सबसे पहले पितृ होते कौन हैं ?
इन्हें आम भाषा में पितर , घर का प्रेत भी बोलते हैं। यह आपके परिवार की वो आत्माएं होती हैं जिनका अभी दूसरा जन्म नहीं हुआ है मुक्ति नहीं हुई है । ये आत्माएं पितृ बनके पितृ लोक नामक सूक्ष्म लोक में वास करते हैं । यह लोक हमारी धरती पर ही स्थित होता है । जिसके कारण पितरों से संपर्क बनाना या इनकी कृपा प्राप्त करना सहज हो जाता है । वहीं दूसरी और यह रूष्ट होने पर शीघ्र विपरीत प्रभाव भी दिखाते हैं।
इनमें अलग अलग श्रेणी होती है पितृ की जिसे आऊत प्रेत , जुझार , सगस , वीर आदि कहकर संबोधित करते हैं । इनपर बाद में बात करेंगे ।
इनका पितृ लोक में फसने का मुख्य कारण होता है अपूर्ण इच्छाएं एवं अविवाहित मृत्यु को प्राप्त होना , निसंतान मृत्यु को प्राप्त होना , अन्य भी कारण कहे गए है इसके जैसे पराई स्त्री का हरण , माता पिता की हत्या करना , गौ हत्या आदि , इनके विषय में गरुड़ पुराण में विस्तार से बताया गया है ।
पितृ हमारा सबसे पहला और सबसे महत्वपूर्ण रक्षा कवच होते हैं, पितृ रूष्ट होने पर अन्य देवता तक आपका पूजन नहीं पहुंचता है न ही कोई अन्य कार्य सिद्ध होता है । यह ठीक उसी प्रकार है अगर नींव कमजोर हो तो ऊपर की मंजिल नहीं डाली जा सकती और अगर नींव मजबूत है तो मंजिल के ऊपर मंजिल डाल सकते हैं ।
हर व्यक्ति का यह कर्तव्य होता है कि वो अपने कुल के पितरों की मुक्ति एवं सद्गति के लिए प्रयास करें , जिसके विपरीत आज लोग अपने घर के पितृ को अपने स्वार्थ के लिए बैठा कर उनसे काम लेते है । जो कि पितृ और स्वयं दोनों के लिए हितकारी नहीं है ।
पितृ दोष या पितृ के रूष्ट होने के लक्षण क्या है ?
● घर में बरकत न रहना
● किसी बात को लेकर हर छोटी छोटी बात पर झगड़ना
● घर के एक दूसरे सदस्य को बैर भाव से देखना
● संतान नहीं होना
● परिवार में किसी भी प्रकार का संतुलन नहीं होना
● हमेशा बीमारी बने रहना
● अजीब अजीब घटना होना
● घर के सदस्य आपस में किसी की भी नहीं बने
● संतान माता-पिता का आदर नहीं करती हैं
● माता-पिता भी संतान को हमेशा प्रताड़ित करते रहते हैं
● मरे हुए बच्चों के सपने आना
● मरी स्त्रियों दिखना
● हमेशा मन में शंका बनी रहना कि कुछ न कुछ होने वाला है
● आदमी अपने कार्य की सफलता के लिए आश्वस्त रहता है 95 पर्सेट तक पहुंचता है और फिर नीचे गिर जाता है
● हर बनते काम बिगड़ जाना
● सपने में बार बार सर्पो का दिखना
● परिवार के बुजुर्गों का स्वप्न में दिखना
● सपनो में अपने माता पिता दादा दादी को रोते हुए देखना
● घर परिवार में क्लेश होना
जो कुंवारे पितृ होते है उनका दिन चौदस का होता है और जो विवाहित होकर अकाल मृत्यु को प्राप्त हुए हो उनका मुख्य दिन अमावस्या का होता है , जो पूर्ण आयु में जाते है उनके लिए पूर्णिमा ।
पितृ प्रसन्नता हेतु सबसे आसान उपाय तो यह है कि इन 4 दिनों में ( दोनो चतुर्दशी , अमावस्या एवं पूर्णिमा ) पितृ के लिए नियमित धूप दीप करे तो वो हमेशा प्रसन्न रहते है ।
दूसरा एक सरल एवं असरदार उपाय है वो है - पितृ के लिए श्रीमद्भागवत गीता का पाठ ।
यह उपाय आप श्राद्ध में करें ।
पूर्णिमा के दिन सुबह पितरों को हल्दी चावल से निमंत्रण दें कि आज से मैं आपके लिए श्रीमद्भागवत गीता का पाठ कर रहा हूँ आपको यह पाठ सुनने के लिए रोज आना होगा जो आपको समय उचित लगे उन्हें वो समय भी बता दें कि इतने बजे पाठ करूंगा । ऐसा कहकर हल्दी चावल दहली के बाहर डाल दें ।
अब जो निश्चित समय है उससे थोड़ा पहले से यह तैयारी कर लें ।
अपने कक्ष को झाड़ू पोंछा करके साफ करें । फिर गौमूत्र का छिड़काव करें । गाय के गोबर से भूमि लीपें । फिर उसपर सफेद वस्त्र बिछाएं , 2 गांठ का एक हरा बांस का टुकड़ा लाएं । इसके एक तरफ सफेद कपड़ा कलावे से बांध दें । सुपारी जनेऊ और हल्दी की गांठ लाएं ।
सफेद वस्त्र के ऊपर 1 पीछे और 7 ढेरी आगे लगाएं चावल की एक के ऊपर बांस को खड़ा रखें जसमे वस्त्र बांधा हुआ हिस्सा ऊपर की तरफ होगा और बाकी 7 ढेर पर एक एक सुपारी रखें और सुपारी पर जनेऊ पहनाए , सुपारी की जगह चुना पत्थर मिल जाये तो अति उत्तम होगा । अब आपके दिये गए निश्चित समय पर दहली पर खड़े होकर हल्दी कुमकुम और अक्षत डालकर पितरों का स्वागत करें और उनके अंदर आने का बोलें और सफेद आसन के ऊपर उनका आसान बताये और कहे आप अपने आसन पर विराजमान होजाये । अब आप धूप दीप प्रज्वलित करें । बांस पर और चुना पत्थरों ( सुपारी ) पर हल्दी कुमकुम आदि चढ़ाएं ।
अपने सामने श्रीमद्भागवत गीता रखें , ग्रंथ का कुमकुम अक्षत से पूजन करें ।
पितृ हेतु भोजन एवं पानी रखें भगवान विष्णु के लिए 2 पीली मावे की मिठाई रखें ।
अब पाठ शुरू करें , रोज इसी प्रकार पाठ करना है संभव हो तो रोज सभी अध्यायों का पाठ करें और अगर सामर्थ्य नही हो तो 16 दिन में 18 अध्यायों का पाठ पूरा करलें ।
पाठ पूरा होने के बाद जो पितृ के लिए भोग रखा था वो गाय के उपलों की अगियारी करके उसपर भोजन करवाये फिर जल अर्पित करें।
फिर उन्हें कहे अब अपने स्थान को चले जाइये कल फिर इस समय पर आजायेगा । आगे भी इसी तरह से करना है
जब 16 दिन के पाठ पूरे होजाये तब भगवान विष्णु से अपने पितरों की सद्गति हेतु प्रार्थना करें । उनहे वैकुंठ में स्थान देने के लिए प्रार्थना करें ।
अगर आप चाहे तो पाठ 15 दिन में पूरे करके सोलहवें दिन सर्व पितृ अमावस्या को ब्राह्मण जन से पितृ हेतु तर्पण भी करवा सकते है । 7 ब्राह्मणों को सात सफेद वस्त्र दान करें ।
क्रिया पूरी होने के बाद सभी सामग्रियों को एकत्रित करके किसी बहती नादि में प्रवाहित करदें । क्रिया के बाद निश्चित लाभ होगा ।
अंतिम दिन पितरों को वापिस आने का नही बोलें उन्हें बोलें की अबसे आप श्री हरि के लोक में वास करना ।
आप चाहे तो अंतिम दिन तर्पण एवं त्रिपिंडी भी करवा सकते है । सोने पर सुहागा होगा ।
अब दूसरा प्रयोग बताते है ।
🚩🚩 दूसरा प्रयोग 🚩🚩
यहां एक स्तोत्र दे रहा हूँ । जिसकी पाठ विधि इस प्रकार है ।
पहले इसका एक पाठ पूरा होगा १ श्लोक से लेकर २४ फिर २२ २३ २४ के क्रम में दो बार पाठ करें ।
एक पूरे पाठ का क्रम यह होगा -
१ २ ३ ...... २४ , २२ २३ २४ , २२ २३ २४
फिर इसका हवन भी इसी क्रम से होगा काले तिल और गाय के घी से ।
१ , २२ , २३ , २४ वे श्लोक में आहुति के समय स्वधा बोलके आहुति देनी है और अन्य श्लोकों में स्वाहा बोलकर ।
स्तोत्र --
नमो वः पितरो, यच्छिव तस्मै नमो, वः पितरो यतृस्योन तस्मै।
नमो वः पितरः, स्वधा वः पितरः । ।।१।।
नमोऽस्तु ते निर्ऋर्तु, तिग्म तेजोऽयस्यमयान विचृता बन्ध-पाशान्।
यमो मह्यं पुनरित् त्वां ददाति। तस्मै यमाय नमोऽस्तु मृत्यवे । ।।२।।
नमोऽस्त्वसिताय, नमस्तिरश्चिराजये। स्वजाय वभ्रवे नमो, नमो देव जनेभ्यः। ।।३।।
नमः शीताय, तक्मने नमो, रूराय शोचिषे कृणोमि।
यो अन्येद्युरूभयद्युरभ्येति, तृतीय कायं नमोऽस्तु तक्मने। ।।४।।
नमस्ते अधिवाकाय, परा वाकाय ते नमः। सुमत्यै मृत्यो ते नमो, दुर्मत्यै त इदं नमः। ।।५।।
नमस्ते यातुधानेभ्यो, नमस्ते भेषजेभ्यः। नमस्ते मृत्यो मूलेभ्यो, ब्राह्मणेभ्य इदं मम। ।।६।।
नमो देव वद्येभ्यो, नमो राज-वद्येभ्यः। अथो ये विश्वानां, वद्यास्तेभ्यो मृत्यो नमोऽस्तु ते। ।।७।।
नमस्तेऽस्तु नारदा नुष्ठ विदुषे वशा। कसमासां भीम तमा याम दत्वा परा भवेत्। ।।८।।
नमस्तेऽस्तु विद्युते, नमस्ते स्तनयित्नवे। नमस्तेऽस्तु वश्मने, येना दूड़ाशे अस्यसि। ।।९।।
नमस्तेऽस्त्वायते, नमोऽस्तु पराय ते। नमस्ते प्राण तिष्ठत, आसीनायोत ते नमः। ।।१०।।
नमस्तेऽस्त्वायते, नमोऽस्तु पराय ते। नमस्ते रूद्र तिष्ठत, आसीनायोत ते नमः। ।।११।।
नमस्ते जायमानायै, जाताय उत ते नमः। वालेभ्यः शफेभ्यो, रूपायाघ्न्ये ते नमः। ।।१२।।
नमस्ते प्राण क्रन्दाय, नमस्ते स्तनयित्नवे। नमस्ते प्राण विद्युते, नमस्ते प्राण वर्षते। ।।१३।।
नमस्ते प्राण प्राणते, नमोऽस्त्वपान ते।
परा चीनाय ते नमः, प्रतीचीनाय ते नमः, सर्वस्मै न इदं नमः। ।।१४।।
नमस्ते राजन् ! वरूणा मन्यवे, विश्व ह्यग्र निचिकेषि दुग्धम्।
सहस्त्रमन्यान् प्रसुवामि, साकं शतं जीवाति शरदस्तवायं। ।।१५।।
नमस्ते रूद्रास्य ते, नमः प्रतिहितायै। नमो विसृज्य मानायै, नमो निपतितायै। ।।१६।।
नमस्ते लांगलेभ्यो, नमः ईषायुगेभ्यः। वीरूत् क्षेत्रिय नाशन्यप् क्षैत्रियमुच्छतु। ।।१७।।
नमो गन्धर्वस्य, नमस्ते नमो भामाय चक्षुषे च कृण्मः।
विश्वावसो ब्रह्मणा ते नमोऽभि जाया अप्सासः परेहि। ।।१८।।
नमो यमाय, नमोऽस्तु, मृत्यवे, नमः पितृभ्य उतये नयन्ति।
उत्पारणस्य यो वेद, तमग्नि पुरो दद्येस्याः अरिष्टतातये। ।।१९।।
नमो रूद्राय, नमोऽस्तु तक्मने, नमो राज्ञ वरूणायं त्विणीमते।
नमो दिवे, नमः पृथिव्ये, नमः औषधीभ्यः। ।।२०।।
नमो रूराय, च्यवनाय, रोदनाय, घृष्णवे। नमः शीताय, पूर्व काम कृत्वने।। ।।२१।।
नमो वः पितर उर्जे, नमः वः पितरो रसाय। ।।२२।।
नमो वः पितरो भामाय, नमो वः पितरा मन्धवे। ।।२३।।
नमो वः पितरां पद घोरं, तस्मै नमो वः पितरो, यत क्ररं तस्मै। ।।२४।।
कई बार पितृ तांत्रिक बंधन में बंधे होते है तब कितना ही कर्म कांड करने पर भी उनका शुभ प्रभाव नही मिलता , ऐसी स्थिति में तांत्रिक प्रयोग के द्वारा उनकी मुक्ति का मार्ग खोला जाता है ।
चलिए यह एक अलग विषय है आगे,,,
LIST OF DAILY USE VOCABULARY WORDS WITH MEANING
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*अर्थ के साथ दैनिक उपयोग शब्दावली शब्दों की सूची *
Doss (डॉस) – चारपाई, खटिया
Roof (रूफ) – छत
Plaza (प्लैज) – चौक
Dung (डंग) – गोबर
Thread (थ्रेड) – धाग...
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