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ऋतुओं का प्रभाव ।।

हिन्दू व्रत और त्योहार का संबंध मौसम से भी रहता है। अच्छे मौसम में मांगलिक कार्य और कठिन मौसम में व्रत रखें जाते हैं। चातुर्मास में वर्षा, शिशिर और शीत ऋतुओं का चक्र रहता है जो कि शीत प्रकोप पैदा करता है... 


शीत प्रकोप के कारण जठराग्नि मंद हो जाती है, पाचन क्रिया धीमी पड़ जाती है, इसीलिए भी आरोग्य की दृष्टि से जप तप के द्वारा खाने में संयम रखने के लिए व्रत उपवास आदि किए जाते हैं ।

👉 श्री देव शयनी एकादशी व्रत और पूजा विधि👇

1. व्रत के दिन सुबह स्नान के बाद देवशयनी एकादशी व्रत और पूजा का संकल्प करें. इसके लिए आप हाथ में जल, अक्षत् और फूल लेकर संकल्प करें।

2. प्रात: से ही बहुत सारे सिद्ध योग है. ऐसे में आप प्रात: स्नान के बाद देवशयनी एकादशी व्रत की पूजा कर सकते हैं. इसके लिए भगवान विष्णु की शयन मुद्रा वाली तस्वीर या मूर्ति की स्थापना करें क्योंकि यह उनके शयन की एकादशी है।

3 . अब आप भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी की पूजा करें. भगवान विष्णु को पीले वस्त्र, पीले फूल, फल, चंदन, अक्षत्, पान का पत्ता, सुपारी, तुलसी के पत्ते, पंचामृत आदि अर्पित करें. इस दौरान ओम नमो भगवते वासुदेवाय नम: मंत्र का उच्चारण करते रहें।

4 . फिर माता लक्ष्मी की विधिपूर्वक पूजा करें. उसके पश्चात विष्णु चालीसा, विष्णु सहस्रनाम और देवशयनी एकादशी व्रत कथा का पाठ करें. पूजा का समापन भगवान विष्णु की आरती से करें।

5 . ​दिनभर फलाहार पर रहें. भगवत वंदना और भजन-कीर्तन में समय व्यतीत करें. संध्या आरती के बाद रात्रि जागरण करें।

6. अगली सुबह स्नान के बाद पूजन करें. किसी ब्राह्मण को अन्न, वस्त्र और दक्षिणा देकर संतुष्ट करें।

7 . इस पश्चात पारण समय में पारण करके व्रत को पूरा करें. इस प्रकार से देवशयनी एकादशी का व्रत करना चाहिए🙏🏻

🙏 ओम नमो नारायणाय 🙏
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एवं सततयुक्ता ये भक्तास्त्वां पर्युपासते ।
ये चाप्यक्षरमव्यक्तं तेषां के योगवित्तमाः ॥

🚩धर्मो रक्षति रक्षितः ࿗ सुखस्य मूलं धर्मः 🚩

ज्योतिष में गो-महिमा ।।

१. ज्योतिष में गोधूलि का समय विवाह के लिये सर्वोत्तम माना गया है।

२. यदि यात्रा के प्रारम्भ में गाय सामने पड़ जाय अथवा अपने बछड़े को दूध पिलाती हुई सामने पड़ जाय तो यात्रा सफल होती है।

३. जिस घर में गाय होती है, उसमें वास्तुदोष स्वतः ही समाप्त हो जाता है।

४. यदि रास्ते में जाते समय गोमाता आती हुई दिखायी दें तो उन्हें अपने दाहिने से जाने देना चाहिये, यात्रा सफल होगी।

५. यदि बुरे स्वप्न दिखायी दें तो मनुष्य गोमाता का नाम ले, बुरे स्वप्न दिखने बन्द हो जायँगे।

६. गाय के घी का एक नाम आयु भी है- 'आयुर्वै घृतम्'। अतः गाय के दूध-घी से व्यक्ति दीर्घायु होता है। हस्तरेखा में आयुरेखा टूटी हुई हो तो गाय का घी काम में लें तथा गाय की पूजा करें।

७. गोमाता के नेत्रों में प्रकाशस्वरूप भगवान् सूर्य तथा ज्योत्स्ना के अधिष्ठाता चन्द्रदेव का निवास होता है। जन्मपत्री में सूर्य-चन्द्र कमजोर हों तो गोनेत्र के दर्शन करें लाभ होगा।(कल्याण)

नारायण! नारायण!! नारायण!!!

।। श्रीकरपात्र-वाक्सुधा ।।

....वक्ताओं पर बड़ी भारी जिम्मेदारी है। शास्त्रोक्त सदाचार, परोपकारपरायणता तथा समताका अनुष्ठान और प्रचार अधिक मात्रामें करना चाहिए। ध्यान रहे; यदि इस व्याजसे कुछ कीर्तिलिप्सा या वित्तलिप्सा होगी तो यह सब निरर्थक हो जायगा। कारण यह कि चाहे लोकोपकारार्थ कितना ही ऊँचा प्रयत्न करनेवाला हो; पर उसमें यदि धन, मान, कामकी लिप्सा होती है तो लोकमें उसका अनादर हो जाता है। विशेषकर ब्राह्मणका तो तुरन्त अनादर और अपकर्ष होता है; दुरभिसन्धिपूर्वक ब्राह्मणोंको लाञ्छित करनेका पूर्ण प्रयास किये जानेके कारण उनके प्रति लोगोंमें नाममात्र विश्वास रह गया है।

अतः धर्मप्रचारके लिए भेजे हुए द्रव्यकी भी जब उपेक्षा की जायगी तभी संसार तथा अपने कल्याणके लिए प्रयत्न सफल हो सकता है, अन्यथा नहीं। साथ ही विद्वदभिमत शास्त्रीय सिद्धान्तको नागरिक तथा ग्रामीण संस्कृत विद्यालयोंके अध्यापकों और विद्यार्थियोंमें भी प्रचारित करने का सुदृढ़ आयोजन किया जाना अत्यावश्यक है। अनन्तर ग्रामोंके संघटनके कार्यक्रमका तथा वहाँ भी धर्मप्रचारके कार्यका भार तत्तत्क्षेत्रीय मनीषियोंको देना चाहिए।

श्री राधारानी की अष्ट सखियों की जानकारी ।।

राधा रानी की अष्ट सखियों का चित्र दर्शन और राधा रानी की अष्ट सखियो के बारे मे जानते है…

ललिता सखी – ये सखी श्रीजी की सबसे चतुर और प्रिय सखी है। ललिता सखी राधा रानी को तरह-तरह के खेल खिलाती है। कभी नौका-विहार तो कभी वन-विहार कराती है। ये सखी ठाकुर जी को हर समय बीडा(पान) देती रहती है। ये ऊँचे गाँव मे रहती है। इनकी उम 14 साल 8 महीने 27 दिन है।

विशाखा सखी – ये सखी गौरांगी रंग की है। श्रीजी की ये सखी ठाकुर जी को सुदंर-सुदंर चुटकुले सुनाकर हँसाती है। ये सखी सुगन्धित दव्यो से बने चन्दन का लेप करती है। इनकी उम 14 साल 2 महीने 15 दिन है।

चम्पकलता सखी – ये सखी ठाकुर जी को अत्यन्त पेम करती है। ये करहला गाव मे रहती है।इनका अंग वण पुष्प-छटा की तरह है।ये ठाकुर जी की रसोई सेवा करती है। इनकी उम 14 साल 2 महीने 13 दिन है।

चिता सखी – ये सखी राधा रानी की अति मन भावँती सखी है। ये बरसाने मे चिकसौली गाव मे रहती है। जब ठाकुर जी 4 बजे सोकर उठते है तब यह सखी फल, शबत, मेवा लेकर खड़ी रहती है। इनकी उम 14 साल 7 महीने 14 दिन है।

तुगंविधा सखी – श्री राधारानी जी की ये सखी चदंन की लकड़ी के साथ कपूर हो ऐसे महकती है। ये युगलवर के दरबार मे नृत्य, गायन करती है। ये वीणा बजाने मे चतुर है। ये गौरा माँ पार्वती का अवतार है। इनकी उम 14 साल 2 महीने 22 दिन है।

इन्दुलेखा सखी – ये सखी अत्यन्त सुझबुझ वाली है। ये सुनहरा गाव मे रहती है।ये किसी कि भी हस्तरेखा को देखकर बता सकती है कि उसका क्या भविष्य है। ये पेम कहानियाँ सुनाती है। इनकी उम 14 साल 2 महीने 10 दिन है।

रगंदेवी सखी – ये बड़ी कोमल व सुदंर है। ये राधा रानी के नैनो मे काजल लगाती है और शिंगार करती है।इनकी उम 14 साल 2 महीने 4 दिन की है।

सुदेवी सखी – ये सबसे छोटी सखी है। बड़ी चतुर और पिय सखी है। ये सुनहरा गाव मे रहती है। ये ठाकुर जी को पानी पिलाने की सेवा करती है।इनकी उम 14 साल 2 महीने 4 दिन की है।

जय श्री राधे राधे !!
जय अष्ट सखी शिरोमनी जी राधे राधे

पौष मास का महात्मय ।।

हमारे सनातन हिंदू धर्मग्रन्थों में प्रत्येक महीने के महत्व को भली प्रकार से दर्शाया गया है। हमारी हिंदू संस्कृति में बारहों मास व्रत-पर्व- त्यौहारों से युक्त हैं। पौष मास धनु- संक्रान्ति होती है। अत: इस मास में भगवत्पूजन का विशेष महत्त्व है। दक्षिण भारत के मन्दिरों में धनुर्मास का उत्सव मनाया जाता है। मान्यता है कि पौष कृष्ण अष्टमी को श्राद्ध करके ब्राह्मण भोजन कराने से श्राद्ध का उत्तम फल मिलता है।

ऐसी मान्यता है कि पौष मास में भगवान भास्कर ग्यारह हजार रश्मियों के साथ तपकर सर्दी से राहत देते हैं। इनका वर्ण रक्त के समान है। शास्त्रों में ऐश्वर्य, धर्म, यश, श्री, ज्ञान और वैराग्य को ही भग कहा गया है और इनसे युक्त को ही भगवान माना गया है। यही कारण है कि पौष मास का भग नामक सूर्य साक्षात परब्रह्म का ही स्वरूप माना गया है। पौष मास में सूर्य को अर्ध्य देने तथा उसके निमित्त व्रत करने का भी विशेष महत्व धर्मशास्त्रों में उल्लेखित है।

इस माह में ज़ब सूर्य भगवान धनु राशि में आते है तब से मकर संक्रांति तक एक महीने के समय को खर मास के नाम से जाना जाता हैं जिसमें कोई शुभ काम नहीं होता है. खर मास लगने के जब 15 दिन हो जाते हैं तब किसी भी एक दिन तेल के पकौड़े बनाकर चील-कबूतरों को खिला देते हैं. कुछ पकौड़े डकौत को भी दे देने चाहिए. अपने आसपास के लोगों तथा जाननों वालों को पकौड़े भोग के रुप में बाँटने चाहिए और उसी के बाद कोई शुभ काम करना चाहिए। इस वर्ष 16 दिसंबर से 14 जनवरी तक का समय खरमास रहेगा।

पौष नाम क्यों पड़ा
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विक्रम संवत में पौष का महीना दसवां महीना होता है। भारतीय महीनों के नाम नक्षत्रों पर आधारित हैं। दरअसल जिस महीने की पूर्णिमा को चंद्रमा जिस नक्षत्र में होता है उस महीने का नाम उसी नक्षत्र के आधार पर रखा जाता है। पौष मास की पूर्णिमा को चंद्रमा पुष्य नक्षत्र में रहता है इसलिए इस मास को पौष का मास कहा जाता है।

सफला एकादशी -- पौष कृष्ण एकादशी सफला एकादशी कहलाती है इस दिन उपवासपूर्वक भगवान का पूजन करना चाहिये । इस व्रत को करने से सभी कार्य सफल हो जाते हैं।

सुरूपा द्वादशी -- पौषमास के कृष्ण पक्ष की द्वादशी तिथि को सुरूपा द्वादशी का व्रत होता है। यदि इसमें पुष्यनक्षत्र का योग हो तो विशेष फलदायी होता है। इस व्रत का गुजरात प्रान्त में विशेष रूप से प्रचलन है। सौन्दर्य, सुख, सन्तान और सौभाग्य प्राप्ति के लिये इसका अनुष्ठान किया जाता है।

आरोग्यव्रत -- विष्णुधर्मोत्तरपुराण में वर्णन मिलता है कि पौष शुक्ल द्वितीया को आरोग्यप्राप्ति के लिये 'आरोग्यव्रत' किया जाता है। इस दिन गोशृङ्गोदक (गायों की सींगों को धोकर लिये हुए जल से स्नान करके सफेद वस्त्र धारणकर सूर्यास्त के बाद बालेन्दु (द्वितीया तिथि के चन्द्रमा) का गन्ध आदि से पूजन करे। जब तक चन्द्रमा अस्त न हों तब तक गुड़, दही, परमान्न (खीर) और लवण (नमक) से ब्राह्मणों को संतुष्टकर केवल गोरस (छाँछ) पीकर जमीन पर शयन करे। इस प्रकार एक वर्ष तक प्रत्येक शुक्ल पक्ष वाली द्वितीया को चन्द्रपूजन करके बारहवें महीने (मार्गशीर्ष) में इक्षुरस से भरा घड़ा, यथाशक्ति सोना (स्वर्ण) और वस्त्र ब्राह्मण को देकर उन्हें भोजन कराने से रोगों की निवृति और आरोग्यता की प्राप्ति होती है।

ब्रह्म गौरी पूनम व्रत -- इस व्रत को पौष माह की शुक्ल पक्ष की तृतीया को किया जाता है. इस तिथि पर जगजननी गौरी का षोडशोपचार से पूजन किया जाता है. इस व्रत को मुख्य रुप से स्त्रियों द्वारा ही किया जाता है. इस गौरी पूजन व व्रत से पति व पुत्र दोनों विरंजीवी होते हैं और व्रत करने वाली के लिए परम धाम भी सुगम हो जाता है।

मार्तण्डसप्तमी -- पौष शुक्ल सप्तमी को 'मार्तण्डसप्तमी' कहते हैं। इस दिन भगवान सूर्य की प्रसन्नता के उद्देश्य से हवन करके गोदान करने से वर्षपर्यन्त सूर्यदेव की कृपा प्राप्त होती है।

पुत्रदा एकादशी -- पौष शुक्ल एकादशी 'पुत्रदा' नाम से प्रसिद्ध है। इस दिन उपवास से सुलक्षण पुत्र की प्राप्ति होती है । भद्रावती नगरी के राजा वसुकेतु ने इस व्रत के अनुष्ठान से सर्वगुणसम्पन्न पुत्र प्राप्त किया था।

पौष शुक्ल त्रयोदशी --  को भगवान के पूजन तथा घृतदान का विशेष महत्त्व है।

माघमास के स्नान का प्रारम्भ पौष की पूर्णिमा से होता है। इस दिन प्रातःकाल स्नानादि से निवृत्त होकर मधुसूदन भगवान को स्नान कराया जाता है, सुन्दर वस्त्रों से सुसज्जित किया जाता है। उन्हें मुकुट, कुण्डल, किरीट, तिलक, हार तथा पुष्पमाला आदि धारण कराये जाते हैं। फिर धूप-दीप, नैवेद्य निवेदितकर आरती उतारी जाती है। पूज़न के अनन्तर ब्राह्मण भोजन तथा दक्षिणादान का विधान है। केवल इस एक दिन का ही स्नान सभी वैभव तथा दिव्यलोक की प्राप्ति कराने वाला कहा गया है।

पौषमास के रविवार --  को व्रत करके भगवान् सूर्य के निमित्त अर्घ्यदान दिया जाता है तथा एक समय नमक रहित भोजन किया जाता है। इस प्रकार यह पौष मास का पावन माहात्म्य है।

मकर संक्रांति -- पौष माह की 14 जनवरी को मकर संक्रांति के रुप में मनाया जाता है क्योंकि इस दिन सूर्य मकर राशि में प्रवेश करता है. इस दिन पवित्र नदियों अथवा तालाबों में सुबह सवेरे स्नान कर दान किया जाता है. दान में अधिकाँत: खिचड़ी का दान किया जाता है. बहुत से लोग ऊनी वस्त्रों अथवा कंबलों का भी दान गरीबों में करते हैं.

किसी लड़की के विवाह के बाद जब पहली संक्रांति आती है तब उसके मायके से ससुराल वालों के सभी सदस्यों को गर्म कपड़े दिए जाते हैं. इस दिन 14 चीजों का दान नयी बहू द्वारा भी मिनसकर किया जाता है. जिसकी जितनी सामर्थ्य हो उसी के अनुसार दानादि किया जाता है।

पौष के महीने में सूर्य होते उत्तरायण
पौष के महीने में ही मकर संक्रान्ति के दिन से सूर्य उत्तरायण हो जाते हैं. गीता में भगवान श्रीकृष्ण ने कहा है कि जो व्यक्ति सूर्य के उत्तरायण में, दिन के उजाले में, शुक्ल पक्ष में अपने प्राण त्यागता है, वो मृत्यु लोक में लौट कर नहीं आता. यही वजह है कि महाभारत युद्ध में बाणों से छलनी भीष्म पितामह ने सूर्य के उत्तरायण होने के बाद ही अपने प्राण त्यागे थे. जब उन्हें बाण लगे थे, तब सूर्य दक्षिणायन थे, तब उन्होंने बाणों की शैय्या पर लेटकर खासतौर पर सूर्य के उत्तरायण होने का इंतजार किया था. ऐसा माना जाता है कि इस वजह से भीष्म पितामह को मृत्यु के बाद मोक्ष की प्राप्ति हुई थी।

ऐसे करें सूर्य देव की उपासना
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इस माह में प्रतिदिन सबसे पहले नित्य प्रातः स्नान करने के बाद सूर्य को जल अर्पित करना चाहिए।

-- इसके बाद ताम्बे के पात्र से जल दें।
-- जल में रोली और लाल फूल डालें।
-- इसके बाद सूर्य के मंत्र "ॐ आदित्याय नमः" का जाप करें।
-- इस माह नमक का सेवन कम से कम करना चाहिए।

खान-पान में रखें सावधानी
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-- इस माह में चीनी की बजाय गुड़ का सेवन करें।
-- खाने पीने में मेवे और स्निग्ध चीजों का इस्तेमाल करें।
-- इस महीने में बहुत ज्यादा तेल घी का प्रयोग भी उत्तम नहीं होगा।
-- अजवाइन, लौंग और अदरक का सेवन लाभकारी होता है।
-- इस महीने में ठन्डे पानी का प्रयोग, स्नान में गड़बड़ी और अत्यधिक खाना खतरनाक हो सकता है।