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बजरंग कैंची मंत्र साधना🌹🌹

💫बजरंग कैंची दूसरे के द्वारा किये गये प्रयोंगो,बंधनों की काट करने में अचूक कार्य करती है 

💫विधान:   
दिन: हनुमान जयंती या शुक्लपक्ष मंगलवार 
दिशा: पूर्व या उतर 
चौकी : हनुमान चित्र या मूर्ति अथवा यंत्र को स्थापित करें बाजोट पर लाल वस्त्र पर 
वस्त्र, आसन: लाल, लाल उनी आसन
पूजन: पंचोपचार पूजन
भोग: लड्डू का नित्य लगायें तुलसी दल के साथ
विशेष : साधना के प्रथम और अंतिम दिन हनुमान जी को सिन्दूर,लंगोट,सवासेर का रोट,नारियल अर्पित करें 
माला : रूद्राक्ष या मूंगे की माला 
जप संख्या: दो माला 
दिन अवधि: 11 दिन
(अगर दो माला रोज नहीं कर सकते है तो एक माला 21 दिन तक करें)

💫 प्रयोग
इस विद्या से अभिमंत्रित नींबू को जहां लटका दिया जाऐगा तो वहां पर किसी भी प्रकार का अभिचार ,भूत प्रेतादि नहीं ठहर सकते है और ना ही आयेंगे 

दुकान में इस विद्या से अभिमंत्रित नींबू लटकाने से धन्धा अच्छा चलता है और धंधे के बंधन ,नजर ,टोने टोटके के प्रभाव समाप्त हो जाते है 

भूत -प्रेत लगे व्यक्ति को 5 या 7 बार अभिमंत्रित जल छिड़कने से व्यक्ति स्वस्थ हो जाता है ऐसा तीन दिन तक करें तो बाधा समूल रूप से समाप्त हो जाती है 

इस मंत्र को भोजपत्र पर लिखकर,
फिर 108 बार मंत्र पढ़कर 108 बार ही फूंक मारकर अभिमंत्रित करके ताबीज में डालकर धारण करने से सर्वत्र रक्षा होती है 108 बार फूंक का मतलब है एक बार मंत्र पढ़ा और एक फूंक मारी इसी तरह से 108 बार करना है।

जिस व्यक्ति के नाम से मंत्र पढ़कर लौंग अभिमंत्रित कर उसे खिला दें तो उसकी विद्या नष्ट हो जाती है।
  
💫इस विद्या के अनेक प्रयोग है।

श्री हनुमत शक्ति मंत्र प्रयोग !!!


० हमारे सनातन धर्म मे रुद्रा अवतार हनुमान सदैव विराजमान है,मनुष्य हो या देवी,देवता सभी के कार्य को सम्पन्न करते है हनुमान जी। राम भक्त,दुर्गा भक्त हो या शिव भक्त,सभी मार्गो मे परम सहायक होते है हनुमान। 
ये शिव अंश भी,शिव पुत्र भी है राम के भक्त भी वही सीता के पुत्र हैं।ये कपि मुख है,वही पंचमुख,सप्तमुख,और ग्यारहमुख धारण करने वाले है।ये सभी जगह सूपूजित है कारण ये संकटमोचन है।माता,पिता के लिए अपने संतान से प्यारा कोई नही होता ,जैसै गौरी पुत्र गणेश है,वही शिवांश देवी पुत्र बटुक भैरव है वही शिवांश राम भक्त हनुमान जी है।

० कहा गया है कि बिना गुरु ज्ञान नही होता है वही बिना कुल देवता के कृपा बिना किसी अन्य देव की कृपा प्राप्त नहीं होती है। 
प्रथम श्री गणेश को स्मरण पूजन किए बिना पूजा प्रारम्भनहीं होता हैं।
महाविद्या की साधना करनी हो,वहाँ बिना बटुक कृपा आगे बढ़ना कठिन है।
असली माता पिता के पास ये पुत्र ही पहुँचा सकते है,परन्तु अपने इस जीवन के माता पिता की सेवा तथा आदर किए बिना यह संभव ही नहीं है।
जीवन के बाधा,संकट का निवारण न हो तो धर्म मार्ग में बढ़ना दुष्कर है।

० मूर्ति पूजा हो या निंरकार,परन्तु सत्य यही है कि परमात्मा एक हैं,तभी तो कहा गया है कि सत्यम,शिवम, सुन्दरम। 
सत्य ही शिव है,शिव ही सुन्दर है बाकी सब गौण।एक शिव ही सृष्टि में सत्य है,वही क्रिया शक्ति,चित शक्ति एवं इच्छा शक्ति के रुप में अर्धनारीश्वर है,शिव के बायें भाग में शक्ति हैं,वही शिव के एक रुप है हरि हरात्मक आधा शिव आधा विष्णु,ये शिव की अलग अलग लीला एंव रुप है।शिव सुन्दर है वही उनकी शक्ति सुन्दरी के नाम से विख्यात है,फिर तो शिव के द्वारा रचित श्री रामायण का हनुमत कान्ड को उन्होंने सुन्दर कान्ड का नाम रखा,यह विशेष रहस्यपूर्ण है।

० सुन्दर कान्ड के प्रत्येक श्लोक का अर्थ समझेगे तो उस शिव के सुन्दर रुप का मर्म समझ में आ जायेगा।सुन्दर कान्ड का पाठ जहाँ होता है सारे अभाव,पाप,रोग विकार स्वतःनष्ट होने लगता है,हमे सिर्फ पूर्ण श्रद्धा से होकर पाठ करना चाहिए।
पाठ से पूर्व हमें क्या करना चाहिए यह भी महत्वपूर्ण है। सुन्दर कान्ड मे शिवशक्ति,सीताराम,वरदान,बल,धन,शुभ,दमन,अहंकार का विसर्जन,भक्ति की परकाष्टा,प्रेम,मिलन विश्वास,धैर्य,बौद्धिक विकास क्यों नहीं प्राप्त किया जा सकता हैं।
हमारे हनुमान जी वे सत्यम शिव के सुन्दर,लीलाधर हैं,सभी उनके कृपा से प्राप्त हो जाता है।हनुमत उपासना व्यापक है,हर कार्य सुलभ है।
प्रथम गुरु,गणेश का पूजन कर राम परिवार ऋषि पूजन कर हनुमत उपासना करने से ही पूर्ण सफलता प्राप्त होती है।

० यहां हनुमत का विशेष पाठ प्रयोग लिख रहा हूँ,जो चमत्कारिक है और पूर्ण फल प्रदान करनें मे सक्षम । 
श्री रामायण के प्रथम रचनाकार शिव है फिर ऋषि बाल्मिकी,फिर गोस्वामी तुलसीदास जी है ।मंत्र कवच के ऋषि देवता भिन्न भिन्न है।बजरंग बाण जो प्राप्त होता है वह भी अधुरा हैं।फिर भी लोगों को लाभ मिलता है। एक एक अक्षर शक्ति सम्पन्न है।श्री हनुमान जी शिवांश है परन्तु वैष्णव परिवार से है इस कारण इनके पूजा में मांस,मदिरा,स्त्री भोग वर्जित है।
गृहस्थ आश्रम के भक्त इन्हें अधिक प्रिय है परन्तु साधना काल में नियम का पालन अवश्य करे।
स्त्री भक्त मासिक धर्म में इनकी साधना न करें।
श्री हनुमान चालीसा बहुत प्रभावी एवं प्रचलित हैं, शनिग्रह से प्रभावित हो या राहुकेतु से भूत पिशाच हो या रोग व्याधि नित्य१,३,७,११,२१,३१,५१,१०८ बार पाठ करने से कामना पूर्ण होती है।यह परिक्षित है।
श्री शिव पार्वती सहित गणेश नमस्कार कर,सीताराम,सपरिवार का ध्यान कर श्री गोस्वामी तुलसीदास जी को प्रणाम करे,।
विशेष लाभ के लिए तिल का तेल और चमेली का तेल मिलाकर लाल बती का दीपक लगा लें,
पूर्व,उतर मुख करके थोड़ा गुड़,का लड्डू या किशमिश का प्रसाद अर्पण कर पाठ आरम्भ करें।
इससे अवश्य कामना या संकट का निवारण होता है।

मां दुर्गा के मंत्र और जानकारी ।।

II ओम ऐं ह्रीं क्लीं चामुंडाय विच्चे ll


II ओम दुम दुर्गायै नमःII

"ॐ जयन्ती मंगला काली भद्रकाली कपालिनी। दुर्गा क्षमा शिवा धात्री स्वाहा स्वधा नमोऽस्तुतेII"


"सर्वमंगल मांगल्ये शिवे सर्वार्थ साधिके
शरण्ये त्र्यंबके गौरी नारायणि नमोऽस्तुते"

देवी दुर्गा की पूजा शिव, लक्ष्मी, सरस्वती, गणेश, कार्तिकेय, उनके वाहनों और महिषासुर के साथ की जाती है। 
फिर देवी दुर्गा के साथ आने वाली देवियों की पूजा की जाती है। 
वे निम्नलिखित हैं !

💫आठ शक्तियाँ :~

1) उग्रचंडा

2) प्रचंड

3) चंडोग्रा

4) चंदनायिका

5) चंदा

6) चंदावती

7) चंद्ररूपा

8) अतिचंडिका

💫तैंतीस विभूतियाँ :~

1) जयंती

2) मंगला

3) काली

4) भद्रकाली

5) कपालिनी

6) दुर्गा

7) शिवा

8) क्षमा

9) धात्री

10) स्वाहा

11) स्वधा

12) उग्रचंडा

13) महादंष्ट्रा

14) शुभदंष्ट्रा

15) करालिनी

16) भीमनेत्र

17) विशालाक्षी

18) विजया

19) जया

20) नंदिनी

21) भद्रा

22) लक्ष्मी

23) कीर्ति

24) यशस्विनी

25) पुष्टि

26) मेधा

27) शिवा

28) साध्वी

29) यश

30) शोभा

31) धृति

32) आनंदा

33) सुनंदा

💫चौसठ योगिनियाँ :~

1) ब्राह्मणी

2) चंडिका

3) गौरी

4) इंद्राणी

5) कौमारी

6) भैरवी

7) दुर्गा

8) नरसिंही

9) कालिका

10) चामुंडा

11) शिवदुति

12) वाराही

13) कौशिकी

14) माहेश्वरी

15) शंकरी

16) जयंती

17) सर्वमंगला

18) काली

19) करालिनी

20) मेधा

21) शिव

22) शाकंभरी

23) भीमा

24) शांति

25) भ्रामरी

26) रुद्राणी

27) अंबिका

28) क्षमा

29) धात्री

30) स्वाहा

31) स्वधा

32) अपर्णा

33) महोदया

34) घोरारूपा

35) महाकाली

36) भद्रकाली

37) कपालिनी

38) क्षेमंकरी

39) उग्रचंडा

40) चंदोगरा

41) चंदनायिका

42) चंदा

43) चंदावती

44) चंडी

45) महामाया

46) प्रियंका

47) बालविकरण

48) बालप्रमर्थनी

49) मनोनमथानी

50) सर्वभूतदमनी

51) उमा

52) तारा

53) महानिद्रा

54) विजया

55) जया

56) शैलपुत्री

57) चंडिका

58) चंद्रघंटा

59) कुष्मांडी

60) स्कंदमात्री

61) कात्यायनी

62) रौद्री

63) कालरात्रि

64) महागौरंगी

💫नौ दुर्गाएँ :~

1) ब्राह्मी

2) माहेश्वरी

3) कौमारी

4) वैष्णवी

5) वाराही

6) नरसिंही

7) ऐन्द्री

8) चामुंडा

9) कात्यायनी

💫अठासी मातृकाएँ :~

1) जयंती

2) मंगला

3) काली

4) भद्रकाली

5) कपालिनी

6) दुर्गा

7) शिवा

8) क्षमा

9) धात्री

10) स्वाहा

11) स्वधा

12) उग्रचंडा

13) महाद्रष्टा

14) शुभदा

15) करालिनी

16) भीमनेत्र

17) विशालाक्षी

18) विजया

19) जया

20) नंदिनी

21) भद्रा

22) लक्ष्मी

23) कीर्ति

24) यशस्विनी

25) पुष्टि

26) मेधा

27) साध्वी

28) यश

29) शोभा

30) अजया

31) धृति

32) आनंदा

33) सुनंदा

34) विजया

35) शांति

36) क्षमा

37) सिद्धि

38) तुष्टि

39) उमा

40) प्रिया

41) ऋद्धि

42) रति

43) दीपा

44) कांति

45) लक्ष्मी

46) ऐश्वर्या

47) वृद्धि

48) शक्ति

49) यवती

50) ब्राह्मी

51) अपरिजीत

52) अज

53) तारा

54) मनसा

55) श्वेता

56) दिति

57) माया

58) महामाया

59) मोहिनी

60) लालसा

61) तिवरा

62) विमला

63) गौरी

64) मति

65) अरुंधति

66) घंटा

67) कर्ण

68) सुकर्ण

69) रौद्री

70) काली

71) मयूरी

72) त्रिनेत्र

73) सुरूपा

74) बहुरूपा

75) रिपुहंत्री

76) अंबिका

77) चर्चिका

78) सुरपूजिता

79) वैवस्वती

80) कौमारी

81) माहेश्वरी

82) वैष्णवी

83) कृतिका

84) कौशिकी

85) शिवदूती

84) चामुंडा

85) ब्राह्मणी

86) वाराही

87) नरसिंही

88) ऐन्द्री

💫वटुका भैरव :~

1) सिद्ध

2) ज्ञान

3) सहज

4) समय

💫नौ क्षेत्रपाल :~

1) हेतुका

2) त्रिपुराघ्नय

3) अग्निजिह्वा

4) अग्निवेताल

5) काल

6) कराला

7) एकपाद

8) भीसन

9) गणेश

💫दुर्गा माता के शस्त्र :~

1) त्रिशूल

2) तलवार

3) चक्र

4) बाण

5) भाला

6) ढाल

7) धनुष

8) सर्प-फांस

9) अंकुश

10) घंटी/कुल्हाड़ी

11) ध्वज

12) पंखा

13) सिंह

14) सिंहासन

💫दुर्गा माता के सेवक :~

1) जया

2) विजया

3) डाकिनी

4) वर्णिनी

5) योगिनी

6) शाकिनी

7) हाकिनी

8) राकिनी

💫नौ भैरव :~

1) अष्टांग

2) रुरु

3) चंड

4) क्रोध

5) उन्मत्त

6) भयंकर

7) कपाल

8) भीषण

9) संहार

सारे जहाँ से अच्छा ...

सारे जहाँ से अच्छा, औपचारिक रूप से "तराना-ए-हिंदी" (हिन्दुस्तान के लोगों का गान) के रूप में जाना जाता है, उर्दू कविता की ग़ज़ल शैली में कवि मुहम्मद इकबाल द्वारा लिखे गए बच्चों के लिए एक उर्दू भाषा का देशभक्ति गीत है। यह कविता 16 अगस्त 1904 को साप्ताहिक पत्रिका इत्तेहाद में प्रकाशित हुई थी।

इकबाल द्वारा सार्वजनिक रूप से अगले वर्ष गवर्नमेंट कॉलेज, लाहौर, ब्रिटिश भारत (अब पाकिस्तान में) में गाया गया, यह तुरंत ब्रिटिश राज के विरोध का एक गान बन गया। यह गीत, हिंदुस्तान के लिए है - वह भूमि जिसमें वर्तमान बांग्लादेश, भारत और पाकिस्तान सम्मिलित हैं।


1910 में, मुहम्मद इकबाल ने मुस्लिम बच्चों के लिए एक गीत लिखा, "तराना-ए-मिल्ली" (मज़हबी समुदाय का गान), जिसे "सारे जहां से अच्छा" के रूप में एक ही छंद और तुकबंदी योजना में बनाया गया था।

तराना-ए-मिल्ली (1910) का पहला छंद पढ़ता है -

चीन ओ अरब हमारा, हिंदुस्तान हमारा
मुस्लिम हैं हम, वतन है सारा जहां हमारा

अर्थ -
मध्य एशिया और अरब हमारा है,
हिन्दुस्तान हमारा है
हम मुस्लिम हैं, सारा संसार हमारा है

इकबाल के समय में मध्य एशिया को चीन कहा जाता था

पारद शिवलिंग और शालग्राम पूजन का विशेष महत्त्व क्यों?

पारद शम्भु-बीज है। अर्थात् पारद (पारा) की उत्पत्ति महादेव शंकर के वीर्य से हुई मानी जाती है। इसलिए शास्त्रकारों ने उसे साक्षात् शिव माना है और पारदलिंग का सबसे अधिक महत्त्व बताकर इसे दिव्य बताया है। शुद्ध पारद संस्कार द्वारा बंधन करके जिस देवी-देवता की प्रतिमा बनाई जाती है, वह स्वयं सिद्ध होती है। वागभट्ट के मतानुसार, जो पारद शिवलिंग का भक्ति सहित पूजन करता है, उसे तीनों लोकों में स्थित शिवलिंगों के पूजन का फल मिलता है। पारदलिंग का दर्शन महापुण्य दाता है। इसके दर्शन से सैकड़ों अश्वमेध यज्ञों के करने से प्राप्त फल की प्राप्ति होती है, करोड़ों गोदान करने एवं हजारों स्वर्ण मुद्राओं के दान करने का फल मिलता है। जिस घर में पारद शिवलिंग का नियमित पूजन होता है, वहां सभी प्रकार के लौकिक और पारलौकिक सुखों की प्राप्ति होती है। किसी भी प्रकार की कमी उस घर में नहीं होती, क्योंकि वहां ऋद्धि-सिद्धि और लक्ष्मी का वास होता है। साक्षात् भगवान् शंकर का वास भी होता है। इसके अलावा वहां का वास्तुदोष भी समाप्त हो जाता है। प्रत्येक सोमवार को पारद शिवलिंग पर अभिषेक करने पर तांत्रिक प्रयोग नष्ट हो जाता है।

शिव महापुराण में शिवजी का कथन है-

लिंगकोटिसहस्रस्य यत्फलं सम्यगर्चनात् । 
तत्फलं कोटिगुणितं रसलिंगार्चनाद्भवेत ॥ 
ब्रह्महत्या सहस्राणि गौहत्यायाः शतानि च। 
तत्क्षणद्विलयं यांति रसलिंगस्य दर्शनात् ॥ 
स्पर्शनात्प्राप्यत मुक्तिरिति सत्यं शिवोदितम् ॥

अर्थात् करोड़ों शिवलिंगों के पूजन से जो फल प्राप्त होता है, उससे भी करोड़ गुना फल पारद शिवलिंग की पूजा और दर्शन से प्राप्त होता है। पारद शिवलिंग के स्पर्श मात्र से मुक्ति प्राप्त होती है।

शालग्राम

नेपाल में गंडकी नदी के तल में पाए जाने वाले काले रंग के चिकने अंडाकार पत्थर, जिनमें एक छिद्र होता है और पत्थर के अंदर शंख, चक्र, गदा या पद्म खुदे होते हैं तथा कुछ पत्थरों पर सफेद रंग की गोल धारियां चक्र के समान पड़ी होती हैं, इनको शालग्राम कहा जाता है।

शालग्राम रूपी पत्थर की काली बटिया विष्णु के रूप में पूजी जाती है। शालग्राम को एक विलक्षण मूल्यवान पत्थर माना गया है, जिसका वैष्णवजन बड़ा सम्मान करते हैं। पुराणों में तो यहां तक कहा गया है कि जिस घर में शालग्राम न हो, वह घर नहीं, श्मशान के समान है। पद्मपुराण के अनुसार जिस घर में शालग्राम शिला विराजमान रहा करती है, वह घर समस्त तीयों से भी श्रेष्ठ होता है। इसके दर्शन मात्र से ब्रह्महत्या दोष से शुद्ध होकर अंत में मुक्ति प्राप्त होती है। पूजन करने वालों को समस्त भोगों का सुख मिलता है। शालग्राम को समस्त ब्रह्मांडभूत नारायण (विष्णु) का प्रतीक माना जाता है। भगवान् शिव ने स्कंदपुराण के कार्तिक महात्म्य में शालग्राम का महत्त्व वर्णित किया है। प्रति वर्ष कार्तिक मास की द्वादशी को महिलाएं तुलसी और शालग्राम का विवाह कराती हैं और नए कपड़े, जनेऊ आदि अर्पित करती हैं। हिंदू परिवारों में इस विवाह के बाद ही विवाहोत्सव शुरू हो जाते हैं।

ब्रह्मवैवर्तपुराण के प्रकृतिखंड अध्याय 21 में उल्लेख मिलता है कि जहां शालग्राम की शिला रहती है, वहां भगवान् श्री हरि विराजते हैं और वहीं संपूर्ण तीर्थों को साथ लेकर भगवती लक्ष्मी भी निवास करती हैं। शालग्राम शिला की पूजा करने से ब्रह्महत्या आदि जितने पाप हैं, वे सब नष्ट हो जाते हैं। छत्राकार शालग्राम राज्य देने की तथा वर्तुलाकार में प्रचुर संपत्ति देने की योग्यता है। विकृत, फटे हुए, शूल के नोक के समान, शकट के आकार के, पीलापन लिए हुए, भग्नचक्र वाले शालग्राम दुख, दखिता, व्याधि, हानि के कारण बनते हैं। अतः इन्हें घर में नहीं रखना चाहिए।

पुराण में यह भी कहा गया है कि शालग्राम शिला का जल जो अपने ऊपर छिड़कता है, वह समस्त यज्ञों और संपूर्ण तीथों में स्नान कर चुकने का फल पा लेता है। शिला की उपासना करने से चारों वेद के पढ़ने तथा तपस्या करने का पुण्य मिलता है। जो निरंतर शालग्राम शिला के जल से अभिषेक करता है, वह संपूर्ण दान के पुण्य तथा पृथ्वी की प्रदक्षिणा के उत्तम फल का अधिकारी बन जाता है। इसमें संदेह नहीं कि शालग्राम के जल का निरंतर पान करने वाला पुरुष देवाभिलषित प्रसाद पाता है। उसे जन्म, मृत्यु और जरा से छुटकारा मिल जाता है। मृत्युकाल में इसका जलपान करने वाला समस्त पापों से मुक्त होकर विष्णुलोक को चला जाता है। शालग्राम पर चढ़े तुलसी पत्र को दूर करने वाले का दूसरे जन्म में स्त्री साथ नहीं देती। शालग्राम, तुलसी और शंख इन तीनों को जो व्यक्ति सुरक्षित रूप से रखता है, उससे भगवान् श्री हरि बहुत प्रेम करते हैं।

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