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वासुकये नमो नमः ।।

     
          समुद्र मंथन चल रहा था एक-एक कर | दिव्य विग्रह प्रकट हो रहे थे एवं समस्त ब्रह्माण्ड टकटकी लगाकर उन्हें निहार रहा था तभी उच्चैःश्रवा अश्व का प्राकट्य हुआ। महर्षि कश्यप की दस पत्नियों में से दो वनिता एवं कद्रू आपस में बोल उठीं। कद्रू ने कहा उच्चैःश्रवा अश्व काले रंग का है, वनीता बोलीं नहीं वह श्वेत वर्ण का है। दोनों में विवाद हो गया, कद्रू ने कहा अगर उच्चेः श्रवा घोड़ा श्वेत वर्ण का होगा तो मैं तुम्हारी दासी बन जाऊंगी अन्यथा वनीता तुम्हें मेरी दासता स्वीकार करनी होगी। वनीता पक्षीराज गरुड़, वरुड़ एवं अरुड़ की माता हैं, पक्षी वंश वनीता के गर्भ से उत्पन्न हुआ है। दूसरी तरफ कद्रू नागों की जननी हैं, कद्रू ने अपने नाग पुत्रों से कहा कि तुम सब केश के समान सूक्ष्म बन जाओ और जाकर उच्चैःश्रवा अश्व से इस प्रकार लिपट जाओ कि वह काले वर्ण का दिखाई पड़े। कुछ नागों ने अपनी माता के इस छल को मानने से इन्कार कर दिया दूसरे ही क्षण कद्रू ने मातृ द्रोह के रूप में उन्हें सर्प विनाश यज्ञ में भस्म हो जाने का श्राप दे दिया और कुछ सर्पों ने डर के मारे उनकी आज्ञा मान ली कालान्तर कद्रू ने छल के द्वारा वनीता एवं उनके पुत्र जटायु, सम्पाती समेत अनेक पक्षीराजों को बंधक बना लिया। 

                मातृ शाप से ग्रसित सर्प रोते बिलखते हुए ब्रह्मा के पास पहुँचे, पितामह व्यथित हो उठे। उनके व्यथित होते ही उनके मानस में एक पुत्री ने जन्म ले लिया, पितामह ब्रह्मा के व्यथित होते ही उनके श्वेत केशों का भी पात हो गया एवं ब्रह्मा के श्वेत केशों से देखते ही देखते श्वेत वर्ण के अति सुन्दर एवं सौम्य सर्पों का सृष्टि में आगमन हो गया। ब्रह्मा के मानस से उत्पन्न होने वाली श्वेत वर्ण की वह बालिका नाग कन्या मनसा कहलाईं एवं उनके श्वेत वर्णीय शरीर में नाग लिपट गये, नाग कन्या सीधे शिव लोक में पहुँची और घोर शिव तपस्या में लीन हो गईं। उनके वस्त्र जगह-जगह से फट गये, सूखकर कांटा हो गईं, समस्त शरीर जर्जर हो गया, शिव जी उन पर प्रसन्न हो गये और बोल उठे जरत्कारु अर्थात जर्जर शरीर वाली स्वयं शिव ने उन्हें दीक्षा दी, उन्हें संजीवनी मंत्र प्रदान किया। 

                शिव रूपी गुरु से उन्हें कृष्ण मंत्र प्राप्त हुआ। अंत में कृष्ण प्रकट हो गये स्वयं कृष्ण ने उनका पूजन किया और समस्त लोकों में उनका पूजन करवाया। इस प्रकार नागमाता मनसा का प्रादुर्भाव हुआ। जो भी जातक काल सर्प योग चाहे वह किसी भी प्रकार का क्यों न हो उससे पीड़ित हो अगर वह नागमाता मनसा के 12 नामों की स्तुति करता है तो वह सभी प्रकार के नाग कोपों से सदैव मुक्त रहता है। वे शिवांगी हैं, उनका एक नाम शिवांगी है क्योंकि शिव उनके गुरु हैं, उनका एक नाम नाग भामिनी क्योंकि वह नागों की बहिन हैं, एक नाम नाग रक्षिणी है क्योंकि उन्होंने नागों की रक्षा की है, उनका एक नाम श्वेता है क्योंकि वे श्वेत वर्ण की हैं, उनका एक नाम सिद्धयोगिनी है क्योंकि उन्होंने सिद्ध विद्या शिव से सीखी है, उनका एक नाम कृष्णा भी है क्योंकि वे कृष्ण के द्वारा पूजी गईं हैं, उनका एक नाम जगतकारिणीं हैं उन्हीं के गर्भ से आस्तिक का जन्म हुआ जिसने कि जनमेजय यज्ञ में सर्पों की रक्षा की।
 
            सर्पों पर भी काल आता है, सर्प भी काल से ग्रसित होते हैं, कौन शादी करे ? कौन इस संसाररूपी भयानक सर्प के चंगुल में फँसे, संसार तो सर्प की भांति है और स्त्री साक्षात् विषकन्या जिसका दंश मृत्यु तुल्य कष्ट ही देता है। संसार को ही काल सर्प योग समझने वाले जरत्कारु ऋषि सब कुछ त्याग घूम रहे थे तभी एक गहरे और सूखे कुएं में उन्हें सर्प नुमा रस्सी से लटकी हुईं कुछ अति बुजुर्ग दिव्य आत्माएं दिखाई दीं एवं रज्जू बने हुए उस सर्प की पूंछ को एक चूहा कुतर रहा था। वे दिव्य आत्माएं घोर हाहाकार कर रही थीं। पितरों के कर्म से, पूर्वजों के कर्म से, वंशजों में काल सर्प योग आ जाता है और वंशजों के कर्म से, अधार्मिक कुकृत्यों से पूर्वजों को, पितरों को भी कालसर्प योग ग्रसित कर लेता है। अब भारत वर्ष को ही लीजिए, अगर आप भारत वर्ष की जन्मकुण्डली बनायेंगे तो वह महाभयंकर सर्प योग से ग्रसित मिलेगी। 
                          शिव शासनत: शिव शासनत:
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           देश की कुण्डली ही काल सर्प योग से ग्रसित है तभी तो काल सर्प योग से ग्रसित नेता, अफसर, व्यापारी, उच्च पदों पर आसीन होते हैं। पिछले 60 वर्षों में इन सब मिलकर जोंक की भांति देश का खून चूस लिया, विभाजन पर विभाजन, अकाल, अविकास, गरीबी, निर्धनता, भ्रष्टाचार, नैतिक पतन, धर्म विरुद्ध कार्य, धर्म से भटकाव बस यही सब कुछ पिछले 50 वर्षों से भारत में हुआ है। प्रजनन तो काल सर्प योग भी करता है, उसके भी अण्डे बच्चे तेजी से होते हैं। वह नपुंसक नहीं है, वह संन्यासी नहीं है, वह ब्रह्मचारी भी नहीं है अपितु वह तेजी के साथ विकसित होने वाला एक जीवित जागृत योग है, यही विडम्बना है। इस जीव की संतति न बढ़े, इस जीव की जनसंख्या वृद्धि न हो, इसे उगने का, फैलने का विकसित होने का, जड़े जमाने का मौका रोकना पड़ेगा। एक व्यक्ति के काल सर्प निवारण कर देने से कुछ नहीं होगा। वर्ष भी काल सर्प योग से ग्रसित होते हैं। सन 2004 का जून महीना काल सर्प योग से ग्रसित था, विश्वास न हो तो पंचांग उठाकर देख लीजिए। माह, वर्ष, दिन, देश का राजा, देश के मंत्री, स्वयं देश इत्यादि अगर काल सर्प योग से ग्रसित हैं तो असर तो पड़ेगा ही, कोई नहीं बच सकता। अतः क्या निवारण है इसका ? कलियुग की शुरुआत ही कालसर्प योग की घटना से होती है । अभिमन्यु पुत्र परीक्षित वन में शिकार के लिए घूम रहे थे भूखे प्यासे तभी एक ऋषि-मुनि समाधिस्थ दिखे। परीक्षित पूछते रहे अन्न और जल के बारे में परन्तु समाधिस्थ ऋषि कुछ नहीं बोले । काल सर्प योग बुद्धि भ्रष्ट कर देता है। परीक्षित ने एक मरे हुए सर्प को ऋषि के गले में लपेट दिया। जिस कुल में युधिष्ठिर हुए, भीष्म हुए, अभिमन्यु हुए उस कुल में भी परीक्षित की बुद्धि भ्रष्ट हो गई। ऋषि पुत्र कह उठा जिसने मेरे पिता के गले में मृत सर्प लपेटा है उसकी मृत्यु सात दिन के भीतर तक्षक सर्प काटने से हो जाये। अधर्म आचरण, अमर्यादित व्यवहार, अनैतिकता, मद, घमण्ड इत्यादि काल सर्प योग के लिए पुष्टिवर्धक तत्व हैं। शैव धर्म, शैवोपासना, वास्तविक आध्यात्मिक मस्तिष्क ही वह तत्व हैं जो कि काल सर्प योग रूपी जीव को नपुंसक बना सकते हैं, उसकी जनसंख्या वृद्धि रोक सकते हैं, उसे निष्क्रिय कर सकते हैं। 
      
            आप अध्यात्म जगत से, अध्यात्म की सत्ता से, अध्यात्म के क्षेत्र से आप एक कील भी नहीं उठा सकते जब तक कि गुरु सत्ता शिव सत्ता पूर्ण हृदय से स्वीकार नहीं करते। , मंत्र जप ढकोसला है इससे कुछ नहीं होता। सबसे प्रमुख बात है धर्म की सत्ता स्वीकार करना शरणं होना, गुरु शरणं होना, शिव शरणं होना, धर्मं शरणं होना, सम्पूर्ण समर्पण कहीं कोई शिकायत नहीं, कहीं कोई सौदा नहीं, कहीं कोई गणित नहीं। वैसे भी शरणागत होने का कोई नियम नहीं है परन्तु अहं आड़े आता है, गणित आ आता है, कमजोरियाँ आड़े आती हैं बहुत कुछ आड़े आता है, सत्ता स्वीकारना आसान नहीं है। यही है. काल सर्प योग बाधा का मूल कारण।

                          शिव शासनत: शिव शासनत:

गायत्री पंजर स्तोत्र रहस्य ।।

        सृष्टि की आचार संहिता मां गायत्री निर्मित करती है। अध्यात्म का क्षेत्र स्पष्ट त्रूटी विहीन परम शैव आदर्शों के माध्यम से एक निश्चित आचार संहिता लिए हुए होता है। कोई शंका कोई शका इत्यादि की कोई गुंजाइश नहीं होती आध्यात की आचार संहिता के नियम कभी नहीं बदलते। यह आचार संहिता विश्व के विभिन्न मानव समाज के नियम धर्म कानून चिंतन से भी अत्यधिक कठोर स्पष्ट एवं साफ होते हैं। पूर्ण पारदर्शी और पूर्ण पारदर्शिता पर ही विश्वास करती है। वास्तविक आध्यात्मिक साधक के जीवन का प्रत्येक क्षण प्रत्येक क्रिया कलाप प्रत्येक कर्म इत्यादि पूर्व निर्धारित होता है। उसमें किसी भी प्रकार का हेरफेर बदलाव इत्यादि संभव नहीं होता। मां गायत्री की जब कृपा होती है तो साधक का मन कहीं नहीं भटकता उसके अंदर स्वत: ही दिव्य अनुशासन निर्मित हो जाता है वह ऊपर उठ जाता है। पॉइंट टू पॉइंट बात लक्ष्य की तरफ सीधी दृष्टि यही है गायत्री पंजर स्तोत्र का रहस्य।

गायत्री कवच
           सूर्य प्रकाश उत्सर्जित करता है और पुनः खींच लेता है चंद्रमा अमृतमयी किरणे उत्सर्जित करता है और पुनः वापस भी ले लेता है समुद्र वर्षा का जल उत्पन्न करता है और पुनः वापस भी ले लेता है। यह नियंत्रण व्यवस्था अतः इस प्रकार शक्ति का दुरुपयोग नहीं हो पाता। प्रत्येक युग में जीवन जीने के लिए एक विशेष प्रकार की शक्ति की जरूरत होती है। सतयुग में जीवो में इतनी ताकत थी कि वह उछल कर कई मिल जा सकते थे पक्षियों के समान उड़ सकते थे। त्रेता युग में केवल हनुमान में उड़ने की ताकत बची इसलिए वह आश्चर्यजनक मानी गई। द्वापर आते-आते इस शक्ति की जरूरत नहीं थी। कलयुग में तो यह असंभव लगता है परंतु यह सत्य है कि महामत्स्य, महासिंह, महा मकर, महामृग, महागज, महामानव थे। अब तो वैज्ञानिकों ने भी यह सिद्ध कर दिया है। महागज आज के हाथियों से कई गुना बड़े थे, महासिंह आज के सिहो से हजार गुना शक्तिशाली थे, महा पक्षी पचास पचास फिट लंम्बे पंखों से युक्त होते थे, वृक्षों और पत्तियों को खाने वाले आदि मृग अर्थात डायनासोर साठ साठ फीट ऊंचे होते थे पंद्रह पंद्रह फ़ीट के मनुष्य के कंकाल मिले हैं। जैसा युग होता है उस युग से सामंजस्य करने हेतु ज्ञान शक्ति बल बुद्धि विशेष रूप से जीव को मां गायत्री प्रदान करती है। आज यंत्रों का युग है विज्ञान का युग है बुद्धि का युग है। इस युग में बाह्य विकास चरम पर है अतः जिव युगानुसार पुरातन विरोधी असहज ना हो जाए। उसका युग, काल, समय, स्थान, भूमि, जलवायु, समाज के साथ सामंजस्य बना रहे वह नव सृष्टि का उपयोगी अंग बना रहे इसकी व्यवस्था मां गायत्री करती है। चाहे कोई सा भी युग हो गायत्री कवच के माध्यम से जातक जीवन के प्रत्येक आयाम में सामंजस्य बनाने में सफल होता है।

रौद्रा गायत्री कवच
            स्त्री शक्ति रहस्यमय है। रहस्यमय क्यों? क्योंकि उसके अंदर ग्रहण करने की प्राप्त करने की विकसित करने की चमत्कारिक शक्ति होती है। वह ब्रह्मांड से कुछ भी प्राप्त कर सकती है। आचार्य श्रीराम शर्मा जी ने लिखा कि अगर स्त्री तंत्र क्षेत्र में आ जाए साधनात्मक क्षेत्र में आ जाए अध्यात्म में उतर जाए तो वह पुरुषों के मुकाबले असंख्य गुना ज्यादा विकसित हो सकती है। उसकी अनुभूति उसका पूजन उसका तत्वज्ञान ग्रहण करने की क्षमता साक्षात्कार ईस्ट से संवाद ब्रह्म से तार्तम्य पुरुषों के मुकाबले असंग गुना ज्यादा नै:सर्गिक रूप से विकसित हो जाता है। उसकी संरचना ही इस प्रकार की है। अदिति ने देवताओं को गर्भ में प्रतिष्ठित कर लिया वह देव पिंण्डो की जननी बन गई सूर्य भी उसकी कोख से उदित हो उठे। सती अनुसुइया ने ब्रह्मा विष्णु महेश को बालक रूप में धारण कर दत्तात्रेय को निर्मित कर दिया। उमा ने गणपति निर्मित कर दिए और शिव देखते रह गए। कुंती ने गायत्री मंत्र के माध्यम से सूर्य देव को आकर्षित कर कर्ण को उत्पन्न कर लिया अंजना ने वायु गायत्री मंत्र के माध्यम से हनुमान उत्पन्न कर लिए। लोपामुद्रा ने श्रीविद्या सिद्ध कर ली भूमि गायत्री मंत्र के माध्यम से जनक ने भूमि पुत्री सीता उत्पन्न कर ली। रौंद्रा गायत्री कवच मे ब्रह्मांड की समस्त अप्सराओं, सुंदरियों, देवियों, नायिकाओं, शक्तियों, महाविद्याओं इत्यादि को साधक अपने शरीर के विभिन्न परम गोपनीय आध्यात्मिक कोशो में जागृत कर लेता है। ऐसा अद्भुत कवच है ये। यह एक तरह से सांगोपांङ्ग है। तंत्र क्षेत्र में मेरे हिसाब से यह श्रेष्ठतम अति दुर्लभम् कवच है। यह रुद्रयामल तंत्र नामक तंत्र ग्रंथ में वर्णित है। यही वास्तव में कामधेनु गायत्री भी है।
                           शिव शासनत:शिव शासनत:

वेदों के अनुसार मनुष्य को प्रतिदिन अपने जीवन में पाँच महायज्ञ अवश्य करने चाहिए।

-- ब्रह्मयज्ञ :- ब्रह्म यज्ञ संध्या ,उपासना को कहते है। प्रात: सूर्योदय से पूर्व तथा सायं सूर्यास्त के बाद जब आकाश में लालिमा होती है, तब एकांत स्थान में बैठ कर ओम् व गायत्री आदि वेद मंत्रों से ईश्वर की महिमा का गुणगान करना ही ब्रह्मयज्ञ कहलाता है।

-- देवयज्ञ :- अग्निहोत्र अर्थात हवन को देवयज्ञ कहते है। यह प्रतिदिन इसलिए करना चाहिए क्योंकि हम दिनभर अपने शरीर के द्वारा पृथ्वी ,जल ,वायु, आदि को प्रदूषित करते रहते है। इसके अतिरिक्त आजकल हमारे भौतिक साधनों से भी प्रदूषण फैल रहा है, जिसके कारण अनेक बीमारियाँ फैल रही है। उस प्रदूषण को रोकना तथा वायु, जल और पृथ्वी को पवित्र करना हमारा परम कर्तव्य है। सब प्रकार के प्रदूषण को रोकने का एक ही मुख्य साधन है और वो है हवन। अनुसंधानों के आधार पर एक बार हवन करने से 8 किलोमीटर तक की वायु शुद्ध होती है।

-- पितृयज्ञ :- जीवित माता- पिता तथा गुरुजनों और अन्य बड़ों की सेवा एवं आज्ञापालन करना ही पितृयज्ञ है।

-- अतिथियज्ञ :- घर पर आए हुए विद्वान, धर्मात्मा, सन्यासी का भोजन आदि से सत्कार करके उनसे ज्ञानप्राप्ति करना ही अतिथियज्ञ कहलाता है।

-- बलिवैश्वदेवयज्ञ :- पशु, पक्षी, कीट, पतंग आदि ईश्वर ने हमारे कल्याण के लिए ही बनाए हैं। इन पर दया करना और इन्हें खाना खिलाना बलिवैश्वदेवयज्ञ कहलाता है क्योकि ये हम पर आश्रित है। अब कोई चिङिया आदि कोई व्यापार, नौकरी आदि तो करेगी नहीं उनके लिए प्रतिदिन दाना आदि डालना बलिविश्वदेव यज्ञ कहलाता है।

इन पांच महायज्ञों को श्रद्धा पूर्वक नित करने से ही मनुष्य जीवन सफल हो सकता है।

तांत्रोक्त वनस्पति टोटके ।।

      छोटे-छोटे उपाय हर घर में लोग जानते हैं, पर उनकी विधिवत् जानकारी के अभाव में वे उनके लाभ से वंचित रह जाते हैं।हमारे आसपास पाए जाने वाले विभिन्न पेड़-पौधों के पत्तों, फलों आदि का टोटकों के रूप में उपयोग भी हमारी सुख-समृद्धि की वृद्धि में सहायक हो सकता है। यहां कुछ ऐसे ही सहज और सरल उपायों का उल्लेख प्रस्तुत है, जिन्हें अपना कर पाठकगण लाभ उठा सकते हैं।

बिल्व पत्र : अश्विनी नक्षत्र वाले दिन एक रंग वाली गाय के दूध में बेल के पत्ते डालकर वह दूघ निःसंतान स्त्री को पिलाने से उसे संतान की प्राप्ति होती है।

अपामार्ग की जड़ : अश्विनी नक्षत्र में अपामार्ग की जड़ लाकर इसे तावीज में रखकर किसी सभा में जाएं, सभा के लोग वशीभूत होंगे।

नागर बेल का पत्ता : यदि घर में किसी वस्तु की चोरी हो गई हो, तो भरणी नक्षत्र में नागर बेल का पत्ता लाकर उस पर कत्था लगाकर व सुपारी डालकर चोरी वाले स्थान पर रखें, चोरी की गई वस्तु का पला चला जाएगा।

संखाहुली की जड़ : भरणी नक्षत्र में संखाहुली की जड़ लाकर तावीज में पहनें तो विपरीत लिंग वाले प्राणी आपसे प्रभावित होंगे।

आक की जड़ : कोर्ट कचहरी के मामलों में विजय हेतु आर्द्रा नक्षत्र में आक की जड़ लाकर तावीज की तरह गले में बांधें।

दूधी की जड़ : सुख की प्राप्ति के लिए पुनर्वसु नक्षत्र में दूधी की जड़ लाकर शरीर में लगाएं।

शंख पुष्पी : पुष्य नक्षत्र में शंखपुष्पी लाकर चांदी की डिविया में रखकर तिजोरी में रखें, धन की वृद्धि होगी।

बरगद का पत्ता : अश्लेषा नक्षत्र में बरगद का पत्ता लाकर अन्न भंडार में रखें, भंडार भरा रहेगा।

धतूरे की जड़ : अश्लेषा नक्षत्र में धतूरे की जड़ लाकर घर में रखें, घर में सर्प नहीं आएगा और आएगा भी तो कोई नुकसान नहीं पहुंचाएगा।

बेहड़े का पत्ता : पूर्वा फाल्गुनी नक्षत्र में बेहड़े का पत्ता लाकर घर में रखें, घर ऊपरी हवाओं के प्रभाव से मुक्त रहेगा।

नीबू की जड़ : उत्तरा फाल्गुनी नक्षत्र में नीबू की जड़ लाकर उसे गाय के दूध में मिलाकर निःसंतान स्त्री को पिलाएं, उसे पुत्र की प्राप्ति होगी।

चंपा की जड़ : हस्त नक्षत्र में चंपा की जड़ लाकर बच्चे के गले में बांधें, बच्चे की प्रेत बाधा तथा नजर दोष से रक्षा होगी।

चमेली की जड़ : अनुराधा नक्षत्र में चमेली की जड़ गले में बांधें, शत्रु भी मित्र हो जाएंगे।

काले एरंड की जड़ : श्रवण नक्षत्र में एरंड की जड़ लाकर निःसंतान स्त्री के गले में बांधें, उसे संतान की प्राप्ति होगी।

तुलसी की जड़ : पूर्वा भाद्रपद नक्षत्र में तुलसी की जड़ लाकर मस्तिष्क पर रखें, अग्निभय से मुक्ति मिलेगी।

अपामार्ग या चिरचिंटा लटजीरा तंत्र:

इस वनस्पति को रवि-पुष्य नक्षत्र मे लाकर निम्न प्रयोग कर सकते हैं।

1. इसकी जड़ को जलाकर भस्म बना लें। फिर इस भस्म का नित्य गाय के दूध के साथ सेवन करें, संतान सुख प्राप्त होगा।

2. लटजीरे की जड़ अपने पास रखने से धन लाभ, समृद्धि और कल्याण की प्राप्ति होती है।

3. इसकी ढाई पत्तियों को गुड़ में मिलाकर दो दिन तक सेवन करने से पुराना ज्वर उतर जाता है।

4. इसकी जड़ को दीपक की भांति जला कर उसकी लौ पर किसी छोटे बच्चे का ध्यान केन्द्रित कराएं तो उस बच्चे को बत्ती की लौ में वांछित दृश्य दिखाई पड़ेंगे।

5. इसकी जड़ का तिलक माथे पर लगाने से सम्मोहन प्रभाव उत्पन्न हो जाता है।

6. इसकी डंडी की दातून 6 माह तक करने से वाक्य सिद्धि होती है।

7. इसके बीजों को साफ करके चावल निकाल लें और दूध में इसकी खीर बना कर खाएं, भूख का अनुभव नहीं होगा।

ग्रह पीड़ा निवारक मूल-तंत्र

सूर्य:- यदि कुंडली में सूर्य नीच का हो या खराब प्रभाव दे रहा हो तो बेल की जड़ रविवार की प्रातः लाकर उसे गंगाजल से धोकर लाल कपड़े या ताबीज में धारण करने से सूर्य की पीड़ा समाप्त हो जाती है। ध्यान रहे, बेल के पेड़ का शनिवार को विधिवत पूजन अवश्य करें।

चंद्र:- यदि चंद्र अनिष्ट फल दे रहा हो तो सोमवार को खिरनी की जड़ सफेद डोरे में बांध कर धारण करें। रविवार को इस वृक्ष का विधिवत पूजन करें।

मंगल:- यदि मंगल अनिष्ट फल दे रहा हो तो अनंत मूल या नागफनी की जड़ लाकर मंगलवार को धारण करें।

बुध:- यदि बुध अनिष्ट फल दे रहा हो तो विधारा की जड़ बुधवार को हरे डोरे में धारण करें।

गुरु:- यदि गुरु अनिष्ट फल दे रहा हो तो हल्दी या मारग्रीव केले (बीजों वाला केला) की जड़ बृहस्पतिवार को धारण करें।

शुक्र:- यदि शुक्र अनिष्ट फल दे रहा हो तो अरंड की जड़ या सरफोके की जड़ शुक्रवार को सफेद डोरे में धारण करें।

शनि:- यदि शनि अनिष्ट फल दे रहा हो तो बिच्छू (यह पौधा पहाड़ों पर बहुतायत में पाया जाता है) की जड़ काले डोरे में शनिवार को धारण करें।

राहु:- यदि राहु अनिष्ट फल दे रहा हो तो सफेद चंदन की जड़ बुधवार को धारण करें।

केतु:- यदि केतु अनिष्ट फल दे रहा हो तो असगंध की जड़ सोमवार को धारण करें।

मदार तंत्र

श्वेत मदार की जड़ रवि पुष्य नक्षत्र में लाकर गणेश जी की प्रतिमा बनाएं और उसकी पूजा करें, धन-धान्य एवं सौभाग्य में वृद्धि होगा। यदि इसकी जड़ को ताबीज में भरकर पहनें तो दैनिक कार्यों में विघ्न बहुत कम आएंगे और श्री सौभाग्य में वृद्धि होगी।

गोरखमुंडी तंत्र

मुंडी एक सुलभ वनस्पति है । इसम अलौकिक औषधीय एवं तांत्रिक गुणों का समावेश है। इसे रवि पुष्य नक्षत्र में पहले निमंत्रण दे कर ले आएं। पूरे पौधे का चूर्ण बनाकर जौ के आटे में मिलाएं। फिर उसे मट्ठे म सान कर रोटी बनाएं और गाय के घी के साथ इसका सेवन करें, शरीर के अनेक दोष जिनमें बुढ़ापा भी शामिल है, दूर हो काया कल्प हो जाएगा और शरीर स्वस्थ, सबल और कांतिपूर्ण रहेगा। हरे पौधे के रस की मालिश करने से शरीर की पीड़ा मिट जाती है। इसके चूर्ण का सेवन दूध के साथ करने से शरीर स्वस्थ एवं बलवान हो जाता है। इसके चूर्ण को रातभर जल के साथ भिगो कर प्रातः उससे सिर धोने से केशकल्प हो जाता है। इसके चूर्ण का नित्य सेवन करने से स्मरण, धारण, चिंतन और वक्तृत्व शक्ति की वृद्धि होती है।

श्यामा हरिद्रा:

काली हल्दी को ही श्यामा हरिद्रा कहते हैं। इसे तंत्र शास्त्र में गणेश-लक्ष्मी का प्रतिरूप माना गया है। श्यामा हरिद्रा को रवि पुष्य या गुरु पुष्य नक्षत्र में लेकर एक लाल कपड़े में रखकर षोडशोपचार विधि से पूजन करने का विधान है। इसके साथ पांच साबुत सुपारियां, अक्षत एवं दूब भी रखने चाहिए। फिर इस सामग्री को पूजन स्थल पर रखकर प्रतिदिन धूप दें। यह पारिवारिक सुख में वृद्धि के साथ ही आर्थिक दृष्टि से भी लाभ देता है।

जानें :-जिनसे आपको हो सकती है परेशानी।

    बहुत से लोग दरवाजे, खिड़कियों में लगे कांच के टूट जाने पर भी उसे बदलवाते नहीं है और टूटे हुए कांच को लगे रहने देते हैं। ऐसे में वास्तुदोष उत्पन्न होता है जो आर्थिक नुकसान का कारण बनता है।

     टूटे हुए आइने को भी कभी घर में नहीं रखना चाहिए। इस बात का भी ध्यान रखना चाहिए कि टूटे हुए आइने में चेहरा नहीं देखें।

     उन्नति और धन संबंधी परेशानियों से बचाव के लिए इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि बंद हुई घड़ी को चालू करलें।
अगर घड़ी खराब हो चुकी है और चलने लायक नहीं है तो उसे घर में यादगार बनाकर न रखें।

    वास्तुविज्ञान के अनुसार घर में भगवान की टूटी हुई मूर्ति भूलकर भी नहीं रखें। भगवान की टूटी हुई मूर्तियों को घर में रखने से घर में नकारात्मक उर्जा का प्रवाह होने लगता है जिससे घर में कई तरह की परेशानियां आने लगती हैं।

      फटी हुई और पुरानी हो चुकी भगवान की तस्वीरों को भी घर में नहीं रखना चाहिए। ऐसी तस्वीरें और मूर्तियों को जल में प्रवाहित कर देना चाहिए।

     वास्तुविज्ञान के अनुसार घर में लोगों के बीच आपसी प्रेम और सद्भाव बनाए रखने के लिए कभी भी कांटे वाले पौधों को जिनमे फूल न निकलते हो घर में नहीं रखना चाहिए। इससे उर्जा का प्रवाह प्रभावित होता है, उन्नति और लाभ में भी बाधा आती है।

     इस बात का भी ध्यान रखें कि जिन पौधों के पत्ते सूख या गल चुके हों उनके गले सूखे पत्तों को तोड़कर घर के बाहर फेंक दें। शयन कक्ष के अंदर कभी भी पौधा नहीं रखना चाहिए।

     वास्तु विज्ञान के अनुसार कूड़ा कबाड़ घर में बिल्कुल भी नहीं रखें। अगर कोई चीज आपके लिए उपयोगी नहीं है, टूट-फूट गई है तो उसे तुरंत ही घर से बाहर कर दें।

     खराब और बेकार की चीजों को घर में सहेज कर रखने से नकरात्मक उर्जा का प्रभाव बढ़ जाता है। इससे स्वास्थ्य और धन संबंधी परेशानियों का सामना करना पड़ता है।

  खराब विद्युत उपकरण जैसे टीवी, कंप्यूटर, फ्रीज और दूसरे जो भी सामान हों उसे खराब होने पर जल्दी ठीक करवा लें। खराब सामान को घर में रखना अपने लिए नुकसान को बुलावा देना है।

    वास्तुविज्ञान के अनुसार कभी भी किसी एक देवी देवता की मूर्ति आमने-सामने नहीं रखनी चाहिए। यानी आपके घर में दो लक्ष्मी माता की मूर्ति या तस्वीर है तो दोनों को एक दूसरे के आमने सामने नहीं रखें।
ऐसा होने से धन आगमन का मार्ग बाधित होता है और खर्च बढ़ जाते हैं। देवी लक्ष्मी ही नहीं इस बात का ख्याल हर देवी देवता के मामले में रखें।