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सूर्य उपासना से हमें क्या-क्या लाभ होते हैं?

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1) भगवान सूर्य की उपासना से दाद फोड़ा कुष्ठ हैजा प्रभृत्ति रोग नष्ट हो जाते हैं
( वही -75/88)

 2) भगवान सूर्य का उपासक कठिन से कठिन रोगों से मुक्ति पाकर अनेकों वर्ष की लंबी आयु प्राप्त करता है
( वही -75/88)

3) भगवान सूर्य की उपासना मात्र से सभी रोगों से मुक्ति मिल जाती है

( पद्म पुराण सृष्टि खंड अध्याय नंबर 79 श्लोक नंबर 17)

4) जो भी भक्ति पूर्वक भगवान सूर्य की पूजा करता है वह निरोग होता ही है।

( स्कंद पुराण भाग 2 काशी खंड महत्यम अध्याय नंबर 3 श्लोक नंबर 15)

5) सूर्य देव उदय होने पर रोगो का अपहरण कर लेते हैं
( शुक्ल यजुर्वेद 33/36)

6) शरीर के सभी रोग भगवान सूर्य की रश्मियों के द्वारा नष्ट हो जाते हैं
( अथर्ववेद)
7) अगर शरीर में तेज की कामना हो तो सूर्य की आराधना करनी चाहिए
( श्रीमद्भागवत महापुराण)

8) अगर सुख की कामना हो तो सूर्य की आराधना करनी चाहिए
( स्कंद पुराण)
9) अगर शत्रु को पराजय करना हो शत्रु विजय प्राप्त करनी हो तो सूर्य की आराधना करनी चाहिए।
( वाल्मीकि रामायण)
10) अगर आरोग्य की कामना हो तो सूर्य की आराधना करनी चाहिए
( मत्स्य महापुराण 67/61)

11) भगवान सूर्य की उपासना करने पर वह शरीर को निरोग तो बनते ही बनाते हैं साथ में दृढ़ भी कर देते हैं
( स्कंद पुराण)

12) भगवान भास्कर जिस पर प्रसन्न हो जाते हैं उसे निः संदेह धन और यश भी प्रदान करते हैं।
( पद्म पुराण)

13) सूर्य की जो लालिमा युक्त किरणे होती है इसका सेवन करने से शरीर का पीलापन और हृदय रोग नष्ट होते हैं
( अथर्ववेद)

14) भगवान सूर्य की लालिमा युक्त किरणो का सेवन करने से दीर्घायु की प्राप्ति होती है
( अथर्ववेद)

15) सूर्य की विधिवत उपासना करने पर नेत्र रोग नष्ट हो जाते हैं
( चाक्षुषोपनिषद्)

16) भगवान सूर्य की उपासना करने पर प्राण शक्ति प्रबल होती है
( यजुर्वेद)

17) ज्योति युक्त चीजों में मैं सूर्य हूं।
( गीता)
18) सूर्य में जो तेज है उसे तू मेरा ही तेज जान
( गीता)
19) विराट स्वरूप में मै सूर्य को आपका नेत्र देख रहा हूं
( गीता)
20) शिव जी की आठ मूर्तियों में से एक मूर्ति सूर्य है
( शिव महापुराण)

21) भगवान सूर्य की विधिवत आराधना करने से बुरे सपनों का नाश हो जाता है
( सामवेद)

22) भगवान सूर्य की उपासना करने से घर में कभी अन्न जल की कमी नहीं रहती है
( यजुर्वेद)

23) भगवान सूर्य सभी प्राणियों के जीवन है
( ब्रह्म पुराण)

24) सूर्य अपने उपासक को दीर्घायु आरोग्य ऐश्वर्या धन पशु मित्र पुत्र स्त्री विविध प्रकार की उन्नति के क्षेत्र आठ प्रकार के भोग स्वर्ग और सब कुछ प्रदान कर देते हैं
( स्कंद पुराण)

गंगा स्नान करने की शास्त्रीय विधि ।।

1) जहां से गंगा जी का जल दिखने लगे वहां से पादुकाओं का त्याग करके पैदल ही चलना चाहिए।
2) गंगा जी के समीप जाकर के सबसे पहले उन्हें देखते ही हाथ जोड़कर यह प्रार्थना करना चाहिए-:
 मां आज मेरा जन्म सफल हो गया मेरा पृथ्वी पर जिना सफल हो गया जो मुझे आज साक्षात् ब्रह्म स्वरूपिणी आपका दर्शन हुआ और मैं इन आंखों से आपको देख पाया। देवी आपके दर्शन के प्रभाव से मेरे अनेक जन्मों के पाप नष्ट हो जाए ऐसी कृपा करें।
 ऐसा बोलकर गंगा जी को दंडवत करें और गंगा जी की मिट्टी अपने माथे से लगाए

3) इसके बाद गंगा जी से प्रार्थना करें कि मां आपका जल बहुत पवित्र है देवताओं के लिए भी दुर्लभ है मैं आपके इस पवित्र दिव्य जल को पैरों से स्पर्श कर रहा हूं इसके लिए मुझे क्षमा करें और मुझ पर प्रसन्न होंईए अपना वात्सल्य मुझ पर रखिए।

4) इतना बोलने के पश्चात गंगा जी का नाम लेते हुए गंगा जी के जल को शिरोधार्य करके फिर उसमे डुबकी लगाई

5) डुबकी लगाने के पश्चात अपने कपड़े इतनी दूर निचोड़ की उसका जल गंगा जी में वापस न जाए। उसके बाद अपने शरीर पर गंगा जी की मिट्टी का तिलक करें और वस्त्र आदि पहनकर संध्या वंदन गायत्री जप आदि करें

सनातन धर्म शास्त्रों के अनुसार जन्मदिन मनाने की प्रामाणिक और शास्त्रीय विधि क्या हैं चलिए जानते हैं-:


( यह सभी निर्देश तिथि के अनुसार है परंतु आज के समय में दिनांक से जन्मदिन मनाने का प्रचलन है तो यह नियम दोनों ही दिन निभाए जा सकते हैं)

 जन्मदिन मनाने के विषय में निर्णय सिंधु नामक ग्रंथ में पेज नंबर 531 में निम्नलिखित निर्देश प्राप्त होते है -:
1) व्यक्ति को अपने जन्मदिन के दिन नए वस्त्र धारण करने चाहिए
( नवाम्बरधरो भूत्वा )
2) अपने जन्मदिन के दिन व्यक्ति को आठ चिरंजीवियों की पूजा करनी चाहिए
( पूजयेच्च चिरायुषम्)

3) अपने जन्मदिन के दिन दही और चावल का षष्ठी देवी को भोग अवश्य लगाना चाहिए।

4) अपने जन्मदिन के दिन माता-पिता और गुरुजनों का पूजन करके प्रतिवर्ष महोत्सव (Celebration)करना चाहिए

5)हाथ में मोली बांधना चाहिए।

6) अपने जन्मदिन के दिन एक अंजलि में दूध लेकर उसमें थोड़ा सा गुड और थोड़ी सी तिल्ली डालकर उस दूध को पीना चाहिए और दूध पीते समय यह बोलना चाहिए-:
 हे भगवान आप मुझ पर प्रसन्न होइए और मुझे आरोग्यता और आयु प्रदान कीजिए हे अष्ट चिरंजीवीयो आप मुझ पर कृपा किजीएऔर मुझे आयुष्य का वर दीजिए यही कामना रखकर मैं इस दूध का पान कर रहा हूं।
 आप सभी मेरे पर कृपा करें।
7) अपने जन्मदिन के दिन ठंडे जल से ही स्नान करना चाहिए गर्म जल को प्रयत्नतः त्याग देना चाहिए।


सभी पापों से छुड़ाने वाले गंगा जी के द्वादश (बारह ) नाम कौन कौन से हैं ?

 उत्तर :---
स्नान के समय निम्नलिखित श्लोक का जहाँ भी स्मरण किया जाय गंगा जी वहाँ के जल में प्रवेश कर जाती हैं। इसमें गंगा जी के द्वादश (बारह) नाम हैं जो सभी पापों को हरने वाले हैं। इसे गंगा जी ने स्वयं अपने मुख से कहा है :---

 नन्दिनी नलिनी सीता मालती च महापगा ।
 विष्णुपादाब्जसम्भूता गङ्गा त्रिपथगामिनी ।। 
 भागीरथी भोगवती जाह्नवी त्रिदशेश्वरी । 
 द्वादशैतानि नामानि यत्र तत्र जलाशये । 
 स्नानोद्यतः स्मरेन्नित्यं तत्र तत्र वसाम्यहम् ।। 

नन्दिनी, नलिनी, सीता, मालती, महापगा, विष्णुपादा, गङ्गा, त्रिपथगामिनी, भागीरथी, भोगवती, जाह्नवी और त्रिदशेश्वरी । 
       वैसे तो गंगा जी के 108 नाम हैं पर ये द्वादश नाम मुख्य नाम हैं। 

दामोदर मास कार्तिक ।।

पढे़ समझे व करे 
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वैकुंठ चतुर्दशी हिंदू कैलेंडर में एक पवित्र दिन है जो कार्तिक पूर्णिमा से एक दिन पहले मनाया जाता है । कार्तिक माह के दौरान शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी को भगवान विष्णु के साथ-साथ भगवान शिव के भक्तों के लिए भी पवित्र माना जाता है क्योंकि दोनों देवताओं की पूजा एक ही दिन की जाती है। अन्यथा, ऐसा बहुत कम होता है कि एक ही दिन भगवान शिव और भगवान विष्णु की एक साथ पूजा की जाती है।

वाराणसी के अधिकांश मंदिर वैकुंठ चतुर्दशी मनाते हैं और यह देव दिवाली के एक और महत्वपूर्ण अनुष्ठान से एक दिन पहले आता है । वाराणसी के अलावा, वैकुंठ चतुर्दशी ऋषिकेश, गया और महाराष्ट्र के कई शहरों में भी मनाई जाती है।

शिव पुराण के अनुसार कार्तिक चतुर्दशी के दिन भगवान विष्णु भगवान शिव की पूजा करने वाराणसी गए थे। भगवान विष्णु ने एक हजार कमल के साथ भगवान शिव की पूजा करने का संकल्प लिया। कमल के फूल चढ़ाते समय, भगवान विष्णु ने पाया कि हजारवां कमल गायब था। अपनी पूजा को पूरा करने और पूरा करने के लिए भगवान विष्णु, जिनकी आंखों की तुलना कमल से की जाती है, ने अपनी एक आंख को तोड़ दिया और लापता हजारवें कमल के फूल के स्थान पर भगवान शिव को अर्पित कर दिया। भगवान विष्णु की इस भक्ति ने भगवान शिव को इतना प्रसन्न किया कि उन्होंने न केवल भगवान विष्णु की फटी हुई आंख को बहाल किया, बल्कि उन्होंने भगवान विष्णु को सुदर्शन चक्र का उपहार भी दिया, जो भगवान विष्णु के सबसे शक्तिशाली और पवित्र हथियारों में से एक बन गया।

वैकुंठ चतुर्दशी पर, निशिता के दौरान भगवान विष्णु की पूजा की जाती है जो दिन के हिंदू विभाजन के अनुसार मध्यरात्रि है। भक्त भगवान विष्णु के हजार नामों, विष्णु सहस्रनाम का पाठ करते हुए भगवान विष्णु को एक हजार कमल चढ़ाते हैं।

यद्यपि वैकुंठ चतुर्दशी के दिन भगवान विष्णु और भगवान शिव दोनों की पूजा की जाती है, भक्त दिन के दो अलग-अलग समय पर पूजा करते हैं। भगवान विष्णु के भक्त निशिता को पसंद करते हैं जो हिंदू मध्यरात्रि है जबकि भगवान शिव के भक्त अरुणोदय को पसंद करते हैं जो पूजा के लिए हिंदू भोर है। शिव भक्तों के लिए, वाराणसी के मणिकर्णिका घाट पर अरुणोदय के दौरान सुबह का स्नान बहुत महत्वपूर्ण है और इस पवित्र डुबकी को कार्तिक चतुर्दशी पर मणिकर्णिका स्नान के रूप में जाना जाता है।

यह एकमात्र दिन है जब भगवान विष्णु को वाराणसी के एक प्रमुख भगवान शिव मंदिर काशी विश्वनाथ मंदिर के गर्भगृह में विशेष सम्मान दिया जाता है । ऐसा माना जाता है कि विश्वनाथ मंदिर उसी दिन वैकुंठ के समान पवित्र हो जाता है। दोनों देवताओं की पूजा इस तरह की जाती है जैसे वे एक-दूसरे की पूजा कर रहे हों। भगवान विष्णु शिव को तुलसी के पत्ते चढ़ाते हैं और भगवान शिव बदले में भगवान विष्णु को बेल के पत्ते चढ़ाते हैं।