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कृषक बंधुओ को समर्पित ।।

भारतीय संस्कृति में नक्षत्रों का अपना महत्व है। इनमे भी रोहिणी नक्षत्र पर कई विद्वानों,कवियों ने वर्षा संबंधी दोहे,कहावतो पर कृषि से संबंधित बाते बताई। मालवा क्षेत्र के किसानों से कई रोचक तथ्य सुनने को मिले। जो आज भी गांव - चौपालों, हथाई - ओटलों पर किसान चर्चा करते मिल जायेंगे। वर्षा की भविष्यवाणी का प्रचलन प्राचीनकाल से ही रहा है। प्रत्येक वर्ष जेठ सुदी 8,9,10,11 तिथियों पर वायु किस दिशा में बह रही है। यदि मृदु और स्निग्ध हो और बादलों को रोकने वाली हो,तो उत्तम वर्षा होती है। यदि इन तिथियों में बिजली चमके,धूलभरी आंधियाँ चले और बूंदाबांदी हो ,तो वर्षाकाल में उत्तम वृष्टि होती है।नौ तपा 25 मई से 3 तक था।इससे वर्षा और खेती - किसानी और फसल का पूर्वानुमान लगा लेते है। मालवा में कहावत है कि नौ तपा यानी रोहिणी नक्षत्र गल जाय यानी इसमें पानी की एक बूंद भी गिर जाय तो फसलों में नुक्सान की संभावना बन जाती है। जेठ महीने में पानी बोणी के पूर्व गिरता है तो उसे जेठी डूंगला कहते है। कहते है कि यह आलसी किसानों को जगा रहा है। कहते हैं कि रोहिणी में खूब गर्मी पड़नी चाहिए। यदि रोहिणी में पानी की बूंद भी नही गिरती तो फसल अच्छी होती है। बोनी अच्छी मंड जाती। *किसान चुक्यों बोणी और दाडक्यों चुक्यों लावणी*। यानी किसान समय पर बोणी और मजदूर दाड़की चूक जाता है तो साल भर उसे भूखे मरने की नौबत आ जाती है। रोहिणी नक्षत्र के बारे में हमारे पूर्वजों ने कई अनुमान लगाये थे और वर्षा की भविष्यवाणी भी की। नौ दिन रोहिणी खूब तपती और इसमें पानी नहीं आता तो फसल अच्छी होने के संकेत है। यदि इसमें छींटे - छांटे भी पड़ जाय तो बोणी में रोणा (फजीहत) नही होती। जेठ माह में जब सूर्य रोहिणी नक्षत्र में प्रवेश करता है तब नौ तपा (रोहिणी) लग जाती है। प्रकृतिनुसार नौ तपा क्यों जरूरी है, नौ तपा यदि न तपे तो क्या होगा। 9 दिनों तक लू और सूर्य की गर्मी से धरती तपने लगती है। लू खेती के लिए जरूरी है।                
" दो मसा दो कातरा,दो तीडी दो ताव।                         
दो की बादी जल हरै, दो विश्वर दो वाव "।                

यदि नौ तपा के पहले दो दिन लू न चली तो चूहे बहुत बढ़ेंगे। अगले दो दिन लू न चली तो कातरा (फसल) को हानि पहुँचाने वाले कीट नष्ट नहीं होंगे। तीसरे दिन से दो दिन लू न चली तो टिड्डियों (तांतियाँ) के अंडे नष्ट नहीं होंगे। चौथे दिन से दो दिन नही तपा तो बुखार लाने वाले जीवाणु नहीं मरेंगे। इसके बाद दो दिन तक लू न चली तो विश्वर यानी साँप - बिच्छू नियंत्रण से बाहर हो जायेंगे। आखिरी दो दिन भी लू नही चली तो आंधियाँ अधिक चलेगी। फैसले चौपट कर देगी। जेठ महिने के शुक्लपक्ष में आर्द्रा से नौ नक्षत्रों में वर्षा कैसी होगी इसका अर्थ लगाया जाता है। यदि नौ दिन में आकाश में बादल छाये,तो श्रेष्ठ वर्षा होगी। वायु परीक्षण आषाढ़ सुदी पूर्णिमा को करना चाहिए। इस दिन शाम को गणेश पूजनकर सूर्यास्त समय ऊँचे स्थान पर खड़े हो हवा का रुख देखने हेतु झंडी फहराई जाती है। इस दिन पूर्वी वायु चले,तो उत्तम वर्षा,आग्नेय कोण में चले,तो अग्नि का भय तथा कम वर्षा के योग है। वायव्य कोण में चले, तो अल्पवर्षा तथा ईशान कोण में चले,तो उत्तम वर्षा होती है।यदि चारों दिशाओं में हवा एक - दूसरे को काटती हुए चले तो खण्डवृष्टि समझना चाहिये। वर्षा अनुमान की अन्य विधियाँ भी प्रचलित है, इनमे किसी देश, स्थान, मनुष्य,पशु - पक्षी और भौतिक वस्तुओं के द्वारा भी वर्षा ज्ञान किया जाता है। कवि घाघ और भडुरी की कहावते प्रचलित है :-            
जै दिन जैठ बहै पुरवाई         
तै दिन सावन धूरि उड़ाई।।      
यानी जितने दिन जेठ महिने में पूर्वी हवा चलेगी,उतने दिन तक सावन में धूल उड़ेगी अर्थात पानी नहीं पड़ेगा।                                    
अंबाझोर चले पुरवाई।            
तब जानौ बरखा ऋतुआई।। 
जब पूर्वी हवा इतनी जोर से चले कि आम के वृक्षों को भी झकझोर दे,तो समझे वर्षा ऋतु पास ही आ गई है 

शुक्रवार री बादरी रहे शनी चर छाय ,,
तो यौ भाखे भडुरी बिन बरसे ना जाय।।       
यानी शुक्रवार को बादली छाये और शनिवार को भी छाई रहे, तो वह बिना बरसे नही जाती,यानी पानी आता

करिया बादर जिउ डरावइ 
भूरा बादर पानी आवइ।।          
यानी काला बादल केवल डरावना होता है जबकि भूरा बादल पानी बरसाने वालाहै। 

 कल से पानी गरम हो चिड़ियाँ न्हावै धूर।
अंडा ले चींटी चलै,तो बरखा भरपूर।     
यानी घड़े में रखा पानी गरम मालूम पड़े और चिड़ियाँ धुल में नहाने लगे तथा चीटियाँ अंडे लेकर चल पड़े तो अच्छी वर्षा होगी

जेठ मास जो तपै निरासा। 
तो जानौ बरखा के आसा।।   
यानी जेठ का महीना इतना तपै कि उसमे मनुष्य निराश होने लगे तो अच्छी वर्षा होगी।                                     
धनुष पड़ै बंगाली। मेह सांझि या काली।।                   
यानी बंगाल की ओर (पूर्व की और) दिशा की और इंद्र धनुष निकले तो तो यह समझना चाहिये कि सांझ - सबेरे में ही वर्षा होगी।             

ढेले ऊपर चील जो बोले। गली - गली में पानी डोले।।
यानी यदि चील खेत में ढेले ऊपर बैठकर बोले तो समझे कि इतनी बरसात होगी कि खाल - खोदरे, छापरे और गली कूंचे तक पानी से भर जायेंगे।                                 
पूरब धनुही पच्छिम भान घाघा कहै बरखा नियरान।।       
अर्थात पूर्व दिशा में इंद्र धनुष दिखाई दे और उसी समय सूर्य पश्चिम में चले गए हो अथवा संध्या के समय इंद्र धनुष पड़े तो यह समझना चाहिए कि वर्षा समीप ही है।                         
इस प्रकार घाघ भडुरी कई वर्षा,मौसम, बोणी,फसल,पशु - पक्षी, बादल आदि पर कई कहावतें लिखी है।                      
इसके अलावा हमारे पूर्वजों के पास वर्षा संबंधी प्राकृतिक पेड़ - पौधो,पशु पक्षी से संबंधी जानकारी भी थी जो सटीक पूर्वानुमान थे।      
जैसे :- जब तक बैल और बौर में कोंपल(पत्ते) नही निकले और खेत में टिटोडी (टिटहरी) अपने अंडों से बच्चे न निकाल ले तब तक बोणी (खेत में बीज बोना) नही करनी चाहिए। ये प्राचीन संकेत है🙏

आत्महत्या करने वाले मनुष्य की आत्मा के साथ क्या होता है, गरुड़ पुराण में अकाल मृत्यु के सम्बंध में ।।


 गरुड़ पुराण के अनुसार आत्महत्या करने वाले मनुष्य के लिए दुखों का अंत नहीं होता बल्कि उसकी समस्या बढ़ जाती है। जो मनुष्य धरती पर आत्महत्या कर लेता है, उसे परलोक में भी जगह नहीं मिलती और उसकी आत्मा भटकती रह जाती है। गरुड़ पुराण में अकाल मृत्यु और आत्महत्या के बारे में क्या लिखा है 

गरुड़ पुराण में जीवन के बाद के लोक के बारे में लिखा गया है। धरती पर जीवन जीने के बाद मनुष्य के कर्मों के आधार पर उसके साथ कैसा न्याय किया जाता है, इन सभी बातों का विवरण गरुड़ पुराण में लिखा गया है। इसके अलावा गरुड़ पुराण में भगवान विष्णु की भक्तिसे जुड़ीं बातें भी हैं। इसमें ज्ञान, वैराग्य और अच्छे आचरण की महिमा बताई गई है। साथ ही निष्काम कर्म, यज्ञ, दान, तप और तीर्थ यात्रा जैसे शुभ कर्मों का महत्व भी समझाया गया है। गरुड़ पुराण में आत्महत्या या अपना जीवन स्वंय समाप्त करने के विषय में भी लिखा गया है। आत्महत्या को अकाल मृत्यु की श्रेणी में रखा जाता है

 गरुड़ पुराण में आत्महत्या की सजा

 अकाल मृत्यु होने से 7 चक्र नहीं होते पूर्ण 

गरुड़ पुराण के अनुसार, जो लोग अपने जीवन के सभी 7 चक्रों को पूरा करते हैं, उन्हें मरने के बाद मोक्ष मिलता है लेकिन अगर कोई एक भी चक्र अधूरा छोड़ देता है, तो उसे अकाल मृत्यु का सामना करना पड़ता है। ऐसी आत्मा को बहुत कष्ट झेलने पड़ते हैं। गरुड़ पुराण के अनुसार, भूख से तड़पकर मरना, हिंसा में मरना, फांसी लगाकर जान देना, आग से जलकर मरना, सांप के काटने से मरना, जहर पीकर या किसी दवा को खाकर आत्महत्या करना, ये सभी अकाल मृत्यु की श्रेणी में आते हैं। इसका मतलब है कि ये मौतें समय से पहले होती हैं।

 आत्महत्या को पाप की श्रेणी में रखा गया है 

पृथ्वी पर इंसान का जीवन बहुत मुश्किल से मिलता है। यह जीवन तपस्या का फल होता है। अगर कोई आत्महत्या करता है, तो उसे नर्क भोगना पड़ता है। ऐसा माना जाता है कि हर किसी को इंसान के रूप में जन्म लेने का अवसर नहीं मिलता। जब एक इंसान मर जाता है और आत्मा बन जाता है, तो उसे 13 अलग-अलग जगहों में भेजा जाता है। अगर कोई आत्महत्या करता है, तो उसे 7 नरक में से किसी एक में भेजा जाता है। वहां उसे लगभग 60,000 साल बिताने पड़ते हैं।

आत्महत्या करने वाले मनुष्य की आत्मा भटकती रहती है 

आत्माएं आमतौर पर 3 से 40 दिनों में दूसरा शरीर ले लेती हैं लेकिन, जो लोग आत्महत्या करते हैं, उनकी आत्माएं लंबे समय तक भटकती रहती हैं। गरुड़ पुराण में आत्महत्या को भगवान का अपमान बताया गया है इसलिए, आत्महत्या करने वालों को स्वर्ग या नरक में जगह नहीं मिलती। वे लोक और परलोक के बीच में ही अटके रहते हैं।

 मरने के बाद भी कष्ट सहती है आत्महत्या करने वालों की आत्मा 

कहते हैं कि जीवन में लोगों को दुखों का सामना करना पड़ता है। धरतीलोक में जीवन जीने के लिए संघर्ष करना पड़ता है लेकिन गरुड़ पुराण के अनुसार आत्महत्या करने वाले मनुष्य की आत्मा को मरने के बाद भी दुख उठाने पड़ते हैं। उसकी आत्मा अशांत रहती है और मरने के बाद भी वो जीवन के संघर्षों, प्रेम, दुख आदि के बारे में सोचता रहता है। आत्महत्या करने वाला मनुष्य केवल एक भटकती आत्मा बनकर रह जाता है।

घर में तंत्र-बाधा के लक्षण ।।

 पारिवारिक सदस्यों में लगातार बीमारियाँ, लगातार आर्थिक तंगी, घर में कलह और झगड़े, अजीबोगरीब और डरावने सपने आना, और परिवार के सदस्यों में अकारण चिड़चिड़ापन और मानसिक तनाव होना हो सकते हैं। इसके अतिरिक्त, घर में अचानक से बदबू आना या जानवरों का बेवजह मर जाना भी इसके संकेत हो सकते हैं। 

घर और परिवार के लक्षण

आर्थिक समस्याएं

पैसा घर में टिकता नहीं है, लगातार कर्जा या तंगी बनी रहती है।

लगातार बीमारी

परिवार के सदस्य एक के बाद एक बीमार पड़ते हैं, या घर के मुखिया को कोई गंभीर या रहस्यमय बीमारी हो जाती है।

आपसी कलह

घर में बिना किसी कारण के लड़ाई-झगड़े और तनाव का माहौल रहता है।

अकारण चिड़चिड़ापन

घर के सदस्यों को बेवजह गुस्सा आता है और वे चिड़चिड़े हो जाते हैं।

मानसिक और शारीरिक तनाव

सदस्यों में मानसिक तनाव, भय, अवसाद और बेचैनी बनी रहती है। कभी-कभी शरीर अकड़ा हुआ महसूस होता है।

बच्चों और लड़कियों पर प्रभाव

बच्चों की संगत बिगड़ जाती है या घर की लड़कियों के प्रेम संबंधों में समस्याएँ आ सकती हैं। 

घर में दिखने वाले संकेत

अजीबोगरीब सपने 

परिवार के सदस्यों को लगातार डरावने और बुरे सपने आते हैं।

अचानक बदबू

घर के किसी हिस्से में अचानक से बदबू आने लगती है, जो थोड़ी देर में चली जाती है।

जानवरों की मृत्यु

घर में मौजूद छिपकली, कबूतर या अन्य पालतू जानवरों की अचानक और बेवजह मौत हो जाती है।

छोटी दुर्घटनाएं

घर के सदस्यों के साथ छोटी-मोटी दुर्घटनाएं होने लगती हैं, जिससे खून भी बह सकता है। 

"सनातन विद्या से 𝗖𝘆𝗯𝗲𝗿 𝘀𝗲𝗰𝘂𝗿𝗶𝘁𝘆"



जी हाँ, शास्त्रों में एक ऐसी भी विद्या है जिससे आप अपने pin को सुरक्षित और गोपनीय रख सकते हैं, 
उस विद्या का नाम है "कटपयादी सन्ख्या विद्या"

●कटपयादि संख्या 

हम में से बहुत से लोग अपना Password, या ATM PIN भूल जाते हैं इस कारण हम उसे कहीं पर लिख कर रखते हैं पर अगर वो कागज का टुकड़ा किसी के हाथ लग जाए या खो जाए तो परेशानी हो जाती
पर अपने Password या Pin No. को हम लोग “कटपयादि संख्या” से आसानी से याद रख सकते है।
“कटपयादि”( क ट प य आदि) संख्याओं को शब्द या श्लोक के रूप में आसानी से याद रखने की प्राचीन भारतीय पद्धति है

चूँकि भारत में वैज्ञानिक/तकनीकी/खगोलीय ग्रंथ पद्य रूप में लिखे जाते थे, इसलिये संख्याओं को शब्दों के रूप में अभिव्यक्त करने हेतु भारतीय चिन्तकों ने इसका समाधान 'कटपयादि' के रूप में निकाला।

कटपयादि प्रणाली के उपयोग का सबसे पुराना उपलब्ध प्रमाण, 869 AD में “शंकरनारायण” द्वारा लिखित “लघुभास्कर्य” विवरण में मिलता है

तथा “शंकरवर्मन” द्वारा रचित “सद्रत्नमाला” का निम्नलिखित श्लोक इस पद्धति को स्पष्ट करता है -
इसका शास्त्रीय प्रमाण -

नज्ञावचश्च शून्यानि संख्या: कटपयादय:।
मिश्रे तूपान्त्यहल् संख्या न च चिन्त्यो हलस्वर: ॥

[अर्थ: न, ञ तथा अ शून्य को निरूपित करते हैं। (स्वरों का मान शून्य है) शेष नौ अंक क, ट, प और य से आरम्भ होने वाले व्यंजन वर्णों द्वारा निरूपित होते हैं। 
किसी संयुक्त व्यंजन में केवल बाद वाला व्यंजन ही लिया जायेगा। बिना स्वर का व्यंजन छोड़ दिया जायेगा।]

अब चर्चा करते हैं कि आधुनिक काल में इस की उपयोगिता क्या है और कैसे की जाए ? 
कटपयादि – अक्षरों के द्वारा संख्या को बताकर संक्षेपीकरण करने का एक शास्त्रोक्त विधि है, हर संख्या का प्रतिनिधित्व कुछ अक्षर करते हैं जैसे 

1 – क,ट,प,य 
2 – ख,ठ,फ,र 
3 – ग,ड,ब,ल 
4 – घ,ढ,भ,व 
5 – ङ,ण,म,श 
6 – च,त,ष 
7 – छ,थ,स 
8 – ज,द,ह 
9 – झ,ध 
0-ञ,न,अ,आ,इ,ई,उ,ऊ,ऋ,ॠ,लृ,ए,ऐ, ओ,औ 
 【 ऊपर चित्र देखें】 
हमारे आचार्यों ने संस्कृत के अर्थवत् वाक्यों में इन का प्रयोग किया, जैसे गौः = 3, श्रीः = 2 इत्यादि । 

इस के लिए बीच में विद्यमान मात्रा को छोड देते हैं । स्वर अक्षर ( vowel) यदि शब्द के आदि (starting) मे हो तो ग्राह्य ( acceptable) है, अन्यथा अग्राह्य (unacceptable) होता

जैसे समझिए कि मेरा ATM PIN 0278 है- पर कभी कभी संख्या को याद रखते हुए ATM में जाकर हम Confuse हो जातें हैं कि 0728 था कि 0278 ? यह भी अक्सर बहुत लोगों के साथ होता है, ये इन से बचने के उपाय हैं 

जैसे ATM PIN के लिए कोई भी चार अक्षर वाले संस्कृत शब्द को उस के कटपयादि मे परिवर्तन करें ( उस शब्द को सिर्फ अपने ही मन मे रखें, किसी को न बताएं )

उदाहरण के लिए –

इभस्तुत्यः = 0461

गणपतिः = 3516

गजेशानः = 3850

नरसिंहः = 0278

जनार्दनः = 8080

सुध्युपास्यः = 7111

शकुन्तला = 5163

सीतारामः = 7625

इत्यादि ( अपने से किसी भी शब्द को चुन लें )
ऐसे किसी भी शब्द को याद रखें और तत्काल “कटपयादि संख्या” मे परिवर्तन कर के अपना ATM PIN आदि में प्रयोग करें । 

सत्य सनातन धर्म की जय।

पूजा करने के नियम क्या हैं ?

✤ सूर्य, गणेश, दुर्गा, शिव और विष्णु, ये पंचदेव कहलाते हैं, सभी कार्यों में भगवान विष्णु की पूजा अनिवार्य रूप से होनी चाहिए। प्रतिदिन पूजन के समय इन पंचदेवों का ध्यान करना चाहिए। इससे लक्ष्मी कृपा और समृद्धि प्राप्त होती है।


✤ शिवजी, गणेश जी और भैरव जी को तुलसी नहीं चढ़ानी चाहिए।

✤ मां दुर्गा को दूर नहीं करना चाहिए। यह गणेश जी को विशेष रूप से निर्विकार की तरह माना जाता है।

✤ सूर्य देव को शंख के जल से अर्घ्य नहीं देना चाहिए।

✤ तुलसी का पत्ता बिना स्नान किये नहीं तोड़ना चाहिए। शास्त्रों के अनुसार यदि कोई भी व्यक्ति बिना नहाए ही तुलसी के अवशेषों को तोड़ता है तो पूजन में इन पुष्पों को भगवान द्वारा स्वीकार नहीं किया जाता है।

✤ प्लास्टिक की बोतल में या किसी भी अपवित्र धातु के पॉट में गंगाजल नहीं रखना चाहिए। अपवित्र धातु जैसे एल्युमिनियम और आयरन से बने पोइंटर। गंगाजल के भंडार में शुभ रहता है।

✤ शैतान को और अपवित्र अवस्था में पुरुषों को शंख नहीं बजाना चाहिए। यहां इस नियम का पालन नहीं किया जाता है तो जहां शंख बजाया जाता है, वहां से देवी लक्ष्मी चली जाती हैं।

✤ मंदिर और देवी-देवताओं की मूर्ति के सामने कभी भी पीठ नहीं दिखानी चाहिए।

✤ केतकी का फूल शिवलिंग पर नहीं करना चाहिए।

✤ किसी भी पूजा में मन की शांति के लिए दक्षिणा अवश्य लेनी चाहिए। दक्षिणा निकेत समय अपने दोषों को शामिल करने का संकल्प लेना चाहिए। दोषों को जल्दी से जल्दी अलग करने पर विचार अवश्य करें।

✤ दूर्वा (एक प्रकार की घास) रविवार को नहीं तोड़नी चाहिए।

✤ माँ लक्ष्मी को विशेष रूप से कमल का फूल दिया जाता है। इस फूल को पांच दिनों तक जल छिड़क कर पुन: चढ़ाया जा सकता है।

✤ शास्त्रों के अनुसार शिवजी को प्रिय बिल्व पत्र छह माह तक नहीं माने जाते हैं। अत: उदाहरण के लिए जल छिड़क कर पुन: लिंग पर निशान लगाया जा सकता है।

✤ तुलसी के दुकानदारों को 11 दिन तक बासी नहीं माना जाता है। इसके रिटायरमेंट पर हर रोज जल स्प्रेडर पुन: भगवान को बर्बाद किया जा सकता है।

✤ आम तौर पर फूलों को हाथ में लेकर भगवान को भगवान को समर्पित किया जाता है। ऐसा नहीं करना चाहिए। फूल चढाने के लिए फूलों को किसी भी पवित्र पात्र में रखना चाहिए और उसी पात्र में से लेकर देवी-देवताओं को बचाकर रखना चाहिए।

✤ कांच के बर्तन में चंदन, घीसा हुआ चंदन या चंदन का पानी नहीं रखना चाहिए।

✤ हमेशा इस बात का ध्यान रखें कि कभी भी दीपक बात से दीपक न जलाना चाहिए। शास्त्रों के अनुसार जो व्यक्ति दीपक से दीपक जलते हैं, वे रोगी होते हैं।

✤ रविवार और रविवार को पीपल के पेड़ में जल संरक्षण नहीं करना चाहिए।

✤ पूजा हमेशा पूर्व या उत्तर दिशा की ओर मुख से करनी चाहिए। यदि संभव हो तो सुबह 6 से 8 बजे तक बीच में पूजा अवश्य करें।

✤ पूजा करते समय ध्यान दें कि आसन का आसन एक होगा तो श्रेष्ठ रहेगा।

✤ घर के मंदिर में सुबह और शाम को दीपक जलाएं। एक दीपक घी का और एक दीपक तेल का जलाना चाहिए।

✤ पूजन-कर्म और आरती पूर्ण होने के बाद एक ही स्थान पर 3-3 बार पूजा-अर्चना करनी चाहिए।

✤ रविवार, एकादशी, द्वादशी, संक्रांति तथा संध्या काल में तुलसी के पत्ते नहीं तोड़ना चाहिए।

✤ भगवान की आरती करते समय ध्यान दें ये बातें- भगवान के चरण की चार बार आरती करें, नाभि की दो बार और मुख की एक या तीन बार आरती करें। इस प्रकार भगवान की समस्त क्रियाओं की कम से कम सात बार आरती करानी चाहिए।

✤ पूजाघर में मूर्तियाँ 1, 3, 5, 7, 9, 11 इंच तक की होनी चाहिए, इससे बड़ी नहीं, लेकिन गणेश जी, सरस्वतीजी, लक्ष्मीजी की मूर्तियाँ घर में नहीं होनी चाहिए।

✤ गणेश या देवी की प्रतिमा तीन तीन, शिवलिंग दो, शालिग्राम दो, सूर्य प्रतिमा दो, गोमती चक्र दो की संख्या में कदापि न स्थान। घर में बीच बीच में घर बिल्कुल वैसा ही वातावरण शुद्ध होता है।

✤ अपने मंदिर में विशेष प्रतिष्ठित मूर्तियाँ ही उपहार, काँच, लकड़ी और फ़ाइबर की मूर्तियाँ न रखें और खंडित, जलीकटी फोटो और बर्तन काँच तुरंत हटा दें। शिलालेखों के अनुसार खंडित ज्वालामुखी की पूजा की जाती है। जो भी मूर्ति स्थापित है, उसे पूजा स्थल से हटा देना चाहिए और किसी पवित्र नदी में प्रवाहित कर देना चाहिए। खंडित भगवान की पूजा अशुभ मानी जाती है। इस संबंध में यह बात ध्यान देने योग्य है कि केवल भाषा ही कभी भी, किसी भी अवस्था में खंडित नहीं मानी जाती