दीपावली से दो दिन पहले धनतेरस का पर्व मनाया जाता है। इस बार धनतेरस का त्योहार 18 अक्टूबर 2025 शनिवार को मनाया जाएगा। इस पर्व पर मां लक्ष्मी और भगवान धनवंतरी के साथ-साथ धन के देवता कुबेर की भी विधिवत पूजा की जाती है। यक्षों के राजा कुबेर को धन का स्वामी और उत्तर दिशा का दिक्पाल माना जाता है। भगवार कुबेर रक्षक लोकपाल भी कहलाते हैं। कुबेर को भगवान शिव का द्वारपाल भी कहा जाता है।
पौराणिक कथाओं के अनुसार, कुबेर रावण, कुंभकर्ण और विभीषण के सौतेले भाई थे, लेकिन उन्हें अपने ब्राह्मण गुणों के कारण उन्हें देवता का दर्जा प्राप्त हुआ। कुबेर सुख-समृद्धि और धन प्रदान करने वाले देवता हैं, जिन्हें देवताओं का कोषाध्यक्ष यानी कैशियर माना गया है।
कुबेर का निवास उत्तर दिशा में होता है इसलिए घर में इस दिशा में कुबेर देवता की प्रतिमा स्थापित करने से परिवार पर उनकी कृपा बनी रहती है। भगवान कुबेर जो हम भक्तों की तिजोरिया भरते हैं, वो एक गरीब ब्राह्मण थे। आइए जानते हैं कुबेर देवता की पौराणिक कथा क्या है, वो कैसे एक गरीब ब्राह्मण से देवताओं का कोषाध्यक्ष बन गए?
>> गरीब ब्राह्मण थे भगवान कुबेर <<
पौराणिक कथा के अनुसार पूर्वजन्म में भगवान कुबेर एक गरीब ब्राह्मण थे, जिनका नाम गुणनिधि था। बचपन में उन्होंने अपने पिता से धर्मशास्त्र की शिक्षा ग्रहण की लेकिन बुरी संगत में आकर वो जुआ खेलने लगे। उनके पिता ने उनकी ऐसी गलत आदतों और हरकतों से तंग आकर उन्हें घर से बाहर निकाल दिया। घर से निकाले जाने के बाद गुणनिधि की हालत बहुत खराब हो गई, वो अपना पेट भरने के लिए लोगों के घरों में भोजन मांगने लगे।
>> भटकते हुए जंगल के शिवालय पहुंच गए <<
एक दिन भूख-प्यास से व्याकुल होकर भटकते हुए एक जंगल में पहुंच गए। जंगल में उन्हें कुछ ब्राह्मण भोग सामग्री ले जाते हुए दिखाई दिया। भगवान की भोग सामग्री देखकर गुणनिधि की भूख और बढ़ गई और वो भोजन की लालसा में उस पंडित के पीछे-पीछे चलने लगे और एक शिवालय में पहुंच गए।
>> रात के अंधेरे में चुराया भोजन <<
शिवालय में उन्होंने देखा कि ब्राह्मण भगवान शिव की पूजा कर रहे थे और भोग अर्पित कर भजन-कीर्तन में मग्न थे। भोजन चुराने की ताक में गुणनिधि शिवालय में ही बैठ गए। जब भजन-कीर्तन समाप्त होने के बाद सभी ब्राह्मण सो गए तब उन्हें भोजन चुराने का मौका मिल गया और वो चुपके से शिव भगवान की प्रतिमा के पास पहुंचे लेकिन वहां खूब अंधेरा था इसलिए गुणनिधि को कुछ भी दिखाई नहीं दे रहा था।
इसलिए उन्होंने एक दीपक जलाया, लेकिन वह हवा के कारण बुझ गया लेकिन वो बार-बार वो दीपक जलाते रहे। जब यह कई बार हुआ तो भोलेनाथ और औघड़दानी शंकर ने इसे अपनी दीपाराधना समझा और प्रसन्न होकर गुणनिधि को धनपति होने का आशीर्वाद दिया।
>> अनजाने में रखा महाशिवरात्रि का व्रत <<
गुणनिधि भूख से इतने व्याकुल थे कि भोजन चुराकर भागते समय ही उनकी मृत्यु हो गई। लेकिन मृत्यु से पहले अनजाने में ही उनसे महाशिवरात्रि के व्रत का पालन हो गया था और उसका उन्हें शुभ फल मिला। अनजाने में ही सही महाशिवरात्रि का व्रत पालन करने के कारण गुणनिधि अपने अगले जन्म में कलिंग देश के राजा बने।
>> शिव की कृपा से गरीब ब्राह्मण धन के देवता 'कुबेर' कहलाए <<
इस जन्म में भी गुणनिधि भगवान शिव के परम भक्त थे और सदैव उनकी भक्ति में लीन रहते थे। उनकी इस कठिन तपस्या और भक्ति को देखकर भगवान शिव उन पर प्रसन्न हुए। यह भगवान शिव की ही कृपा थी, जिसके कारण एक गरीब ब्राह्मण धन के देवता कुबेर कहलाए और संसार में पूजनीय बन गए।
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