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सारे जहाँ से अच्छा ...

सारे जहाँ से अच्छा, औपचारिक रूप से "तराना-ए-हिंदी" (हिन्दुस्तान के लोगों का गान) के रूप में जाना जाता है, उर्दू कविता की ग़ज़ल शैली में कवि मुहम्मद इकबाल द्वारा लिखे गए बच्चों के लिए एक उर्दू भाषा का देशभक्ति गीत है। यह कविता 16 अगस्त 1904 को साप्ताहिक पत्रिका इत्तेहाद में प्रकाशित हुई थी।

इकबाल द्वारा सार्वजनिक रूप से अगले वर्ष गवर्नमेंट कॉलेज, लाहौर, ब्रिटिश भारत (अब पाकिस्तान में) में गाया गया, यह तुरंत ब्रिटिश राज के विरोध का एक गान बन गया। यह गीत, हिंदुस्तान के लिए है - वह भूमि जिसमें वर्तमान बांग्लादेश, भारत और पाकिस्तान सम्मिलित हैं।


1910 में, मुहम्मद इकबाल ने मुस्लिम बच्चों के लिए एक गीत लिखा, "तराना-ए-मिल्ली" (मज़हबी समुदाय का गान), जिसे "सारे जहां से अच्छा" के रूप में एक ही छंद और तुकबंदी योजना में बनाया गया था।

तराना-ए-मिल्ली (1910) का पहला छंद पढ़ता है -

चीन ओ अरब हमारा, हिंदुस्तान हमारा
मुस्लिम हैं हम, वतन है सारा जहां हमारा

अर्थ -
मध्य एशिया और अरब हमारा है,
हिन्दुस्तान हमारा है
हम मुस्लिम हैं, सारा संसार हमारा है

इकबाल के समय में मध्य एशिया को चीन कहा जाता था

पारद शिवलिंग और शालग्राम पूजन का विशेष महत्त्व क्यों?

पारद शम्भु-बीज है। अर्थात् पारद (पारा) की उत्पत्ति महादेव शंकर के वीर्य से हुई मानी जाती है। इसलिए शास्त्रकारों ने उसे साक्षात् शिव माना है और पारदलिंग का सबसे अधिक महत्त्व बताकर इसे दिव्य बताया है। शुद्ध पारद संस्कार द्वारा बंधन करके जिस देवी-देवता की प्रतिमा बनाई जाती है, वह स्वयं सिद्ध होती है। वागभट्ट के मतानुसार, जो पारद शिवलिंग का भक्ति सहित पूजन करता है, उसे तीनों लोकों में स्थित शिवलिंगों के पूजन का फल मिलता है। पारदलिंग का दर्शन महापुण्य दाता है। इसके दर्शन से सैकड़ों अश्वमेध यज्ञों के करने से प्राप्त फल की प्राप्ति होती है, करोड़ों गोदान करने एवं हजारों स्वर्ण मुद्राओं के दान करने का फल मिलता है। जिस घर में पारद शिवलिंग का नियमित पूजन होता है, वहां सभी प्रकार के लौकिक और पारलौकिक सुखों की प्राप्ति होती है। किसी भी प्रकार की कमी उस घर में नहीं होती, क्योंकि वहां ऋद्धि-सिद्धि और लक्ष्मी का वास होता है। साक्षात् भगवान् शंकर का वास भी होता है। इसके अलावा वहां का वास्तुदोष भी समाप्त हो जाता है। प्रत्येक सोमवार को पारद शिवलिंग पर अभिषेक करने पर तांत्रिक प्रयोग नष्ट हो जाता है।

शिव महापुराण में शिवजी का कथन है-

लिंगकोटिसहस्रस्य यत्फलं सम्यगर्चनात् । 
तत्फलं कोटिगुणितं रसलिंगार्चनाद्भवेत ॥ 
ब्रह्महत्या सहस्राणि गौहत्यायाः शतानि च। 
तत्क्षणद्विलयं यांति रसलिंगस्य दर्शनात् ॥ 
स्पर्शनात्प्राप्यत मुक्तिरिति सत्यं शिवोदितम् ॥

अर्थात् करोड़ों शिवलिंगों के पूजन से जो फल प्राप्त होता है, उससे भी करोड़ गुना फल पारद शिवलिंग की पूजा और दर्शन से प्राप्त होता है। पारद शिवलिंग के स्पर्श मात्र से मुक्ति प्राप्त होती है।

शालग्राम

नेपाल में गंडकी नदी के तल में पाए जाने वाले काले रंग के चिकने अंडाकार पत्थर, जिनमें एक छिद्र होता है और पत्थर के अंदर शंख, चक्र, गदा या पद्म खुदे होते हैं तथा कुछ पत्थरों पर सफेद रंग की गोल धारियां चक्र के समान पड़ी होती हैं, इनको शालग्राम कहा जाता है।

शालग्राम रूपी पत्थर की काली बटिया विष्णु के रूप में पूजी जाती है। शालग्राम को एक विलक्षण मूल्यवान पत्थर माना गया है, जिसका वैष्णवजन बड़ा सम्मान करते हैं। पुराणों में तो यहां तक कहा गया है कि जिस घर में शालग्राम न हो, वह घर नहीं, श्मशान के समान है। पद्मपुराण के अनुसार जिस घर में शालग्राम शिला विराजमान रहा करती है, वह घर समस्त तीयों से भी श्रेष्ठ होता है। इसके दर्शन मात्र से ब्रह्महत्या दोष से शुद्ध होकर अंत में मुक्ति प्राप्त होती है। पूजन करने वालों को समस्त भोगों का सुख मिलता है। शालग्राम को समस्त ब्रह्मांडभूत नारायण (विष्णु) का प्रतीक माना जाता है। भगवान् शिव ने स्कंदपुराण के कार्तिक महात्म्य में शालग्राम का महत्त्व वर्णित किया है। प्रति वर्ष कार्तिक मास की द्वादशी को महिलाएं तुलसी और शालग्राम का विवाह कराती हैं और नए कपड़े, जनेऊ आदि अर्पित करती हैं। हिंदू परिवारों में इस विवाह के बाद ही विवाहोत्सव शुरू हो जाते हैं।

ब्रह्मवैवर्तपुराण के प्रकृतिखंड अध्याय 21 में उल्लेख मिलता है कि जहां शालग्राम की शिला रहती है, वहां भगवान् श्री हरि विराजते हैं और वहीं संपूर्ण तीर्थों को साथ लेकर भगवती लक्ष्मी भी निवास करती हैं। शालग्राम शिला की पूजा करने से ब्रह्महत्या आदि जितने पाप हैं, वे सब नष्ट हो जाते हैं। छत्राकार शालग्राम राज्य देने की तथा वर्तुलाकार में प्रचुर संपत्ति देने की योग्यता है। विकृत, फटे हुए, शूल के नोक के समान, शकट के आकार के, पीलापन लिए हुए, भग्नचक्र वाले शालग्राम दुख, दखिता, व्याधि, हानि के कारण बनते हैं। अतः इन्हें घर में नहीं रखना चाहिए।

पुराण में यह भी कहा गया है कि शालग्राम शिला का जल जो अपने ऊपर छिड़कता है, वह समस्त यज्ञों और संपूर्ण तीथों में स्नान कर चुकने का फल पा लेता है। शिला की उपासना करने से चारों वेद के पढ़ने तथा तपस्या करने का पुण्य मिलता है। जो निरंतर शालग्राम शिला के जल से अभिषेक करता है, वह संपूर्ण दान के पुण्य तथा पृथ्वी की प्रदक्षिणा के उत्तम फल का अधिकारी बन जाता है। इसमें संदेह नहीं कि शालग्राम के जल का निरंतर पान करने वाला पुरुष देवाभिलषित प्रसाद पाता है। उसे जन्म, मृत्यु और जरा से छुटकारा मिल जाता है। मृत्युकाल में इसका जलपान करने वाला समस्त पापों से मुक्त होकर विष्णुलोक को चला जाता है। शालग्राम पर चढ़े तुलसी पत्र को दूर करने वाले का दूसरे जन्म में स्त्री साथ नहीं देती। शालग्राम, तुलसी और शंख इन तीनों को जो व्यक्ति सुरक्षित रूप से रखता है, उससे भगवान् श्री हरि बहुत प्रेम करते हैं।

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महाँकाल भैरव साधना ।।


यह रक्षा कारक साधना है, जिन्हें दुसरों से धोखे अगर बार बार मिलते हों,अनजाना भय लगता हो, शत्रु हैरान या बदनामी करते हों, उनके लिए ये रामबाण साधना है। ये किसी भी रविवार या अष्टमी की रात्रि में कर सकते हैं।

संकल्प लेकर गुरुदेव, गणपति को प्रणाम करें भैरवजी के यंत्र या चित्र के सामने स्नान करके रात्रि 9 बजे काले या लाल आसन पर दक्षिण दिशा की तरफ मुख करके बैठ जाएं।

अपने सामने काले वस्त्र पर सूखा नारियल , एक कपूर के टुकड़े , 11 लौंग 11 इलायची थोड़ा लोबान या धूप रखें। 
सरसों के तेल का दीपक जलाएं। हाथ में नारियल लेकर अपनी मनोकामना बोलें। 
नारियल परसिंदूर,अक्षत,काले तिल लाल पुष्प, थोड़ा गुड़ या जलेबी अर्पित करें।

दक्षिण दिशा की ओर देखकर इस मन्त्र का 108 बार जप हकीक या रुद्राक्ष से करें।

मंत्र:- 
"ॐ भ्रां भ्रीं भ्रूं भ्रः! ह्रां ह्रीं ह्रूं ह्रः!ख्रां ख्रीं ख्रूं ख्रः!घ्रां घ्रीं घ्रूं घ्र:! म्रां म्रीं म्रूं म्र:! म्रों म्रों म्रों म्रों! क्लों क्लों क्लों क्लों!श्रों श्रों श्रों श्रों! ज्रों ज्रों ज्रों ज्रों। हूँ हूँ हूँ हूँ। हूँ हूँ हूँ हूँ फट सर्वतो रक्ष रक्ष रक्ष रक्ष भैरव नाथ हूँ फट।"

जप के बाद क्षमा प्रार्थना करें, अपनी इच्छा पूर्ण होने का अनुरोध करें। गुरु महाकाल,
भोग गुड़ या जलेबी को घर के बाहर कुत्ते के लिए रख दें,फिर इस बाकी सामान को उसी रात्रि या अगले दिन काले कपडे़ में बांधकर भैरव मंदिर में चढ़ा दें या फिर जल में प्रवाहित कर दें या सुनसान जगह पर छोड़ दें।

      ।।जय श्री महाकाल।।

मंगलवार को हनुमानजी का दिन होता है। जिसे हनुमान जी का आशीर्वाद मिल गया तो समझो उसके सारे काम हो गए। मंगलवार को करें यह टोटके/उपाय, बन जाएगा बिगड़ा काम ।।

मंगलवार के टोटके / उपाय

1. आप मंगलवार के दिन राम मंदिर में जाएं और दाहिने हाथ के अंगुठे से हनुमान जी के सिर से सिंदूर लेकर सीता माता श्री चरणों में लगा दें इससे आपकी हर मनोकामना पूरी हो जाएगा।

2. मंगल के दिन सुबह के दिन एक धागे में चार मिर्चें नीचे डालकर उसके ऊपर नींबू डालें और फिर उसके ऊपर तीन मिर्चें और लगाए। इसके बद इसे घर और व्यवसाय के दरवाजे पर लटका दें। इससे नकारात्मकता खत्म हो जाएगी और सकारात्मकता का संचार होगा।

3. मंगलवार के दिन पीपल के 11 पत्ते लेकर साफ जल से धो लें। इन पत्तों पर चंदन या कुमकुम से प्रभु श्रीराम का नाम लिखें। इसके बाद हनुमान जी के मंदिर में जाकर इन पत्तों को अर्पित कर दें। इससे जीवन के दुख कम होंगे।

4. प्रत्येक मंगलवार को नजदीकी मंदिर में जाकर हनुमान जी को बनारसी पान अर्पित करें। ऐसा करने से आपके जीवन में हमेशा हनुमान जी की कृपा बनी रहेगी और आपके सभी काम बनते रहेंगे।

5. मंगलवार को सुबह लाल गाय को रोटी देना शुभ है।

6. मंगलवार को हनुमान मंदिर या गणेश मंदिर में नारियल रखना अच्छा माना जाता है।

7. मिटटी के बर्तन में हनुमान जी को बूंदी का भोग लगाये , फिर गरीबो को दान कर दे

8. मंगलवार को हनुमान मंदिर में तुलसी का पत्ता चढ़ाए

9. राम लिखी लाल रंग की ध्वजा मंगलवार को हनुमान जी को चढ़ाए

10. मंगलवार के दिन लाल चंदन,लाल गुलाब के फूल तथा रोली को लाल कपड़े में बांधकर एक सप्ताह के लिए मंदिर में रख दें. एक सप्ताह के बाद उनको घर की तथा दुकान की तिजोरि में रख दें

11. प्रत्येक मंगलवार को बच्चे के सिर पर से कच्चा दूध 11 बार वार कर किसी जंगली कुत्ते को शाम के समय पिला दें

12. सुबह सूरज उगने के समय एक गुड का डला लेकर किसी चौराहे पर जाकर दक्षिण की ओर मुंह करके खडे हो जांय ! गुड को अपने दांतों से दो हिस्सों में काट दीजिए ! गुड के दोनो हिस्सों को वहीं चौराहे पर फेंक दें और वापिस आ जांय

13. लगातार आठ मंगलवार हनुमान जी के मंदिर एक नारियल ले कर जाये उसके सिंदूर से स्वस्तिक बनाये हनुमान जी को अर्पित कर वहां बैठ कर ऋणमोचक मंगल स्तोत्र का पाठ करे

14. मंगलवार के दिन एक साबुत पानी वाला नारियल लेकर उसे बीमार व्यक्ति के सिर पर से 21 बार उसार कर किसी मंदिर की आग में डाल दें। साथ ही हनुमानजी की प्रतिमा को चोला चढ़ाकर हनुमान चालिसा पढ़े।

शास्त्रों के अनुसार कमाई का कितना हिस्सा दान करना चाहिए और दिया दान कब नष्ट हो जाता है?

हिन्दू धर्म के साथ-साथ कई अन्य धर्मों में भी दान करने की बात कही गयी है। दान देने से आपमें विनम्रता बनी रहती है और कई तरह धार्मिक लाभ भी मिलते हैं। दान के कई प्रकार होते हैं। गीता में तीन प्रकार के दान की बात कही गई है, 
दान करना पुण्य का काम है और यह व्यक्ति के व्यक्तित्व को बेहतर बनाता है।
ऋग्वेद के अनुसार, दान करने का फल यज्ञ करने के फल के समान होता है। 
धर्मशास्त्रों में कहा गया है कि हर व्यक्ति को अपनी आय का दस प्रतिशत, जिसे 'दशांश' कहा जाता है, दान करना चाहिए ।
भगवद गीता में दान को तीन प्रकारों में विभाजित किया गया है: सात्विक, राजसिक और तामसिक।

 दान देने का मन में पश्चाताप या अश्रद्धा होने पर वह दान नष्ट हो जाता है। 

 यज्ञ करने के बाद जिस फल की प्राप्ति होती है, वही फल किसी को दान करने से भी मिलता है। हिंदू धार्मिक ग्रंथों में भी दान का विशेष महत्व बताया गया है लेकिन साथ में कुछ नियम भी बताये गए हैं। उन्हीं नियमों में इस बात की भी व्याख्या है कि आपको अपनी कमाई का कितना प्रतिशत हिस्सा जरूर दान करना चाहिए। 

 दस प्रतिशत हिस्सा जरूर दान दें 

 धर्मशास्त्रों में कहा गया है कि हर व्यक्ति को अपनी आय का दस प्रतिशत जरूर दान करना चाहिए । इसे "दशांश" या "दशवंध" कहा जाता है। हिन्दू धर्म के अलावा यहूदी, ईसाई और इस्लामी धर्मों में भी दान देने की सलाह दी गयी है और इसे धार्मिक और नैतिक कर्तव्य माना जाता है। शास्त्रों की मानें, तो हर व्यक्ति को अपनी समर्थता और परिस्थिति के अनुसार दान करना चाहिए। यदि किसी की आय अधिक है और वह अधिक दान करने में सक्षम है, तो उसे अधिक दान करना चाहिए। दान से समाज में संतुलन और समृद्धि बनी रहती है। 

 दान देने के नियम 

भगवद गीता में दान को तीन प्रकारों में विभाजित किया गया है। पहला दान है सात्विक दान , जो बिना किसी अपेक्षा के और सही स्थान और समय पर किया जाता है। दूसरा दान है राजसिक दान, जो फल की अपेक्षा के साथ और किसी अन्य स्वार्थ के लिए किया जाता है। तीसरा है तामसिक दान , जो अनुचित स्थान, समय और व्यक्ति को किया जाता है। दान हमेशा सत्पात्र अर्थात् दान लेने हेतु योग्य व्यक्ति को ही दिया जाना चाहिए और ऋण लेकर कभी भी दान नहीं दिया जाना चाहिए । दान कभी भी अपनों को दुखी या प्रताड़ित करके भी नहीं दिया जाना चाहिए। दान को लेकर यह भी कहा जाता है कि अपने संकट काल के लिए संरक्षित धन यानि सेविंग का कभी भी दान नहीं दिया जाना चाहिए। 

 कब दिया दान नष्ट हो जाता है? 

दान देने से आपके मन के भाव में सकारात्मकता आती है। इसलिए अगर दान देने के बाद दान दाता के मन में पश्चाताप आ जाए या उसे दान देने का अफसोस हो, तो वो दान नष्ट हो जाता है। जो दान अश्रद्धापूर्वक या किसी गलत भाव के साथ दिया जाए, तो वह भी नष्ट हो जाता है। जो भयपूर्वक दिया जाता है। वह भी नष्ट हो जाता है। ऐसा दान जो स्वार्थ पूर्वक अर्थात् दान देने वाले से बदले में कुछ अपेक्षा रखकर दिया जाता है, तो वो भी नष्ट हो जाता है।