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नर्मदेश्वर शिवलिङ्ग का महत्व ।।

नर्मदा के कंकर सब शिव शंकर, अर्थात विश्व में यही एक मात्र अमृतदायी नदी है जिसमें प्रत्येक पत्थर लिंङ्ग का आकार ले लेता है। शास्त्रों में केव...

।। श्री हनुमत महामंत्र ।।

ॐ नमो हनुमते रूद्रावताराय वायु सुताय अञ्जनी गर्भ सम्भुताय अखण्ड ब्रह्मचर्य व्रत पालन तत्पराय धवली कृत जगत् त्रितयाया ज्वलदग्नि सूर्यकोटी समप्रभाय प्रकट पराक्रमाय आक्रान्त दिग् मण्डलाय यशोवितानाय यशोऽलंकृताय शोभिताननाय महा सामर्थ्याय महा तेज पुञ्ज:विराजमानाय श्रीराम भक्ति तत्पराय श्रिराम लक्ष्मणानन्द कारकाय कपिसैन्य प्राकाराय सुग्रीव सौख्य कारणाय सुग्रीव साहाय्य कारणाय ब्रह्मास्त्र ब्रह्म शक्ति ग्रसनाय लक्ष्मण शक्ति भेद निबारणाय शल्य लिशल्यौषधि समानयनाय बालोदित भानु मण्डल ग्रसनाय अक्षयकुमार छेदनाय वन रक्षाकर समूह विभञ्जनाय द्रोण पर्वतोत्पाटनाय स्वामि वचन सम्पादितार्जुन संयुग संग्रामाय गम्भिर शव्दोदयाय दक्षिणाशा मार्तण्डाय मेरूपर्वत पीठिकार्चनाय दावानल कालाग्नी रूद्राय समुद्र लङ्घनाय सीताऽऽश्वासनाय सीता रक्षकाय राक्षसी सङ्घ विदारणाय अशोकबन विदारणाय लङ्कापुरी दहनाय दश ग्रीव शिर:कृन्त्तकाय कुम्भकर्णादि वधकारणाय बालि निबर्हण कारणाय मेघनादहोम विध्वंसनाय इन्द्रजीत वध कारणाय सर्व शास्त्र पारङ्गताय सर्व ग्रह विनाशकाय सर्व ज्वर हराय सर्व भय निवारणाय सर्व कष्ट निवारणाय सर्वापत्ती निवारणाय सर्व दुष्टादि निबर्हणाय सर्व शत्रुच्छेदनाय भूत प्रेत पिशाच डाकिनी शाकिनी ध्वंसकाय सर्वकार्य साधकाय प्राणीमात्र रक्षकाय रामदुताय स्वाहा॥

                ।। जय श्री महाकाल।।

रावण के प्रति नख भर का भी सम्मान वैदिक संस्कृति के प्रति द्रोह है।

रावण प्रतीक है व्यभिचार का जिसने अपनी पुत्रवधू तक पर कुदृष्टि डाली, अपनी पत्नी मंदोदरी की बहन के हेमा साथ कुकर्म किया और उसके पति को मारकर उसे उठा लाया।

रावण प्रतीक है अपने सगे संबंधियों को त्रास देने का। उसने अपनी बहन सूर्पनखा के पति विद्युत जिह्वा की हत्या कर दी। उसने अपने भाई से लंका छीन ली, अपने पिता को त्रास दिया, अपने मामा को स्वार्थ में मरवा दिया। अपने कुल खानदान को अपनी महत्वाकांक्षा की भेंट चढ़ा दिया। अपने भाई को लात मार कर भगा दिया।

रावण प्रतीक है अघन्या गाय के हत्यारे का, ऋषियों ब्राह्मणों के सामूहिक नरसंहार का। वैदिक व्यवस्था का परम शत्रु था रावण। यज्ञ और धर्म के किसी भी स्वरूप को अमान्य घोषित करने वाला रावण वैदिक देवताओं के प्रति घोर असभ्य था।

रावण प्रतीक है कृतघ्नता का। उसने भगवान शिव से कृतघ्नता की। वह उतना ही शिवभक्त था जितना भस्मासुर। वस्तुतः उसने महादेव के सामने दीन-हीन होने का ढोंग किया। वह भगवान शिव से भी अहंकार करता था। ब्रह्मा से वर प्राप्त करने के बाद उनके प्रति भी वह कृतघ्न हो गया। अपने मित्रों से भी उसने कृतघ्नता की।

रावण प्रतीक है शक्ति और ज्ञान के दुरुपयोग का। कुसंस्कारित कुपात्र को विद्या मिलने पर वह क्या-कुछ करता है इसका जीता जागता उदाहरण रावण है।

रावण प्रतीक है क्षुद्र बुद्धि और मलिन मानस का, नारी जाति के प्रति घृणा का, सुर धेनु विप्र और मनुष्य के प्रति घृणा रखने वाला रावण प्रतीक है दम्भ, असभ्यता और विध्वंस का।

कुछ घृणित लोग रावण को महान बता रहे। यह ठीक वैसी ही बात है जैसे कुछ नीच लोग महिषासुर को महान बताते हैं। पहले समाज के रावणों और महिषासुरों का सजीव दहन मर्दन होता था पर बलिहारी इस लोकतंत्र की कि हर टुच्चा आदमी अपनी दो कौड़ी की जबान हिला कर कुछ भी बोल सकता है।

पहचानिए ऐसे दुष्टात्माओं को और दहन करिये उनका।

और हां ये ब्रह्महत्या वाला पाप फर्जी नरेटिव है। ब्रह्मा जिसके वध की इच्छा स्वयं रखते हों ऐसे गोघाती, सुर त्रासी, ब्राह्मण द्रोही रावण के वध पर ब्रह्म हत्या लगने की बात कोई घृणित व्यक्ति ही कह सकता है।

जय जय श्रीराम


बुढ़िया माता मंदिर ।।

🔰 आस्था : हजारीबाग का ऐसा मंदिर जहां बिना मूर्ति के होती है माता की पूजा, मिट्टी के पिंड के रूप में होती है माता की आराधना, जानें बुढ़िया माता की कहानी 🔰

हजारीबाग : दुर्गा पूजा के पावन अवसर पर मां दुर्गा के विभिन्न रूपों की पूरे देश में पूजा की जाती है. लेकिन झारखंड के हजारीबाग जिले के इचाक प्रखंड में स्थित बनसटांड़ का बुढ़िया माता मंदिर एक अद्वितीय धार्मिक स्थल है, जहां मां की पूजा बिना किसी प्रतिमा के की जाती है. इस मंदिर की खासियत यह है कि यहां मिट्टी के पिंड के रूप में माता की आराधना की जाती है. भक्तों का मानना है कि माता के दर्शन मात्र से ही उनके कष्ट दूर हो जाते हैं. यही कारण है कि यहां दूर-दूर से श्रद्धालु आकर माता के पिंड रूप के दर्शन करते हैं.

>> बुढ़िया माता मंदिर की अद्भुत कहानी <<

बुढ़िया माता मंदिर का इतिहास बेहद रहस्यमयी और अद्भुत है. मंदिर के पुजारी गौतम कुमार बताते हैं कि साल 1818 में इस क्षेत्र में हैजा महामारी ने कहर बरपाया था. इस महामारी से पंचायत के कई लोगों की मृत्यु हो रही थी और पूरा गांव त्राहिमाम कर रहा था. तभी अचानक जंगल में मिट्टी की एक दिवाल प्रकट हुई, जिसमें कुछ आकृतियाँ उभरी थीं. इस दिवाल को देखने के बाद गांव के कई लोगों ने एक सपना देखा, जिसमें उन्हें पूजा अर्चना करने का संकेत मिला.

उसी दौरान एक वृद्ध महिला, जिसे बाद में बुढ़िया माता कहा गया, ने वहां पूजा शुरू की और धीरे-धीरे पूरे गांव में इस पूजा का प्रसार हुआ. चमत्कारिक रूप से, गांव से महामारी का प्रकोप खत्म हो गया और बुढ़िया माता भी अचानक गायब हो गईं. आज भी उस दिवाल की आकृतियाँ मंदिर में विद्यमान हैं और यह स्थान लोगों की आस्था का केंद्र बना हुआ है. मंदिर का पहला भवन वर्ष 1921 में बनाया गया था, जो आज भी सुरक्षित है.

>> पिंड रूप में होती है माता की पूजा <<

बुढ़िया माता के मंदिर में माता की पूजा किसी प्रतिमा के बजाय एक पिंड के रूप में की जाती है. यह पिंड मिट्टी का होता है, जिसे भक्तजन पूरी श्रद्धा के साथ पूजते हैं. नवरात्रि के दौरान इस मंदिर की शोभा और बढ़ जाती है, जब झारखंड, बिहार और उड़ीसा के हजारों भक्त यहां माता के दर्शन और पूजा के लिए पहुंचते हैं. नवरात्रि के समय मंदिर को भव्य रूप से सजाया जाता है, और इस अद्भुत स्थल की धार्मिक महत्ता देखते ही बनती है.

>> मंदिर की लोकप्रियता <<

बुढ़िया माता मंदिर को विशेष स्थान दिया जाता है क्योंकि भक्तों का मानना है कि यहां आने मात्र से उनकी बीमारियां और कष्ट दूर हो जाते हैं. मंदिर के पुजारी बताते हैं कि यह मंदिर रोग हरने वाली शक्तियों के लिए प्रसिद्ध है और लोग यहां अपनी आस्था लेकर आते हैं. श्रद्धालुओं का मानना है कि माता उनकी सभी मनोकामनाएं पूरी करती हैं. मंदिर के लिए एक विशाल भवन का निर्माण करवाया गया है, लेकिन पिंड से किसी भी प्रकार की छेड़छाड़ नहीं की गई है. माता के इस रूप की पूजा में भक्तों की गहरी आस्था जुड़ी हुई है.

>> नवरात्रि में विशेष आकर्षण <<

नवरात्रि के अवसर पर इस मंदिर की भव्यता और भी बढ़ जाती है. इस दौरान हजारों श्रद्धालु दूर-दूर से आकर यहां पूजा अर्चना करते हैं. मंदिर के आस-पास का वातावरण भक्तिमय हो जाता है, और माता के भव्य रूप को देखने के लिए लोग लंबी कतारों में खड़े रहते हैं. भक्तों की मान्यता है कि नवरात्रि के दौरान यहां की गई पूजा विशेष फलदायी होती है और माता का आशीर्वाद प्राप्त करने से जीवन के सारे कष्ट समाप्त हो जाते हैं.

>> आस्था का केंद्र <<

बुढ़िया माता का मंदिर केवल एक धार्मिक स्थल नहीं, बल्कि आस्था और चमत्कार का प्रतीक है. इस मंदिर से जुड़ी कहानियां और माता के चमत्कारिक प्रभाव ने इसे झारखंड के प्रमुख धार्मिक स्थलों में से एक बना दिया है. दूर-दूर से आने वाले श्रद्धालुओं के लिए यह मंदिर उनके विश्वास और भक्ति का अटूट केंद्र है.

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किसी भी बीमारी को नष्ट करने में असरकारक है यह नाम त्रय अस्त्र मंत्र ।।

विष्णु भगवान के तीन नामों को महारोगनाशक अस्त्र कहा गया है। अर्थात् इस तीन नाम के जप से कैंसर, किडनी, पैरालाइसिस आदि जैसी बड़ी से बड़ी बीमारी का संकट भी टल जाता है। 

जो पूरे विष्णु सहस्रनाम को पढ़ने में असमर्थ हैं और किसी भयंकर व्याधि से पीड़ित हैं तो साधना में बैठकर भगवान विष्णु जी के इन तीन नामों का कम से कम 108 बार जाप प्रतिदिन सुबह अथवा शाम में करें। 

जप नहीं कर सकते तो कॉपी या डायरी लेकर इस मंत्र को प्रतिदिन 108 बार लिखें। लिखने के बाद कॉपी को इधर-उधर रखने की जगह अपने पूजा कक्ष में रखें।

कोई बहुत बीमार है, और वो जाप नहीं कर सकता, लिख नहीं सकता, तो उनके परिवार का कोई सदस्य उनके सिरहाने बैठकर कम से कम 108 बार मंत्र जाप करे ताकि उनके कानों में मंत्र जाए।

इस मंत्र के उदय की कथा:- 

मां ललिता त्रिपुरा महासुन्दरी और भंडासुर के मध्य जब युद्ध हुआ उस समय व्याधिनाशक इस महाअस्त्र मंत्र का उदय हुआ था। 

युद्ध में पराजय जानकर भंडासुर ने महारोगास्त्र का प्रयोग किया, जिसे मां त्रिपुरा सुंदरी ने इस नामत्रय अस्त्र मंत्र का निर्माण कर उस महारोगास्त्र को नष्ट कर दिया। उसके बाद से ही किसी भी बीमारी को नष्ट करने में इस मंत्र का उपयोग सनातन धर्म में होता आ रहा है। 
यह नामत्रय मंत्र है:-
अच्युताय नमः
अनंताय नमः
गोविंदाय नमः 

इन तीन नामों की महिमा गाते हुए महर्षि वेदव्यास जी कहते हैं:- 

अच्युतानन्तगोविन्द नामोच्चारण भेषजात्।
नश्यन्ति सकला रोगा: सत्यं सत्यं वदाम्यहम्।

हां, यह मंत्र काम तभी करेगा जब आपको भगवान विष्णु में संपूर्ण आस्था हो, उनके समक्ष आपका संपूर्ण समर्पण हो। 

वंदे विष्णुं भवभयहरं सर्वलोकैकनाथम्


मंत्र प्रभाव ।।

जब तक किसी विषय वस्तु के बारे में पूर्ण जानकारी नहीं होती तो व्यक्ति वह कार्य आधे अधूरे मन से करता है और आधे-अधूरे मन से किये कार्य में सफलता नहीं मिल सकती है| मंत्र के बारे में भी पूर्ण जानकारी होना आवश्यक है, मंत्र केवल शब्द या ध्वनि नहीं है, मंत्र जप में समय, स्थान, दिशा, माला का भी विशिष्ट स्थान है| मंत्र-जप का शारीरिक और मानसिक प्रभाव तीव्र गति से होता है| इन सब प्रश्नों का समाधान आपके लिये -

जिस शब्द में बीजाक्षर है, उसी को 'मंत्र' कहते हैं| किसी मंत्र का बार-बार उच्चारण करना ही 'मंत्र-जप' कहलाता है, लेकिन प्रश्न यह उठता है, कि वास्तव में मंत्र जप क्या है? जप से क्या परिणाम होते निकलता है?

व्यक्त-अव्यक्त चेतना

1. व्यक्त चेतना (Conscious mind)
2. अव्यक्त चेतना (Unconscious mind).
हमारा जो जाग्रत मन है, उसी को व्यक्त चेतना कहते हैं| अव्यक्त चेतना में हमारी अतृप्त इच्छाएं, गुप्त भावनाएं इत्यादि विद्यमान हैं| व्यक्त चेतना की अपेक्षा अव्यक्त चेतना अत्यंत शक्तिशाली है| हमारे संस्कार, वासनाएं - ये सब अव्यक्त चेतना में ही स्थित होते हैं|

किसी मंत्र का जब ताप होता है, तब अव्यक्त चेतना पर उसका प्रभाव पड़ता है| मंत्र में एक लय (Rythm) होता है, उस मंत्र ध्वनि का प्रभाव अव्यक्त चेतना को स्पन्दित करता है| मंत्र जप से मस्तिष्क की सभी नाड़ियों में चैतन्यता का प्रादुर्भाव होने लगता है और मन की चंचलता कम होने लगाती है|

मंत्र जप के माध्यम से दो तरह के प्रभाव उत्पन्न होते हैं -

1. मनोवैज्ञानिक प्रभाव (Psychological effect)

2. ध्वनि प्रभाव (Sound effect)

मनोवैज्ञानिक प्रभाव तथा ध्वनि प्रभाव के समन्वय से एकाग्रता बढ़ती है और एकाग्रता बढ़ने से इष्ट सिद्धि का फल मिलता ही है| मंत्र जप का मतलब है इच्छा शक्ति को तीव्र बनाना| इच्छा शक्ति की तीव्रता से क्रिया शक्ति भी तीव्र बन जाति है, जिसके परिणाम स्वरुप इष्ट का दर्शन या मनोवांछित फल प्राप्त होता ही है| मंत्र अचूक होते हैं तथा शीघ्र फलदायक भी होते हैं|

मंत्र जप और स्वास्थ्य

लगातार मंत्र जप करने से उछ रक्तचाप, गलत धारणायें, गंदे विचार आदि समाप्त हो जाते हैं| मंत्र जप का साइड इफेक्ट (Side Effect) यही है|
मंत्र में विद्यमान हर एक बीजाक्षर शरीर की नसों को उद्दिम करता है, इससे शरीर में रक्त संचार सही ढंग से गतिशील रहता है|
"क्लीं ह्रीं" इत्यादि बीजाक्षरों का एक लयात्मक पद्धति से उच्चारण करने पर ह्रदय तथा फेफड़ों पर सकारात्मक प्रभाव पड़ता है व् उनके विकार नष्ट होते हैं|

जप के लिये ब्रह्म मुहूर्त को सर्वश्रेष्ठ माना गया है, क्योंकि उस समय पूरा वातावरण शान्ति पूर्ण रहता है, किसी भी प्रकार का कोलाहर या शोर नहीं होता| कुछ विशिष्ट साधनाओं के लिये रात्रि का समय अत्यंत प्रभावी होता है| गुरु के निर्देशानुसार निर्दिष्ट समय में ही साधक को जप करना चाहिए| सही समय पर सही ढंग से किया हुआ जप अवश्य ही फलप्रद होता है|

अपूर्व आभा

मंत्र जप करने वाले साधक के चेहरे से एक अपूर्व आभा आ जाति है| आयुर्वेद की दृष्टि से देखा जाय, तो जब शरीर शुद्ध और स्वास्थ होगा, शरीर स्थित सभी संस्थान सुचारू रूप से कार्य करेंगे, तो इसके परिणाम स्वरुप मुखमंडल में नवीन कांति का प्रादुर्भाव होगा ही|

जप माला

जप करने के लिए माला एक साधन है| शिव या काली के लिए रुद्राक्ष माला, हनुमान के लिए मूंगा माला, लक्ष्मी के लिए कमलगट्टे की माला, गुरु के लिए स्फटिक माला - इस प्रकार विभिन्न मंत्रो के लिए विभिन्न मालाओं का उपयोग करना पड़ता है|

मानव शरीर में हमेशा विद्युत् का संचार होता रहता है| यह विद्युत् हाथ की उँगलियों में तीव्र होता है| इन उँगलियों के बीच जब माला फेरी जाती है, तो लयात्मक मंत्र ध्वनि (Rythmic sound of the Hymn) तथा उँगलियों में माला का भ्रमण दोनों के समन्वय से नूतन ऊर्जा का प्रादुर्भाव होता है|

जप माला के स्पर्श (जप के समय में) से कई लाभ हैं -

1. रुद्राक्ष से कई प्रकार के रोग नष्ट हो जाते हैं|

2. कमलगट्टे की माला से शीतलता एव अआनंद की प्राप्ति होती है|

3.स्फटिक माला से मन को अपूर्व शान्ति मिलती है|

दिशा

दिशा को भी मंत्र जप में आत्याधिक महत्त्व दिया गया है| प्रत्येक दिशा में एक विशेष प्रकार की तरंगे (Vibrations) प्रवाहित होती रहती है| सही दिशा के चयन से शीघ्र ही सफलता प्राप्त होती है|

जप-तप

जप में तब पूर्णता आ जाती है, पराकाष्टा की स्थिति आ जाती है, उसे 'तप' कहते हैं| जप में एक लय होता है| लय का सरथ है ध्वनि के खण्ड| दो ध्वनि खण्डों की बीच में निःशब्दता है|  इस  निःशब्दता पर मन केन्द्रित करने की जो कला है, उसे तप कहते हैं| जब साधक तप की श्तिति को प्राप्त करता है, तो उसके समक्ष सृष्टि के सारे रहस्य अपने आप अभिव्यक्त हो जाते हैं| तपस्या में परिणति प्राप्त करने पर धीरे-धीरे हृदयगत अव्यक्त नाद सुनाई देने लगता है, तब वह साधक उच्चकोटि का योगी बन जाता है| ऐसा साधक गृहस्थ भी हो सकता है और संन्यासी भी|

कर्म विध्वंस

मनुष्य को अपने जीवन में जो दुःख, कष्ट, दारिद्य, पीड़ा, समस्याएं आदि भोगनी पड़ती हैं, उसका कारण प्रारब्ध है| जप के माध्यम से प्रारब्ध को नष्ट किया जा सकता है और जीवन में सभी दुखों का नाश कर, इच्छाओं को पूर्ण किया जा सकता है, इष्ट देवी या देवता का दर्शन प्राप्त किया जा सकता है|

गुरु उपदेश

मंत्र को सदगुरू के माध्यम से ही ग्रहण करना उचित होता है| सदगुरू ही सही रास्ता दिखा सकते हैं, मंत्र का उच्चारण, जप संख्या, बारीकियां समझा सकते हैं, और साधना काल में विपरीत परिश्तिती आने पर साधक की रक्षा कर सकते हैं|

साधक की प्राथमिक अवशता में सफलता व् साधना की पूर्णता मात्र सदगुरू की शक्ति के माध्यम से ही प्राप्त होती है| यदि साधक द्वारा अनेक बार साधना करने पर भी सफलता प्राप्त न हो, तो सदगुरू विशेष शक्तिपात द्वारा उसे सफलता की मंजिल तक पहुंचा देते हैं|

इस प्रकार मंत्र जप के माध्यम से नर से नारायण बना जा सकता है, जीवन के दुखों को मिटाया जा सकता है तथा अदभुद आनन्द, असीम शान्ति व पूर्णता को प्राप्त किया जा सकता है, क्योंकि मंत्र जप का अर्थ मंत्र कुछ शब्दों को रटना है, अपितु मंत्र जप का अर्थ है - जीवन को पूर्ण बनाना|