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इस्लाम त्याग हिंदू बनी महिला चिकित्सकभगवान शंकर को अर्पित किया स्वर्ण मुकुट ।।

भगवान शंकर को मुकुट अर्पित करने वाली महिला चिकित्सक मूल रूप से गुजरात की रहने वाली हैं। वह अभी अमेरिका में रहती हैं और वहां चिकित्सा संबंधी कार्य करती है। महिला ने एक वर्ष पहले इस्लाम त्यागकर हिंदू धर्म स्वीकार किया।

गाजियाबाद के डासना मंदिर में महिला चिकित्सक ने भगवान शंकर को स्वर्ण मुकुट समेत श्रृंगार सामग्री भेंट किया है। बताया जा रहा है कि महिला द्वारा भेंट किए गए स्वर्ण मुकुट का भार 19 तोला है। यह मुकुट उत्तर प्रदेश के हरदोई जनपद (जिला) के दो कारीगरों ने तैयार किया है।

नवरात्रि महापर्व ।।

🕉️ मां भगवती के नौ रुप


दिन 1 - शैलपुत्री
शैलपुत्री (पर्वत की पुत्री), हिमालय पर्वत क्षेत्र के राजा हिमावत की पुत्री हेमवती (पार्वती) जो पिछले अवतरण में दक्षपुत्री सती थी। इस रूप में देवी को शिवजी की पत्नी के रूप में पूजा जाता है। इनका वाहन या सवारी वृषभ (बैल) है इसलिए वृषारूढा हैं। शैलपुत्री को महाकाली का प्रत्यक्ष अवतार माना जाता है। इस दिन का वर्ण (रंग) लाल है, जो कार्य कुशलता और ऊर्जा का प्रतीक है।

दिन 2 - ब्रह्मचारिणी
ब्रह्म (तपस्या) चारिणी (आचरण करने वाली) देवी, मां ने शिवजी को पति रूप में पाने के लिए कठोर तपस्या की थीं। देवी ने अन्न, फल, जल आदि सब त्याग दिया था इसलिए अपर्णा हैं। इस दिन का वर्ण (रंग) नीला हैं जो दृढ़ ऊर्जा, शांति को प्रतीक है।

दिन 3 - चंद्रघंटा
शिवजी से विवाह करने के पश्चात मां पार्वती ने अपने मस्तक को अर्धचंद्र (आधा चंद्र) से सजाया था। देवी का यह रूप हर समय दुष्टों से युद्ध को तत्पर रहता है तथा मस्तक का अर्धचंद्र घंटे की ध्वनि उत्पन्न करता हैं। देवी का शरीर में स्वर्ण जैसी आभा है, वह सुंदरता और निडरता का प्रतीक है। देवी ने अनगिनत असुरो का वध किया हैं जिसमें चंड मुंड मुख्य हैं, देवी को चामुंडा, चंडी, चंडीका, रणचंडी आदि नामो से भी पुकारा जाता हैं। इस दिन का वर्ण (रंग) पीला है, जो एक जीवंत वर्ण और सभी के मन को शांति प्रदान करता है।

दिन 4 - कुष्मांडा
कु (थोड़ा), उषमा (ऊर्जा), अंड (ब्रह्मांड)। इस रूप में देवी ने अपनी थोड़ी सी ऊर्जा द्वारा ब्रह्मांड को उत्पन्न किया था। यह ब्रह्मांड की रचनात्मक शक्ति है। इस दिन का वर्ण (रंग) हरा है जो प्रकृति का प्रतीक हैं।

दिन 5 - स्कंदमाता
स्कंद (कार्तिकेय) की माता, पुत्र कार्तिकेय बालरूप में देवी की गोद में बैठे हुए हैं। यह कमल के आसन पर बैठी हुई है इसलिए पद्मासना भी हैं। यह अग्नि की देवी भी है। इस दिन का वर्ण (रंग) मटमैला या धूसर हैं जो एक माँ की परिवर्तित शक्ति का प्रतीक हैं जब उसकी संतान संकट में होती है।

दिन 6 - कात्यायनी
कात्यायन ऋषि ने कठोर तपस्या करके देवी से वरदान मांगा कि वह उनकी पुत्री के रूप में जन्म ले। देवी कात्यायन ऋषि की पुत्री रूप में जन्मी इसलिए कात्यायनी कहलाई। देवी ने अनगिनत असुरो का वध किया है जिसमें महिषासुर (भैंस रूपी असुर) मुख्य हैं। देवी सीता, राधा, रूकमणी ने अपने स्वामी से विवाह के लिए देवी कात्यायनी की पूजा अर्चना की थी। भगवान कृष्ण को पति रूप में पाने के लिए ब्रज की गोपियो ने भी देवी कात्यायनी की आराधना की थीं। इस दिन का वर्ण (रंग) नारंगी हैं जो साहस का प्रतीक हैं।

दिन 7 - कालरात्रि
देवी दुर्गा या पार्वती का सबसे भयंकर रूप है, कालरात्रि नाम के उच्चारण से सभी असुरी शक्तियाँ भयभीत होकर भागती हैं। देवी की त्वचा का वर्ण (रंग) काला है तथा वह श्वेत वर्ण के वस्त्र धारण किए हुए हैं, उनके नेत्रों में बहुत अधिक क्रोध और सांसो से अग्नि निकलती हैं। देवी ने अनगिनत असुरो का वध किया हैं जिसमें रक्तबीज मुख्य है। इनको महाकाली, भद्रकाली, भैरवी, रूद्रानी आदि नामों से भी जाना जाता हैं। इनका रूप भले ही भयंकर हो किंतु यह सदैव शुभ फल देने वाली माँ है इसलिए मां शुभंकरी है। इस दिन का वर्ण (रंग) श्वेत हैं, श्वेत वर्ण प्रार्थना और शांति को प्रतीक है तथा भक्तों को सुनिश्चित करता है कि देवी मां उन्हें हानि से बचाएगी।

दिन 8 - महागौरी
महागौरी का अर्थ हैं पूर्णतः गौर वर्ण (पूर्ण श्वेत)। एक कथा के अनुसार भगवान शिव ने देवी महाकाली के काले शरीर को गंगाजल से धोकर कांतिमय श्वेत कर दिया था और देवी महागौरी कहलाई। इस समय देवी के शरीर से नया रुप उत्पन्न हुआ जिसे देवी कौशिकी कहा गया, देवी कौशिकी ने शुंभ निशुंभ नाम के असुरो का वध करके पुनः देवी महागौरी के शरीर में समा गई। महागौरी देवी के सभी आभूषण और वस्त्र श्वेत हैं इसलिए इनको श्वेतांबरधरा हैं। इनकी उपमा शंख, चंद्र और कुंद के पुष्प से की गई हैं। इस दिन का वर्ण (रंग) गुलाबी है जो आशा, विश्वास का प्रतीक है।

दिन 9 - सिद्धिदात्री
सृष्टि के आरंभ में भगवान रूद्र (शिव) ने देवी आदि पराशक्ति की पूजा की थीं, देवी निराकार थी और सिद्धिदात्री के रूप में प्रकट हुई तथा इनके साथ मिलकर शिवजी ने अद्धनारीश्वर रूप लेकर संसार का आरंभ किया। सिद्धिदात्री की पूजा से देवी के सभी नौ रूपों की पूजा हो जाती हैं। ये सभी 8 प्रकार की सिद्धिया देने वाली माँ है। आठ सिद्धिया है अणिमा, महिमा, गरिमा, लघिमा, प्राप्ति, प्राकामय, ईशित्व, वशित्व। इस दिन का वर्ण (रंग) हल्का नीला हैं जो प्रकृति की सुंदरता का प्रतीक हैं।

Ma Yasoda with Krishna ।।

Traditional wood craft from Odisha. 

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शीतला अष्टमी, शीतला माता ।।

🕉  शीतला अष्टमी / बसौडा


शीतला अष्टमी पर्व देवी शीतला के सम्मान में मनाया जाता हैं। यह होली पर्व के आठ दिन पश्चात चैत्र महीने के कृष्ण पक्ष की अष्टमी तिथि को मनाया जाता हैं, किंतु कुछ स्थानों पर जनता इस पर्व को होली के पश्चात आने वाले पहले सोमवार या गुरूवार को मनाते हैं। शास्त्रों के अनुसार शनिवार, रविवार को आकरा वार (उग्र दिन) माना जाता हैं इसलिए शीतला माता की पूजा शनिवार, रविवार को नहीं की जाती हैं।

शीतला माता को शीतल आहार, खाद्य पदार्थ रुचिकर हैं। शीतला अष्टमी के दिन घर में आहार नहीं बनता है, एक दिन पहले सप्तमी रात को ही आहार बना लिया जाता हैं। अगले दिन यही ठंडा या बासी आहार (बसौड़ा) शीतला माता को नैवेद्य के रूप में समर्पित किया जाता हैं और सभी जन प्रसाद रूप में ठंडे आहार का सेवन करते हैं। शीतला अष्टमी पर माता शीतला को दही, राबड़ी, दाल, चावल, पूड़ी, मोहनभोग (हलवा), मीठे पुए आदि का भोग लगाया जाता है।

शीतला अष्टमी तक वातावरण में ठंडक बनी हुई होती हैं इसलिए कुछ घंटे पहले निर्मित आहार सेवनीय होता है। शीतला अष्टमी के पश्चात वातावरण में उष्णता (गर्मी) बढ़ने लगती है तथा ग्रीष्म ऋतु का आगमन होता हैं, ग्रीष्म ऋतु में आहार तुरंत बासी हो जाता हैं इसलिए अब तुरंत पकाया हुआ आहार ही सेवनीय हैं।

शीतला माता

शीतला संस्कृत भाषा का शब्द हैं, इसका अर्थ हैं जो शीतलता या ठंडक दे। शीतला माता शिव पत्नी देवी पार्वती का अवतार या रूप हैं। यह स्वच्छता की देवी हैं। प्राचीनकाल से ही शीतला माता का बहुत अधिक माहात्म्य रहा है। स्कंद पुराण में शीतला देवी वाहन गर्दभ बताया है। ये हाथों में कलश, सूप, मार्जनी (झाडू) तथा नीम के पत्ते धारण करती हैं। इनका प्रतीकात्मक महत्व है। चेचक का रोगी व्यग्रता में वस्त्र उतार देता है। सूप से रोगी को वायु दी जाती है, झाडू से चेचक के फोड़े फट जाते हैं। नीम के पत्ते फोडों को सड़ने नहीं देते। रोगी को ठंडा जल प्रिय होता है अत: कलश का महत्व है। गर्दभ की लीद के लेपन से चेचक के चिन्ह मिट जाते हैं। 

स्कन्द पुराण में इनकी अर्चना का स्तोत्र शीतलाष्टक के रूप में प्राप्त होता है। इस स्तोत्र की रचना भगवान शंकर ने लोकहित में की थी। शीतलाष्टक शीतला देवी की महिमा गान करता है, साथ ही उनकी उपासना के लिए भक्तों को प्रेरित भी करता है। शास्त्रों में भगवती शीतला की वंदना के लिए यह मंत्र बताया गया है:

वन्देऽहंशीतलांदेवीं रासभस्थांदिगम्बराम्।।
मार्जनीकलशोपेतां सूर्पालंकृतमस्तकाम्।।

हिंदी अर्थ - गर्दभ पर विराजमान, दिगम्बरा, हाथ में झाडू तथा कलश धारण करने वाली, सूप से अलंकृत मस्तकवाली भगवती शीतला की मैं वंदना करता हूं। शीतला माता के इस वंदना मंत्र से यह पूर्णत: स्पष्ट हो जाता है कि ये स्वच्छता की अधिष्ठात्री देवी हैं। हाथ में मार्जनी (झाडू) होने का अर्थ है कि हम जनसमूह को भी स्वच्छता के प्रति जागरूक होना चाहिए। कलश से तात्पर्य है कि स्वच्छता रहने पर ही स्वास्थ्य रूपी समृद्धि आती है।

शीतला माता ग्रीष्म ऋतु से उत्पन्न रोगों की रक्षक देवी है। प्रमुख रूप से चेचक रोग के साथ इनका नाम जोड़ा जाता हैं। देवी महात्यम के अनुसार ज्वारासुर नाम के असुर ने अवयस्कों (बच्चों) में ज्वर (बुखार) के रोगाणु फैला दिए, शीतला माता ने अवयस्कों (बच्चों) के रक्त को शुद्ध करके ज्वर रोगाणुओ को नष्ट किया। इस घटना से माँ शीतला ज्वर देवी के रूप में प्रसिद्ध हुई। कथा के अनुसार शीतला माता और ज्वारासुर में युद्ध होता है, युद्ध हारने के पश्चात ज्वारासुर माता की शरण में जाता है और शीतला माता ज्वारासुर को क्षमा करके ज्वर असुर से ज्वर देवता की उपाधि देती हैं। कई मंदिरों में माँ शीतला की मूर्ति के साथ सेवक रूप में ज्वर देवता की मूर्ति भी पाई जाती हैं। उत्तर भारत में शीतला माता लोकप्रिय हैं तथा दक्षिण भारत में देवी का अवतार मरियममन की पूजा होती है।

Even stones get floated in water by touching Ramcharan...

Jai Siya Jai Jai Siyaram's mantra is this... Raghupati Raghav Ramchandra's name is

always auspicious

The whole world is blessed by

remembering the name of Siya Ram