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देसी गाय के दूध के 12 फायदे।


दूध पीना सेहत और खास तौर से हड्ड‍ियों के लिए फायदेमंद होता है, यह बात तो आप जानते हैं, लेकिन भैंस या बकरी का दूध या पैकेट का दूध पीने के बजाए अगर गाय का दूध पिया जाए, तो आप पाएंगे यह अनोखे और बेशकीमती 12 बेहतरीन फायदे...

जरूर जानें वेबदुनिया की यह जानकारी ... 

1 मेलबर्न में हुए एक शोध के अनुसार गाय के दूध को आसानी से ऐसे क्रीम में बदला जा सकता है, जो एड्स से मनुष्य की रक्षा करने में सहायक है। मेलबर्न में गर्भवती गायों पर किए गए अध्ययन में यह बात सामने आई।

2 किसी बच्चे या व्यक्ति के बौद्ध‍िक विकास के लिए गाय का दूध बेहद लाभदायक है, दिमाग के लिए और और दूध इतना फायदेमंद नहीं है जितना गाय का दूध। 

 3 गाय का दूध पाचन के लिए बेहतरीन होता है और इसे पचाने में तंत्र को ज्यादा मेहनत नहीं करनी पड़ती। यह पाचन तंत्र की समस्याओं में काफी लाभदायक है।

4 पुरुषों में शुक्राणुओं की कमी होने पर गाय कर दूध पीना बेहद कारगर उपाय है। गाय का दूध वीर्य का गाढ़ा कर शुक्राणुओं की संख्या में वृद्धि करता है और बल प्रदान करता है।

5  प्रतिदिन गाय के दूध का सेवन करना, टीबी के मरीजों के लिए लाभकारी है। वहीं बुजुर्गों के लिए भी नियमित रात को गाय के दूध का सेवन बल प्रदान करता है।

6  पित्त संबंधी सभी समस्याओं के निवारण के लिए गाय का दूध बेहद फायदेमंद है। यह शरीर को तेज और ओज प्रदान करता है और गैस की समस्याओं से भी निजात दिलाता है।

7 बच्चों में रिकेट्स या सूखा रोग हो जाने पर गाय के दूध का इस्तेमाल बादाम के साथ करने पर यह दवा की तरह कार्य करता है। रक्त कोश‍िकाओं में वृद्ध‍ि करने में यह सहायक है।

8 चेहरे की खूबसूरती को बढ़ाने के लिए गाय के दूध का प्रयोग किया जा सकता है। गाय के कच्चे दूध की चेहरे पर मसाज  करने से त्वचा गोरी, चमकदार और बेदाग होती है।

9 गाय के दूध में पाया जाने वाला पीला पदार्थ कैरोटीन होता है, जो आंखों की रौशनी बढ़ाता है और आंखों की खूबसूरती भी बढ़ाता है। याददाश्त मेमोरी और चमड़ रोगियों के लिए बहुत ही लाभदायक होता है

10 कैंसर, टीवी, हैजा और भी कई गंभीर रोगों से निपटने में गाय का दूध अमृत की तरह कार्य करता है। यह अकेला ही बच्चों को संपूर्ण पोषण देने में सक्षम पदार्थ है।

11 दवाओं और हानिकारक केमिकल्स के कारण शरीर में बनने वाले जहर एवं उसके असर को कम करने में गाय का दूध प्रभावकारी है।

12 इसमें विटामिन ए पर्याप्त मात्रा में पाया जाता है। और इसके प्रयोग से पुराना बुखार, मानसिक रोग, पेट के रोग, हृदय रोग व योनि रोगों में लाभ मिलता है।

विशेष :- शिशु और वृद्ध और रोगी को छोड़कर शास्त्रों के अनुसार आषाढ़ मास और श्रावण मास में दूध का सेवन नहीं करना चाहिए।

श्री व्यास पीठ ।।

   अद्वैत वेदांत की साधन परंपरा में आचार्य अथवा सद्गुरु का अत्यंत महत्वपूर्ण स्थान है। आचार्य शंकर ने केनोपनिषद के भाष्य में कहा है "ब्रह्म आचार्य के बार बार उपदेश द्वारा ही जाना जा सकता है तर्क, प्रवचन' बुद्धि' बहुश्रवण, तप, यश आदि के द्वारा नहीं"। छान्दोग्योपनिषद् के भाव से का वचन और भी दृढ़ है, ब्रह्म केवल शास्त्र तथा आचार्य के उपदेश के द्वारा अवगम्य है। शास्त्राचार्य शब्द आचार्य शंकर की रचनाओं में अनेकों बार समास रूप में प्रयुक्त हुआ है जिन का अभिप्राय यह है कि चरम सत्य (ब्रह्म तत्व) श्रुतियो में निहित है तथा आचार्य अपने अनुभव के आधार पर साधकों को उसकी प्राप्ति के पथ का प्रदर्शन करता है। आचार्य शंकर ने ऐसे आध्यात्मिक गुरु के सद्गुणों का अपने प्रसिद्ध ग्रंथ विवेक चूड़ामणि में इस प्रकार उल्लेख किया है जो श्रोत्रिय हो निष्पाप हो कामनाओं से शून्य हो ब्रह्मावेत्ताओं मैं श्रेष्ठ हो ब्रह्मनिष्ट हो ईधनरहित अग्नि के समान शांत हो अकारण दया सिंधु हो और प्रणत(शरणापन्न)। सज्जनों के बंधु हितैषी शुभचिंतक हो।

          उपनिषदों में गुरु के महत्व पर अत्यधिक बल दिया गया है। कभी-कभी गुरु शिष्य के अधिकार की परीक्षा ले लिया करते थे। इससे यह प्रमाणित नहीं होता कि वे ब्रह्मविद्या पर अपना एकाधिकार समझते थे। केवल अधिकारी को ही में विद्या दान देते थे और यह नितांत उचित भी प्रतीत होता है। ब्रह्मा विद्या के विषय में सच्ची भावना की शर्त लगा देना साधकों की उसकी प्राप्ति से वंचित करना नहीं है बल्कि इसका आशय यही है कि लोग उसकी प्राप्ति के लिए सत्य मार्ग का अवलंबन करें। उपनिषदों के आचार्य किसी भी योग्य अधिकारी को सत्य से वंचित नहीं रखते थे। उपनिषदों के आचार्य अत्यंत विनम्र और उदार प्रतीत होते हैं। वास्तव में ब्रह्म विद्या की महत्ता उन आचार्यों को विनम्र बना देती थी तथा आत्मा श्रेय: शीलता उन्हें उदार बना देती थी।

             गुरु अथवा आचार्य का निष्प्रपंच ब्रह्म के स्वरूप का यथार्थ ज्ञान अपने शिष्य को करना प्रधान कार्य है। वह आध्यारोप और अपवाद विधि से ब्रह्म का उपदेश करता है।आध्यारोप का अर्थ है ब्रह्म में जगत के समस्त पदार्थों का आरोप कर देना और अपवाद का अभिप्राय है आरोपित वस्तुओं में से प्रत्येक का क्रमशः निराकरण कर देना।

               शरीर, अन्नमय, प्राणमय, मनोमय, विज्ञानमय एवं आनंदमय कोशों ने आत्मा को आरोपित कर लिया है। आचार्य अपने अनुभव, ज्ञान युक्ति और तर्क से आत्मा के इन आरोपों का निराकरण कर के शिष्य को निर्गुण निर्विकार असंग अखंड एक और अद्वितीय आत्मा का बोध कराता है वह शिष्य से यह भी बतलाता है कि आत्मा स्थूल सूक्ष्म और कारण शरीरों से सर्वथा अलग है और साक्षी दृष्टा रूप है। वेदांत की यह व्याख्या पद्धति बड़ी प्रमाणिक शुद्ध एवं वैज्ञानिक है। ज्ञान प्राप्ति प्रक्रिया में श्रवण मनन एवं निदिध्यासन का अत्यधिक महत्व अद्वैत सिद्धांत में माना गया है वृहदारण्यकोपनिषद् मे मैत्रेयी को आत्म साक्षात्कार करने के संबंध में याज्ञवल्क्य ने सही शिक्षा दी है। "आत्मा वारे दृष्टियो मन्तव्यो निदिध्यासितव्यो मैत्रियि"। अरे मैत्रियी, आत्मा का श्रवण मनन और निदिध्यासन करना चाहिए।

Nirvana Shatakam मंत्र ।।

Nirvana Shatakam मंत्र (स्तोत्रम) आदि शंकराचार्य द्वारा लिखा गया है ! Nirvana Shatakam सबसे प्रभावी और शक्तिशाली मंत्रों में से एक माना जाता है जिसे आप मन की शांति और मोक्ष प्राप्त करने के लिए जाप कर सकते हैं।

🙏 What is Nirvana Shatakam ?
निंवाना शातकम् को अल्मा षटकम के नाम से भी जाना जाता है! एक भक्तिपूर्ण रचना है जिसमें 6 छंद संस्कृत में है ! श्री आदि शंकराचार्य द्वारा ९वीं शताब्दी के आसपास इसे लिखा गया था ! इस ग्रन्थ का उद्येश शिक्षाओं को बढ़ाना था ! यह हिंदू एसओपीयूआर के रूप में माना जाता है ! इसे पढ़ने से जीवन में सुख और शांति आता है !

🙏 Who is Adi Shankaracharya ?
आदि शंकराचार्य भारत के एक महान धर्मप्रवर्तक थे ! उन्होने बहुत सारे वेड और उपनिसाद लिखे हैं , उनमे से भगवद्गीता, उपनिषदों और वेदांतसूत्रों पर लिखी हुई इनकी रचना बहुत प्रसिद्ध हैं ! उन्होंने सांख्य दर्शन का प्रधानकारणवाद और मीमांसा दर्शन के ज्ञान-कर्मसमुच्चयवाद आदि को रचना किया !

इन्होंने भारतवर्ष में चार कोनों में चार मठों की स्थापना कीये थी जो अभी तक बहुत विश्व प्रसिद्ध और पवित्र माने जाते हैं ! और इन्ही के वजह से संन्यासी ‘शंकराचार्य’ कहे जाते हैं ! वे चारों स्थान ये हैं- (१) ज्योतिष्पीठ बदरिकाश्रम, (२) श्रृंगेरी पीठ, (३) द्वारिका शारदा पीठ और (४) पुरी गोवर्धन पीठ ! इन्हें शंकर के अवतार भी माना जाता हैं !

🙏 Nirvana Shatakam Mantra
मनोबुद्ध्यहंकार चित्तानि नाहं न च श्रोत्रजिह्वे न च घ्राणनेत्रे !
न च व्योमभूमि- र्न तेजो न वायुः चिदानंदरूपः शिवोऽहं शिवोऽहम् !!१!!

न च प्राणसंज्ञो न वै पञ्चवायुः न वा सप्तधातु- र्न वा पञ्चकोशाः!
न वाक्पाणिपादं न चोपस्थपायू चिदानंदरूपः शिवोऽहं शिवोऽहम् !!2 !!

न मे द्वेषरागौ न मे लोभ मोहौ मदो नैव मे नैव मात्सर्यभावः !
न धर्मो न चार्थो न कामो न मोक्षः चिदानंदरूपः शिवोऽहं शिवोऽहम् !! 3 !!

न पुण्यं न पापं न सौख्यं न दुःखम् न मंत्रो न तीर्थ न वेदा न यज्ञाः !
अहं भोजनं नैव भोज्यं न भोक्ता चिदानंदरूपः शिवोऽहं शिवोऽहम् !!4 !!

न मे मृत्युशंका न मे जातिभेदः पिता नैव मे नैव माता न जन्म !
न बन्धुर्न मित्रं गुरुर्नैव शिष्यः चिदानंदरूपः शिवोऽहं शिवोऽहम् !!5 !!

अहं निर्विकल्पो निराकाररूपः विभुर्व्याप्य सर्वत्र सर्वेन्द्रियाणाम् !
सदा मे समत्वं न मुक्तिर्न बन्धः चिदानंदरूपः शिवोऽहं शिवोऽहम् !! 6 !!

🙏 Nirvana Shatakam Mantra in Hindi

• सरल अर्थ : मैं (जीव ) मन, बुद्धि, अहंकार और स्मृति नहीं हूँ (चार प्रकार के अन्तः कारन ) ! मैं कान, नाक और आँख भी नहीं हूँ ! मैं आकाश, भूमि, तेज और वायु भी नहीं हूँ ! मैं शिव हूँ ! शिव से अभिप्राय शुद्ध रूप से है जिसमे कोई मिलावट नहीं है। चेतन शक्ति ही शुभ है !

• सरल अर्थ : मैं प्राण भी नहीं हूँ और ना ही मैं पञ्च प्राणों (प्राण, उदान, अपान, व्यान, समान) में से कोई हूँ, ना मैं सप्त धातुओं (त्वचा, मांस, मेद, रक्त, पेशी, अस्थि, मज्जा) में कोई हूँ। जीव का निर्माण साथ धातुओं से माना जाता है। मैं ना ही पञ्च कोष (अन्नमय, मनोमय, प्राणमय, विज्ञानमय, आनंदमय) में से कोई हूँ , न मैं वाणी, हाथ, पैर हूँ और न मैं जननेंद्रिय या गुदा हूँ, मैं चैतन्य रूप हूँ, आनंद हूँ, शिव हूँ, शिव हूँ। भाव है की जीव अज्ञानता के कारण ही स्वंय को स्थूल रूप से जोड़ लेता है, जैसे की हाथ पैर आदि जो दिखाई देते हैं या नहीं, लेकिन जीव तो शिव ही है जो स्वंय समस्त संसार है।

• सरल अर्थ : मैं राग और द्वेष नहीं हूँ (मैं आसक्ति और विरक्ति में नहीं हूँ ) और नाही मुझमे लोभ और मोह है। न ही मुझमें मद है न ही ईर्ष्या की भावना, न मुझमें धर्म, अर्थ, काम और मोक्ष ही हैं, मैं चैतन्य रूप हूँ, आनंद हूँ, शिव हूँ, शिव हूँ। लगाव या विरक्ति, लोभ आदि चित्त का अशुद्ध रूप है और जीव ऐसा नहीं है। जीव शुद्ध है जो की शिव है।

• सरल अर्थ : न तो पुण्य हूँ (अच्छे कर्म) सद्कर्म हूँ, न ही मैं पापम (बुरे कर्म) हूँ। मैं सुख और दुःख दोनों ही नहीं हूँ नो की अज्ञान के कारन उत्पन्न होते हैं। ना मैं मन्त्र हूँ, न तीर्थ, ना वेद और ना यज्ञ हूँ। मैं ना भोजन हूँ, ना खाया जाने वाला हूँ और ना खाने वाला ही हूँ। मैं चैतन्य रूप हूँ, आनंद हूँ और शिव हूँ।

• सरल अर्थ : ना मुझे मृत्यु का भय है (मृत्यु का भी अज्ञान का सूचक है), ना मुझमें जाति का कोई भेद है (अद्वैत की भावना नहीं है), ना मेरा कोई पिता ही है, न कोई माता ही है (मेरा अस्तित्व और उत्पत्ति भी निश्चित नहीं है जिसे आकार रूप में पहचाना जा सके ), ना मेरा जन्म हुआ है, ना मेरा कोई भाई है (जन्म मरण से मैं मुक्त हूँ और मेरा कोई सबंधी नहीं है ) ना कोई मेरा मित्र है और ना ही मेरा कोई गुरु है। मेरा कोई शिष्य भी नहीं है। मैं चैतन्य रूप हूँ, आनंद हूँ और मैं शिव हूँ

• सरल अर्थ : आत्मा क्या नहीं है यह समझाने के उपरांत आदि शंकराचार्य जी अब बता रहे हैं की आत्मा वास्तव मैं है क्या। मुझमे कोई संदेह नहीं है और मैं सभी संदेहों से ऊपर हूँ। मेरा कोई आकार भी नहीं है। मैं हर अवस्था में सम रहने वाला हूँ। मैं तो सभी इन्द्रियों को व्याप्त करके स्थित हूँ, मैं सदैव समता में स्थित हूँ। मैं किसी बंधन में नहीं हूँ और नांहि किसी मुक्ति में ही हूँ। मैं आनंद हूँ, शिव हूँ।

🙏 Nirvana Shatakam Benefits
ऐसे तो इस ग्रंथ को पढने का बहुत सारे लाभ है , लेकिन कुछ महत्वपूर्ण लाभ मै इस आर्टिकल में आपके साथ शेयर करने बाला हूँ ! ये निर्वाण शातकम बहुत ही लाभकारी होता है इसे हर व्यक्ति को पढ़ना चाहिए !

चाहे वह शारीरिक हो या मानसिक ! मैं शिव हूँ ! इस मंत्र स्वयं पाठक को सांसारिक मोह माया को त्यागने और एक न्यूनतम जीवन शैली अपनाने के लिए प्रोत्साहित करता है !
दिन में एक बार निर्वाण शातकम का पढने या सुनने से आपके आस-पास सकारात्मक बातावरण पैदा कर सकता है और चेतना की भावना पैदा कर सकता है !
आज की व्यस्त जीवन शैली में, तनाव और क्रोध जैसी भावनाओं और मानसिक ट्रिगर्स से आसानी से दूर किया जा सकता है ! ताकि ये कंपन आपको शांत रहने में मदद करते हैं।
यह आपका चिंता और तनाव को दूर करता हैं,
इसको पढने से हमारा मानसिक तनाव दूर होत्ता ! और हमारा स्वास्थ ठीक रहता हाई !
इस ग्रन्थ को पढने से नकारात्मक सोच दूर हो जाता है !

More information related to Ekadashi.

Parana means breaking the fast. Ekadashi Parana is done after sunrise on next day of Ekadashi fast. It is necessary to do Parana within Dwadashi Tithi unless Dwadashi is over before sunrise. Not doing Parana within Dwadashi is similar to an offence. 

Parana should not be done during Hari Vasara. One should wait for Hari Vasara to get over before breaking the fast. Hari Vasara is first one fourth duration of Dwadashi Tithi. The most preferred time to break the fast is Pratahkal. One should avoid breaking the fast during Madhyahna. If due to some reasons one is not able to break the fast during Pratahkal then one should do it after Madhyahna. 

At times Ekadashi fasting is suggested on two consecutive days. It is advised that Smartha with family should observe fasting on first day only. The alternate Ekadashi fasting, which is the second one, is suggested for Sanyasis, widows and for those who want Moksha. When alternate Ekadashi fasting is suggested for Smartha it coincides with Vaishnava Ekadashi fasting day. 

Ekadashi fasting on both days is suggested for staunch devotees who seek for love and affection of Lord Vishnu.

#Ekadashi

प्रभु श्री कृष्ण ने कहा कि मैं मंत्रों में गायत्री हूं। अतः बस अब कुछ कहने की जरूरत नहीं।

       जीवन में मृत्यु अनिवार्य है दुख सुख अनिवार्य है रोग अनिवार्य है वृद्धावस्था अनिवार्य है कर्म अनिवार्य है इत्यादि इत्यादि। यही नियति है एवं हमें इसे स्वीकार करना चाहिए इससे लड़ने की कोशिश नहीं करनी चाहिए। यह जीवन की संहिता है एवं इसके नियम अपरिवर्तनीय है। बहुत कुछ अनिवार्य है ठीक इसी प्रकार गायत्री साधना सभी के लिए अनिवार्य है इससे बचने की कोशिश मत करना। लोग नाना प्रकार के ग्रंथों को पढ़ रहे हैं हैं इन सब के बारे में तर्क, कुतर्क, अनुसंधान, चर्चा, अन्वेषण, भाषण, चिंतन, मनन, महिमामंडन प्रशंसा मीन-मेक इत्यादि कर रहे। यह पूरी तरह से ऊर्जा की बर्बादी है क्योंकि परिवर्तन इन सब में शुन्य हैं। तीर्थ यात्राओं पर जा रहे हैं उपवास रख रहे हैं सत्संग कर रहे हैं इत्यादि इत्यादि फिर भी जीवन के अंतिम क्षण तक परिवर्तन शून्य है इसलिए मैं कहता हूं साधना करो यही एकमात्र विधान है जिससे कि तुम्हारे अंदर संपूर्ण परिवर्तन अवश्यंभावी है। सतत साधना करो काल की प्रवाह मत करो सफलता असफलता के पीछे मत दौड़ो सिर्फ साधना के पथ पर डटे रहो बिना साधना के परिवर्तन असंभव है। अन्यथा जैसे जन्म लिया वैसे ही मर जाओगे कुछ नहीं होगा।

     गायत्री आदि गुरु मंत्र है। ब्राह्मणत्व इस सृष्टि का सबसे आलौकिक तत्व है, ब्राह्मणत्वन इस सृष्टि का प्रभावी ज्ञान है ब्राह्मणत्व इस सृष्टि का महा आनंद है।

      ब्रह्म तत्व की प्राप्ति जीवन का सोपान है। सिद्धि की प्राप्ति विद्या की प्राप्ति या अन्य भौतिक देवीय प्राप्तिओं से बढ़कर एक मात्र प्राप्ति है ब्रह्मत्व की प्राप्ति। ब्राह्मत्व इस सिद्धि में ठेकेदारी की प्रथा से सर्वथा मुक्त है। कोई भी ब्रह्मत्व की प्राप्ति कर सकता है इतिहास इसका गवाह है। ब्रह्मत्व के माध्यम से ही ब्रह्म विद्या का आगम होता है और सृष्टि आप पर फूलों की बरसात करती है। जिसके ऊपर फूलों की बरसात अस्तित्व करता है उसे ही ओशो कहा जाता है ओशो शब्द का यही तात्पर्य है।

       मैंने अपने जीवन में साधकों को धड़ धड़ शिखर के तरफ चढ़ते हुए देखा है बस कुछ कदम दूर ही मंजिल रह गई थी फिर धड़ धड़ की आवाज से उन्हें नीचे लुढ़कते देखा है। जब वह इतनी ऊंचाई से नीचे गिरते हैं तो फिर इतने टूट फूट जाते हैं कि फिर ऊपर शिखर तक वह चढ़ने के बारे में सोच भी नहीं सकते। बड़ी विडंबना है 90% साधकों का यही हाल है इसके लिए वे स्वयं जिम्मेदार हैं। अगर नीव मजबूत नहीं है पांव मजबूत नहीं है दमखम नहीं है तो फिर क्यों ना फिसलन हो। गायत्री मंत्र ब्रह्मत्व की प्राप्ति में लगे प्रत्येक साधक के लिए अत्यंत आवश्यक है एवं इसी पर आगे चढ़कर बुलंद इमारत का निर्माण होगा साधना करो साधना करो।

        स्वागत है आपका संसार के सबसे बदनाम मार्ग में अर्थात अध्यात्म के मार्ग में। यह मार्ग तो अनंत काल से देह व्यापार से भी ज्यादा बदनाम है। वैसे मेरी नजरों में देह व्यापार ना बदनाम है और ना ही नामवान है। जो है सो है यह निर्विकार चिंतन है। इस मार्ग को कुछ इस मार्ग में चलने वालो मे कुछ इससे डरने वालों में कुछ इससे घबराने वालों में कुछ अपना अस्तित्व बचाने वालों में इससे बदनाम किया इससे बदनाम करने की कोशिश होती है षड्यंत्र होते हैं इससे बदनाम रखने की मजबूरी है इत्यादि इत्यादि। अगर ऐसा ना होता तो ब्रह्मा नारद को श्राप ना देते दधीचि को अपने प्राण नाथ त्यागने पड़ते इंद्र की गद्दी बार-बार नहीं मिलती इंद्र तो इसे बदनाम करने का ही कार्य करते हैं कामदेव को शिव पर तीर नहीं चलाना पड़ता विश्वामित्र के जीवन में इंद्र को मेनका नहीं भेजनी पड़ती शंकराचार्य को जहर नहीं पीना पड़ता महावीर के पैरों में और कानों में कील नहीं ठोंकी गई होती। प्रभु हनुमान को रावण वानर नहीं कहता प्रभु श्री राम को रावण मनुष्य नहीं कहता कृष्ण को बार-बार ग्वाला कहकर अपमानित नहीं किया जाता कालिदास को श्रीलंका में शरण नहीं लेनी पड़ती ओशो को हथकड़ी बांधकर दुनियाभर में नहीं घुमाया गया होता अमेरिका में जे कृष्णमूर्ति को 12 साल के लिए नजरबंद नहीं किया होता इत्यादि इत्यादि और इन सबसे बढ़कर मीरा को जहर का प्याला नहीं पीना पड़ता। स्वागत है आपका दुनिया का सबसे बदनाम सबसे हेय दृष्टि से देखे जाने वाले सबसे ज्यादा हंसी का पात्र बनने वाले अध्यात्म के मार्ग में। है तुम में दमखम अब दो रास्ते बचते हैं या तो साधना करो या फिर दुनिया की सड़ी गली भीड़ में गुम हो जाओ तुम्हारी मर्जी।
                           
शिव शासनत:शिव शासनत: