भीषक ने उनका घोड़ा पकड कर रख लिया था।बाद में वह अर्जुन के हाथों मारा गया।

21. मगध👉 दक्षिण बिहार में मौजूद मगध जरासंध की राजधानी थी। जरासंध की दो पुत्रियां अस्ती और प्राप्ति का विवाह कंस से हुआ था। जब भगवान श्रीकृष्ण ने कंस का वध किया, तब वह अनायास ही जरासंध के दुश्मन बन बैठे। जरासंध ने मथुरा पर कई बार हमला किया। बाद में एक मल्लयुद्ध के दौरान भीम ने जरासंध का अंत किया। महाभारत के युद्ध में मगध की जनता ने पांडवों का समर्थन किया था।

22. पुन्डरू देश👉 मौजूदा समय में बिहार के इस स्थान पर राजा पोन्ड्रक का राज था। पोन्ड्रक जरासंध का मित्र था और उसे लगता था कि वह कृष्ण है।उसने न केवल कृष्ण का वेश धारण किया था,बल्कि उसे वासुदेव और पुरुषोत्तम कहलवाना पसन्द था।द्रौपदी के स्वयंवर में वह भी मौजूद था। कृष्ण से उसकी दुश्मनी जगजाहिर थी।द्वारका पर एक हमले के दौरान वह भगवान श्रीकृष्ण के हाथों मारा गया।

23. प्रागज्योतिषपुर👉 गुवाहाटी का उल्लेख महाभारत में प्रागज्योतिषपुर के रूप में किया गया है। महाभारत काल में यहां नरकासुर का राज था, जिसने 16 हजार लड़कियों को बन्दी बना रखा था। बाद में श्रीकृष्ण ने नरकासुर का वध किया और सभी 16 हजार लड़कियों को वहां से छुड़ाकर द्वारका लाए। उन्होंने सभी से विवाह किया। मान्यता है कि यहां के प्रसिद्ध कामख्या देवी मंदिर को नरकासुर ने बनवाया था।

24. कामख्या👉 गुवाहाटी से करीब 10 किलोमीटर की दूरी पर स्थित कामख्या एक प्रसिद्ध शक्तिपीठ है। भागवत पुराण के मुताबिक, जब भगवान शिव सती के मृत शरीर को लेकर बदहवाश इधर-उधर भाग रहे थे, तभी भगवान विष्णु ने अपने सुदर्शन चक्र से सती के मृत शरीर के कई टुकड़े कर दिए। इसका आशय यह था कि भगवान शिव को सती के मृत शरीर के भार से मुक्ति मिल जाए। सती के अंगों के 51 टुकड़े जगह-जगह गिरे और बाद में ये स्थान शक्तिपीठ बने। कामख्या भी उन्हीं शक्तिपीठों में से एक है।

25. मणिपुर👉 नगालैन्ड, असम, मिजोरम और वर्मा से घिरा हुआ मणिपुर महाभारत काल से भी पुराना है। मणिपुर के राजा चित्रवाहन की पुत्री चित्रांगदा का विवाह अर्जुन के साथ हुआ था। इस विवाह से एक पुत्र का जन्म हुआ, जिसका नाम था बभ्रुवाहन। राजा चित्रवाहन की मृत्यु के बाद बभ्रुवाहन को यहां का राजपाट दिया गया। बभ्रुवाहन ने युधिष्ठिर द्वारा आयोजित किए गए राजसूय यज्ञ में भाग लिया था।

26. सिन्धु देश👉 सिन्धु देश का तात्पर्य प्राचीन सिन्धु सभ्यता से है। यह स्थान न केवल अपनी कला और साहित्य के लिए विख्यात था,बल्कि वाणिज्य और व्यापार में भी यह अग्रणी था।यहां के राजा जयद्रथ का विवाह धृतराष्ट्र की पुत्री दुःश्शाला के साथ हुआ था। महाभारत के युद्ध में जयद्रथ ने कौरवों का साथ दिया था और चक्रव्युह के दौरान अभिमन्यू की मौत में उसकी बड़ी भूमिका थी।

27. मत्स्य देश👉 राजस्थान के उत्तरी इलाके का उल्लेख महाभारत में मत्स्य देश के रूप में है। इसकी राजधानी थी विराटनगरी। अज्ञातवास के दौरान पांडव वेश बदल कर राजा विराट के सेवक बन कर रहे थे। यहां राजा विराट के सेनापति और साले कीचक ने द्रौपदी पर बुरी नजर डाली थी। बाद में भीम ने उसकी हत्या कर दी। अर्जुन के पुत्र अभिमन्यू का विवाह राजा विराट की पुत्री उत्तरा के साथ हुआ था।

28. मुचकुन्द तीर्थ👉 यह स्थान धौलपुर, राजस्थान में है। मथुरा पर जीत हासिल करने के बाद कालयावन ने भगवान श्रीकृष्ण का पीछा किया तो उन्होंने खुद को एक गुफा में छुपा लिया। उस गुफा में मुचकुन्द सो रहे थे, उन पर कृष्ण ने अपना पीताम्बर डाल दिया। कृष्ण का पीछा करते हुए कालयावन भी उसी गुफा में आ पहुंचा। मुचकुन्द को कृष्ण समझकर उसने उन्हें जगा दिया। जैसे ही मुचकुन्द ने आंख खोला तो कालयावन जलकर भस्म हो गया। मान्यताओं के मुताबिक, महाभारत युद्ध की समाप्ति के बाद जब पांडव हिमालय की तरफ चले गए और कृष्ण गोलोक निवासी हो गए, तब कलयुग ने पहली बार यहां अपने पग रखे थे।

29. पाटन👉 महाभारत की कथा के मुताबिक, गुजरात का पाटन द्वापर युग में एक प्रमुख वाणिज्यिक केन्द्र था। पाटन के नजदीक ही भीम ने हिडिम्ब नामक राक्षस का संहार किया था और उसकी बहन हिडिम्बा से विवाह किया। हिडिम्बा ने बाद में एक पुत्र को जन्म दिया, जिसका नाम था घटोत्कच्छ। घटोत्कच्छ और उनके पुत्र बर्बरीक की कहानी महाभारत में विस्तार से दी गई है।

30. द्वारका👉 माना जाता है कि गुजरात के पश्चिमी तट पर स्थित यह स्थान कालान्तर में समुन्दर में समा गया। कथाओं के मुताबिक, जरासंध के बार-बार के हमलों से यदुवंशियों को बचाने के लिए कृष्ण मथुरा से अपनी राजधानी स्थानांतरित कर द्वारका ले गए।

31. प्रभाष👉 गुजरात के पश्चिमी तट पर स्थित इस स्थान के बारे में कहा जाता है कि यह स्थान भगवान श्रीकृष्ण का निवास-स्थान रहा है। महाभारत कथा के मुताबिक, यहां भगवान श्रीकृष्ण पैर के अंगूठे में तीर लगने की वजह से घायल हो गए थे। उनके गोलोकवासी होने के बाद द्वारका नगरी समुन्दर में डूब गई। विशेषज्ञ मानते हैं कि समुन्दर के सतह पर द्वारका नगरी के अवेशष मिले हैं।

32. अवन्तिका👉 मध्यप्रदेश के उज्जैन का उल्लेख महाभारत में अवन्तिका के रूप में मिलता है। यहां ऋषि सांदपनी का आश्रम था। अवन्तिका को देश के सात प्रमुख पवित्र नगरों में एक माना जाता है। यहां भगवान शिव के 12 ज्योर्तिलिंगों में एक महाकाल लिंग स्थापित है।

33. चेदी👉 वर्तमान में ग्वालियर क्षेत्र को महाभारत काल में चेदी देश के रूप में जाना जाता था। गंगा व नर्मदा के मध्य स्थित चेदी महाभारत काल के संपन्न नगरों में एक था। इस राज्य पर श्रीकृष्ण के फुफेरे भाई शिशुपाल का राज था। शिशुपाल रुक्मिणी से विवाह करना चाहता था, लेकिन श्रीकृष्ण ने रुक्मिणी का अपहरण कर उनसे विवाह रचा लिया। 

इस घटना की वजह से शिशुपाल और श्रीकृष्ण के बीच संबंध खराब हो गए। युधिष्ठिर के राजसूय यज्ञ के समय चेदी नरेश शिशुपाल को भी आमंत्रित किया गया था। शिशुपाल ने यहां कृष्ण को बुरा-भला कहा, तो कृष्ण ने सुदर्शन चक्र से उसका गला काट दिया। महाभरत की कथा के मुताबिक, दुश्मनी की बात सामने आने पर श्रीकृष्ण की बुआ उनसे शिशुपाल को अभयदान देने की गुजारिश की थी। इस पर श्रीकृष्ण ने बुआ से कहा था कि वह शिशुपाल के 100 अपराधों को माफ कर दें, लेकिन 101वीं गलती पर माफ नहीं करेंगे।

34. सोणितपुर👉 मध्यप्रदेश के इटारसी को महाभारत काल में सोणितपुर के नाम से जाना जाता था। सोणितपुर पर वाणासुर का राज था। वाणासुर की पुत्री उषा का विवाह भगवान श्रीकृष्ण के पौत्र अनिरुद्ध के साथ सम्पन्न हुआ था। यह स्थान हिन्दुओं के लिए एक पवित्र तीर्थ है।

35. विदर्भ👉 महाभारतकाल में विदर्भ क्षेत्र पर जरासंध के मित्र राजा भीष्मक का शासन था। रुक्मिणी भीष्मक की पुत्री थीं। भगवान श्रीकृष्ण ने रुक्मिणी का अपहरण कर उनसे विवाह रचाया था। यही वजह थी कि भीष्मक उन्हें अपना शत्रु मानने लगे। जब पांडवों ने अश्वमेध यज्ञ किया था, तब भीष्मक ने उनका घोड़ा रोक लिया था। सहदेव ने भीष्मक को युद्ध में हरा दिया।
                                         साभार....

ईश्वर साकार है या निराकार ?

इस विषय को लेकर स्वामी रामकृष्ण परमहंस जी  का किसी विद्वान के साथ निरंतर तर्क-वितर्क चलता था।

एक दिन रामकृष्ण उन्हें लेकर मंदिर चले गए। सामने कृष्ण जी की सुंदर मूर्ति थी। रामकृष्ण ने उन्हें कहा कि ईश्वर साकार है ऐसी भावना करके आंखें बंद करो और प्रभु की मूर्ति को स्पर्श करो। उन्होंने ऐसा ही किया तो उनके हाथों ने प्रभु की प्रतिमा को स्पर्श कर लिया। फिर रामकृष्ण ने उनसे कहा कि अब आंखें बंद कर ऐसी भावना करो कि ईश्वर निराकार है और पुनः प्रभु की प्रतिमा को स्पर्श करो।

इस बार जब आंखें बंद कर निराकार भाव लेकर उनके विद्वान मित्र ने जब प्रभु के विग्रह का स्पर्श किया तो हाथ मूर्ति के आर-पार निकल गई।

रामकृष्ण परमहंस के उन मित्र को ईश्वर का साकार और निराकार होना एक बार में ही समझ में आ गया।

हिंदू धर्म क्लिष्ट है तो अत्यंत सहज भी है, मूल बात है कि इस चेतना की अनुभूति करना, इसे जिसने अनुभूति कर लिया उसे असीम प्रशांति प्राप्त होती है और वो तुच्छ बातों से, अनर्गल तर्कों से और अनावश्यक प्रलापों से दूर होकर सहज भाव से इसका प्रचार करता है।

प्रज्ञा का जगना :

      ईश्वरकृपा/गुरुकृपा के भरोसे प्रज्ञा नहीं जगती। प्रज्ञा तब अपने आप जग जाती है, जब हम अपनी आध्यात्मिकता में अन्तर्मुख हो जाते हैं, और ज्ञान को जीवन में उतारते हैं, ज्ञान को जीते हैं। और यही हमने आज तक नहीं सीखा। हमने अध्यात्म-ज्ञान इकट्ठा करना सीखा है। हमने ज्ञान की बड़ी-बड़ी बातें करना सीखा है। हमने ज्ञान पर चलना नहीं सीखा। हमारे जीवन में 'ज्ञान ही ज्ञान' है, परन्तु ज्ञान का अनुशीलन ना के बराबर ही है। बस, यही कारण है कि गुरू बनाने के बावजूद भी, जीवन भर गुरू का मंत्र जपने के बावजूद भी, ज्ञानी और विद्वान होने के बावजूद भी हम प्रज्ञावान् नहीं हो पाये। 

      बड़ी विबम्बना यह है कि हमें 'सद्गुरू' या 'सतगुरू' मिल जाते हैं, परन्तु प्रज्ञा नहीं मिलती। प्रज्ञा कहीं से, किसी से मिलने की वस्तु है भी नहीं। सद्गुणों को जगाकर और चेतना को सतत-उर्ध्वगामिता में रखकर प्रज्ञा का तो हमें स्वयं ही अर्जन करना पड़ता है। परन्तु इतनी जहमत उठाये कौन! हमारा काम तो 'उधार की चेतना' से ही चल जाता है !

इन 21वस्तुओं को सीधे पृथ्वी पर रखना वर्जित होता है। ये वस्तुयें पृथ्वी की ऊर्जा को अव्यवस्थित करती हैं और उस स्थान को अशुभ बनाती हैं।

ये वस्तुयें हैं -
(1) मोती
(2) शुक्ति (सीपी)
(3) शालग्राम
(4) शिवलिंग
(5) देवी मूर्ति
(6) शंख
(7) दीपक
(8) यन्त्र
(9) माणिक्य
(10) हीरा
(11) यज्ञसूत्र (यज्ञोपवीत)
(12)  पुष्प (फूल)
(13) पुष्पमाला
(14) जपमाला
(15) पुस्तक
(16) तुलसीदल
(17) कर्पूर
(18) स्वर्ण
(19) गोरोचन
(20)  चंदन
(21) शालिग्राम का स्नान कराया अमृत जल ।

इन सभी वस्तुओं को किसी आधार पर रख तभी उस पर इनको स्थापित कर पूजित किया जाता है। पृथ्वी पर अक्षत, आसन, काष्ठ या पात्र रख कर इनको उस पर रखते हैं-

मुक्तां शुक्तिं हरेरर्चां शिवलिंगं शिवां तथा ।
शंखं प्रदीपं यन्त्रं च माणिक्यं हीरकं तथा ।।

यज्ञसूत्रं  च पुष्पं च  पुस्तकं तुलसीदलम्  ।
जपमालां पुष्पमालां कर्पूरं च  सुवर्णकम् ।।

गोरोचनं  च चन्दनं  च  शालग्रामजलं तथा ।
एतान् वोढुमशक्ताहं क्लिष्टा च भगवन् शृणु।।

       अतएव इन इक्कीस वस्तुओं को सजगता पूर्वक किसी न किसी वस्तु के ऊपर रखना चाहिए।

प्रायः दीपक को लोग अक्षतपुंज पर रखते हैं।

पुस्तक को मेज पर रखते हैं। शालिग्राम और देवी की मूर्ति को पीठिका पर रखते हैं।

शंख को त्रिपादी पर रखते हैं। स्वर्ण को डिब्बी में रखते हैं।

फूल, फूलमाला को पुष्पपात्र में तथा यज्ञोपवीत को किसी पत्र पर रखते हैं।
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दिशाशूल (दिशाशूर) ।।

दिशाशूल जानने की ट्रिक ।।

सोम शनीचर पूर्व ना चालू।
मंगल बुध उत्तर दिशिकालू ।।
रवि शुक्र जो पश्चिम जाए ।
हानि होय पथ सुख नहीं पाए।।
गुरुवे दखिन करे पयाना।
फिर नहीं समझो ताको आना ।।

जानें क्या होता है दिशाशूल और क्या इसका भी होता है कोई उपाय ~
यात्रा पर निकलने से पहले जरूर जान लें दिशाशूल नहीं तो झेलने पड़ते हैं दुष्परिणाम। जानें कब और कैसे नहीं पड़ता दिशाशूल का आप पर असर,
इंसान के जीवन में यात्रा का बहुत महत्व होता है। फिर चाहे यात्रा छोटी दूरी की हो अथवा लंबी दूरी की हो। परिणाम उसकी शुभता और अशुभता, सफलता और असफलता पर निर्भर करता है। ज्योतिष शास्त्र के अनुसार दिन विशेष को की जाने यात्रा से संबंधित दोष को विस्तार से बताया गया है। जिसे हम दिशाशूल (Disha Shool) के नाम से जानते हैं। दिशाशूल का अर्थ होता है — एक दिशा विशेष में जाने पर अशुभ परिणाम की प्राप्ति होना या फिर कहें कि जिस दिशा में जाने पर हानि अथवा अशुभ परिणाम मिलने की आशंका हो, वह दिशाशूल (Disha Shool) कहलाती है। यही कारण है कि सनातन परंपरा में कार्य विशेष हेतु निकलने से पहले दिशा का विचार अवश्य किया जाता है। तो आइए जानते हैं कि दिशाओं को लेकर क्या कुछ नियम हैं, जिन्हें यात्रा करते समय हमें ध्यान में रखना चाहिए —

कब ​किधर होता है दिशाशूल

दिशावार
पूर्वसोमवार, शनिवार
दक्षिणगुरुवार
पश्चिमशुक्र, रविवार
उत्तरमंगल, बुधवार
अग्निकोणसोमवार, गुरुवार
नैऋत्य कोणरविवार, शुक्रवार
वायव्य कोणमंगलवार
ईशान कोणबुधवार, शनिवार

चंद्र राशि के अनुसार दिशाशूल

पूर्वमेष, सिंह और धनु
दक्षिणवृष, कन्या, मकर
पश्चिममिथुन, तुला, कुंभ
उत्तरकर्क, वृश्चिक, मीन

इस बात का हमेशा रखें ध्यान

यदि एक दिन के भीतर ही किसी स्थान पर पहुँचना और फिर वापस आना निश्चित हो तो दिशाशूल का विचार नहीं किया जाता है। यात्रा के दौरान चंद्रमा यदि सामने अथवा दाहिने हो तो शुभ फलदायक और बाएं या पीछे हों तो विपरीत फलदायक होते हैं।

दिशाशूल का महाउपाय

जिस दिशा में दिशाशूल (Disha Shool) हो उसकी यात्रा करने पर अक्सर लोगों को तमाम तरह के कष्ट भोगने पड़ते हैं। लेकिन यदि कोई अति आवश्यक कार्य आ जाये तो उसके लिए भी हमारे यहां परिहार बताये गये हैं। जैसे रविवार को पान खाकर, सोमवार को आईने में देखकर, मंगलवार को गुड़ खाकर, बुधवार को धनियां, गुरुवार को जीरा, शुक्रवार को दही और शनिवार को अदरख खाकर निकलने से उस दिशा से संबंधित दोष दूर हो जाता है।

इस उपाय से भी दूर होगा दिशाशूल

यदि किसी दिशा में दिशाशूल हो और उस दिशा में जाना बहुत जरूरी हो तो उस दिशा से संबंधित दोष को निम्नलिखित चीजों को धारण करके दूर किया जा सकता है। रविवार का दिशाशूल दूर करने के लिए
पान, सोमवार को चंदन, मंगलवार को मिट्टी, बुधवार को पुष्प, गुरुवार को दही, शुक्रवार को घी और शनिवार को तिल धारण करके निकलने पर दिशा संबंधी दोष दूर हो जाता है।

(यहां दी गई जानकारियां धार्मिक आस्था और लोक मान्यताओं पर आधारित हैं, इसका कोई भी वैज्ञानिक प्रमाण नहीं है. इसे सामान्य जनरुचि को ध्यान में रखकर यहां प्रस्तुत किया गया है.)

दिशाशूल याद करने की बुंदेलखंडी ट्रिक ।।, दिशाशूल दोहा, दिशाशूर दोहा, यात्रा मुहूर्त,Disha Shool, Dishashul doha, dishashool doha