🔸 पितृपक्ष में वातावरण में तिर्यक (रज-तमात्मक) तरंगों की तथा यमतरंगों की अधिकता होती है । इसलिए पितृपक्ष में श्राद्ध करने से रज-तमात्मक कोषों से संबंधित पितरों के लिए पृथ्वी के निकट आना सरल होता है ।
🔸 हिन्दू धर्मशास्त्र के अनुसार पितृपक्ष व्रत है । इसकी अवधि भाद्रपद पूर्णिमा से आमावस्या तक रहती है । इस काल में प्रतिदिन महालय श्राद्ध करना चाहिए ।
🔸 पितृपक्ष में पितर यमलोक से धरती पर अपने वंशजों के घर रहने आते हैं इस काल में एक दिन श्राद्ध करने पर, पितर वर्षभर तृप्त रहते हैं ।
🔸 पितृपक्ष में अपने सब पितरों के लिए श्राद्ध करने से उनकी वासना, इच्छा शांत होती है और आगे जाने के लिए ऊर्जा मिलती है ।
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