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नर्मदेश्वर शिवलिङ्ग का महत्व ।।

नर्मदा के कंकर सब शिव शंकर, अर्थात विश्व में यही एक मात्र अमृतदायी नदी है जिसमें प्रत्येक पत्थर लिंङ्ग का आकार ले लेता है। शास्त्रों में केव...

आवाहन बंधन, संकल्प जाप और विसर्जन कैसे करते हैं ??

सभी का आवाहन मंत्र अलत होता है।
साधारण रूप से आवाहन करना है तो
आवाहन मुद्रा बनाकर उनका मंत्र बोलते हुए आवाहयामी बोला जाता है
जैसे गणेश जी का आवाहन करना है तो "ॐ गं गणपतये नमः आवाहयामी स्थापित नमः"

संकल्प के लिए हाथ में थोड़ा सा जल लेकर अपना संकल्प को बोला जाता है आप हिंदी में भी हो सकते हैं उसमें अपना नाम, गोत्र, तिथि, वार, किस चीज के लिए साधना कर रहे हैं इत्यादि बोला जाता है।

बंधन के लिए मंत्र दिया होगा उसे बोलते हुए करना है।

मंत्र जप में विसर्जन नहीं होता समर्पण होता है।

१.पवित्रीकरण

बायें हाथ में जल लेकर उसे दायें हाथ से ढककर निम्न मंत्र पढ़ें -

ॐ अपवित्रः पवित्रो वा सर्वावस्थां गतोऽपि वा। यः स्मरेत् पुण्डरीकाक्षं स बाह्याभ्यन्तरः शुचिः॥

इस अभिमंत्रित जल को दाहिने हाथ की उंगलियों से अपने सम्पूर्ण शरीर पर छिड़कें, जिससे आन्तरिक और बाह्य शुद्धि हो।

२. आचमन

मन, वाणी तथा हृदय की शुद्धि के लिए पंचपात्र से आचमनी द्वारा जल लेकर तीन बार निम्न मंत्रों के उच्चारण के साथ पियें

ॐ केशवाय नमः ।
ॐ माधवाय नमः।
ॐ गोविंदा य नमः।

ओम ऋषिकेशाय नमः एक आचमनी जल ले कर हाथ धो ले।

३.शिखा बन्धन

शिखा पर दाहिना हाथ रखकर दैवी शक्ति का स्थापन करें, जिससे साधना पथ में प्रवृत्त होने के लिए आवश्यक ऊर्जा प्राप्त हो सके

चिद्रूपिणि महामाये दिव्य तेजः समन्विते । 
तिष्ठ देवि ! शिखामध्ये तेजो वृद्धिं कुरुष्व मे॥

४.न्यास

इसके उपरान्त मंत्रों के द्वारा अपने सम्पूर्ण शरीर को पुष्ट व सबल बनाएं। प्रत्येक मंत्र उच्चारण के साथ सम्बन्धित अंग को दाहिने हाथ से स्पर्श करें।

५.आसन पूजन

अब अपने आसन के नीचे कुंकुम या चन्दन से त्रिकोण बनाकर उस पर अक्षत, चन्दन व पुष्प निम्न मंत्र बोलते हुए समर्पित करें और हाथ जोड़कर प्रार्थना करें

ॐ पृथ्वि ! त्वया धृता लोका देवि ! त्वं विष्णुना धृता। 
त्वं च धारय मां देवि ! पवित्रं कुरु चासनम् ॥

६.दिग् बन्धन

बायें हाथ में जल या चावल लेकर दाहिने हाथ से सभी दिशाओं में निम्न मंत्र बोलते हुए ऊपर व नीचे छिड़कें

ॐ अपसर्पन्तु ये भूता ये भूताः भूमि ये भूता विघ्नकर्तारस्ते नश्यन्तु शिवाज्ञया ।। 
अपक्रामन्तु भूतानि पिशाचाः सर्वतो दिशम्। सर्वेषामविरोधेन पूजाकर्म समारभे ।।

गणेश स्मरण

तत्पश्चात् गणपति के बारह नामों का स्मरण करें, प्रत्येक कार्य करने के पूर्व भी इन बारह नामों का स्मरण सिद्धिदायक माना गया है।

 सुमुखश्चैकदन्तश्च कपिलो गजकर्णकः ।
 लम्बोदरश्च विकटो विघ्ननाशो विनायकः ।।
 धूम्रकेतु र्गणाध्यक्षो भालचन्द्रो गजाननः। 
 द्वादशै तानि नामानि यः पठेच्छृणुयादपि।।
 विद्यारम्भे विवाहे च प्रवेशे निर्गमे तथा। 
 संग्रामे संकटे चैव विघ्नस्तस्य न जायते ॥

इतना करने के बाद जिसकी मंत्र जाप करना है उसे देवी/देवता का संक्षिप्त पूजन करें।

पूजन में सबसे पहले हाथ जोड़कर ध्यान करें ध्यान मंत्र बोलते हुए।

फिर आवाहन मुद्रा बनाते हुए आवाहन मंत्र बोलकर आवाहन करें।

फिर आसन के लिए कुछ पुष्प लेकर आसान मंत्र बोलते हुए उसके पुष्प चढ़ाएं।

फिर पैर धोने के लिए पाद्य, हाथ धोने के लिए अर्ध्य ,स्नान,वस्त्र, चंदन,अक्षत,पुष्प,धूप,दीप नैवेद्य, निरंजन जल आरती पुष्पांजलि विशेषार्ध्य, समर्पण (सभी का मंत्र अलग-अलग होगा)
फिर उसके बाद मानसिक रूप से गुरु आज्ञा लेकर मंत्र जप शुरू करें अंत में जप समर्पण कर दें।

।। श्री हनुमत महामंत्र ।।

ॐ नमो हनुमते रूद्रावताराय वायु सुताय अञ्जनी गर्भ सम्भुताय अखण्ड ब्रह्मचर्य व्रत पालन तत्पराय धवली कृत जगत् त्रितयाया ज्वलदग्नि सूर्यकोटी समप्रभाय प्रकट पराक्रमाय आक्रान्त दिग् मण्डलाय यशोवितानाय यशोऽलंकृताय शोभिताननाय महा सामर्थ्याय महा तेज पुञ्ज:विराजमानाय श्रीराम भक्ति तत्पराय श्रिराम लक्ष्मणानन्द कारकाय कपिसैन्य प्राकाराय सुग्रीव सौख्य कारणाय सुग्रीव साहाय्य कारणाय ब्रह्मास्त्र ब्रह्म शक्ति ग्रसनाय लक्ष्मण शक्ति भेद निबारणाय शल्य लिशल्यौषधि समानयनाय बालोदित भानु मण्डल ग्रसनाय अक्षयकुमार छेदनाय वन रक्षाकर समूह विभञ्जनाय द्रोण पर्वतोत्पाटनाय स्वामि वचन सम्पादितार्जुन संयुग संग्रामाय गम्भिर शव्दोदयाय दक्षिणाशा मार्तण्डाय मेरूपर्वत पीठिकार्चनाय दावानल कालाग्नी रूद्राय समुद्र लङ्घनाय सीताऽऽश्वासनाय सीता रक्षकाय राक्षसी सङ्घ विदारणाय अशोकबन विदारणाय लङ्कापुरी दहनाय दश ग्रीव शिर:कृन्त्तकाय कुम्भकर्णादि वधकारणाय बालि निबर्हण कारणाय मेघनादहोम विध्वंसनाय इन्द्रजीत वध कारणाय सर्व शास्त्र पारङ्गताय सर्व ग्रह विनाशकाय सर्व ज्वर हराय सर्व भय निवारणाय सर्व कष्ट निवारणाय सर्वापत्ती निवारणाय सर्व दुष्टादि निबर्हणाय सर्व शत्रुच्छेदनाय भूत प्रेत पिशाच डाकिनी शाकिनी ध्वंसकाय सर्वकार्य साधकाय प्राणीमात्र रक्षकाय रामदुताय स्वाहा॥

                ।। जय श्री महाकाल।।

रावण के प्रति नख भर का भी सम्मान वैदिक संस्कृति के प्रति द्रोह है।

रावण प्रतीक है व्यभिचार का जिसने अपनी पुत्रवधू तक पर कुदृष्टि डाली, अपनी पत्नी मंदोदरी की बहन के हेमा साथ कुकर्म किया और उसके पति को मारकर उसे उठा लाया।

रावण प्रतीक है अपने सगे संबंधियों को त्रास देने का। उसने अपनी बहन सूर्पनखा के पति विद्युत जिह्वा की हत्या कर दी। उसने अपने भाई से लंका छीन ली, अपने पिता को त्रास दिया, अपने मामा को स्वार्थ में मरवा दिया। अपने कुल खानदान को अपनी महत्वाकांक्षा की भेंट चढ़ा दिया। अपने भाई को लात मार कर भगा दिया।

रावण प्रतीक है अघन्या गाय के हत्यारे का, ऋषियों ब्राह्मणों के सामूहिक नरसंहार का। वैदिक व्यवस्था का परम शत्रु था रावण। यज्ञ और धर्म के किसी भी स्वरूप को अमान्य घोषित करने वाला रावण वैदिक देवताओं के प्रति घोर असभ्य था।

रावण प्रतीक है कृतघ्नता का। उसने भगवान शिव से कृतघ्नता की। वह उतना ही शिवभक्त था जितना भस्मासुर। वस्तुतः उसने महादेव के सामने दीन-हीन होने का ढोंग किया। वह भगवान शिव से भी अहंकार करता था। ब्रह्मा से वर प्राप्त करने के बाद उनके प्रति भी वह कृतघ्न हो गया। अपने मित्रों से भी उसने कृतघ्नता की।

रावण प्रतीक है शक्ति और ज्ञान के दुरुपयोग का। कुसंस्कारित कुपात्र को विद्या मिलने पर वह क्या-कुछ करता है इसका जीता जागता उदाहरण रावण है।

रावण प्रतीक है क्षुद्र बुद्धि और मलिन मानस का, नारी जाति के प्रति घृणा का, सुर धेनु विप्र और मनुष्य के प्रति घृणा रखने वाला रावण प्रतीक है दम्भ, असभ्यता और विध्वंस का।

कुछ घृणित लोग रावण को महान बता रहे। यह ठीक वैसी ही बात है जैसे कुछ नीच लोग महिषासुर को महान बताते हैं। पहले समाज के रावणों और महिषासुरों का सजीव दहन मर्दन होता था पर बलिहारी इस लोकतंत्र की कि हर टुच्चा आदमी अपनी दो कौड़ी की जबान हिला कर कुछ भी बोल सकता है।

पहचानिए ऐसे दुष्टात्माओं को और दहन करिये उनका।

और हां ये ब्रह्महत्या वाला पाप फर्जी नरेटिव है। ब्रह्मा जिसके वध की इच्छा स्वयं रखते हों ऐसे गोघाती, सुर त्रासी, ब्राह्मण द्रोही रावण के वध पर ब्रह्म हत्या लगने की बात कोई घृणित व्यक्ति ही कह सकता है।

जय जय श्रीराम


बुढ़िया माता मंदिर ।।

🔰 आस्था : हजारीबाग का ऐसा मंदिर जहां बिना मूर्ति के होती है माता की पूजा, मिट्टी के पिंड के रूप में होती है माता की आराधना, जानें बुढ़िया माता की कहानी 🔰

हजारीबाग : दुर्गा पूजा के पावन अवसर पर मां दुर्गा के विभिन्न रूपों की पूरे देश में पूजा की जाती है. लेकिन झारखंड के हजारीबाग जिले के इचाक प्रखंड में स्थित बनसटांड़ का बुढ़िया माता मंदिर एक अद्वितीय धार्मिक स्थल है, जहां मां की पूजा बिना किसी प्रतिमा के की जाती है. इस मंदिर की खासियत यह है कि यहां मिट्टी के पिंड के रूप में माता की आराधना की जाती है. भक्तों का मानना है कि माता के दर्शन मात्र से ही उनके कष्ट दूर हो जाते हैं. यही कारण है कि यहां दूर-दूर से श्रद्धालु आकर माता के पिंड रूप के दर्शन करते हैं.

>> बुढ़िया माता मंदिर की अद्भुत कहानी <<

बुढ़िया माता मंदिर का इतिहास बेहद रहस्यमयी और अद्भुत है. मंदिर के पुजारी गौतम कुमार बताते हैं कि साल 1818 में इस क्षेत्र में हैजा महामारी ने कहर बरपाया था. इस महामारी से पंचायत के कई लोगों की मृत्यु हो रही थी और पूरा गांव त्राहिमाम कर रहा था. तभी अचानक जंगल में मिट्टी की एक दिवाल प्रकट हुई, जिसमें कुछ आकृतियाँ उभरी थीं. इस दिवाल को देखने के बाद गांव के कई लोगों ने एक सपना देखा, जिसमें उन्हें पूजा अर्चना करने का संकेत मिला.

उसी दौरान एक वृद्ध महिला, जिसे बाद में बुढ़िया माता कहा गया, ने वहां पूजा शुरू की और धीरे-धीरे पूरे गांव में इस पूजा का प्रसार हुआ. चमत्कारिक रूप से, गांव से महामारी का प्रकोप खत्म हो गया और बुढ़िया माता भी अचानक गायब हो गईं. आज भी उस दिवाल की आकृतियाँ मंदिर में विद्यमान हैं और यह स्थान लोगों की आस्था का केंद्र बना हुआ है. मंदिर का पहला भवन वर्ष 1921 में बनाया गया था, जो आज भी सुरक्षित है.

>> पिंड रूप में होती है माता की पूजा <<

बुढ़िया माता के मंदिर में माता की पूजा किसी प्रतिमा के बजाय एक पिंड के रूप में की जाती है. यह पिंड मिट्टी का होता है, जिसे भक्तजन पूरी श्रद्धा के साथ पूजते हैं. नवरात्रि के दौरान इस मंदिर की शोभा और बढ़ जाती है, जब झारखंड, बिहार और उड़ीसा के हजारों भक्त यहां माता के दर्शन और पूजा के लिए पहुंचते हैं. नवरात्रि के समय मंदिर को भव्य रूप से सजाया जाता है, और इस अद्भुत स्थल की धार्मिक महत्ता देखते ही बनती है.

>> मंदिर की लोकप्रियता <<

बुढ़िया माता मंदिर को विशेष स्थान दिया जाता है क्योंकि भक्तों का मानना है कि यहां आने मात्र से उनकी बीमारियां और कष्ट दूर हो जाते हैं. मंदिर के पुजारी बताते हैं कि यह मंदिर रोग हरने वाली शक्तियों के लिए प्रसिद्ध है और लोग यहां अपनी आस्था लेकर आते हैं. श्रद्धालुओं का मानना है कि माता उनकी सभी मनोकामनाएं पूरी करती हैं. मंदिर के लिए एक विशाल भवन का निर्माण करवाया गया है, लेकिन पिंड से किसी भी प्रकार की छेड़छाड़ नहीं की गई है. माता के इस रूप की पूजा में भक्तों की गहरी आस्था जुड़ी हुई है.

>> नवरात्रि में विशेष आकर्षण <<

नवरात्रि के अवसर पर इस मंदिर की भव्यता और भी बढ़ जाती है. इस दौरान हजारों श्रद्धालु दूर-दूर से आकर यहां पूजा अर्चना करते हैं. मंदिर के आस-पास का वातावरण भक्तिमय हो जाता है, और माता के भव्य रूप को देखने के लिए लोग लंबी कतारों में खड़े रहते हैं. भक्तों की मान्यता है कि नवरात्रि के दौरान यहां की गई पूजा विशेष फलदायी होती है और माता का आशीर्वाद प्राप्त करने से जीवन के सारे कष्ट समाप्त हो जाते हैं.

>> आस्था का केंद्र <<

बुढ़िया माता का मंदिर केवल एक धार्मिक स्थल नहीं, बल्कि आस्था और चमत्कार का प्रतीक है. इस मंदिर से जुड़ी कहानियां और माता के चमत्कारिक प्रभाव ने इसे झारखंड के प्रमुख धार्मिक स्थलों में से एक बना दिया है. दूर-दूर से आने वाले श्रद्धालुओं के लिए यह मंदिर उनके विश्वास और भक्ति का अटूट केंद्र है.

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किसी भी बीमारी को नष्ट करने में असरकारक है यह नाम त्रय अस्त्र मंत्र ।।

विष्णु भगवान के तीन नामों को महारोगनाशक अस्त्र कहा गया है। अर्थात् इस तीन नाम के जप से कैंसर, किडनी, पैरालाइसिस आदि जैसी बड़ी से बड़ी बीमारी का संकट भी टल जाता है। 

जो पूरे विष्णु सहस्रनाम को पढ़ने में असमर्थ हैं और किसी भयंकर व्याधि से पीड़ित हैं तो साधना में बैठकर भगवान विष्णु जी के इन तीन नामों का कम से कम 108 बार जाप प्रतिदिन सुबह अथवा शाम में करें। 

जप नहीं कर सकते तो कॉपी या डायरी लेकर इस मंत्र को प्रतिदिन 108 बार लिखें। लिखने के बाद कॉपी को इधर-उधर रखने की जगह अपने पूजा कक्ष में रखें।

कोई बहुत बीमार है, और वो जाप नहीं कर सकता, लिख नहीं सकता, तो उनके परिवार का कोई सदस्य उनके सिरहाने बैठकर कम से कम 108 बार मंत्र जाप करे ताकि उनके कानों में मंत्र जाए।

इस मंत्र के उदय की कथा:- 

मां ललिता त्रिपुरा महासुन्दरी और भंडासुर के मध्य जब युद्ध हुआ उस समय व्याधिनाशक इस महाअस्त्र मंत्र का उदय हुआ था। 

युद्ध में पराजय जानकर भंडासुर ने महारोगास्त्र का प्रयोग किया, जिसे मां त्रिपुरा सुंदरी ने इस नामत्रय अस्त्र मंत्र का निर्माण कर उस महारोगास्त्र को नष्ट कर दिया। उसके बाद से ही किसी भी बीमारी को नष्ट करने में इस मंत्र का उपयोग सनातन धर्म में होता आ रहा है। 
यह नामत्रय मंत्र है:-
अच्युताय नमः
अनंताय नमः
गोविंदाय नमः 

इन तीन नामों की महिमा गाते हुए महर्षि वेदव्यास जी कहते हैं:- 

अच्युतानन्तगोविन्द नामोच्चारण भेषजात्।
नश्यन्ति सकला रोगा: सत्यं सत्यं वदाम्यहम्।

हां, यह मंत्र काम तभी करेगा जब आपको भगवान विष्णु में संपूर्ण आस्था हो, उनके समक्ष आपका संपूर्ण समर्पण हो। 

वंदे विष्णुं भवभयहरं सर्वलोकैकनाथम्