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धनतेरस 2025: कैसे गरीब ब्राह्मण बने कुबेर.. देवताओं के धन कोषाध्यक्ष ।।

दीपावली से दो दिन पहले धनतेरस का पर्व मनाया जाता है। इस बार धनतेरस का त्योहार 18 अक्टूबर 2025 शनिवार को मनाया जाएगा। इस पर्व पर मां लक्ष्मी और भगवान धनवंतरी के साथ-साथ धन के देवता कुबेर की भी विधिवत पूजा की जाती है। यक्षों के राजा कुबेर को धन का स्वामी और उत्तर दिशा का दिक्पाल माना जाता है। भगवार कुबेर रक्षक लोकपाल भी कहलाते हैं। कुबेर को भगवान शिव का द्वारपाल भी कहा जाता है।

पौराणिक कथाओं के अनुसार, कुबेर रावण, कुंभकर्ण और विभीषण के सौतेले भाई थे, लेकिन उन्हें अपने ब्राह्मण गुणों के कारण उन्हें देवता का दर्जा प्राप्त हुआ। कुबेर सुख-समृद्धि और धन प्रदान करने वाले देवता हैं, जिन्हें देवताओं का कोषाध्यक्ष यानी कैशियर माना गया है।

कुबेर का निवास उत्तर दिशा में होता है इसलिए घर में इस दिशा में कुबेर देवता की प्रतिमा स्थापित करने से परिवार पर उनकी कृपा बनी रहती है। भगवान कुबेर जो हम भक्तों की तिजोरिया भरते हैं, वो एक गरीब ब्राह्मण थे। आइए जानते हैं कुबेर देवता की पौराणिक कथा क्या है, वो कैसे एक गरीब ब्राह्मण से देवताओं का कोषाध्यक्ष बन गए?

>> गरीब ब्राह्मण थे भगवान कुबेर <<

पौराणिक कथा के अनुसार पूर्वजन्म में भगवान कुबेर एक गरीब ब्राह्मण थे, जिनका नाम गुणनिधि था। बचपन में उन्होंने अपने पिता से धर्मशास्त्र की शिक्षा ग्रहण की लेकिन बुरी संगत में आकर वो जुआ खेलने लगे। उनके पिता ने उनकी ऐसी गलत आदतों और हरकतों से तंग आकर उन्हें घर से बाहर निकाल दिया। घर से निकाले जाने के बाद गुणनिधि की हालत बहुत खराब हो गई, वो अपना पेट भरने के लिए लोगों के घरों में भोजन मांगने लगे।

>> भटकते हुए जंगल के शिवालय पहुंच गए <<

एक दिन भूख-प्यास से व्याकुल होकर भटकते हुए एक जंगल में पहुंच गए। जंगल में उन्हें कुछ ब्राह्मण भोग सामग्री ले जाते हुए दिखाई दिया। भगवान की भोग सामग्री देखकर गुणनिधि की भूख और बढ़ गई और वो भोजन की लालसा में उस पंडित के पीछे-पीछे चलने लगे और एक शिवालय में पहुंच गए।

>> रात के अंधेरे में चुराया भोजन <<

शिवालय में उन्होंने देखा कि ब्राह्मण भगवान शिव की पूजा कर रहे थे और भोग अर्पित कर भजन-कीर्तन में मग्न थे। भोजन चुराने की ताक में गुणनिधि शिवालय में ही बैठ गए। जब भजन-कीर्तन समाप्त होने के बाद सभी ब्राह्मण सो गए तब उन्हें भोजन चुराने का मौका मिल गया और वो चुपके से शिव भगवान की प्रतिमा के पास पहुंचे लेकिन वहां खूब अंधेरा था इसलिए गुणनिधि को कुछ भी दिखाई नहीं दे रहा था।

इसलिए उन्होंने एक दीपक जलाया, लेकिन वह हवा के कारण बुझ गया लेकिन वो बार-बार वो दीपक जलाते रहे। जब यह कई बार हुआ तो भोलेनाथ और औघड़दानी शंकर ने इसे अपनी दीपाराधना समझा और प्रसन्न होकर गुणनिधि को धनपति होने का आशीर्वाद दिया।

>> अनजाने में रखा महाशिवरात्रि का व्रत <<

गुणनिधि भूख से इतने व्याकुल थे कि भोजन चुराकर भागते समय ही उनकी मृत्यु हो गई। लेकिन मृत्यु से पहले अनजाने में ही उनसे महाशिवरात्रि के व्रत का पालन हो गया था और उसका उन्हें शुभ फल मिला। अनजाने में ही सही महाशिवरात्रि का व्रत पालन करने के कारण गुणनिधि अपने अगले जन्म में कलिंग देश के राजा बने।

>> शिव की कृपा से गरीब ब्राह्मण धन के देवता 'कुबेर' कहलाए <<

इस जन्म में भी गुणनिधि भगवान शिव के परम भक्त थे और सदैव उनकी भक्ति में लीन रहते थे। उनकी इस कठिन तपस्या और भक्ति को देखकर भगवान शिव उन पर प्रसन्न हुए। यह भगवान शिव की ही कृपा थी, जिसके कारण एक गरीब ब्राह्मण धन के देवता कुबेर कहलाए और संसार में पूजनीय बन गए।

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धनतेरस पर्व ।।

धनतेरस या धनत्रयोदशी सनातन धर्म का एक प्रमुख पर्व हैं। पंचांग के अनुसार कार्तिक महीने के कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी तिथि (तेरहवे दिन) को यह पर्व मनाया जाता हैं, आमतौर पर दीपावली से दो दिन पहले। 

इस दिन प्राचीन समय में समुद्र मंथन हुआ था, भगवती लक्ष्मी और भगवान विष्णु के अवतार भगवान धनवंतरी अवतरित हुए थे। भगवती लक्ष्मी धन की देवी हैं, भगवान धनवंतरी आयुर्वेद के देवता है। भारत सरकार धनतेरस दिन को राष्ट्रीय आयुर्वेद दिवस के रूप में मनाती हैं।

भगवान धनवंतरी समुद्र मंथन के समय पीतल के कलश में अमृत लेकर प्रकट हुए थे, इसलिए इस दिन नए पीतल के बर्तन क्रय (खरीद) ने की परंपरा हैं। इस दिन चाँदी क्रय करने की भी प्रथा हैं। इसका कारण यह माना जाता हैं चाँदी चंद्रमा का प्रतीक हैं, चंद्रमा हमें शीतलता प्रदान करता हैं और मन में संतोष रूपी धन का वास होता हैं। संतोष को सबसे बड़ा धन माना गया है जिसके पास संतोष है वह सुखी हैं वही सबसे बड़ा धनवान हैं।

धनतेरस की रात को देवी लक्ष्मी और भगवान धनवंतरी के सम्मान में रात भर दीप प्रज्ज्वलित रहते हैं, भजन गाए जाते हैं, मुख्य द्वार पर रंगोली बनाई जाती हैं। धनतेरस पर धन के देवता कुबेर की भी पूजा की जाती हैं। सामान्य तौर पर लोग धनतेरस के दिन दीपावली के लिए गणेश, लक्ष्मी, सरस्वती की पूजा हेतु मूर्ति क्रय करते हैं।

जैन पंथ के तीर्थंकर महावीर स्वामी धनतेरस के दिन योग ध्यान अवस्था में चले गए थे तथा दीपावली के दिन निर्वाण को प्राप्त हुए थे। तभी से जैन पंथ धनतेरस को ध्यान तेरस या धन्य तेरस के रूप में मनाता हैं।

धनतेरस की संध्या पर घर मुख्य द्वार और आंगन में दीप प्रज्ज्वलित करने की प्रथा भी है। यह दीप मृत्यु के देवता यमराज के लिए जलाए जाते हैं। इस प्रथा के पीछे एक लोककथा है। 

कथा के अनुसार प्राचीन समय में एक हेम नाम के राजा थे। ईश्वर कृपा से उन्हें पुत्र की प्राप्ति हुई। ज्योंतिष आचार्यो के अनुसार बालक अल्प आयु है तथा इसके विवाह के चार दिन पश्चात मृत्यु का योग है। राजा ने राजकुमार को एक गुप्त स्थान पर भेज दिया, जहां किसी स्त्री की परछाई भी न पड़े। देवयोग से एक दिन एक राजकुमारी उस गुप्त स्थान पर पहुंच गई और दोनों एक दूसरे को देखकर मोहित हो गये, उन्होंने गन्धर्व विवाह किया। विवाह के पश्चात विधि का विधान सामने आया और विवाह के चार दिन पश्चात यमदूत उस राजकुमार के प्राण लेने आ पहुंचे। जब यमदूत राजकुमार के प्राण ले जा रहे थे, उस समय नवविवाहित पत्नी का विलाप सुनकर उनका हृदय भी द्रवित हो उठा, किंतु विधि के अनुसार उन्हें अपना कार्य करना पड़ा। यमदूत ने पूरी घटना यमराज को बताई तथा एक यमदूत ने यम देवता से विनती की हे यमराज! क्या कोई ऐसा उपाय है जिससे मनुष्य अकाल मृत्यु से मुक्त हो जाए। दूत के अनुरोध करने पर यम देवता बोले, हे दूत! अकाल मृत्यु तो कर्म की गति है, इससे मुक्ति का एक सरल उपाय मैं तुम्हें बताता हूं, सुनो। कार्तिक कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी रात को जो प्राणी मेरे नाम से पूजन करके दीपमाला दक्षिण दिशा की ओर भेट करता है, उसे अकाल मृत्यु का भय नहीं रहता है। यही कारण है कि धनतेरस पर घर के मुख्य द्वार पर दक्षिण दिशा की ओर दीप प्रज्जवलित किया जाता हैं।

करवाचौथ व्रत से संबंधित दो मुख्य कथा ।।

1. एक समय की बात है एक करवा नाम की पतिव्रता स्त्री अपने पति के साथ नदी के किनारे एक गाँव में रहती थी। अपने पति के प्रति गहन प्रेम और समर्पण से उसे आध्यात्मिक शक्ति प्राप्त थी। एक दिन उसका पति नदी में स्नान करने गया तब एक मगरमच्छ ने उसका पैर पकड़ लिया। पति करवा करवा कह के अपनी पत्नी को पुकारने लगा, पति की पुकार सुनकर पत्नी करवा भागी चली आई और आकर मगर को रस्सी से बाँध दिया। मगर को बाँधकर यमराज के यहाँ पहुँची और यमराज से कहने लगी - हे देव! मगर ने मेरे पति का पैर पकड़ लिया है। मगर को पैर पकड़ने के अपराध में आप अपने बल से नरक में ले जाओ। यमराज बोले- अभी मगर की आयु शेष है, इसलिए मैं उसे नहीं मार सकता। इस पर करवा बोली, अगर आप ऐसा नहीं करोगे तो मैं आप को श्राप देकर नष्ट कर दूँगी। यह सुनकर यमराज डर गए और उस पतिव्रता करवा के साथ आकर मगर को यमपुरी भेज दिया और करवा के पति को दीर्घायु दी। हे करवा माता! जैसे तुमने अपने पति की रक्षा की, वैसे सबके पतियों की रक्षा करना।

2. दूसरी कथा वीरवती महिला की हैं। भारत के अलग - अलग क्षेत्रों में वीरवती से संबंधित अनेक कथाएं प्रचलन में हैं, इसलिए जो महिला वीरवती की जिस कथा को पढ़ती सुनती आ रही हैं वह उसे ही पूरी श्रद्धा से पढ़ें सुने। उदाहरण के लिए वीरवती से संबंधित एक कथा

एक साहूकार के सात बेटे और एक बेटी वीरवती थी। सभी सातों भाई अपनी बहन से बहुत प्यार करते थे। भाई पहले बहन को भोजन खिलाते और उसके पश्चात स्वयं खाते थे। वीरवती विवाह के पश्चात अपने ससुराल में रहने लगी। एक बार वीरवती ससुराल से मायके आई हुई थी। करवा चौथ का दिन आया, वीरवती ने मायके में ही व्रत किया। संध्या को सभी भाई जब अपना व्यापार - व्यवसाय बंद कर घर आए तो देखा उनकी बहन बहुत व्याकुल थी। सभी भाई भोजन करने बैठे और अपनी बहन से भी भोजन का आग्रह करने लगे, किंतु बहन ने बताया कि उसका आज करवा चौथ का निर्जल व्रत है और वह भोजन चंद्रमा को देखकर उसे अर्घ्‍य देकर ही ग्रहण करेंगी। चूँकि चंद्रमा अभी तक नहीं निकला है, इसलिए वह भूख-प्यास से व्याकुल है। सबसे छोटे भाई से अपनी बहन की स्थिति देखी नहीं गई और वह दूर पीपल के पेड़ पर एक दीपक जलाकर छलनी की ओट में रख देता है। दूर से देखने पर वह ऐसा प्रतीत होता है कि जैसे चतुर्थी का चाँद उदित हो रहा हो। इसके पश्चात भाई अपनी बहन को बताता है कि चाँद निकल आया है, तुम उसे अर्घ्य देकर भोजन कर सकती हो। बहन सीढ़ियों पर चढ़कर चाँद को देखती है तथा अर्घ्‍य देकर भोजन करने बैठ जाती है। वह भोजन का पहला टुकड़ा मुँह में डालती है तो उसे छींक आ जाती है, दूसरा टुकड़ा मुँह में डालती है तो उसमें बाल निकल आता है और जैसे ही तीसरा टुकड़ा मुँह में डालने का प्रयास करती है तो उसके पति के रोगग्रस्त होने का समाचार उसे मिलता है। वह तुरंत अपने ससुराल पहुँचती है। वीरवती का पति मर चुका होता है, वीरवती एक सच्ची पतिव्रता महिला थीं वह अपने पति के शव के पास बैठ कर देवी पार्वती को स्मरण करते हुए रातभर रोती रहती हैं। वीरवती की भक्ति की शक्ति से माँ पार्वती प्रकट होकर उसे बताती है कि उसके भाई के छल के कारण उसका व्रत अनुचित ढंग से टूट गया। वीरवती माँ पार्वती के पैरों में गिरकर क्षमा माँगती है तथा अपने पति को जीवित करने की विनती करती हैं। माँ पार्वती कहती हैं वीरवती तेरी भक्ति से प्रसन्न होकर तेरे पति को जीवित तो कर रही हूँ किंतु तेरा पति पूर्ण रूप से स्वस्थ नहीं रहेगा जब तक तू अपनी भूल सुधार नहीं लेती, अपनी भूल सुधारने के लिए तुझे हर महीने आने वाले चौथ व्रत करते हुए अगला करवा चौथ व्रत पूरी श्रद्धा से करना है तब करवा माता ही तेरे पति को पूर्ण स्वस्थ करेगी। 
वीरवती हर महीने के चौथ व्रत को करती हुई करवा चौथ का व्रत भी सफलता पूर्वक करती हैं। करवा माता वीरवती से प्रसन्न होकर उसके पति को पूर्ण स्वस्थ कर देती हैं। हे माँ पार्वती, माता करवा जिस प्रकार वीरवती को चिर सुहागन का वरदान आपसे मिला है, वैसा ही सब सुहागिनों को मिले।

कृषक बंधुओ को समर्पित ।।

भारतीय संस्कृति में नक्षत्रों का अपना महत्व है। इनमे भी रोहिणी नक्षत्र पर कई विद्वानों,कवियों ने वर्षा संबंधी दोहे,कहावतो पर कृषि से संबंधित बाते बताई। मालवा क्षेत्र के किसानों से कई रोचक तथ्य सुनने को मिले। जो आज भी गांव - चौपालों, हथाई - ओटलों पर किसान चर्चा करते मिल जायेंगे। वर्षा की भविष्यवाणी का प्रचलन प्राचीनकाल से ही रहा है। प्रत्येक वर्ष जेठ सुदी 8,9,10,11 तिथियों पर वायु किस दिशा में बह रही है। यदि मृदु और स्निग्ध हो और बादलों को रोकने वाली हो,तो उत्तम वर्षा होती है। यदि इन तिथियों में बिजली चमके,धूलभरी आंधियाँ चले और बूंदाबांदी हो ,तो वर्षाकाल में उत्तम वृष्टि होती है।नौ तपा 25 मई से 3 तक था।इससे वर्षा और खेती - किसानी और फसल का पूर्वानुमान लगा लेते है। मालवा में कहावत है कि नौ तपा यानी रोहिणी नक्षत्र गल जाय यानी इसमें पानी की एक बूंद भी गिर जाय तो फसलों में नुक्सान की संभावना बन जाती है। जेठ महीने में पानी बोणी के पूर्व गिरता है तो उसे जेठी डूंगला कहते है। कहते है कि यह आलसी किसानों को जगा रहा है। कहते हैं कि रोहिणी में खूब गर्मी पड़नी चाहिए। यदि रोहिणी में पानी की बूंद भी नही गिरती तो फसल अच्छी होती है। बोनी अच्छी मंड जाती। *किसान चुक्यों बोणी और दाडक्यों चुक्यों लावणी*। यानी किसान समय पर बोणी और मजदूर दाड़की चूक जाता है तो साल भर उसे भूखे मरने की नौबत आ जाती है। रोहिणी नक्षत्र के बारे में हमारे पूर्वजों ने कई अनुमान लगाये थे और वर्षा की भविष्यवाणी भी की। नौ दिन रोहिणी खूब तपती और इसमें पानी नहीं आता तो फसल अच्छी होने के संकेत है। यदि इसमें छींटे - छांटे भी पड़ जाय तो बोणी में रोणा (फजीहत) नही होती। जेठ माह में जब सूर्य रोहिणी नक्षत्र में प्रवेश करता है तब नौ तपा (रोहिणी) लग जाती है। प्रकृतिनुसार नौ तपा क्यों जरूरी है, नौ तपा यदि न तपे तो क्या होगा। 9 दिनों तक लू और सूर्य की गर्मी से धरती तपने लगती है। लू खेती के लिए जरूरी है।                
" दो मसा दो कातरा,दो तीडी दो ताव।                         
दो की बादी जल हरै, दो विश्वर दो वाव "।                

यदि नौ तपा के पहले दो दिन लू न चली तो चूहे बहुत बढ़ेंगे। अगले दो दिन लू न चली तो कातरा (फसल) को हानि पहुँचाने वाले कीट नष्ट नहीं होंगे। तीसरे दिन से दो दिन लू न चली तो टिड्डियों (तांतियाँ) के अंडे नष्ट नहीं होंगे। चौथे दिन से दो दिन नही तपा तो बुखार लाने वाले जीवाणु नहीं मरेंगे। इसके बाद दो दिन तक लू न चली तो विश्वर यानी साँप - बिच्छू नियंत्रण से बाहर हो जायेंगे। आखिरी दो दिन भी लू नही चली तो आंधियाँ अधिक चलेगी। फैसले चौपट कर देगी। जेठ महिने के शुक्लपक्ष में आर्द्रा से नौ नक्षत्रों में वर्षा कैसी होगी इसका अर्थ लगाया जाता है। यदि नौ दिन में आकाश में बादल छाये,तो श्रेष्ठ वर्षा होगी। वायु परीक्षण आषाढ़ सुदी पूर्णिमा को करना चाहिए। इस दिन शाम को गणेश पूजनकर सूर्यास्त समय ऊँचे स्थान पर खड़े हो हवा का रुख देखने हेतु झंडी फहराई जाती है। इस दिन पूर्वी वायु चले,तो उत्तम वर्षा,आग्नेय कोण में चले,तो अग्नि का भय तथा कम वर्षा के योग है। वायव्य कोण में चले, तो अल्पवर्षा तथा ईशान कोण में चले,तो उत्तम वर्षा होती है।यदि चारों दिशाओं में हवा एक - दूसरे को काटती हुए चले तो खण्डवृष्टि समझना चाहिये। वर्षा अनुमान की अन्य विधियाँ भी प्रचलित है, इनमे किसी देश, स्थान, मनुष्य,पशु - पक्षी और भौतिक वस्तुओं के द्वारा भी वर्षा ज्ञान किया जाता है। कवि घाघ और भडुरी की कहावते प्रचलित है :-            
जै दिन जैठ बहै पुरवाई         
तै दिन सावन धूरि उड़ाई।।      
यानी जितने दिन जेठ महिने में पूर्वी हवा चलेगी,उतने दिन तक सावन में धूल उड़ेगी अर्थात पानी नहीं पड़ेगा।                                    
अंबाझोर चले पुरवाई।            
तब जानौ बरखा ऋतुआई।। 
जब पूर्वी हवा इतनी जोर से चले कि आम के वृक्षों को भी झकझोर दे,तो समझे वर्षा ऋतु पास ही आ गई है 

शुक्रवार री बादरी रहे शनी चर छाय ,,
तो यौ भाखे भडुरी बिन बरसे ना जाय।।       
यानी शुक्रवार को बादली छाये और शनिवार को भी छाई रहे, तो वह बिना बरसे नही जाती,यानी पानी आता

करिया बादर जिउ डरावइ 
भूरा बादर पानी आवइ।।          
यानी काला बादल केवल डरावना होता है जबकि भूरा बादल पानी बरसाने वालाहै। 

 कल से पानी गरम हो चिड़ियाँ न्हावै धूर।
अंडा ले चींटी चलै,तो बरखा भरपूर।     
यानी घड़े में रखा पानी गरम मालूम पड़े और चिड़ियाँ धुल में नहाने लगे तथा चीटियाँ अंडे लेकर चल पड़े तो अच्छी वर्षा होगी

जेठ मास जो तपै निरासा। 
तो जानौ बरखा के आसा।।   
यानी जेठ का महीना इतना तपै कि उसमे मनुष्य निराश होने लगे तो अच्छी वर्षा होगी।                                     
धनुष पड़ै बंगाली। मेह सांझि या काली।।                   
यानी बंगाल की ओर (पूर्व की और) दिशा की और इंद्र धनुष निकले तो तो यह समझना चाहिये कि सांझ - सबेरे में ही वर्षा होगी।             

ढेले ऊपर चील जो बोले। गली - गली में पानी डोले।।
यानी यदि चील खेत में ढेले ऊपर बैठकर बोले तो समझे कि इतनी बरसात होगी कि खाल - खोदरे, छापरे और गली कूंचे तक पानी से भर जायेंगे।                                 
पूरब धनुही पच्छिम भान घाघा कहै बरखा नियरान।।       
अर्थात पूर्व दिशा में इंद्र धनुष दिखाई दे और उसी समय सूर्य पश्चिम में चले गए हो अथवा संध्या के समय इंद्र धनुष पड़े तो यह समझना चाहिए कि वर्षा समीप ही है।                         
इस प्रकार घाघ भडुरी कई वर्षा,मौसम, बोणी,फसल,पशु - पक्षी, बादल आदि पर कई कहावतें लिखी है।                      
इसके अलावा हमारे पूर्वजों के पास वर्षा संबंधी प्राकृतिक पेड़ - पौधो,पशु पक्षी से संबंधी जानकारी भी थी जो सटीक पूर्वानुमान थे।      
जैसे :- जब तक बैल और बौर में कोंपल(पत्ते) नही निकले और खेत में टिटोडी (टिटहरी) अपने अंडों से बच्चे न निकाल ले तब तक बोणी (खेत में बीज बोना) नही करनी चाहिए। ये प्राचीन संकेत है🙏

आत्महत्या करने वाले मनुष्य की आत्मा के साथ क्या होता है, गरुड़ पुराण में अकाल मृत्यु के सम्बंध में ।।


 गरुड़ पुराण के अनुसार आत्महत्या करने वाले मनुष्य के लिए दुखों का अंत नहीं होता बल्कि उसकी समस्या बढ़ जाती है। जो मनुष्य धरती पर आत्महत्या कर लेता है, उसे परलोक में भी जगह नहीं मिलती और उसकी आत्मा भटकती रह जाती है। गरुड़ पुराण में अकाल मृत्यु और आत्महत्या के बारे में क्या लिखा है 

गरुड़ पुराण में जीवन के बाद के लोक के बारे में लिखा गया है। धरती पर जीवन जीने के बाद मनुष्य के कर्मों के आधार पर उसके साथ कैसा न्याय किया जाता है, इन सभी बातों का विवरण गरुड़ पुराण में लिखा गया है। इसके अलावा गरुड़ पुराण में भगवान विष्णु की भक्तिसे जुड़ीं बातें भी हैं। इसमें ज्ञान, वैराग्य और अच्छे आचरण की महिमा बताई गई है। साथ ही निष्काम कर्म, यज्ञ, दान, तप और तीर्थ यात्रा जैसे शुभ कर्मों का महत्व भी समझाया गया है। गरुड़ पुराण में आत्महत्या या अपना जीवन स्वंय समाप्त करने के विषय में भी लिखा गया है। आत्महत्या को अकाल मृत्यु की श्रेणी में रखा जाता है

 गरुड़ पुराण में आत्महत्या की सजा

 अकाल मृत्यु होने से 7 चक्र नहीं होते पूर्ण 

गरुड़ पुराण के अनुसार, जो लोग अपने जीवन के सभी 7 चक्रों को पूरा करते हैं, उन्हें मरने के बाद मोक्ष मिलता है लेकिन अगर कोई एक भी चक्र अधूरा छोड़ देता है, तो उसे अकाल मृत्यु का सामना करना पड़ता है। ऐसी आत्मा को बहुत कष्ट झेलने पड़ते हैं। गरुड़ पुराण के अनुसार, भूख से तड़पकर मरना, हिंसा में मरना, फांसी लगाकर जान देना, आग से जलकर मरना, सांप के काटने से मरना, जहर पीकर या किसी दवा को खाकर आत्महत्या करना, ये सभी अकाल मृत्यु की श्रेणी में आते हैं। इसका मतलब है कि ये मौतें समय से पहले होती हैं।

 आत्महत्या को पाप की श्रेणी में रखा गया है 

पृथ्वी पर इंसान का जीवन बहुत मुश्किल से मिलता है। यह जीवन तपस्या का फल होता है। अगर कोई आत्महत्या करता है, तो उसे नर्क भोगना पड़ता है। ऐसा माना जाता है कि हर किसी को इंसान के रूप में जन्म लेने का अवसर नहीं मिलता। जब एक इंसान मर जाता है और आत्मा बन जाता है, तो उसे 13 अलग-अलग जगहों में भेजा जाता है। अगर कोई आत्महत्या करता है, तो उसे 7 नरक में से किसी एक में भेजा जाता है। वहां उसे लगभग 60,000 साल बिताने पड़ते हैं।

आत्महत्या करने वाले मनुष्य की आत्मा भटकती रहती है 

आत्माएं आमतौर पर 3 से 40 दिनों में दूसरा शरीर ले लेती हैं लेकिन, जो लोग आत्महत्या करते हैं, उनकी आत्माएं लंबे समय तक भटकती रहती हैं। गरुड़ पुराण में आत्महत्या को भगवान का अपमान बताया गया है इसलिए, आत्महत्या करने वालों को स्वर्ग या नरक में जगह नहीं मिलती। वे लोक और परलोक के बीच में ही अटके रहते हैं।

 मरने के बाद भी कष्ट सहती है आत्महत्या करने वालों की आत्मा 

कहते हैं कि जीवन में लोगों को दुखों का सामना करना पड़ता है। धरतीलोक में जीवन जीने के लिए संघर्ष करना पड़ता है लेकिन गरुड़ पुराण के अनुसार आत्महत्या करने वाले मनुष्य की आत्मा को मरने के बाद भी दुख उठाने पड़ते हैं। उसकी आत्मा अशांत रहती है और मरने के बाद भी वो जीवन के संघर्षों, प्रेम, दुख आदि के बारे में सोचता रहता है। आत्महत्या करने वाला मनुष्य केवल एक भटकती आत्मा बनकर रह जाता है।